स्वरगोष्ठी – 342 में आज
फिल्मों के आँगन में ठुमकती पारम्परिक ठुमरी – 9 : ठुमरी सिन्धु भैरवी और किरवानी
विरहिणी नायिका की व्यथा – “का करूँ सजनी आए न बालम...”
‘रेडियो
प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी
श्रृंखला “फिल्मों के आँगन में ठुमकती पारम्परिक ठुमरी” की नौवीं कड़ी में
मैं कृष्णमोहन मिश्र अपनी सहयोगी संज्ञा टण्डन के साथ आप सभी
संगीत-प्रेमियों का हार्दिक स्वागत करता हूँ। पिछली श्रृंखला की भाँति इस
श्रृंखला में भी हम एक नया प्रयोग कर रहे हैं। गीतों का परिचयात्मक आलेख
हमारे सम्पादक-मण्डल की सदस्य संज्ञा टण्डन ने प्रस्तुत किया है। आपको
हमारा यह प्रयोग कैसा लगा, अवश्य सूचित कीजिएगा। दरअसल यह श्रृंखला पूर्व
में प्रकाशित / प्रसारित की गई थी। हमारे पाठकों / श्रोताओं को यह श्रृंखला
सम्भवतः कुछ अधिक रुचिकर प्रतीत हुई थी। अनेक संगीत-प्रेमियों ने इसके
पुनर्प्रसारण का आग्रह किया है। सभी सम्मानित पाठकों / श्रोताओं के अनुरोध
का सम्मान करते हुए और पूर्वप्रकाशित श्रृंखला में थोड़ा परिमार्जन करते हुए
यह श्रृंखला हम पुनः प्रस्तुत कर रहे हैं। हमारी नई लघु श्रृंखला “फिल्मों
के आँगन में ठुमकती पारम्परिक ठुमरी” के शीर्षक से ही यह अनुमान हो गया
होगा कि इस श्रृंखला का विषय फिल्मों में शामिल की गई उपशास्त्रीय गायन
शैली ठुमरी है। सवाक फिल्मों के प्रारम्भिक दौर से फ़िल्मी गीतों के रूप में
तत्कालीन प्रचलित पारसी रंगमंच के संगीत और पारम्परिक ठुमरियों के सरलीकृत
रूप का प्रयोग आरम्भ हो गया था। विशेष रूप से फिल्मों के गायक-सितारे
कुन्दनलाल सहगल ने अपने कई गीतों को ठुमरी अंग में गाकर फिल्मों में ठुमरी
शैली की आवश्यकता की पूर्ति की थी। चौथे दशक के मध्य से लेकर आठवें दशक के
अन्त तक की फिल्मों में सैकड़ों ठुमरियों का प्रयोग हुआ है। इनमे से अधिकतर
ठुमरियाँ ऐसी हैं जो फ़िल्मी गीत के रूप में लिखी गईं और संगीतकार ने गीत को
ठुमरी अंग में संगीतबद्ध किया। कुछ फिल्मों में संगीतकारों ने परम्परागत
ठुमरियों का भी प्रयोग किया है। इस श्रृंखला में हम आपसे ऐसी ही कुछ
चर्चित-अचर्चित फ़िल्मी ठुमरियों पर बात करेंगे। आज के अंक हम आपको राग
सिन्धु भैरवी की एक पारम्परिक ठुमरी पहले सुविख्यात गायक उस्ताद बड़े गुलाम
अली खाँ के स्वर में, और फिर इसी ठुमरी का फिल्मी संस्करण सुप्रसिद्ध
पार्श्वगायक येशुदास की आवाज़ में सुनवाएँगे। यह ठुमरी वर्ष 1977 में
प्रदर्शित फिल्म ‘स्वामी’ में शामिल की गई थी। इस फिल्मी रूप में आपको राग
किरवानी की झलक मिलेगी।
ठुमरी सिंधु भैरवी : ‘का करूँ सजनी आए न बालम...’ : उस्ताद बड़े गुलाम अली खाँ
ठुमरी किरवानी : ‘का करूँ सजनी आए न बालम...’ : के.जे. येशुदास : फिल्म – स्वामी
संगीत पहेली
‘स्वरगोष्ठी’
के 342वें अंक की संगीत पहेली में आज हम आपको एक पारम्परिक ठुमरी गीत का
एक अंश सुनवा रहे हैं। गीत के इस अंश को सुन कर आपको निम्नलिखित तीन में से
किन्हीं दो प्रश्नों के उत्तर देने हैं। यदि आपको तीन में से केवल एक ही
प्रश्न का उत्तर ज्ञात हो तो भी आप प्रतियोगिता में भाग ले सकते हैं। इस
वर्ष के अन्तिम अंक की ‘स्वरगोष्ठी’ तक जिस प्रतिभागी के सर्वाधिक अंक
होंगे, उन्हें इस वर्ष के पाँचवें सत्र का विजेता घोषित किया जाएगा।
1 – इस ठुमरी रचना का अंश सुन कर बताइए कि आपको किस राग का अनुभव हो रहा है?
2 – इस ठुमरी गीत में प्रयोग किये गए ताल का नाम बताइए।
3 – इस ठुमरी में किस प्रख्यात गायिका की आवाज़ है?
आप उपरोक्त तीन मे से किन्हीं दो प्रश्नों के उत्तर केवल swargoshthi@gmail.com या radioplaybackindia@live.com पर ही शनिवार 11 नवम्बर, 2017 की मध्यरात्रि से पूर्व तक भेजें। आपको यदि उपरोक्त तीन में से केवल एक प्रश्न का सही उत्तर ज्ञात हो तो भी आप पहेली प्रतियोगिता में भाग ले सकते हैं। COMMENTS
में दिये गए उत्तर मान्य हो सकते हैं, किन्तु उसका प्रकाशन पहेली का उत्तर
देने की अन्तिम तिथि के बाद किया जाएगा। विजेता का नाम हम उनके शहर,
प्रदेश और देश के नाम के साथ ‘स्वरगोष्ठी’ के 344वें अंक में
प्रकाशित करेंगे। इस अंक में प्रस्तुत गीत-संगीत, राग, अथवा कलासाधक के
बारे में यदि आप कोई जानकारी या अपने किसी अनुभव को हम सबके बीच बाँटना
चाहते हैं तो हम आपका इस संगोष्ठी में स्वागत करते हैं। आप पृष्ठ के नीचे
दिये गए COMMENTS के माध्यम से तथा swargoshthi@gmail.com अथवा radioplaybackindia@live.com पर भी अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त कर सकते हैं।
पिछली पहेली के विजेता
‘स्वरगोष्ठी’
की 340वीं कड़ी की पहेली में हमने आपको वर्ष 1964 में प्रदर्शित फिल्म –
“मैं सुहागन हूँ” से ली गई ठुमरी का अंश सुनवा कर आपसे तीन में से किन्हीं
दो प्रश्नों का उत्तर पूछा था। पहले प्रश्न का सही उत्तर है, राग देश, दूसरे प्रश्न का सही उत्तर है, ताल – तीनताल और तीसरे प्रश्न का सही उत्तर है, स्वर – मोहम्मद रफी और आशा भोसले।
इस अंक की पहेली प्रतियोगिता में तीनों प्रश्नों के सही उत्तर देने वाले हमारे प्रतिभागी हैं - चेरीहिल न्यूजर्सी से प्रफुल्ल पटेल, पेंसिलवेनिया, अमेरिका से विजया राजकोटिया, जबलपुर मध्यप्रदेश से क्षिति तिवारी, वोरहीज, न्यूजर्सी से डॉ. किरीट छाया और हैदराबाद से डी. हरिणा माधवी। इसके साथ ही इस बार हमारे एक नए प्रतिभागी, संजीव स्वरानन्द
ने भी तीनों प्रश्नों के सही उत्तर दिये हैं। हम उनका हार्दिक स्वागत करते
हैं। आशा है कि हमारे अन्य पाठक / श्रोता भी नियमित रूप से साप्ताहिक
स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ का अवलोकन करते रहेंगे और पहेली प्रतियोगिता में भाग
लेंगे। उपरोक्त सभी प्रतिभागियों को ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ की ओर से
हार्दिक बधाई।
अपनी बात
मित्रों,
‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ पर जारी हमारी
श्रृंखला “फिल्मों के आँगन में ठुमकती पारम्परिक ठुमरी” की इस नौवीं कड़ी
में आपने राग सिन्धु भैरवी की पारम्परिक ठुमरी उस्ताद बड़े गुलाम अली खाँ की
आवाज़ में और इसी ठुमरी का फिल्मी संस्करण येशुदास की आवाज़ में रसास्वादन किया।
ठुमरी के फिल्मी रूप में कई रागों की झलक मिलती है, किन्तु राग किरवानी के
स्वर प्रमुख रूप से उभरते हैं। आपके अनुरोध पर पुनर्प्रसारित इस श्रृंखला
के अगले अंक में भी हम आपसे एक और पारम्परिक ठुमरी और उसके फिल्मी रूप पर
चर्चा करेंगे और शास्त्रीय और उपशास्त्रीय संगीत और रागों पर चर्चा करेंगे
और सम्बन्धित रागों तथा इस संगीत शैली में निबद्ध कुछ रचनाएँ भी प्रस्तुत
करेंगे। हमारी आगामी श्रृंखलाओं के लिए विषय, राग, रचना और कलाकार के बारे
में यदि आपकी कोई फरमाइश हो तो हमें swargoshthi@gmail.com पर अवश्य लिखिए। अगले अंक में रविवार को प्रातः 8 बजे हम ‘स्वरगोष्ठी’ के इसी मंच पर सभी संगीत-प्रेमियों का स्वागत करेंगे।
वाचक स्वर : संज्ञा टण्डन
आलेख व प्रस्तुति : कृष्णमोहन मिश्र
आलेख व प्रस्तुति : कृष्णमोहन मिश्र
ठुमरी सिन्धु भैरवी और किरवानी : SWARGOSHTHI – 342 : THUMARI SINDHU BHAIRAVI & KIRVANI : 5 नवम्बर, 2017
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