स्वरगोष्ठी – 394 में आज
पूर्वांग और उत्तरांग राग – 9 : राग तिलक कामोद
प्रीति सागर से फिल्म का एक गीत और पण्डित दत्तात्रेय विष्णु पलुस्कर से राग तिलक कामोद सुनिए
दत्तात्रेय विष्णु पलुस्कर |
प्रीति सागर |
‘रेडियो
प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी हमारी
श्रृंखला “पूर्वांग और उत्तरांग राग” की नौवीं कड़ी में मैं कृष्णमोहन
मिश्र, आप सब संगीत-प्रेमियों का हार्दिक स्वागत करता हूँ। रागों को
पूर्वांग और उत्तरांग में विभाजित करने के लिए सप्तक के सात स्वरों के साथ
तार सप्तक के षडज स्वर को मिला कर आठ स्वरों के संयोजन को दो भागों में
बाँट दिया जाता है। प्रथम भाग षडज से मध्यम तक पूर्वांग और दूसरे भाग पंचम
से तार षडज तक उत्तरांग कहा जाता है। इसी प्रकार जो राग दिन के पहले भाग
(पूर्वार्द्ध) अर्थात दिन के 12 बजे से रात्रि के 12 बजे के बीच में
गाया-बजाया जाता हो उन्हें पूर्व राग और जो राग दिन के दूसरे भाग
(उत्तरार्द्ध) अर्थात रात्रि 12 बजे से दिन के 12 बजे के बीच गाया-बजाया
जाता हो उन्हें उत्तर राग कहा जाता है। भारतीय संगीत का यह नियम है कि जिन
रागों में वादी स्वर सप्तक के पूर्वांग में हो तो उन्हें दिन के
पूर्वार्द्ध में और जिन रागों को वादी स्वर सप्तक उत्तरांग में हो उन्हे
दिन के उत्तरार्द्ध में गाया-बजाया जाना चाहिए। राग का वादी स्वर यदि सप्तक
के प्रथम भाग में है संवादी स्वर निश्चित रूप से सप्तक के दूसरे भाग में
होगा। इसी प्रकार यदि वादी स्वर सप्तक के दूसरे भाग में हो तो संवादी स्वर
सप्तक के पूर्व में होगा। वादी और संवादी स्वरों में सदैव तीन अथवा चार
स्वरों का अन्तर होता है। इसलिए यदि वादी स्वर ऋषभ है तो संवादी स्वर पंचम
या धैवत होगा। इसी प्रकार यदि वादी स्वर धैवत हो तो संवादी स्वर गान्धार
अथवा ऋषभ होगा। भीमपलासी, बसन्त और भैरवी जैसे कुछ राग इस नियम के अपवाद
होते हैं। इस कठनाई को दूर करने के लिए सप्तक के पूर्वांग और उत्तरांग का
क्षेत्र बढ़ा दिया जाता है। पूर्वांग का क्षेत्र षडज से पंचम तक और उत्तरांग
का क्षेत्र मध्यम से तार सप्तक के षडज तक माना जाता है। इस प्रकार
वादी-संवादी में से यदि एक स्वर पूर्वांग में हो तो दूसरा स्वर उत्तरांग
में हो जाता है। इस श्रृंखला में हम आपसे कुछ पूर्वांग और उत्तरांग प्रधान
रागों पर चर्चा करेंगे। इस श्रृंखला के लिए चुने गए अधिकतर रागों में वादी
स्वर षडज अथवा ऋषभ होता है और संवादी स्वर पंचम अथवा मध्यम होता है।
श्रृंखला की नौवीं कड़ी में आज हमने राग तिलक कामोद चुना है। श्रृंखला की इस
कड़ी में आज हम पार्श्वगायिका प्रीति सागर के स्वर में 1977 में प्रदर्शित
फिल्म “भूमिका” से राग तिलक कामोद पर आधारित एक गीत प्रस्तुत कर रहे हैं।
इसके साथ ही राग के शास्त्रीय स्वरूप को समझने के लिए सुविख्यात गायक
पण्डित दत्तात्रेय विष्णु पलुस्कर के स्वर में राग तिलक कामोद में निबद्ध
द्रुत लय की एक बन्दिश भी हम प्रस्तुत कर रहे हैं।
राग
तिलक कामोद का सम्बन्ध खमाज थाट से माना जाता है। इस राग के सर्वाधिक
प्रचलित स्वरूप में वादी स्वर षडज और संवादी स्वर पंचम होता है। इसके
गायन-वादन का उपयुक्त समय रात्रि का दूसरा प्रहर होता है। आरोह में गान्धार
और धैवत स्वर तथा अवरोह में ऋषभ स्वर वर्जित होता है। यह औड़व-औड़व जाति का
राग होता है। कुछ विद्वान इस राग में केवल शुद्ध निषाद स्वर का प्रयोग करते
हैं। उनका मत है कि कोमल निषाद स्वर के प्रयोग राग बिहारी की छाया आती है।
वैसे प्रचार में दोनों निषाद का प्रयोग होता है। कुछ विद्वान राग तिलक
कामोद में ऋषभ स्वर को वादी और पंचम स्वर को संवादी मानते हैं। “राग परिचय”
पुस्तक के लेखक हरिश्चन्द्र श्रीवास्तव के अनुसार ऋषभ स्वर को किसी भी दशा
में वादी स्वर मानना ठीक नहीं है, क्योंकि वादी स्वर पर न्यास किया जाना
आवश्यक होता है। राग तिलक कामोद में ऋषभ स्वर पर न्यास करने से राग देश हो
जाएगा। अतः इसमें षडज स्वर को वादी मानना अधिक न्याय-संगत है। पंचम स्वर को
संवादी स्वर मानने में कोई मतभेद नहीं है। इस राग के आरोह की जाति के विषय
में विद्वानों में मतभेद है। कुछ औड़व, कुछ षाड़व तो कुछ वक्र सम्पूर्ण जाति
का आरोह मानते हैं। औड़व प्रकार में गान्धार और धैवत तथा षाड़व प्रकार में
धैवत स्वर वर्जित होता है। वास्तव में इस राग के आरोह को या तो औड़व या वक्र
सम्पूर्ण जाति का माना जाना चाहिए। किसी भी दशा में षाड़व जाति का नहीं हो
सकता, क्योकि आरोह में जो दशा धैवत की है, ठीक वही गान्धार की है। इसलिए
धैवत स्वर को ही क्यों आरोह में वर्ज्य माना जाए। क्योंकि इस राग में
गान्धार और धैवत स्वर का प्रयोग ऊपर जाते समय इस प्रकार होता है कि उन्हें
अवरोह में सरलता से रखा जा सके। इस राग की प्रकृति चपल होने के कारण इसमें
अधिकतर छोटा खयाल तथा ठुमरी गायी जाती है। राग के शास्त्रीय स्वरूप को
समझने के लिए अब हम आपको पण्डित दत्तात्रेय विष्णु पलुस्कर के स्वर में राग
तिलक कामोद की एक बन्दिश सुनवा रहे हैं।
राग तिलक कामोद : “कोयलिया बोले अमवा की डार पर...” : पण्डित दत्तात्रेय विष्णु पलुस्कर
खमाज
थाट का ही एक प्रचलित और लोकप्रिय राग तिलक कामोद है। श्रृंगार रस की
रचनाएँ इस राग में खूब मुखर होती हैं। कुछ विद्वानों के अनुसार राग तिलक
कामोद षाड़व-सम्पूर्ण जाति का राग है, अर्थात इसके आरोह में छः स्वर और
अवरोह में सात स्वर प्रयोग किये जाते हैं। आरोह में धैवत स्वर वर्जित होता
है। इस राग में सभी स्वर शुद्ध प्रयोग किये जाते हैं। आरोह के स्वर हैं-
सा, रे, ग, सा, रे, म, प, ध, म, प, सां तथा अवरोह के स्वर हैं- सां, प, ध,
म, ग, सा, रे, ग। राग का वादी स्वर ऋषभ और संवादी स्वर पंचम होता है।
रात्रि के दूसरे प्रहर में इस राग का गायन-वादन खूब खिल उठता है। पहले हम
आपको राग तिलक कामोद के स्वरों में पिरोया एक फिल्मी गीत सुनवाते हैं। यह
गीत हमने 1977 में प्रदर्शित फिल्म ‘भूमिका’ से लिया है। फिल्म ‘भूमिका’
1940 के दशक में मराठी रंगमंच और फिल्मों की बहुचर्चित अभिनेत्री हंसा
वाडकर की आत्मकथा ‘सांगत्ये आइका’ पर आधारित थी, जिसका निर्देशन प्रख्यात
फ़िल्मकार श्याम बेनेगल ने किया था। फिल्म में अभिनय के प्रमुख कलाकार थे-
अमोल पालेकर, स्मिता पाटील, नासीरुद्दीन शाह, अमरीश पुरी आदि। फिल्म को दो
राष्ट्रीय पुरस्कार मिला, सर्वश्रेष्ठ पटकथा लेखन का और स्मिता पाटील को
सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का। इसके अलावा इसे सर्वश्रेष्ठ फिल्म का फिल्मफेयर
पुरस्कार भी प्राप्त हुआ था। फिल्म में कुल छः गीत हैं, जिनमे ‘तुम्हारे बिन जी ना लगे घर में...’ सहित पाँच गीत बसन्त देव ने और एक गीत (‘सावन के दिन आए...’) मजरूह सुल्तानपुरी ने लिखा है। बसन्त देव रचित गीत- ‘तुम्हारे बिन जी ना लगे...’
में संगीतकार वनराज भाटिया ने राग तिलक कामोद के स्वरों का स्पर्श किया
है। सितारखानी अर्थात पंजाबी ताल के इस गीत को प्रीति सागर ने बेहद आकर्षक
रूप में गाया है। आप यह गीत सुनिए और मुझे आज के इस अंक को यहीं विराम देने
की अनुमति दीजिए।
राग तिलक कामोद : ‘तुम्हारे बिन जी ना लगे घर में...’ : प्रीति सागर : फिल्म – भूमिका
संगीत पहेली
“स्वरगोष्ठी”
के 394वें अंक की संगीत पहेली में आज हम आपको वर्ष 1965 में प्रदर्शित एक
फिल्म से रागबद्ध गीत का अंश सुनवा रहे हैं। गीत के इस अंश को सुन कर आपको
दो अंक अर्जित करने के लिए निम्नलिखित तीन में से कम से कम दो प्रश्नों के
उत्तर देने आवश्यक हैं। यदि आपको तीन में से केवल एक अथवा तीनों प्रश्नों
का उत्तर ज्ञात हो तो भी आप प्रतियोगिता में भाग ले सकते हैं। इस वर्ष की
अन्तिम पहेली तक जिस प्रतिभागी के सर्वाधिक अंक होंगे, उन्हें वर्ष 2018 के
पाँचवें सत्र का विजेता घोषित किया जाएगा। इसके साथ ही पूरे वर्ष के
प्राप्तांकों की गणना के बाद वर्ष के अन्त में महाविजेताओं की घोषणा की
जाएगी और उन्हें सम्मानित भी किया जाएगा।
1 – इस गीतांश को सुन कर बताइए कि इसमें किस राग का स्पर्श है?
2 – इस गीत में प्रयोग किये गए ताल को पहचानिए और उसका नाम बताइए।
3 – इस गीत में किस गायिका के स्वर हैं?
आप उपरोक्त तीन मे से किन्हीं दो प्रश्नों के उत्तर केवल swargoshthi@gmail.com या radioplaybackindia@live.com
पर ही शनिवार, 24 नवम्बर, 2018 की मध्यरात्रि से पूर्व तक भेजें। आपको यदि
उपरोक्त तीन में से केवल एक प्रश्न का सही उत्तर ज्ञात हो तो भी आप पहेली
प्रतियोगिता में भाग ले सकते हैं। COMMENTS
में दिये गए उत्तर मान्य हो सकते हैं, किन्तु उसका प्रकाशन पहेली का उत्तर
देने की अन्तिम तिथि के बाद किया जाएगा। “फेसबुक” पर पहेली का उत्तर
स्वीकार नहीं किया जाएगा। विजेता का नाम हम उनके शहर, प्रदेश और देश के नाम
के साथ ‘स्वरगोष्ठी’ के 396वें अंक में प्रकाशित करेंगे। इस अंक में
प्रस्तुत गीत-संगीत, राग, अथवा कलासाधक के बारे में यदि आप कोई जानकारी या
अपने किसी अनुभव को हम सबके बीच बाँटना चाहते हैं तो हम आपका इस संगोष्ठी
में स्वागत करते हैं। आप पृष्ठ के नीचे दिये गए COMMENTS के माध्यम से तथा swargoshthi@gmail.com अथवा radioplaybackindia@live.com पर भी अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त कर सकते हैं।
पिछली पहेली के विजेता
‘स्वरगोष्ठी’
की 392वें अंक की संगीत पहेली में हमने आपको वर्ष 1975 में प्रदर्शित
फिल्म “कागज की नाव” के एक रागबद्ध गीत का अंश सुनवा कर आपसे तीन में से
किसी दो प्रश्न के उत्तर पूछा था। पहले प्रश्न का सही उत्तर है; राग – आभोगी कान्हड़ा, दूसरे प्रश्न का सही उत्तर है; ताल – दीपचन्दी और तीसरे प्रश्न का सही उत्तर है; स्वर – आशा भोसले।
“स्वरगोष्ठी”
की इस पहेली प्रतियोगिता में तीनों अथवा तीन में से दो प्रश्नो के सही
उत्तर देकर विजेता बने हैं; कल्याण, महाराष्ट्र से शुभा खाण्डेकर, चेरीहिल न्यूजर्सी से प्रफुल्ल पटेल, जबलपुर, मध्यप्रदेश से क्षिति तिवारी, मेरिलैण्ड, अमेरिका से विजया राजकोटिया, फीनिक्स, अमेरिका से मुकेश लाडिया और हैदराबाद से डी. हरिणा माधवी।
उपरोक्त सभी प्रतिभागियों को ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ की ओर से हार्दिक
बधाई। सभी प्रतिभागियों से अनुरोध है कि अपने पते के साथ कृपया अपना उत्तर
ई-मेल से ही भेजा करें। इस पहेली प्रतियोगिता में हमारे नये प्रतिभागी भी
हिस्सा ले सकते हैं। यह आवश्यक नहीं है कि आपको पहेली के तीनों प्रश्नों के
सही उत्तर ज्ञात हो। यदि आपको पहेली का कोई एक भी उत्तर ज्ञात हो तो भी आप
इसमें भाग ले सकते हैं।
अपनी बात
मित्रों,
‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ पर जारी हमारी
श्रृंखला “पूर्वांग और उत्तरांग राग” की नौवीं कड़ी में आपने राग तिलक
कामोद का परिचय प्राप्त किया। इस राग में आपने सुप्रसिद्ध संगीतज्ञ पण्डित
दत्तात्रेय विष्णु पलुस्कर के स्वर में तीनताल में निबद्ध एक बन्दिश का
रसास्वादन किया। साथ ही आपने इस राग पर आधारित संगीतकार वनराज भाटिया
द्वारा संगीतबद्ध फिल्म “भूमिका” का एक गीत प्रीति सागर की आवाज़ में सुना।
आज के अंक में हम आपको एक शुभ सूचना देना चाहते हैं। हैदराबाद निवासी,
संगीत शिक्षिका, “स्वरगोष्ठी” की नियमित पाठक और पहेली का नियमित उत्तर
देने वाली सुश्री डी. हरिणा माधवी ने अपने शिक्षण-कार्य के दौरान अनेक
स्वरचित बन्दिशों का एक संकलन तैयार किया है, जिसके पुस्तक रूप में प्रकाशन
की हमें सूचना मिली है। इस प्रकाशन का विस्तृत विवरण अपने पाठकों को हम
शीघ्र ही उपलब्ध कराएंगे। आप प्रतीक्षा कीजिए। हमें विश्वास है कि हमारे
अन्य पाठक भी “स्वरगोष्ठी” के प्रत्येक अंक का अवलोकन करते रहेंगे और अपनी
प्रतिक्रिया हमें भेजते रहेगे। आज के अंक और श्रृंखला के बारे में यदि आपको
कुछ कहना हो तो हमें अवश्य लिखें। हमारी वर्तमान अथवा अगली श्रृंखला के
लिए यदि आपका कोई सुझाव या अनुरोध हो तो हमें swargoshthi@gmail.com
पर अवश्य लिखिए। अगले अंक में रविवार को प्रातः 7 बजे हम ‘स्वरगोष्ठी’ के
इसी मंच पर एक बार फिर सभी संगीत-प्रेमियों का स्वागत करेंगे।
प्रस्तुति : कृष्णमोहन मिश्र
राग तिलक कामोद : SWARGOSHTHI – 394 : RAG TILAK KAMOD : 18 नवम्बर, 2018
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