ताज़ा सुर ताल - 2014 - 05 : शब्द प्रधान गीत विशेष
ताज़ा सुर ताल के इस अंक में आपका एक बार फिर से स्वागत है दोस्तों, आज का ये अंक है शब्द प्रधान गीत विशेष. आजकल गीतों में शब्दों के नाम पर ध्यान आकर्षित करने वाले जुमलों की भरमार होती है, संगीतकार अपने हर गीत को बस तुरंत फुरंत में हिट बना देना चाहते हैं, अक्सर ऐसे गीत चार छे हफ़्तों के बाद श्रोताओं के जेहन से उतर जाते हैं. ऐसे में कुछ ऐसे गीतों का आना बेहद सुखद लगता है जिन पर शाब्दिक महत्त्व का असर अधिक हो, आज के अंक में हम ऐसे ही दो गीत चुन कर लाये हैं आपके लिए. पहले गीत के रचनाकार हैं शायर अराफात महमूद ओर इसे सुरों से सजाया है संगीतकार गौरव डगाउंकर ने. गायक के नाम का आप अंदाजा लगा ही सकते हैं, जी हाँ अरिजीत सिंह...उत्सव से अभिनय की शुरुआत कर शेखर सुमन ने फिल्म ओर टेलीविज़न की दुनिया में अपना एक खास मुकाम बनाया है. हार्टलेस बतौर निर्देशक उनकी पहली फिल्म है जिसमें अभिनय कर रहे हैं उनके सुपुत्र अध्यायन सुमन. चलिए अब बिना देर किये हम आपको सुनवाते हैं ये खूबसूरत गज़ल नुमा गीत.
मैं ढूँढने को ज़माने में जब वफ़ा निकला
पता चला कि गलत लेके मैं पता निकला....वाह
डेढ़ इश्किया से हम आपका परिचय पहले ही करा चुके हैं, अब ऐसा कैसे मुमकिन है कि जिस फिल्म में शेरों-शायरी की खास भूमिका हो, लखनवी अंदाज़ का तडका हो, गुलज़ार साहब जैसा शायर हो गीतकार की भूमिका में ओर कोई नायाब सी गज़ल न हो. राहत साहब की नशीली आवाज़ ओर विशाल भारद्वाज की सटीक धुन. एक बेमिसाल पेशकश. सुनें ओर हमने दें इज़ाज़त, मिलेंगें अगले सप्ताह फिर से दो नए गीतों के साथ.
लगे तो फिर यूँ ये रोग लागे, न साँस आये न साँस जाए,
ये इश्क है नामुराद ऐसा, कि जान लेवे तभी टले है.....क्या कहने
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