सामुदायिक रेडियो डीयू-एफ॰एम॰ पर प्रति सप्ताह प्रसारित होने वाले कार्यक्रम कवि डॉट कॉम का गणतंत्र दिवस विशेषांक आपने आवाज़ पर सुना और सराहा भी। बहुत सौभाग्य की बात है कि इस कार्यक्रम की शुरूआत हिन्द-युग्म के कवियों से ही हुई थी। एक ही साथ दो एपीशोडों की रिकॉर्डिंग हुई थी। जिसमें हिन्द-युग्म की ओर से अभिषेक पाटनी, मनीष वंदेमातरम्, विपिन चौहान 'मन', शैलेश भारतवासी और अजय यादव ने भाग लिया। आप भी सुनें और बतायें कि हिन्दी कविता को समर्पित इस कार्यक्रम की शुरूआत को शानदार बनाने में हिन्द-युग्म के कवियों की कितनी भूमिका रही।
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अभिषेक जी की कविता की यह पंक्तियाँ सुन कर टू आँखे ही भर गई की माँ को कैसा लगता होगा जब बच्चे निवाले गिनाते होंगे ,मनीष जी की कविता भी प्रभावित कर गई और दूसरी कविता होता कभी यूं भी मन को चू गई |विपिन जी की कविता आज मुझे आलिंगन देकर.......कविता भी सुंदर भाव व्यक्त करती है और दूसरी कविता बालश्रम मी भटकता हुआ बचपन टू रुला ही गया |शैलेश जी की व्यंग्य कविता यही सच्च है .....सचमुच यही सच्च है |अजय यादव जी आपकी ग़ज़ल भी मन को चू गई |सच्च कहा आपने इंसान की बर्दाशत की भी हद नही और रोज नए फतवे और डर सच मी बहुत अच्छ लगा सभी कवियों को सुनकर बहुत अच्छा लगा ,बहुत बहुत बधाई...सीमा सचदेव
अभिषेक पाटनी जी , विपिन चौहान जी , मनीष जी, शैलेश जी और अजय यादव जी से कविताएँ सुनकर बड़ा अच्छा लगा .
माँ को कैसा लगता होगा कविता सचमुच अब घर घर की कहानी सी लगी , बुजुर्गों को जिस वक्त सबसे ज्यादा प्रेम - स्नेह की आवश्यकता होती है उस वक्त ही उनके अपनों के पास वक्त नहीं होता , चाहे डिस्को जाने का समय निकाल लें परन्तु अपनों को यह कह कर समझाया जाता है कि, "आप बड़े हैं , आप तो समझिए" !!! शायद यही पीढियों का अन्तर है जो हर काल में चला आ रहा है ...हिंद युग्म के माध्यम से यह संदेश देना चाहती हूँ कि सभी अपने बुजुर्गों का सम्मान करें ,उन्हें भी थोड़ा प्यार दें, और कुछ नहीं तो कुछ पल रोज उनके साथ बिताएं, ये घडियाँ आपके के लिए ना सही पर आपके बुजुर्गों के लिए अवश्य अनमोल बन जायेंगी , और इसके बदले में मिले आशीर्वाद से आप भी खुशी महसूस करेंगे .
बाकी रचनाएं भी सार्थक हैं ,बाल श्रम में भटकता बचपन , होता कभी यूं भी ,तो यही सच है, आज मुझे आलिंगन देकर इत्यादी सभी कविताएँ प्रभावित करती हैं. सभी कविगणों को बहुत बहुत बधाई
7 टिप्पणियां:
अभिषेक जी की कविता की यह पंक्तियाँ सुन कर टू आँखे ही भर गई की माँ को कैसा लगता होगा जब बच्चे निवाले गिनाते होंगे ,मनीष जी की कविता भी प्रभावित कर गई और दूसरी कविता होता कभी यूं भी मन को चू गई |विपिन जी की कविता
आज मुझे आलिंगन देकर.......कविता भी सुंदर भाव व्यक्त करती है और दूसरी कविता बालश्रम मी भटकता हुआ बचपन टू रुला ही गया |शैलेश जी की व्यंग्य कविता यही सच्च है .....सचमुच यही सच्च है |अजय यादव जी आपकी ग़ज़ल भी मन को चू गई |सच्च कहा आपने इंसान की बर्दाशत की भी हद नही और रोज नए फतवे और डर सच मी बहुत अच्छ लगा
सभी कवियों को सुनकर बहुत अच्छा लगा ,बहुत बहुत बधाई...सीमा सचदेव
मजा आ गया सच में..
बहुत बहुत बधाई सभी कवि मित्रावली को..
अभिषेक पाटनी जी , विपिन चौहान जी , मनीष जी, शैलेश जी और अजय यादव जी से कविताएँ सुनकर बड़ा अच्छा लगा .
माँ को कैसा लगता होगा कविता सचमुच अब घर घर की कहानी सी लगी , बुजुर्गों को जिस वक्त सबसे ज्यादा प्रेम - स्नेह की आवश्यकता होती है उस वक्त ही उनके अपनों के पास वक्त नहीं होता , चाहे डिस्को जाने का समय निकाल लें परन्तु अपनों को यह कह कर समझाया जाता है कि, "आप बड़े हैं , आप तो समझिए" !!! शायद यही पीढियों का अन्तर है जो हर काल में चला आ रहा है ...हिंद युग्म के माध्यम से यह संदेश देना चाहती हूँ कि सभी अपने बुजुर्गों का सम्मान करें ,उन्हें भी थोड़ा प्यार दें, और कुछ नहीं तो कुछ पल रोज उनके साथ बिताएं, ये घडियाँ आपके के लिए ना सही पर आपके बुजुर्गों के लिए अवश्य अनमोल बन जायेंगी , और इसके बदले में मिले आशीर्वाद से आप भी खुशी महसूस करेंगे .
बाकी रचनाएं भी सार्थक हैं ,बाल श्रम में भटकता बचपन , होता कभी यूं भी ,तो यही सच है, आज मुझे आलिंगन देकर इत्यादी सभी कविताएँ प्रभावित करती हैं. सभी कविगणों को बहुत बहुत बधाई
^^पूजा अनिल
वाह क््या बात है, बहुत खूब, बहुत खूब कविता है पाटनी जी..
bahut sunder pankitiyan hai,
aapki panktiya man ko chhu gaye.
करता नमन प्रयास को, आगे बढिए और.
कविता को फ़िर मिला है, कवियों में ही ठौर.
आम जनों से जुडेंगे, कैसे सोचें आज.
हो समाज से दूर क्यों, कहिये काव्य समाज.
'सलिल' खेत की ओर कब, जा गायेंगे गीत.
पनघट औ' चौपाल को, बना सकेंगे मीत.
मनीष वंदेमातरम् की कवितायें बहुत अलग लगीं - नवीनता और रचनात्मकता से भरी हुई. मज़ा आ गया!
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