Skip to main content

'मेरी आशिक़ी अब तुम ही हो...' - क्यों फ़िल्म से हटने वाला था यह ब्लॉकबस्टर गीत?


एक गीत सौ कहानियाँ - 64

 

'मेरी आशिक़ी अब तुम ही हो...' 




रेडियो प्लेबैक इण्डिया' के सभी श्रोता-पाठकों को सुजॉय चटर्जी का प्यार भरा नमस्कार। दोस्तों, हम रोज़ाना रेडियो पर, टीवी पर, कम्प्यूटर पर, और न जाने कहाँ-कहाँ, जाने कितने ही गीत सुनते हैं, और गुनगुनाते हैं। ये फ़िल्मी नग़में हमारे साथी हैं सुख-दुख के, त्योहारों के, शादी और अन्य अवसरों के, जो हमारे जीवन से कुछ ऐसे जुड़े हैं कि इनके बिना हमारी ज़िन्दगी बड़ी ही सूनी और बेरंग होती। पर ऐसे कितने गीत होंगे जिनके बनने की कहानियों से, उनसे जुड़े दिलचस्प क़िस्सों से आप अवगत होंगे? बहुत कम, है न? कुछ जाने-पहचाने, और कुछ कमसुने फ़िल्मी गीतों की रचना प्रक्रिया, उनसे जुड़ी दिलचस्प बातें, और कभी-कभी तो आश्चर्य में डाल देने वाले तथ्यों की जानकारियों को समेटता है 'रेडियो प्लेबैक इण्डिया' का यह स्तम्भ 'एक गीत सौ कहानियाँ'। इसकी 64-वीं कड़ी में आज जानिये फ़िल्म ’आशिक़ी 2’ के ब्लॉकबस्टर गीत "तुम ही हो, अब तुम ही हो" के बारे में जिसे अरिजीत सिंह ने गाया था।


2011 वर्ष के सितंबर में मीडिआ में यह ख़बर आई कि महेश भट्ट और भूषण कुमार 1990 की ब्लॉकबस्टर फ़िल्म ’आशिक़ी’ का रीमेक बनाने में इच्छुक हैं। भूषण कुमार ने महेश भट्ट को ’आशिक़ी’ का सीकुईल बनाने का सुझाव दिया, पर भट्ट साहब तभी राज़ी हुए जब शगुफ़्ता रफ़ीक़ की लिखी स्क्रिप्ट को पढ़ कर उन्हें लगा कि कहानी में ’आशिक़ी’ से टक्कर लेने वाली दम है। ’आशिक़ी’ फ़िल्म की कामयाबी को ध्यान में रखते हुए इस फ़िल्म का रीमेक या सीकुईल बनाने का विचार बहुतों को आत्मघाती लगा। उस पर फ़िल्म के गीत-संगीत के पक्ष को भी बेहद मज़बूत बनाने का सवाल था जो ’आशिक़ी’ के गीतों का मुक़ाबला कर सके। शुरू शुरू में ’आशिक़ी’ के गीतों को ही इस्तमाल करने का विचार आया ज़रूर था, पर इसे रद्द किया गया और ’आशिक़ी-2' में नए गीतों को रखने और उन्हें लोकप्रियता के शिखर तक पहुँचाने की ज़िम्मेदारी भट्ट साहब ने अपने सर ली। और इस तरह से ’आशिक़ी-2’ का काम शुरू हुआ। फ़िल्म में संगीत के लिए चुना गया मिथुन, जीत गांगुली और अंकित तिवारी को। गीत लिखे इरशाद कामिल, संजय नाथ, संजय मासूम और मिथुन ने। यूं तो फ़िल्म के सभी गीत पसन्द किए गए, पर मिथुन के लिखे और स्वरबद्ध किए तथा अरिजीत सिंह के गाए "तुम ही हो..." गीत ने सफलता के झंडे गाढ़ दिए और साल का सर्वश्रेष्ठ गीत बना।


Mithoon
"तुम ही हो..." गीत का ऑडियो 16 मार्च 2013 को जारी किया गय था। अगर यह कहें कि इस गीत ने ही इस फ़िल्म की पब्लिसिटी कर दी तो ग़लत नहीं होगा। गीत को समालोचकों से ख़ूब तारीफ़ें मिली। ग्लैमशैम ने लिखा, "It is indeed an exhilarating experience listening to the songs of Aashiqui 2 and in this age of mundane and average/repetitive musical fares that are being churned out, the audio of Aashiqui 2 is surely a treat for all music buffs. "Tum Hi Ho" and "Sunn Raha Hai" (both versions) are our favourites, but "Chahun Main Ya Naa" and "Piya Aaye Na" end up as a close second. A chartbusting musical experience indeed." इसमें कोई संदेह नहीं कि इस गीत में मिथुन का छाप हर टुकड़े में सुनाई देता है। जितना मेलोडियस इसकी धुन है, उतने ही ख़ूबसूरत इसके बोल हैं। पियानो, स्ट्रिंग्स और बीट्स का बेहद सुरीला प्रयोग मिथुन ने किया और अपनी दिलकश आवाज़ से अरिजीत सिंह ने गाने में चार चाँद लगा दिए। यह कहते हुए ज़रा सा भी हिचक नहीं होगी कि मिथुन और अरिजीत ने "तुम ही हो..." के ज़रिए समीर, नदीम-श्रवण और कुमार सानू के "सांसों की ज़रूरत है जैसे..." को सीधी टक्कर दे दी है। इस गीत के सफलता की बात करें तो गीत के यू-ट्युब पर जारी होने के दस दिनों के अन्दर ही पचास लाख हिट्स दर्ज हुए। Big Star Entertainment Awards 2013 और Zee Cine Awards 2014 में इस गीत को Most Entertaining Song of the year का ख़िताब दिया गया। अरिजीत सिंह को इस गीत के लिए सर्वश्रेष्ठ पार्श्वगायक का फ़िल्मफ़ेअर पुरस्कार मिला तो मिथुन को सर्वश्रेष्ठ संगीतकार का। 20th Screen Awards 2014 में अरिजीत को एक बार फिर सर्वश्रेष्ठ पार्श्वगायक का पुरस्कार मिला। मिथुन को इस गीत के लिए सर्वश्रेष्ठ गीतकार का नामांकन भी मिला था पर पुरस्कार गया प्रसून जोशी को ’भाग मिलखा भाग’ के "ज़िन्दा" गीत के लिए।


Arijit Singh
और अब "तुम ही हो..." गीत के बनने की कहानी से जुड़ा एक दिलचस्प क़िस्सा। दरसल शुरू-शुरू में इस गीत का कॉनसेप्ट इस तरह से सोचा गया था कि यह एक डबल वर्ज़न गीत होगा और फ़ीमेल वर्ज़न मेल वर्ज़न से ज़्यादा असरदार होगा फ़िल्म की कहानी को ध्यान में रखते हुए। गीत के दोनों संस्करण रेकॉर्ड हुए। पर जब सबसे दोनों वर्ज़न सुने तो मुश्किल में पड़ गए। मुश्किल इस बात की थी कि मेल वर्ज़न फ़ीमेल वर्ज़न से ज़्यादा अच्छा लगने लगा। कई बार सुनने के बाद सब ने यह स्वीकारा कि यह गीत दरसल महिला कंठ में नहीं बल्कि पुरुष कंठ में ही अधिक प्रभावशाली सुनाई दे रहा है। और अगर यह बात सच है तो फिर इस गीत का जो कॉनसेप्ट था कि फ़ीमेल वर्ज़न ज़्यादा असरदार होना चाहिए, वह ज़रूरत पूरी नहीं हो रही थी। इसलिए सवाल यह खड़ा हो गया कि क्या इस गीत को रद्द करके कोई नया गीत बनाया जाए जो महिला कंठ में ज़्यादा असरदार लगे? पर इस पर किसी की सहमती नहीं मिली, कारण यह था कि अरिजीत और मिथुन ने "तुम ही हो..." में जो कमाल कर चुके थे, उसके बाद इस गीत को रद्द करने का ख़याल ही ग़लत था। सबको लग रहा था कि गीत ज़बरदस्त हिट होगा। अत: सर्वसम्मति से इस गीत को फ़िल्म में रख लिया गया, फ़ीमेल वर्ज़न को रद्द करके एक डुएट वर्ज़न बनाया गया जिसे अरिजीत सिंह के साथ पलक मुछाल ने गाया। इस संसकरण के बोल मिथुन नहीं बल्कि इरशाद कामिल ने लिखे। यह संस्करण भी सराहा गया पर अरिजीत सिंह का एकल संस्करण ही सर चढ़ कर बोला। लीजिए, अब यही गीत आप भी सुनिए। 


फिल्म  - आशिक़ी 2 : "तुम ही हो अब तुम ही हो..." : अरिजीत सिंह : गीत और संगीत - मिथुन 





अब आप भी 'एक गीत सौ कहानियाँ' स्तंभ के वाहक बन सकते हैं। अगर आपके पास भी किसी गीत से जुड़ी दिलचस्प बातें हैं, उनके बनने की कहानियाँ उपलब्ध हैं, तो आप हमें भेज सकते हैं। यह ज़रूरी नहीं कि आप आलेख के रूप में ही भेजें, आप जिस रूप में चाहे उस रूप में जानकारी हम तक पहुँचा सकते हैं। हम उसे आलेख के रूप में आप ही के नाम के साथ इसी स्तम्भ में प्रकाशित करेंगे। आप हमें ईमेल भेजें soojoi_india@yahoo.co.in के पते पर। 


खोज, आलेख व प्रस्तुति : सुजॉय चटर्जी
प्रस्तुति सहयोग: कृष्णमोहन मिश्र 




Comments

Anita said…
मधुर गीत और रोचक कहानी गीत की..आभार !

Popular posts from this blog

सुर संगम में आज -भारतीय संगीताकाश का एक जगमगाता नक्षत्र अस्त हुआ -पंडित भीमसेन जोशी को आवाज़ की श्रद्धांजली

सुर संगम - 05 भारतीय संगीत की विविध विधाओं - ध्रुवपद, ख़याल, तराना, भजन, अभंग आदि प्रस्तुतियों के माध्यम से सात दशकों तक उन्होंने संगीत प्रेमियों को स्वर-सम्मोहन में बाँधे रखा. भीमसेन जोशी की खरज भरी आवाज का वैशिष्ट्य जादुई रहा है। बन्दिश को वे जिस माधुर्य के साथ बदल देते थे, वह अनुभव करने की चीज है। 'तान' को वे अपनी चेरी बनाकर अपने कंठ में नचाते रहे। भा रतीय संगीत-नभ के जगमगाते नक्षत्र, नादब्रह्म के अनन्य उपासक पण्डित भीमसेन गुरुराज जोशी का पार्थिव शरीर पञ्चतत्त्व में विलीन हो गया. अब उन्हें प्रत्यक्ष तो सुना नहीं जा सकता, हाँ, उनके स्वर सदियों तक अन्तरिक्ष में गूँजते रहेंगे. जिन्होंने पण्डित जी को प्रत्यक्ष सुना, उन्हें नादब्रह्म के प्रभाव का दिव्य अनुभव हुआ. भारतीय संगीत की विविध विधाओं - ध्रुवपद, ख़याल, तराना, भजन, अभंग आदि प्रस्तुतियों के माध्यम से सात दशकों तक उन्होंने संगीत प्रेमियों को स्वर-सम्मोहन में बाँधे रखा. भीमसेन जोशी की खरज भरी आवाज का वैशिष्ट्य जादुई रहा है। बन्दिश को वे जिस माधुर्य के साथ बदल देते थे, वह अनुभव करने की चीज है। 'तान' को वे अपनी चे

कल्याण थाट के राग : SWARGOSHTHI – 214 : KALYAN THAAT

स्वरगोष्ठी – 214 में आज दस थाट, दस राग और दस गीत – 1 : कल्याण थाट राग यमन की बन्दिश- ‘ऐसो सुघर सुघरवा बालम...’  ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर आज से आरम्भ एक नई लघु श्रृंखला ‘दस थाट, दस राग और दस गीत’ के प्रथम अंक में मैं कृष्णमोहन मिश्र, आप सब संगीत-प्रेमियों का हार्दिक स्वागत करता हूँ। आज से हम एक नई लघु श्रृंखला आरम्भ कर रहे हैं। भारतीय संगीत के अन्तर्गत आने वाले रागों का वर्गीकरण करने के लिए मेल अथवा थाट व्यवस्था है। भारतीय संगीत में 7 शुद्ध, 4 कोमल और 1 तीव्र, अर्थात कुल 12 स्वरों का प्रयोग होता है। एक राग की रचना के लिए उपरोक्त 12 स्वरों में से कम से कम 5 स्वरों का होना आवश्यक है। संगीत में थाट रागों के वर्गीकरण की पद्धति है। सप्तक के 12 स्वरों में से क्रमानुसार 7 मुख्य स्वरों के समुदाय को थाट कहते हैं। थाट को मेल भी कहा जाता है। दक्षिण भारतीय संगीत पद्धति में 72 मेल प्रचलित हैं, जबकि उत्तर भारतीय संगीत पद्धति में 10 थाट का प्रयोग किया जाता है। इसका प्रचलन पण्डित विष्णु नारायण भातखण्डे जी ने प्रारम्भ किया

‘बरसन लागी बदरिया रूमझूम के...’ : SWARGOSHTHI – 180 : KAJARI

स्वरगोष्ठी – 180 में आज वर्षा ऋतु के राग और रंग – 6 : कजरी गीतों का उपशास्त्रीय रूप   उपशास्त्रीय रंग में रँगी कजरी - ‘घिर आई है कारी बदरिया, राधे बिन लागे न मोरा जिया...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी लघु श्रृंखला ‘वर्षा ऋतु के राग और रंग’ की छठी कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र एक बार पुनः आप सभी संगीतानुरागियों का हार्दिक स्वागत और अभिनन्दन करता हूँ। इस श्रृंखला के अन्तर्गत हम वर्षा ऋतु के राग, रस और गन्ध से पगे गीत-संगीत का आनन्द प्राप्त कर रहे हैं। हम आपसे वर्षा ऋतु में गाये-बजाए जाने वाले गीत, संगीत, रागों और उनमें निबद्ध कुछ चुनी हुई रचनाओं का रसास्वादन कर रहे हैं। इसके साथ ही सम्बन्धित राग और धुन के आधार पर रचे गए फिल्मी गीत भी सुन रहे हैं। पावस ऋतु के परिवेश की सार्थक अनुभूति कराने में जहाँ मल्हार अंग के राग समर्थ हैं, वहीं लोक संगीत की रसपूर्ण विधा कजरी अथवा कजली भी पूर्ण समर्थ होती है। इस श्रृंखला की पिछली कड़ियों में हम आपसे मल्हार अंग के कुछ रागों पर चर्चा कर चुके हैं। आज के अंक से हम वर्षा ऋतु की