स्वरगोष्ठी – 386 में आज
पूर्वांग और उत्तरांग राग – 1 : राग अड़ाना
उस्ताद अमीर खाँ से फिल्मी गीत और उस्ताद कमाल साबरी से सारंगी पर राग अड़ाना सुनिए
उस्ताद अमीर खाँ |
उस्ताद कमाल साबरी |
भारतीय सिनेमा
के इतिहास में कुछ फिल्मों की गणना ‘मील के पत्थर’ के रूप में की जाती है।
ऐसी ही एक उल्लेखनीय फिल्म ‘झनक झनक पायल बाजे’ थी जिसका प्रदर्शन 1955
में हुआ था। इस फिल्म में कथक नृत्य शैली का और राग आधारित गीत-संगीत का
कलात्मक उपयोग किया गया था। फिल्म का निर्देशन वी. शान्ताराम ने और संगीत
निर्देशन वसन्त देसाई ने किया था। वी. शान्ताराम के फिल्मों की सदैव यह
विशेषता रही है कि उसके विषय नैतिक मूल्यों रक्षा करते प्रतीत होते है। साथ
ही उनकी फिल्मों में रूढ़ियों का विरोध भी नज़र आता है। फिल्म ‘झनक झनक पायल
बाजे’ में उन्होने भारतीय शास्त्रीय नृत्य और संगीत की महत्ता को रेखांकित
किया था। फिल्म को इस लक्ष्य तक ले जाने में संगीतकार वसन्त देसाई का
उल्लेखनीय योगदान रहा। जाने-माने कथक नर्तक गोपीकृष्ण फिल्म की प्रमुख
भूमिका में थे। इसके अलावा संगीत के ताल पक्ष में निखारने के लिए
सुप्रसिद्ध तबलावादक गुदई महाराज (पण्डित सामता प्रसाद) का उल्लेखनीय
योगदान था। वसन्त देसाई ने सारंगीनवाज़ पण्डित रामनारायन और संतूरवादक
पण्डित शिवकुमार शर्मा का सहयोग भी प्राप्त किया था।
संगीतकार
वसन्त देसाई की सफलता का दौर फिल्म ‘झनक झनक पायल बाजे’ से ही आरम्भ हुआ
था। वसन्त देसाई की प्रतिभा का सही मूल्यांकन वी. शान्ताराम ने ही किया था।
प्रभात कम्पनी में एक साधारण कर्मचारी के रूप में उनकी नियुक्ति हुई थी।
यहीं रह कर उन्होने अपनी कलात्मक प्रतिभा का विकास किया था। आगे चलकर वसन्त
देसाई, शान्ताराम की फिल्मों के मुख्य संगीतकार बने। दरअसल वसन्त देसाई
फिल्मों के नायक बनने की अभिलाषा लेकर ‘प्रभात’ में शान्ताराम के पास आये
थे। उन्हें फ़िल्म-निर्माण के हर पहलू को जानने और परखने का सुझाव शान्ताराम
ने दिया। उस प्रथम मुलाक़ात के बारे में वसन्त देसाई ने एक रेडिओ
प्रस्तुतकर्त्ता को कुछ इन शब्दों में बताया था– “अजी बस एक दिन यूँही
सामने जाके खड़ा हो गया कि मुझे ऐक्टर बनना है। म्युज़िक तब कहाँ आता था? और
वैसे भी फ़िल्मों में हर कोई पहले ऐक्टर बनने ही तो आता है। फिर बन जाता है
टेक्निशियन। तो मैं भी बाल बढ़ाकर पहुँच गया ऐक्टर बनने। मगर एक कमी थी
मुझमें, मैं दुबला-पतला और छोटे कद का था जब कि वह स्टण्ट का ज़माना था। सब
ऊँचे कद के पहलवान जैसे हुआ करते थे, छोटे कद के आदमी का काम नहीं था।
शान्ताराम जी ने पूछा, 'क्या करना चाहते हो?' मैंने गर्दन हिलाकर बाल
दिखाये और कहा कि ऐक्टर बनना चाहता हूँ। उन्होंने मुझे सर से पाँव तक देखा
और सोचा होगा कि लड़का पागल है। फिर मुझ पर तरस आ गया और बोले कि मैं तुम्हे
रख लेता हूँ, मगर सब काम करना पड़ेगा। कल से आ जाओ स्टुडिओ में। मैं ऑफ़िस
बॉय बन गया, नो पगार, मुफ़्त में 18-18 घण्टे का काम। अरे, मालिक ख़ुद काम
करते थे हमारे साथ। ऋषियों के आश्रम जैसा था 'प्रभात' का परिवेश। उनका
हमेशा से ऐसा ही स्वभाव रहा है कि जैसा कहें वैसा फ़ौरन कर दो। और मैं भी
उनकी हर बात मानता था, इसलिए मुझसे वो हमेशा ख़ुश रहते थे। जिस विभाग में
कमी हो, अन्ना साहब मुझे फ़ौरन भेज देते, चाहे वह कैमरा विभाग हो या संगीत
विभाग। इसलिए आज मैं फिल्म निर्माण की हर इकाई का काम जानता हूँ। फिल्म
निर्देशन के क्षेत्र में मैं उनका सहायक तक रहा हूँ। सिनेमा तकनीक में मैं
उन्हें गुरु मानता हूँ। एक साल के बाद उन्होंने मेरी तनख्वाह सात रुपये से
बढ़ाकर 45 रुपये कर दी, और बाद में तो यह समझ लीजिए, 'प्रभात' में सबसे
ज़्यादा तनख्वाह हीरो चन्द्रमोहन को और मुझे मिलती थी।" आरम्भ से ही
शान्ताराम जी को एक ऐसे सामाजिक फ़िल्मकार का दर्जा प्राप्त था, जो मनोरंजन
के साथ-साथ समाज की कुप्रथाओं के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाते रहते थे। इसके बाद उनकी
हर फ़िल्म में समाज को कोई न कोई सन्देश दिया है। शान्ताराम जी ने 1955 में
फिल्म ‘झनक झनक पायल बाजे’ का निर्माण किया था। फिल्म के संगीत निर्देशक
बसन्त देसाई ने इस फिल्म में कई राग आधारित स्तरीय गीतों की रचना की थी।
फिल्म का शीर्षक गीत ‘झनक झनक पायल बाजे...’ राग अड़ाना का एक मोहक
उदाहरण है। इस गीत को स्वर प्रदान किया, सुप्रसिद्ध शास्त्रीय गायक उस्ताद
अमीर खाँ ने। आइए, सुनते हैं, राग अड़ाना पर आधारित यह गीत।
राग अड़ाना : ‘झनक झनक पायल बाजे...’ : उस्ताद अमीर खाँ और साथी : फिल्म – झनक झनक पायल बाजे
फिल्म
के इस गीत में आपको राग अड़ाना के स्वरों का स्पष्ट अनुभव हुआ होगा। राग
दरबारी से ही मिलता-जुलता राग है, अड़ाना। सातवें प्रहर अर्थात रात्रि के
तीसरे प्रहर में यह राग खूब खिलता है। यह आसावरी थाट और कान्हड़ा अंग का
राग है। षाड़व-षाड़व जाति के इस राग के आरोह में गान्धार और अवरोह में धैवत
स्वर वर्जित होता है। अवरोह में कोमल गान्धार और शुद्ध मध्यम स्वर वक्रगति
से प्रयोग किया जाता है। चंचल प्रकृति के इस राग से विनयपूर्ण और प्रबल
पुकार के भाव की सार्थक अभिव्यक्ति सम्भव है। वीर रस के गीतों के लिए यह एक
आदर्श राग है। यह राग, दरबारी से काफी मिलता-जुलता है। परन्तु अड़ाना में
दरबारी की तरह अतिकोमल गान्धार स्वर का आन्दोलनयुक्त प्रयोग नहीं होता।
इसके अलावा राग अड़ाना उत्तरांग प्रधान है, अर्थात इस राग के स्वर अधिकतर
मध्य और तार सप्तक में चलते हैं। जबकि दरबारी पूर्वांग प्रधान राग होता है।
राग अड़ाना का वादी स्वर तार सप्तक का षडज और संवादी स्वर पंचम होता है।
प्राचीन सिद्धान्तों के अनुसार राग अड़ाना, राग दीपक के आठ पुत्रों में से
एक माना जाता है। इसे ‘रात की सारंग’ भी कहा जाता है।
वाद्य
संगीत पर राग अड़ाना की सहज अनुभूति के लिए अब हम आपको यही राग सारंगी पर
सुनवाते हैं। सारंगी एक ऐसा वाद्य है जो मानव कण्ठ के सर्वाधिक निकट होता
है। आपके लिए सारंगी पर तीनताल में निबद्ध रचना प्रस्तुत कर रहे हैं,
सुप्रसिद्ध सारंगी वादक उस्ताद कमाल साबरी। सारंगीवादकों के खानदान की
सातवीं पीढ़ी का प्रतिनिधित्व कर रहे उस्ताद कमाल साबरी रामपुर-मुरादाबाद के
सेनिया घराने की वादन परम्परा के प्रतिभावान संवाहक हैं। इनके पिता उस्ताद
साबरी खाँ विश्वविख्यात सारंगीवादक थे। कमाल साबरी ने अनेकानेक अवसरों पर
स्वतंत्र सारंगीवादन के माध्यम से संगीत-प्रेमियों को चमत्कृत किया है।
हमारी आज कि गोष्ठी में कमाल साबरी राग अड़ाना की एक ओजपूर्ण रचना प्रस्तुत
कर रहे हैं। इस प्रस्तुति में तबला पर साथ दिया है, सरवर साबरी ने। आप यह
रचना सुनिए और मुझे आज का यह अंक यहीं विराम देने की अनुमति दीजिए।
राग अड़ाना : सारंगी पर तीनताल की रचना : उस्ताद कमाल साबरी
संगीत पहेली
‘स्वरगोष्ठी’
के 386वें अंक की संगीत पहेली में आज हम आपको वर्ष 1966 में प्रदर्शित एक
फिल्म से रागबद्ध गीत का अंश सुनवा रहे हैं। गीत के इस अंश को सुन कर आपको
दो अंक अर्जित करने के लिए निम्नलिखित तीन में से कम से कम दो प्रश्नों के
उत्तर देने आवश्यक हैं। यदि आपको तीन में से केवल एक अथवा तीनों प्रश्नों
का उत्तर ज्ञात हो तो भी आप प्रतियोगिता में भाग ले सकते हैं। 390वें अंक
की ‘स्वरगोष्ठी’ तक जिस प्रतिभागी के सर्वाधिक अंक होंगे, उन्हें वर्ष 2018
के चौथे सत्र का विजेता घोषित किया जाएगा। इसके साथ ही पूरे वर्ष के
प्राप्तांकों की गणना के बाद वर्ष के अन्त में महाविजेताओं की घोषणा की
जाएगी और उन्हें सम्मानित भी किया जाएगा।
1 – इस गीतांश को सुन कर बताइए कि इसमें किस राग की छाया है?
2 – इस गीत में प्रयोग किये गए ताल को पहचानिए और उसका नाम बताइए।
3 – इस गीत में किस पार्श्वगायिका के स्वर हैं?
आप उपरोक्त तीन मे से किन्हीं दो प्रश्नों के उत्तर केवल swargoshthi@gmail.com या radioplaybackindia@live.com
पर ही शनिवार, 29 सितम्बर, 2018 की मध्यरात्रि से पूर्व तक भेजें। आपको
यदि उपरोक्त तीन में से केवल एक प्रश्न का सही उत्तर ज्ञात हो तो भी आप
पहेली प्रतियोगिता में भाग ले सकते हैं। COMMENTS
में दिये गए उत्तर मान्य हो सकते हैं, किन्तु उसका प्रकाशन पहेली का उत्तर
देने की अन्तिम तिथि के बाद किया जाएगा। “फेसबुक” पर पहेली का उत्तर
स्वीकार नहीं किया जाएगा। विजेता का नाम हम उनके शहर, प्रदेश और देश के नाम
के साथ ‘स्वरगोष्ठी’ के 388वें अंक में प्रकाशित करेंगे। इस अंक में
प्रस्तुत गीत-संगीत, राग, अथवा कलासाधक के बारे में यदि आप कोई जानकारी या
अपने किसी अनुभव को हम सबके बीच बाँटना चाहते हैं तो हम आपका इस संगोष्ठी
में स्वागत करते हैं। आप पृष्ठ के नीचे दिये गए COMMENTS के माध्यम से तथा swargoshthi@gmail.com अथवा radioplaybackindia@live.com पर भी अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त कर सकते हैं।
पिछली पहेली के विजेता
‘स्वरगोष्ठी’
की 384वें अंक की संगीत पहेली में हमने आपको वर्ष 1980 में प्रदर्शित
फिल्म “कुदरत” के एक रागबद्ध गीत का अंश सुनवा कर आपसे तीन में से किसी दो
प्रश्न के उत्तर पूछा था। पहले प्रश्न का सही उत्तर है; राग – भैरवी, दूसरे प्रश्न का सही उत्तर है; ताल – कहरवा और तीसरे प्रश्न का सही उत्तर है; स्वर – विदुषी परवीन सुल्ताना।
“स्वरगोष्ठी”
की इस पहेली प्रतियोगिता में तीनों अथवा तीन में से दो प्रश्नो के सही
उत्तर देकर विजेता बने हैं; कल्याण, महाराष्ट्र से शुभा खाण्डेकर, चेरीहिल न्यूजर्सी से प्रफुल्ल पटेल, वोरहीज, न्यूजर्सी से डॉ. किरीट छाया, मैरिलैण्ड, अमेरिका से विजया राजकोटिया, जबलपुर, मध्यप्रदेश से क्षिति तिवारी और हैदराबाद से डी. हरिणा माधवी।
उपरोक्त सभी प्रतिभागियों को ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ की ओर से हार्दिक
बधाई। सभी प्रतिभागियों से अनुरोध है कि अपने पते के साथ कृपया अपना उत्तर
ई-मेल से ही भेजा करें। इस पहेली प्रतियोगिता में हमारे नये प्रतिभागी भी
हिस्सा ले सकते हैं। यह आवश्यक नहीं है कि आपको पहेली के तीनों प्रश्नों के
सही उत्तर ज्ञात हो। यदि आपको पहेली का कोई एक भी उत्तर ज्ञात हो तो भी आप
इसमें भाग ले सकते हैं।
अपनी बात
मित्रों,
‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ पर आज से
आरम्भ हमारी नई श्रृंखला “पूर्वांग और उत्तरांग राग” की पहली कड़ी में आपने
राग अड़ाना का परिचय प्राप्त किया। इस राग में आपने उस्ताद कमाल साबरी
द्वारा सारंगी पर प्रस्तुत एक रचना का रसास्वादन किया। साथ ही आपने उस्ताद
अमीर खाँ के स्वर में इस राग पर केन्द्रित एक फिल्मी गीत फिल्म “झनक झनक
पायल बाजे” से सुना। हमें विश्वास है कि हमारे अन्य पाठक भी “स्वरगोष्ठी”
के प्रत्येक अंक का अवलोकन करते रहेंगे और अपनी प्रतिक्रिया हमें भेजते
रहेगे। आज के अंक और श्रृंखला के बारे में यदि आपको कुछ कहना हो तो हमें
अवश्य लिखें। हमारी वर्तमान अथवा अगली श्रृंखला के लिए यदि आपका कोई सुझाव
या अनुरोध हो तो हमें swargoshthi@gmail.com
पर अवश्य लिखिए। अगले अंक में रविवार को प्रातः 7 बजे हम ‘स्वरगोष्ठी’ के
इसी मंच पर एक बार फिर सभी संगीत-प्रेमियों का स्वागत करेंगे।
प्रस्तुति : कृष्णमोहन मिश्र
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