स्वरगोष्ठी – 178 में आज
वर्षा ऋतु के राग और रंग – 4 : राग रामदासी मल्हार और सूर मल्हार
संगीत की दो विभूतियों द्वारा सृजित मल्हार अंग के दो राग
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रामदासी मल्हार
काफी थाट के अन्तर्गत माना जाने वाला राग रामदासी मल्हार, दोनों गान्धार (शुद्ध और कोमल) तथा दोनों निषाद से युक्त होता है। इसकी जाति वक्र रूप से सम्पूर्ण होती है। अवरोह में दोनों गान्धार का प्रयोग वक्र रूप से करने पर राग का सौन्दर्य निखरता है। इसका वादी स्वर मध्यम और संवादी स्वर षडज होता है। यह राग वर्षा ऋतु के परिवेश का सजीव चित्रण करने में समर्थ होता है, इसलिए इस ऋतु में रामदासी मल्हार का गायन-वादन किसी भी समय किया जा सकता है।
राग रामदासी मल्हार का सृजन ग्वालियर के विद्वान नायक रामदास ने की थी। इस तथ्य का समर्थन विख्यात संगीतज्ञ मल्लिकार्जुन मंसूर द्वारा भी किया गया है। उनके मतानुसार नायक रामदास मुगल बादशाह अकबर से भी पूर्व काल में थे। राग रामदासी मल्हार में शुद्ध गान्धार के उपयोग से उसका स्वरूप मल्हार अंग से अलग व्यक्त होता है। राग का प्रस्तार वक्र गति से किया जाता है, जैसे- सा रे प ग म, प ध नि ध प, म प ग म, प ग(कोमल) म रे सा...। आजकल यह राग अधिक प्रचलन में नहीं है। इस राग का स्वरूप अत्यन्त मधुर होता है। मल्हार के म रे और रे प का स्वरविन्यास इस राग में बहुत लिया जाता है। इस राग के गायन-वादन में राग शहाना और गौड़ की झलक भी मिलती है। आइए, अब हम आपको किराना घराने के सुविख्यात गायक उस्ताद अमीर खाँ के स्वर में राग रामदासी मल्हार का तीनताल में निबद्ध एक खयाल सुनवाते हैं।
रामदासी मल्हार : ‘छाए बदरा कारे कारे...’ : उस्ताद अमीर खाँ : तबला संगति - पं. चतुर लाल
सूरदासी अथवा सूर मल्हार
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इस राग की कुछ अन्य विशेषताओं को रेखांकित करते हुए जाने-माने इसराज और मयूर वीणा वादक श्री श्रीकुमार मिश्र ने बताया कि सूर मल्हार का मुख्य अंग है- सा [म]रे प म, नी(कोमल) म प, नी(कोमल)ध प, म रे सा होता है। राग के गायन-वादन में यदि सारंग झलकने लगे तो नी(कोमल) ध s म प नी(कोमल) ध s प स्वरों का प्रयोग करने से सारंग तिरोहित हो जाता है। श्री मिश्र के अनुसार सारंग के भाव में मेघ मल्हारांश उद्वेग के चपल और गम्भीर ओज से युक्त भाव में राग देस के अंश के विरह भाव के मिश्रण से कसक-युक्त उल्लास में वेदना के मिश्रण से नये रस-भाव का सृजन होता है। अब आप पण्डित भीमसेन जोशी से सुनिए, राग सूर मल्हार में एक मोहक बन्दिश, जिसके बोल हैं- ‘बादरवा बरसन लागी...’। यह द्रुत तीनताल में निबद्ध है।
सूर मल्हार : ‘बादरवा बरसन लागी...’ : पण्डित भीमसेन जोशी
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फिल्म रामराज्य : ‘डर लागे गरजे बदरवा...’ : लता मंगेशकर : संगीत - बसन्त देसाई : गीत - भरत व्यास
आज की पहेली
‘स्वरगोष्ठी’ के 178वें अंक की पहेली में आज हम आपको वाद्य संगीत रचना का एक अंश सुनवा रहे हैं। इसे सुन कर आपको दो प्रश्नों के उत्तर देने हैं। 180वें अंक की पहेली के सम्पन्न होने तक जिस प्रतिभागी के सर्वाधिक अंक होंगे, उन्हें इस श्रृंखला (सेगमेंट) का विजेता घोषित किया जाएगा।
1 – वाद्य संगीत के इस अंश को सुन कर राग पहचाइए और हमे राग का नाम बताइए।
2 – यह कौन सा वाद्य है? वाद्य का नाम बताइए।
आप अपने उत्तर केवल swargoshthi@gmail.com या radioplaybackindia@live.com पर ही शनिवार मध्यरात्रि से पूर्व तक भेजें। comments में दिये गए उत्तर मान्य नहीं होंगे। विजेता का नाम हम ‘स्वरगोष्ठी’ के 180वें अंक में प्रकाशित करेंगे। इस अंक में प्रस्तुत गीत-संगीत, राग अथवा कलासाधक के बारे में यदि आप कोई जानकारी या अपने किसी अनुभव को हम सबके बीच बाँटना चाहते हैं तो हम आपका इस संगोष्ठी में स्वागत करते हैं। आप पृष्ठ के नीचे दिये गए comments के माध्यम से तथा swargoshthi@gmail.com अथवा radioplaybackindia@live.com पर भी अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त कर सकते हैं।
पिछली पहेली के विजेता
‘स्वरगोष्ठी’ की 176वीं कड़ी की पहेली में हमने आपको कण्ठ संगीत में एक बन्दिश का अंश सुनवा कर आपसे दो प्रश्न पूछे थे। पहले प्रश्न का सही उत्तर है- राग गौड़ मल्हार और पहेली के दूसरे प्रश्न का सही उत्तर है- गायिका विदुषी मालिनी राजुरकर। इस अंक के दोनों प्रश्नों के सही उत्तर पेंसिलवानिया, अमेरिका से विजया राजकोटिया, चण्डीगढ़ के हरकीरत सिंह, जबलपुर से क्षिति तिवारी और हैदराबाद की डी. हरिणा माधवी ने दिया है। चारो प्रतिभागियों को ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ की ओर से हार्दिक बधाई।
अपनी बात
मित्रों, ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ पर जारी श्रृंखला ‘वर्षा ऋतु के राग और रंग’ के अन्तर्गत आज के अंक में हमने आपसे राग मल्हार अंग के दो रागों- रामदासी और सूर मल्हार पर चर्चा की। इसके साथ ही हमने इस राग में निबद्ध एक खयाल रचना और एक फिल्म संगीत का एक उदाहरण भी सुनवाया। अगले अंक में भी हम दो ऋतु प्रधान रागों की चर्चा करेंगे। यह अंक आपको कैसा लगा, हमें अवश्य बताइए। आप भी अपनी पसन्द के विषय और गीत-संगीत की फरमाइश हमें भेज सकते हैं। हमारी अगली श्रृंखलाओं के लिए आप किसी नए विषय का सुझाव भी दे सकते हैं। अगले रविवार को प्रातः 9 बजे ‘स्वरगोष्ठी’ के इसी मंच पर सभी संगीतानुरागियों की प्रतीक्षा करेंगे।
प्रस्तुति : कृष्णमोहन मिश्र
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