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संगीतकार मदनमोहन के राग आधारित गीत




स्वरगोष्ठी – 173 में आज

व्यक्तित्व – 3 : फिल्म संगीतकार मदनमोहन

‘भूली हुई यादों मुझे इतना न सताओ अब चैन से रहने दो मेरे पास न आओ...’ 
 




‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी हमारी श्रृंखला ‘व्यक्तित्व’ की तीसरी कड़ी में, मैं कृष्णमोहन मिश्र, एक बार पुनः आप सभी संगीत-प्रेमियों का हार्दिक अभिनन्दन करता हूँ। मित्रों, जारी लघु श्रृंखला ‘व्यक्तित्व’ के अन्तर्गत हम आपसे संगीत के कुछ असाधारण संगीत-साधकों के व्यक्तित्व और कृतित्व पर चर्चा कर रहे हैं, जिन्होंने मंच, विभिन्न प्रसारण माध्यमों अथवा फिल्म संगीत के क्षेत्र में लीक से हट कर उल्लेखनीय योगदान किया है। हमारी आज की कड़ी के व्यक्तित्व हैं, फिल्म संगीत-प्रेमियों के बीच “गजल-सम्राट” की उपाधि से विभूषित यशस्वी संगीतकार, मदनमोहन। उनके संगीतबद्ध गीत अत्यन्त परिष्कृत हुआ करते थे। आभिजात्य वर्ग के बीच उनके गीत बड़े शौक से सुने और सराहे जाते थे। वे गज़लों को संगीतबद्ध करने में सिद्ध थे। गज़लों के साथ ही अपने गीतों में रागों का प्रयोग भी निपुणता के साथ करते थे। विभिन्न रागों पर आधारित उनके अनेक गीत आज भी सदाबहार बने हुए हैं। उनके अधिकतर राग आधारित गीतों को लता मंगेशकर और मन्ना डे स्वर प्रदान किए हैं। आज के अंक में हम मदनमोहन के शास्त्रीय राग आधारित रचनाओं के सन्दर्भ में उनकी विलक्षण प्रतिभा को रेखांकित करेंगे। यह भी सुखद संयोग है कि आज से तीसरे दिन अर्थात 25 जून को मदनमोहन का 91वाँ जन्मदिवस है। इस अवसर पर ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ परिवार इस महान संगीत-साधक की स्मृतियों को उन्हीं के स्वरबद्ध गीतों के माध्यम से स्वरांजलि अर्पित करता है। 
 



फिल्म संगीत के क्षेत्र में मदनमोहन का नाम एक ऐसे संगीतकार के रूप में लिया जाता है, जिनकी रचनाएँ सभ्रान्त और संगीत रसिकों के बीच चाव से सुनी जाती है। उनका संगीत जटिलताओं से मुक्त होते हुए भी हमेशा सतहीपन से भी दूर ही रहा। उनका जन्म 25 जून, 1924 को बगदाद में हुआ था। फिल्मी संस्कार उन्हें विरासत में मिला था। मदनमोहन के पिता रायबहादुर चुन्नीलाल, विख्यात फिल्म निर्माण संस्था ‘फिल्मिस्तान’ के संस्थापक थे। मुम्बई में उनकी शिक्षा-दीक्षा हुई। बचपन से ही संगीत के प्रति लगाव होते हुए भी शिक्षा पूर्ण होने के बाद आश्चर्यजनक रूप से मदनमोहन ने सेना की नौकरी की। परन्तु लम्बे समय तक वे सेना की नौकरी में नहीं रहे और वहाँ से मुक्त होकर लखनऊ रेडियो के संगीत विभाग में नियुक्त हो गए। यहाँ रह कर जिस सांगीतिक परिवेश और संगीत की विभूतियों से उनका सम्पर्क हुआ, उसका प्रभाव उनकी रचनाओं पर स्पष्ट रूप से परिलक्षित होता है। लखनऊ रेडियो केन्द्र पर कार्य करते हुए मदनमोहन का सम्पर्क विख्यात गायिका बेगम अख्तर और उस्ताद फ़ैयाज़ खाँ से हुआ। आगे चलकर मदनमोहन के फिल्म संगीत पर इन विभूतियों का असर हुआ। फिल्मों में गजल गायकी का एक मानक स्थापित करने में मदनमोहन का योगदान प्रशंसनीय रहा है। निश्चित रूप से यह प्रेरणा उन्हें बेगम अख्तर से ही मिली थी। इसी प्रकार उनके अनेक गीतों में रागों की विविधता के दर्शन भी होते हैं। फिल्म संगीत को रागों के परिष्कृत और सरलीकृत रूप प्रदान करने की प्रेरणा उन्हें उस्ताद फ़ैयाज़ खाँ और लखनऊ के तत्कालीन समृद्ध सांगीतिक परिवेश से ही मिली थी। ‘स्वरगोष्ठी’ की इस कड़ी में हम मदनमोहन के संगीतबद्ध कुछ राग आधारित गीतों पर चर्चा कर रहे हैं। सबसे पहले हम जिस गीत की चर्चा करेंगे वह 1957 में प्रदर्शित फिल्म ‘देख कबीरा रोया’ से लिया गया है। मदनमोहन ने इस फिल्म के प्रायः सभी गीत विविध शास्त्रीय रागों पर आधारित करते हुए रचे थे। फिल्म के सभी गीत गुणबत्ता और लोकप्रियता की दृष्टि से अद्वितीय थे। इन्हीं गीतों में से हमने आपके लिए राग जैजैवन्ती के स्वरों से अलंकृत गीत- ‘बैरन हो गई रैना...’ चुना है। इस गीत में नायिका के विरह भाव का चित्रण किया गया है। रात्रि के दूसरे प्रहर में मध्यरात्रि के निकट गाया-बजाया जाने वाला राग जैजैवन्ती के स्वरों में प्रतीक्षा और विरह का भाव खूब मुखर होता है। ऐसे गीतों के लिए पुरुष पार्श्वगायकों में मन्ना डे, मदनमोहन की पहली पसन्द थे। तीनताल में निबद्ध इस गीत को मन्ना डे ने बड़े ही भावपूर्ण ढंग से गाया है।


राग जैजैवन्ती : ‘बैरन हो गई रैन...’ : स्वर – मन्ना डे : संगीत – मदनमोहन : फिल्म – देख कबीरा रोया

 



मदनमोहन के संगीत में लता मंगेशकर के स्वरों का योगदान हमेशा महत्त्वपूर्ण रहा है। पाँचवें दशक के अन्तिम वर्षों में लता मंगेशकर पार्श्वगायन के क्षेत्र में अवसर पाने के लिए संघर्षरत थीं। उन्हीं दिनों मदनमोहन भी अपनी रेडियो की नौकरी छोड़ कर फिल्मों में प्रवेश का मार्ग खोज रहे थे। यूँतो उनके पिता रायबहादुर चुन्नीलाल तत्कालीन फिल्म जगत के प्रतिष्ठित व्यक्तित्व थे, किन्तु मदनमोहन अपनी प्रतिभा के बल पर ही फिल्म संगीत के क्षेत्र में अपना स्थान बनाना चाहते थे। उन्हीं दिनों संगीतकार गुलाम हैदर फिल्म ‘शहीद’ के लिए नई आवाज़ खोज रहे थे। उन्होने स्वर-परीक्षा के लिए मदनमोहन और लता मंगेशकर की आवाज़ों में एक युगल गीत रिकार्ड किया। एस. मुखर्जी ने इस रिकार्डिंग को सुन कर दोनों आवाज़ों को खारिज कर दिया। उन्हें क्या पता था कि आगे चल कर इनमें से एक आवाज़ विश्वविख्यात गायिका का और दूसरी आवाज़ उच्चकोटि के संगीतकार की है। आगे चल कर मदनमोहन और उनकी मुँहबोली बहन लता मंगेशकर की जोड़ी ने फिल्म संगीत जगत को अनेक मधुर गीतों से समृद्ध किया। 1950 में मदनमोहन के संगीत निर्देशन में बनी देवेन्द्र गोयल की फिल्म ‘आँखें’ का संगीत काफी लोकप्रिय हुआ, किन्तु इन गीतों में लता मंगेशकर की आवाज़ नहीं थी। फिल्म में मीना कपूर, शमशाद बेगम और मुकेश की आवाज़ें थी। फिल्म ‘शहीद’ के लिए की गई स्वर-परीक्षा के दौरान मदनमोहन ने लता मंगेशकर से वादा किया था कि अपनी पहली फिल्म में वे लता से गीत गवाएंगे, किन्तु अपनी पहली फिल्म ‘आंखे’ में वे अपना संकल्प पूरा न कर सके। परन्तु 1951 में बनी देवेंद्र गोयल की ही अगली फिल्म ‘अदा’ में मदनमोहन और लता मंगेशकर का साथ हुआ और यह साथ लम्बी अवधि तक जारी रहा। इस दौरान लता मंगेशकर ने मदनमोहन के संगीत निर्देशन में अनेक उत्कृष्ट गीत गाये। मदनमोहन के संगीत से सजा दूसरा गीत, जो हम प्रस्तुत कर रहे हैं, वह एक युगल गीत है। 1959 में प्रदर्शित फिल्म ‘चाचा ज़िन्दाबाद’ में मदनमोहन का संगीत था। इस फिल्म के गीतों में भी उन्होने रागों का आधार लिया और आकर्षक संगीत रचनाओं का सृजन किया। फिल्म में राग ललित के स्वरों में पिरोया एक मधुर गीत- ‘प्रीतम दरश दिखाओ...’ था, जिसे मन्ना डे और लता मंगेशकर ने स्वर दिया। आइए, तीनताल मे निबद्ध यह गीत सुनते हैं। 


राग ललित : ‘प्रीतम दरश दिखाओ...’ : स्वर – मन्ना डे और लता मंगेशकर : संगीत – मदनमोहन : फिल्म – चाचा ज़िन्दाबाद





मदनमोहन को ‘गजलों का बादशाह’ कहा जाता है। नौशाद जैसे वरिष्ठ संगीतकार भी उनकी गज़लों के प्रशंसक रहे हैं। मदनमोहन के संगीतबद्ध अधिकतर गजलों में पुरुष कण्ठस्वर तलत महमूद के और नारी स्वर के लिए तो एकमात्र लता मंगेशकर ही थीं। पिछले दिनों हमारे साथी स्तम्भकार सुजॉय चटर्जी ने अपने ‘एक गीत सौ कहानियाँ’ स्तम्भ में मदनमोहन के गज़लों की विशेषताओं को रेखांकित किया था। (पढ़ने और सुनने के लिए यहाँ क्लिक करें) मदनमोहन के स्वरबद्ध गज़लों को अन्य पार्श्वगायकों ने भी गाया है, किन्तु तलत महमूद के स्वर में उनकी गज़लें कुछ अधिक मुखर हुई हैं। मदनमोहन के गीतकारों में राजेन्द्र कृष्ण और राजा मेंहदी अली खाँ के गीतों को जनसामान्य ने खूब सराहा। उनके संगीत में सितार का श्रेष्ठतम उपयोग हुआ। इसके लिए उस्ताद रईस खाँ ने उनके सर्वाधिक गीतों में सितार बजाया था। इसके अलावा कुछेक गीतों में बाँसुरी वादक पण्डित हरिप्रसाद चौरसिया और सन्तूर वादक पण्डित शिवकुमार शर्मा जैसे दिग्गज संगीतज्ञों का योगदान मिलता है। मदनमोहन द्वारा संगीतबद्ध पहली फिल्म ‘आँखें’ में पार्श्वगायक मुकेश ने सदाबहार गीत- ‘प्रीत लगाके मैंने ये फल पाया...’ गाया था। एक लम्बे अन्तराल के बाद मुकेश की वापिसी मदनमोहन के साथ फिल्म ‘दुनिया न माने’ में हुई। इसके बाद 1961 में प्रदर्शित फिल्म ‘संजोग’ में मुकेश ने मदनमोहन के संगीत निर्देशन में एक बेहद गम्भीर और असरदार गीत- ‘भूली हुई यादों मुझे इतना न सताओ...’ गाया। मदनमोहन ने यह गीत राग कल्याण अर्थात यमन के स्वरों में बाँधा था। फिल्मों में प्रायः राग आधारित गीतों को तैयार करने वाले संगीतकारों ने प्रायः मुकेश को प्राथमिकता देने में परहेज किया, किन्तु मदनमोहन ने मुकेश की गायकी से रागानुकूल तत्त्वों को किस प्रकार उभारा है, यह अनुभव आप गीत सुन कर स्वयं कर सकते हैं। तीव्र मध्यम के साथ सभी शुद्ध स्वरों वाले राग यमन के गायन-वादन का उपयुक्त समय गोधूलि बेला अर्थात पाँचवें प्रहर का आरम्भिक समय होता है। गीत में उदासी का जो भाव है वह यमन के स्वरों में खूब उभरता है। मुकेश ने दादरा ताल में निबद्ध इस गीत को पूरी संवेदना के साथ गाया है। आप यह गीत सुनिए और मुझे आज के इस अंक को यहीं विराम देने की अनुमति दीजिए।


राग यमन : ‘भूली हुई यादों मुझे इतना न सताओ...’ : स्वर – मुकेश : संगीत – मदनमोहन : फिल्म – संजोग 






आज की पहेली


‘स्वरगोष्ठी’ के 173वें अंक की संगीत पहेली में आज हम आपको वाद्य संगीत प्रस्तुति का एक अंश सुनवा रहे हैं। इसे सुन कर आपको निम्नलिखित दो प्रश्नों के उत्तर देने हैं। ‘स्वरगोष्ठी’ के 180वें अंक तक जिस प्रतिभागी के सर्वाधिक अंक होंगे, उन्हें इस श्रृंखला का विजेता घोषित किया जाएगा।




1 – संगीत के इस अंश को सुन कर राग पहचानिए और हमें उसका नाम लिख भेजिए।

2 – यह संगीत रचना किस ताल में निबद्ध है?

आप अपने उत्तर केवल swargoshthi@gmail.com या radioplaybackindia@live.com पर ही शनिवार मध्यरात्रि से पूर्व तक भेजें। comments में दिये गए उत्तर मान्य नहीं होंगे। विजेता का नाम हम ‘स्वरगोष्ठी’ के 175वें अंक में प्रकाशित करेंगे। इस अंक में प्रस्तुत गीत-संगीत, राग, अथवा कलासाधक के बारे में यदि आप कोई जानकारी या अपने किसी अनुभव को हम सबके बीच बाँटना चाहते हैं तो हम आपका इस संगोष्ठी में स्वागत करते हैं। आप पृष्ठ के नीचे दिये गए comments के माध्यम से तथा swargoshthi@gmail.com अथवा radioplaybackindia@live.com पर भी अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त कर सकते हैं।


पिछली पहेली के विजेता


‘स्वरगोष्ठी’ की 171वें अंक की संगीत पहेली में हमने आपको 1953 में प्रदर्शित फिल्म ‘अनारकली’ से एक गीत का अंश सुनवा कर आपसे दो प्रश्न पूछे थे। पहले प्रश्न का सही उत्तर है- गायक हेमन्त कुमार। सुनवाए गए गीतांश में केवल हेमन्त कुमार की आवाज़ है, किन्तु पूरा गीत हेमन्त कुमार और लता मंगेशकर ने युगल रूप में गाया है। पहेली के दूसरे प्रश्न का सही उत्तर है- राग बागेश्री। इस अंक के दोनों प्रश्नो के सही उत्तर जबलपुर से क्षिति तिवारी, हैदराबाद की डी. हरिणा माधवी, चंडीगढ़ के हरकीरत सिंह तथा पेंसिलवानिया, अमेरिका से विजया राजकोटिया ने दिया है। चारो प्रतिभागियों को ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ की ओर से हार्दिक बधाई।


अपनी बात




मित्रों, ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर ‘व्यक्तित्व’ शीर्षक से जारी श्रृंखला के आज के अंक में हमने यशस्वी फिल्म संगीतकार मदनमोहन के व्यक्तित्व और कृतित्व पर चर्चा की है। इसके साथ ही उनके राग आधारित कुछ गीतों की रंजकता का अनुभव भी किया। आप भी यदि ऐसे किसी संगीतकार की जानकारी हमारे बीच बाँटना चाहें तो अपना आलेख अपने संक्षिप्त परिचय के साथ ‘स्वरगोष्ठी’ के ई-मेल पते पर भेज दें। अपने पाठको/श्रोताओं की प्रेषित सामग्री प्रकाशित/प्रसारित करने में हमें हर्ष होगा। आगामी श्रृंखलाओं के लिए आप अपनी पसन्द के कलासाधकों, रागों या रचनाओं की फरमाइश भी कर सकते हैं। हम आपके सुझावों और फरमाइशों का स्वागत करेंगे। अगले अंक में रविवार को प्रातः 9 बजे ‘स्वरगोष्ठी’ के इस मंच पर आप सभी संगीत-प्रेमियों की हमें प्रतीक्षा रहेगी।



प्रस्तुति : कृष्णमोहन मिश्र   

Comments

raago ka gyaan mujhe nhi. magar achchhe gaano ko pahchanti hun psnd krti hun.
madan mohan ji ke gaano ka jwaab nhi. kamaal ke sangeet rcheyta the ve.
ghazalon ka baadshaah yunhi nhi kahaa jata unhe. lekh aur sath me sanlagn gaane bahut hi achchhe lge. ek baar me hi poora lekh pdh gai.

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