स्वरगोष्ठी – 338 में आज
फिल्मों के आँगन में ठुमकती पारम्परिक ठुमरी – 5 : ठुमरी भैरवी
लता जी के जन्मदिन के उपलक्ष्य में समर्पित है उन्हीं की गायी श्रृंगार रस से अभिसिंचित ठुमरी- ‘बाजूबन्द खुल खुल जाय...’
उस्ताद बड़े गुलाम अली खाँ |
लता मंगेशकर और पं. भीमसेन जोशी |
‘रेडियो
प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी
श्रृंखला “फिल्मों के आँगन में ठुमकती पारम्परिक ठुमरी” की इस पाँचवीं कड़ी
में मैं कृष्णमोहन मिश्र अपनी सहयोगी संज्ञा टण्डन के साथ आप सभी
संगीत-प्रेमियों का हार्दिक स्वागत करता हूँ। पिछली श्रृंखला की भाँति इस
श्रृंखला में भी हम एक नया प्रयोग कर रहे हैं। गीतों का परिचयात्मक आलेख हम
अपने सम्पादक-मण्डल की सदस्य संज्ञा टण्डन की रिकार्ड किये आवाज़ में
प्रस्तुत कर रहे हैं। आपको हमारा यह प्रयोग कैसा लगा, अवश्य सूचित कीजिएगा।
दरअसल यह श्रृंखला पूर्व में प्रकाशित / प्रसारित की गई थी। हमारे पाठकों /
श्रोताओं को यह श्रृंखला सम्भवतः कुछ अधिक रुचिकर प्रतीत हुई थी। अनेक
संगीत-प्रेमियों ने इसके पुनर्प्रसारण का आग्रह किया है। सभी सम्मानित
पाठकों / श्रोताओं के अनुरोध का सम्मान करते हुए और पूर्वप्रकाशित श्रृंखला
में थोड़ा परिमार्जन करते हुए यह श्रृंखला हम पुनः प्रस्तुत कर रहे हैं।
हमारी नई लघु श्रृंखला “फिल्मों के आँगन में ठुमकती पारम्परिक ठुमरी” के
शीर्षक से ही यह अनुमान हो गया होगा कि इस श्रृंखला का विषय फिल्मों में
शामिल की गई उपशास्त्रीय गायन शैली ठुमरी है। सवाक फिल्मों के प्रारम्भिक
दौर से फ़िल्मी गीतों के रूप में तत्कालीन प्रचलित पारसी रंगमंच के संगीत और
पारम्परिक ठुमरियों के सरलीकृत रूप का प्रयोग आरम्भ हो गया था। विशेष रूप
से फिल्मों के गायक-सितारे कुन्दनलाल सहगल ने अपने कई गीतों को ठुमरी अंग
में गाकर फिल्मों में ठुमरी शैली की आवश्यकता की पूर्ति की थी। चौथे दशक के
मध्य से लेकर आठवें दशक के अन्त तक की फिल्मों में सैकड़ों ठुमरियों का
प्रयोग हुआ है। इनमे से अधिकतर ठुमरियाँ ऐसी हैं जो फ़िल्मी गीत के रूप में
लिखी गईं और संगीतकार ने गीत को ठुमरी अंग में संगीतबद्ध किया। कुछ फिल्मों
में संगीतकारों ने परम्परागत ठुमरियों का भी प्रयोग किया है। इस श्रृंखला
में हम आपसे ऐसी ही कुछ चर्चित-अचर्चित फ़िल्मी ठुमरियों पर बात कर रहे हैं। आज
का यह अंक हम विश्वविख्यात पार्श्वगायिका लता मंगेशकर को उनके जन्मदिन (28
सितम्बर) से लगभग एक सप्ताह पश्चात शुभकामना देते हुए प्रस्तुत कर रहे हैं।
1954 में प्रदर्शित फिल्म ‘बाजूबन्द’ में उन्होने एक पारम्परिक ठुमरी
‘बाजूबन्द खुल खुल जाय...’ का मोहक गायन प्रस्तुत किया था। इस ठुमरी के
माध्यम से हम उन्हें जन्मदिन की बधाई देते हैं। इसके साथ ही इस ठुमरी का
पारम्परिक गायन हम उस्ताद बड़े गुलाम अली खाँ और पण्डित भीमसेन जोशी के
स्वरों में भी प्रस्तुत कर रहे हैं।
ठुमरी भैरवी : ‘बाजूबन्द खुल खुल जाय...’ : उस्ताद बड़े गुलाम अली खाँ
ठुमरी भैरवी : ‘बाजूबन्द खुल खुल जाय...’ : पण्डित भीमसेन जोशी
ठुमरी भैरवी : ‘बाजूबन्द खुल खुल जाय...’ : लता मंगेशकर : फिल्म - बाजूबन्द
संगीत पहेली
‘स्वरगोष्ठी’
के 338वें अंक की संगीत पहेली में आज हम आपको एक फिल्मी ठुमरी गीत का एक
अंश सुनवा रहे हैं। संगीत के इस अंश को सुन कर आपको निम्नलिखित तीन में से
किन्हीं दो प्रश्नों के उत्तर देने हैं। यदि आपको तीन में से केवल एक ही
उत्तर ज्ञात हो तो भी आप प्रतियोगिता में भाग ले सकते हैं। ‘स्वरगोष्ठी’ के
340वें अंक की पहेली के सम्पन्न होने तक जिस प्रतिभागी के सर्वाधिक अंक
होंगे, उन्हें इस वर्ष के चौथे सत्र का विजेता घोषित किया जाएगा।
1 – इस ठुमरी रचना का अंश सुन कर बताइए कि आपको किस राग का अनुभव हो रहा है?
2 – गीत में प्रयोग किये गए ताल का नाम बताइए।
3 – यह किस विख्यात पार्श्वगायिका की आवाज़ है?
आप उपरोक्त तीन मे से किन्हीं दो प्रश्नों के उत्तर केवल swargoshthi@gmail.com या radioplaybackindia@live.com पर ही शनिवार 14 अक्टूबर, 2017 की मध्यरात्रि से पूर्व तक भेजें। आपको यदि उपरोक्त तीन में से केवल एक प्रश्न का सही उत्तर ज्ञात हो तो भी आप पहेली प्रतियोगिता में भाग ले सकते हैं। COMMENTS
में दिये गए उत्तर मान्य हो सकते हैं, किन्तु उसका प्रकाशन पहेली का उत्तर
देने की अन्तिम तिथि के बाद किया जाएगा। विजेता का नाम हम उनके शहर,
प्रदेश और देश के नाम के साथ ‘स्वरगोष्ठी’ के 340वें अंक में
प्रकाशित करेंगे। इस अंक में प्रस्तुत गीत-संगीत, राग, अथवा कलासाधक के
बारे में यदि आप कोई जानकारी या अपने किसी अनुभव को हम सबके बीच बाँटना
चाहते हैं तो हम आपका इस संगोष्ठी में स्वागत करते हैं। आप पृष्ठ के नीचे
दिये गए COMMENTS के माध्यम से तथा swargoshthi@gmail.com अथवा radioplaybackindia@live.com पर भी अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त कर सकते हैं।
पिछली पहेली के विजेता
‘स्वरगोष्ठी’
की 336वीं कड़ी की पहेली में हमने आपको 1970 में प्रदर्शित फिल्म –
“पाकीजा” से ली गई ठुमरी का अंश सुनवा कर हमने आपसे तीन में से दो प्रश्नों
का उत्तर पूछा था। पहले प्रश्न का सही उत्तर है, राग पहाड़ी, दूसरे प्रश्न का सही उत्तर है, ताल – कहरवा और तीसरे प्रश्न का सही उत्तर है, स्वर – परवीन सुल्ताना।
इस अंक की पहेली प्रतियोगिता में प्रश्नों के सही उत्तर देने वाले हमारे प्रतिभागी हैं वोरहीज, न्यूजर्सी से डॉ. किरीट छाया, जबलपुर मध्यप्रदेश से क्षिति तिवारी, पेंसिलवेनिया, अमेरिका से विजया राजकोटिया और हैदराबाद से डी. हरिणा माधवी।
आशा है कि हमारे अन्य पाठक / श्रोता भी नियमित रूप से साप्ताहिक स्तम्भ
‘स्वरगोष्ठी’ का अवलोकन करते रहेंगे और पहेली प्रतियोगिता में भाग लेंगे।
उपरोक्त सभी प्रतिभागियों को ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ की ओर से हार्दिक
बधाई।
अपनी बात
मित्रों,
‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ पर जारी हमारी
श्रृंखला “फिल्मों के आँगन में ठुमकती पारम्परिक ठुमरी” की इस चौथी कड़ी
में आपने राग भैरवी की एक ठुमरी का पारम्परिक रूप उस्ताद बड़े गुलाम अली खाँ
और पण्डित भीमसेन जोशी के स्वर में और फिल्मी रूप लता मंगेशकर के स्वरों
में रसास्वादन किया। आपके अनुरोध पर पुनर्प्रसारित इस श्रृंखला के अगले अंक
में हम आपको एक और पारम्परिक ठुमरी और उसके फिल्मी रूप पर चर्चा करेंगे और
शास्त्रीय और उपशास्त्रीय संगीत और रागों पर चर्चा करेंगे और सम्बन्धित
रागों तथा संगीत शैली में निबद्ध कुछ रचनाएँ भी प्रस्तुत करेंगे। हमारी
आगामी श्रृंखलाओं के लिए विषय, राग, रचना और कलाकार के बारे में यदि आपकी
कोई फरमाइश हो तो हमें swargoshthi@gmail.com पर अवश्य लिखिए। अगले अंक में रविवार को प्रातः 8 बजे हम ‘स्वरगोष्ठी’ के इसी मंच पर सभी संगीत-प्रेमियों का स्वागत करेंगे।
वाचक स्वर : संज्ञा टण्डन
आलेख व प्रस्तुति : कृष्णमोहन मिश्र
आलेख व प्रस्तुति : कृष्णमोहन मिश्र
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