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ठुमरी पीलू : SWARGOSHTHI – 345 : THUMARI PILU : लता जी का पहला पार्श्वगीत




स्वरगोष्ठी – 345 में आज

फिल्मी गीतों में ठुमरी के तत्व – 2 : लता जी का पहला पार्श्वगीत

राग पीलू में मान मनुहार की ठुमरी में श्याम से होली न खेलने का आग्रह – “पा लागूँ कर जोरी रे...”




लता मंगेशकर
‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी हमारी नई श्रृंखला “फिल्मी गीतों में ठुमरी के तत्व” की इस दूसरी कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र आप सभी संगीत-प्रेमियों का हार्दिक स्वागत करता हूँ। पिछली श्रृंखला में हमने आपके लिए फिल्मों में पारम्परिक ठुमरी के साथ-साथ उसके फिल्मी प्रयोग को भी रेखांकित किया था। इस श्रृंखला में भी हम फिल्मी ठुमरियों की चर्चा कर रहे हैं, किन्तु ये ठुमरियाँ पारम्परिक नहीं हैं। इन ठुमरी गीतों को फिल्मों के प्रसिद्ध गीतकारों ने लिखा है और संगीतकारों ने इन्हें विभिन्न रागों में बाँध कर ठुमरी गायकी के तत्वों से अभिसिंचित किया है। हमारी इस श्रृंखला “फिल्मी गीतों में ठुमरी के तत्व” के शीर्षक से ही यह अनुमान हो गया होगा कि इस श्रृंखला का विषय फिल्मों में शामिल किये गए ऐसे गीत हैं जिनमे राग, भाव और रस की दृष्टि से उपशास्त्रीय गायन शैली ठुमरी के तत्वों का उपयोग हुआ है। सवाक फिल्मों के प्रारम्भिक दौर से फ़िल्मी गीतों के रूप में तत्कालीन प्रचलित पारसी रंगमंच के संगीत और पारम्परिक ठुमरियों के सरलीकृत रूप का प्रयोग आरम्भ हो गया था। विशेष रूप से फिल्मों के गायक-सितारे कुन्दनलाल सहगल ने अपने कई गीतों को ठुमरी अंग में गाकर फिल्मों में ठुमरी शैली की आवश्यकता की पूर्ति की थी। चौथे दशक के मध्य से लेकर आठवें दशक के अन्त तक की फिल्मों में सैकड़ों ठुमरियों का प्रयोग हुआ है। इनमे से अधिकतर ठुमरियाँ ऐसी हैं जो फ़िल्मी गीत के रूप में लिखी गईं और संगीतकार ने गीत को ठुमरी अंग में संगीतबद्ध किया। कुछ फिल्मों में संगीतकारों ने परम्परागत ठुमरियों का भी प्रयोग किया है। इस श्रृंखला में हम आपसे ऐसी ही कुछ गैर-पारम्परिक चर्चित-अचर्चित फ़िल्मी ठुमरियों पर बात करेंगे। आज हमने आपके लिए 1947 में प्रदर्शित फिल्म “आपकी सेवा में” से एक फिल्मी ठुमरी गीत का चयन किया है। गीतकार महिपाल के गीत को संगीतकार दत्ता दावजेकर ने इसे राग पीलू के स्वर में बाँधा है और इस गीत को गायिका लता मंगेशकर ने गाया है। यह लता मंगेशकर के स्वर में गाया गया पहला पार्श्वगीत है।


ह मान्यता है कि नवाब वाजिद अली शाह के दरबार में 'ठुमरी' एक शैली के रूप में विकसित हुई थी। अपने प्रारम्भिक रूप में यह एक प्रकार से नृत्य-गीत ही रहा है। राधा-कृष्ण की केलि-क्रीड़ा से प्रारम्भ होकर सामान्य नायक-नायिका के रसपूर्ण श्रृंगार तक की अभिव्यक्ति इसमें होती रही है। शब्दों की कोमलता और स्वरों की नजाकत इस शैली की प्रमुख विशेषता तब भी थी और आज भी है। कथक नृत्य के भाव अंग में ठुमरी की उपस्थिति से नर्तक / नृत्यांगना की अभिव्यक्ति मुखर हो जाती है। ठुमरी का आरम्भ चूँकि कथक नृत्य के साथ हुआ था, अतः ठुमरी के स्वर और शब्द भी भाव प्रधान होते गए। राज-दरबार के श्रृंगारपूर्ण वातावरण में ठुमरी का पोषण हुआ था। तत्कालीन काव्य-जगत में प्रचलित रीतिकालीन श्रृंगार रस से भी यह शैली पूरी तरह प्रभावित हुई। नवाब वाजिद अली शाह स्वयं उच्चकोटि के रसिक और नर्तक थे। ऊन्होने राधा-कृष्ण के संयोग-वियोग पर कई ठुमरी गीतों की रचना करवाई। ठुमरी और कथक के अन्तर्सम्बन्ध नवाबी काल में ही स्थापित हुए थे। वाजिद अली शाह के दरबार की एक बड़ी रोचक घटना है; जिसने आगे चल कर नृत्य के साथ ठुमरी गायन की धारा को समृद्ध किया।

एक बार नवाब के दरबार में अपने समय के श्रेष्ठतम पखावज-वादक कुदऊ सिंह आए। दरबार में उनका भव्य सत्कार हुआ और उनसे पखावज वादन का अनुरोध किया गया। कुदऊ सिंह ने वादन शुरू किया। उन्होंने ऐसी-ऐसी क्लिष्ट और दुर्लभ तालों और पर्णों का प्रदर्शन किया कि नवाब सहित सारे दरबारी दंग रह गए। कुदऊ सिंह को पता था कि नवाब के दरबार में कथक नृत्य का बेहतर विकास हो रहा है। उन्होंने ऐसी तालों का वादन शुरू किया जो नृत्य के लिए उपयोगी थे। उनकी यह भी अपेक्षा थी कि कोई नर्तक उनके पखावज वादन में साथ दे। कुदऊ सिंह की विद्वता के सामने किसी का साहस नहीं हुआ। उस समय दरबार में कथक गुरु ठाकुर प्रसाद अपने नौ वर्षीय पुत्र के साथ उपस्थित थे। ठाकुर प्रसाद, नवाब वाजिद अली शाह को नृत्य की शिक्षा दिया करते थे। कुदऊ सिंह की चुनौती उनके कानों में बार-बार खटकती रही। अन्ततः उन्होंने अपने नौ वर्षीय पुत्र बिन्दादीन को महफ़िल में खड़े होने का आदेश दिया। फिर शुरू हुई एक ऐसी प्रतियोगिता, जिसमें एक ओर एक नन्हा बालक और दूसरी ओर अपने समय का प्रौढ़ एवं विख्यात पखावज वादक था। कुदऊ सिंह एक से एक क्लिष्ट तालों का वादन करते और वह बालक पूरी सफाई से पदसंचालन कर सबको चकित कर देता था। अन्ततः पखावज के महापण्डित ने उस बालक की प्रतिभा का लोहा माना और उसे अपना आशीर्वाद दिया। यही बालक आगे चलकर बिन्दादीन महाराज के रूप कथक के लखनऊ घराने का संस्थापक हुआ। बिन्दादीन और उनके भाई कालिका प्रसाद ने कथक नृत्य को नई ऊँचाई पर पहुँचाया। बिन्दादीन महाराज ने कथक नृत्य पर भाव प्रदर्शन के लिए 1500 से अधिक ठुमरियों की रचना की थी, जिनका प्रयोग आज भी कथक नर्तक / नृत्यांगना करते हैं।

इस श्रृंखला की पिछली कड़ी में आपने अमीरबाई कर्नाटकी के स्वरों में 1944 की फिल्म "भर्तृहरि" से राग हेमन्त की ठुमरी सुनी थी। आज हम आपको जो ठुमरी गीत सुनवाने जा रहे हैं, वह सुविख्यात गायिका लता मंगेशकर के स्वरों में है। 1947 की फिल्म "आपकी सेवा में" से यह ठुमरी ली गई है। यह ठुमरीनुमा गीत दरअसल एक होलीगीत है, जिसमें नायिका श्याम से होली न खेलने का अनुरोध कर रही है। यह ठुमरी गीत लता मंगेशकर के स्वर में गाया गया पहला पार्श्वगीत है। इसके गीतकार, महिपाल और संगीतकार, दत्ता डावजेकर हैं। संगीतकार दत्ता दवाजेकर ने इस ठुमरी को राग पीलू के स्वर में ढाला है। राग पीलू काफी थाट का अत्यन्त लोकप्रिय राग है। इस राग के आरोह में ऋषभ और धैवत वर्जित होता है और अवरोह में सभी सात स्वर प्रयोग किये जाते हैं। राग का वादी स्वर गान्धार और संवादी स्वर निषाद है। ऋषभ, गान्धार, धैवत और निषाद स्वरों का दोनों रूप प्रयोग किया जाता है। इस राग को गाने-बजाने के समय प्रायः अनेक रागों की छाया दिखाई पड़ती है, इसीलिए इसे संकीर्ण जाति का राग कहा जाता है। यह चंचल और श्रृंगार प्रकृति का राग है, अतः इस राग में ठुमरी, टप्पा, भजन और फिल्मी गीत अधिक प्रचलित हैं। लता मंगेशकर की आवाज़ में प्रस्तुत इस ठुमरी गीत का रसास्वादन अब आप भी कीजिए।

राग पीलू : “पा लागूँ कर जोरी रे...” : लता मंगेशकर : फिल्म – आपकी सेवा में



संगीत पहेली

‘स्वरगोष्ठी’ के 345वें अंक की संगीत पहेली में आज हम आपको 1949 में निर्मित एक फिल्म से एक ठुमरीनुमा गीत का एक अंश सुनवा रहे हैं। गीत के इस अंश को सुन कर आपको निम्नलिखित तीन में से किन्हीं दो प्रश्नों के उत्तर देने हैं। यदि आपको तीन में से केवल एक ही प्रश्न का उत्तर ज्ञात हो तो भी आप प्रतियोगिता में भाग ले सकते हैं। इस वर्ष के अन्तिम अंक की ‘स्वरगोष्ठी’ तक जिस प्रतिभागी के सर्वाधिक अंक होंगे, उन्हें इस वर्ष के पाँचवें सत्र का विजेता घोषित किया जाएगा। इसके साथ ही पूरे वर्ष के प्राप्तांकों की गणना के बाद महाविजेताओं की घोषणा की जाएगी।




1 – इस गीतांश को सुन कर बताइए कि इसमें किस राग का स्पर्श है?

2 – इस गीत में प्रयोग किये गए ताल का नाम बताइए।

3 – इस गीत में किस सुप्रसिद्ध गायिका की आवाज़ है?

आप उपरोक्त तीन मे से किन्हीं दो प्रश्नों के उत्तर केवल swargoshthi@gmail.com या radioplaybackindia@live.com पर ही शनिवार, 2 दिसम्बर, 2017 की मध्यरात्रि से पूर्व तक भेजें। आपको यदि उपरोक्त तीन में से केवल एक प्रश्न का सही उत्तर ज्ञात हो तो भी आप पहेली प्रतियोगिता में भाग ले सकते हैं। COMMENTS में दिये गए उत्तर मान्य हो सकते हैं, किन्तु उसका प्रकाशन पहेली का उत्तर देने की अन्तिम तिथि के बाद किया जाएगा। विजेता का नाम हम उनके शहर, प्रदेश और देश के नाम के साथ ‘स्वरगोष्ठी’ के 347वें अंक में प्रकाशित करेंगे। इस अंक में प्रस्तुत गीत-संगीत, राग, अथवा कलासाधक के बारे में यदि आप कोई जानकारी या अपने किसी अनुभव को हम सबके बीच बाँटना चाहते हैं तो हम आपका इस संगोष्ठी में स्वागत करते हैं। आप पृष्ठ के नीचे दिये गए COMMENTS के माध्यम से तथा swargoshthi@gmail.com अथवा radioplaybackindia@live.com पर भी अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त कर सकते हैं।


पिछली पहेली के विजेता

‘स्वरगोष्ठी’ की 343वीं कड़ी की पहेली में हमने आपको 1944 में प्रदर्शित फिल्म “भर्तृहरि” के एक ठुमरीनुमा गीत का अंश सुनवा कर आपसे तीन में से किन्हीं दो प्रश्नों का उत्तर पूछा था। पहले प्रश्न का सही उत्तर है, राग हेमन्त, दूसरे प्रश्न का सही उत्तर है, ताल – कहरवा और तीसरे प्रश्न का सही उत्तर है, स्वर – अमीरबाई कर्नाटकी

इस अंक की पहेली प्रतियोगिता में प्रश्नों के सही उत्तर देने वाले हमारे प्रतिभागी हैं – चेरीहिल न्यूजर्सी से प्रफुल्ल पटेल, जबलपुर, मध्यप्रदेश से क्षिति तिवारी, पेंसिलवेनिया, अमेरिका से विजया राजकोटिया, वोरहीज, न्यूजर्सी से डॉ. किरीट छाया और हैदराबाद से डी. हरिणा माधवी। आशा है कि हमारे अन्य पाठक / श्रोता भी नियमित रूप से साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ का अवलोकन करते रहेंगे और पहेली प्रतियोगिता में भाग लेंगे। उपरोक्त सभी प्रतिभागियों को ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ की ओर से हार्दिक बधाई।


अपनी बात

मित्रों, ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ पर जारी हमारी नई श्रृंखला “फिल्मी गीतों में ठुमरी के तत्व” की आज की कड़ी में आपने 1947 में प्रदर्शित फिल्म “आपकी सेवा में” के ठुमरी गीत का रसास्वादन किया। इस श्रृंखला में हम आपसे कुछ ऐसे फिल्मी गीतों पर चर्चा करेंगे जिसमें आपको ठुमरी शैली के दर्शन होंगे। आज आपने जो गीत सुना, उसमें राग पीलू का स्पर्श है। इस श्रृंखला में भी हम आपसे फिल्मी ठुमरियों पर चर्चा कर रहे हैं और शास्त्रीय और उपशास्त्रीय संगीत और रागों पर चर्चा भी करेंगे। हमारी वर्तमान और आगामी श्रृंखलाओं के लिए विषय, राग, रचना और कलाकार के बारे में यदि आपकी कोई फरमाइश हो तो हमें swargoshthi@gmail.com पर अवश्य लिखिए। अगले अंक में रविवार को प्रातः 7 बजे हम ‘स्वरगोष्ठी’ के इसी मंच पर सभी संगीत-प्रेमियों का स्वागत करेंगे।


प्रस्तुति : कृष्णमोहन मिश्र  


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