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'सिने पहेली' में आज पहचानिये कुछ मैगज़ीन कवर्स

(24 नवम्बर, 2012)  सिने-पहेली # 47 'रेडियो प्लेबैक इण्डिया' के सभी पाठकों और श्रोताओं को सुजॉय चटर्जी का सप्रेम नमस्कार। दोस्तों, फ़िल्मी नायक-नायिकाएँ फ़िल्म के पर्दे के बाहर भी कई जगहों पर नज़र आते हैं जैसे कि विज्ञापनों में, स्टेज शोज़ में, पत्र-पत्रिकाओं में, और फ़िल्मी व फ़ैशन मैगज़ीनों के मुखपृष्ठ यानी कवर पेज पर। मैगज़ीनों की बात करें तो फ़िल्मी मैगज़ीनों (जैसे कि फ़िल्मफ़ेयर, स्टारडस्ट आदि) में नियमित रूप से फ़िल्मी सितारों के चित्र तो प्रकाशित होते ही रहते हैं, इनके अलावा भी समाचार, स्वास्थ्य और फ़ैशन पत्रिकाओं में फ़िल्मी सितारे आये दिन छाये रहते हैं। आज की सिने पहेली में हम आपको कुछ ऐसे ही फ़िल्मी व ग़ैर-फ़िल्मी पत्रिकाओं के मुखपृष्ठ दिखा कर इन पत्रिकाओं के नाम जानना चाहते हैं। अर्थात् इन कवर पेजेज़ में फ़िल्मी कलाकारों की तस्वीरों को देख कर आपको बताना होगा कि ये कौन सी पत्रिकाएँ हैं। तो तैयार हैं न आप आज की सिने पहेली को सुलझाने के लिए? यह रही आज की 'सिने पहेली'.... आज की पहेली : पहेली पत्रिका पहचान की नीचे दिये गय

शब्दों के चाक पर - २०

" ज्योति कलश छलके " साल की सबसे अंधेरी रात में दीप इक जलता हुआ बस हाथ में लेकर चलें करने धरा ज्योतिर्मयी। दीपावली का पर्व प्रकाश का उत्सव है। ज्ञान का प्रकाश, उपहार, उल्लास, और प्रेम के इस पावन पर्व पर "शब्दों के चाक पर" की एक ज्योतिर्मयी प्रस्तुति हमारे श्रोताओं की सेवा में समर्पित है। नई ज्योति के धर नए पंख झिलमिल, उड़े मर्त्य मिट्टी गगन स्वर्ग छू ले, लगे रोशनी की झड़ी झूम ऐसी, निशा की गली में तिमिर राह भूले, खुले मुक्ति का वह किरण द्वार जगमग, ऊषा जा न पाए, निशा आ ना पाए जलाओ दिए पर रहे ध्यान इतना अँधेरा धरा पर कहीं रह न जाए। दोस्तों, आज की कड़ी में हमारा विषय है - " ज्योति का पर्व "। जीवन में प्रकाश और तमस की निरंतर चल रही कशमकश की कविताएं पिरोकर लाये हैं आज हमारे विशिष्ट कवि मित्र। पॉडकास्ट को स्वर दिया है अभिषेक ओझा ओर अनुराग शर्मा ने, स्क्रिप्ट रची है विश्व दीपक ने, सम्पादन व संचालन है अनुराग शर्मा का, व सहयोग है वन्दना गुप्ता का। आइये सुनिए सुनाईये ओर छा जाईये ... (नीचे दिए गए किसी भी प्लेयेर से सुनें)

स्मृतियों के झरोखे से : अमित तिवारी की देखी पहली फिल्म 'बालिका वधु'

मैंने देखी पहली फ़िल्म : अमित तिवारी भारतीय सिनेमा के शताब्दी वर्ष में ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ द्वारा आयोजित विशेष अनुष्ठान में प्रत्येक गुरुवार को हम आपके लिए सिनेमा के इतिहास पर विविध सामग्री प्रस्तुत कर रहे हैं। माह के दूसरे और चौथे गुरुवार को आपके संस्मरणों पर आधारित ‘मैंने देखी पहली फिल्म’ स्तम्भ का प्रकाशन करते हैं। आज माह का चौथा गुरुवार है, इसलिए आज बारी है आपकी देखी पहली फिल्म के रोचक संस्मरण की। आज हम प्रस्तुत कर रहे हैं, एक गैर-प्रतियोगी संस्मरण। आज का यह संस्मरण प्रस्तुत कर रहे हैं, रेडियो प्लेबैक इण्डिया के संचालक-मण्डल के सदस्य अमित तिवारी।  सचमुच बहुत अच्छा लगता है, 'बालिका वधू' का गीत ‘बड़े अच्छे लगते हैं...’ मु झसे जब पुछा गया कि मेरी देखी पहली फिल्म कौन सी है तो मुझे दिमाग पर ज्यादा जोर डालने की जरूरत नहीं पड़ी। मेरी याद में जो मेरी देखी पहली फिल्म है , वो थी शशि कपूर, प्राण और सुलक्षणा पण्डित के अभिनय से सजी 1978 में प्रदर्शित हुई फिल्म 'फाँसी'। उस समय मैं करीब पाँच साल का था। मुझे इस फिल्म का केवल एक दृश्य याद ह

५ थाट और राग असवारी - एक चर्चा संज्ञा टंडन के साथ

प्लेबैक इंडिया ब्रोडकास्ट २०  नमस्कार दोस्तों, आज की महफ़िल में आपकी होस्ट संज्ञा टंडन लेकर आयीं हैं एक बार फिर जानकारी थाठों की. आज जिक्र है थाट मारवा, काफी, तोड़ी, भैरवी, और असवारी की. साथ ही चर्चा है राग असवारी पर आधारित फ़िल्मी गीतों की, तो आनंद लीजिए इस अनूठे ब्रोडकास्ट का.  प्रस्तुति - संज्ञा टंडन  स्क्रिप्ट - कृष्णमोहन मिश्र 

बोलती कहानियाँ - कश्मकश - रश्मि रविजा

'बोलती कहानियाँ' स्तम्भ के अंतर्गत हम आपको सुनवा रहे हैं प्रसिद्ध कहानियाँ। पिछले सप्ताह आपने अनुराग शर्मा की आवाज़ में प्राख्यात साहित्यकार विष्णु बैरागी की कहानी " "यह उजास चाहिए मुझे" का पॉडकास्ट सुना था। आज हम आपकी सेवा में प्रस्तुत कर रहे हैं लोकप्रिय लेखिका रश्मि रविजा की कहानी " कश्मकश ", अर्चना चावजी की आवाज़ में। कहानी " कश्मकश " का टेक्स्ट "मन का पाखी" पर उपलब्ध है। कहानी का कुल प्रसारण समय 14 मिनट 58 सेकंड है। सुनें और बतायें कि हम अपने इस प्रयास में कितना सफल हुए हैं।  यदि आप भी अपनी मनपसंद कहानियों, उपन्यासों, नाटकों, धारावाहिको, प्रहसनों, झलकियों, एकांकियों, लघुकथाओं को अपनी आवाज़ देना चाहते हैं तो अधिक जानकारी के लिए कृपया admin@radioplaybackindia.com पर सम्पर्क करें। “"मंजिल मिले ना मिले , ये ग़म नहीं मंजिल की जुस्तजू में, मेरा कारवां तो है।” ~  रश्मि रविजा हर सप्ताह यहीं पर सुनें एक नयी कहानी "सारी मुसीबत इनकी निरीहता को लेकर ही है। क्यूँ नहीं ये लोग भी उपेक्षा भरा व्यवहार अपनाते? क्यू

फिल्मों के आँगन में ठुमकती पारम्परिक ठुमरी – ७

स्वरगोष्ठी – ९६ में आज लौकिक और आध्यात्मिक भाव का बोध कराती ठुमरी ‘बाबुल मोरा नैहर छूटो जाय...’ चौथे से लेकर छठें दशक तक की हिन्दी फिल्मों के संगीतकारों ने राग आधारित गीतों का प्रयोग कुछ अधिक किया था। उन दिनों शास्त्रीय मंचों पर या ग्रामोफोन रेकार्ड के माध्यम से जो बन्दिशें, ठुमरी, दादरा आदि बेहद लोकप्रिय होती थीं, उन्हें फिल्मों में कभी-कभी यथावत और कभी अन्तरे बदल कर प्रयोग किये जाते रहे। चौथे दशक के कुछ संगीतकारों ने फिल्मों में परम्परागत ठुमरियों का बड़ा स्वाभाविक प्रयोग किया था। फिल्मों में आवाज़ के आगमन के इस पहले दौर में राग आधारित गीतों के गायन के लिए सर्वाधिक यश यदि किसी गायक को प्राप्त हुआ, तो वह कुन्दनलाल (के.एल.) सहगल ही थे। उन्होने १९३८ में प्रदर्शित ‘न्यू थियेटर’ की फिल्म ‘स्ट्रीट सिंगर’ में शामिल पारम्परिक ठुमरी- ‘बाबुल मोरा नैहर छूटो जाय...’ गाकर उसे कालजयी बना दिया। ‘स्वरगोष्ठी’ के आज के अंक में आप संगीत-प्रेमियों के बीच, मैं कृष्णमोहन मिश्र, भैरवी की इसी ठुमरी से जुड़े कुछ तथ्यों पर चर्चा करूँगा। अ वध के नवाब वाजिद अली शाह संगीत-नृत

'सिने पहेली' में आज बारी एक फ़िल्मी वर्ग पहेली की...

सिने-पहेली # 46  (17 नवंबर, 2012)  'रेडियो प्लेबैक इण्डिया' के सभी पाठकों और श्रोताओं को सुजॉय चटर्जी का सप्रेम नमस्कार। दोस्तों, सुबह-सुबह एक गरम चाय की प्याली हाथ में लेकर ताज़े अख़्बार की वर्ग पहेली को सुलझाने का मज़ा ही कुछ और है, क्यों है न? आप में से कईयों को वर्ग पहेली या crossword puzzle को सुलझाने का शौक भी होगा, तभी तो हम 'सिने पहेली' प्रतियोगिता के हर सेगमेण्ट में कम से कम एक वर्ग पहेली का निर्माण ज़रूर करते हैं ताकि वर्ग पहेली के शौकीनों को भी हम संतुष्ट कर सके। वर्ग पहेली को सुलझाने में जितना मज़ा आता है, इसे तैयार करने में भी सच पूछिये मुझे तो बहुत ही आनन्द आता है। हाँ, समय ज़्यादा ज़रूर लगता है! फिर भी इस प्रतियोगिता में विविधता बनाये रखने की चाहत हमें मजबूर करती है हर अंक में कुछ नया करने की। तो हो जाइए तैयार सुलझाने के लिए हमारी आज की वर्ग पहेली.... आज की पहेली : फ़िल्मी वर्ग-पहेली नीचे दिये गये सूत्रों के माध्यम से सुलझाइये इस वर्ग पहेली को। आज के कुल अंक हैं 11। बायें से दायें 1. सन् 1991 की इस हिन्दी फ़िल्म में बहुत सी ब

लौट चलें बचपन की ओर, बच्चों की आवाजों में कुछ दुर्लभ रचनाओं संग

शब्दों में संसार - एपिसोड 03 - बचपन      दोस्तों, शब्दों में संसार को आपका ढेर सारा प्यार मिल रहा है, यकीन मानिये इसके हर एपिसोड को तैयार करने में एक बड़ी टीम को जमकर मेहनत जोतनी पड़ती है, पर इसे अपलोड करने के बाद हम में हर किसी को एक गजब की आत्म संतुष्टी का अनुभव भी अवश्य होता है, और आपके स्नेह का प्रोत्साहन पाकर ये खुशी दुगनी हो जाती है. दो दिन पहले हमने 'बाल दिवस' मनाया था तो इस माह का ये विशेष एपिसोड बच्चों के नाम करना लाजमी ही था.  हमारी उम्र बढ गई, हम बड़े हो गए और इस तरह हमने अपने-आप को उन ख्यालों, सपनों और कोशिशों तक हीं सीमित कर लिया जहाँ हक़ीक़त का मुहर लगना अनिवार्य होता है। हम हरेक बात को संभव और असंभव के पलड़े पर तोलने लगे और जब भी कुछ असंभव की तरफ बढता दिखा तो हमने उससे कन्नी काट ली। हमने बस उसे हीं सच और सही कहा, जो हमारी नज़रों के सामने था या फिर जिसके होने से हमारे मस्तिष्क को बल मिला। बाकी बातों, घटनाओं एवं कल्पनाओं को हमने बचकानी घोषित कर दिया। ऐसा करके हमें लगा कि हमने कोई तीर मार दिया है, लेकिन सही मायने में हमने उसी दिन अपनी मासूमियत खो दी। हम बड़

सिनेमा के सौ साल – 23 : भाई दूज पर विशेष

भूली-बिसरी यादें भाई-बहन के सम्बन्धों पर बनी आरम्भिक दौर की फिल्में भारतीय सिनेमा के शताब्दी वर्ष में आयोजित विशेष श्रृंखला, ‘स्मृतियों के झरोखे से : भारतीय सिनेमा के सौ साल’ के एक नये अंक के साथ मैं कृष्णमोहन मिश्र, अपने साथी सुजॉय चटर्जी के साथ आपके बीच उपस्थित हूँ और आपका हार्दिक स्वागत करता हूँ। आज मास का तीसरा गुरुवार है और इस दिन हम आपके लिए मूक और सवाक फिल्मों की कुछ रोचक दास्तान लेकर आते हैं। आज भाई-बहनों का महत्त्वपूर्ण पर्व ‘भाईदूज’ है। इस विशेष अवसर पर आज हम आपके लिए लेकर आए हैं ‘भूली बिसरी यादें’ का एक विशेष अंक। आज हमारे साथी सुजॉय चटर्जी शुरुआती दौर की कुछ ऐसी फिल्मों का ज़िक्र कर रहे हैं जिनमें ‘भाईदूज’ पर्व का उल्लेख हुआ है। भा ई और बहन के अटूट रिश्ते को और भी अधिक मजबूत बनाने के लिए साल में दो त्योहार मनाये जाते हैं, रक्षाबन्धन और भाईदूज। वैसे तो इन दोनों त्योहारों के रस्म लगभग एक जैसे ही हैं, फिर भी रक्षाबन्धन को भाईदूज से ज़्यादा महत्त्व दिया जाता है। एक पौराणिक कथा के अनुसार भाईदूज के दिन यमराज अपनी बहन यमी के घर जाते हैं और यमी उसके मा

विष्णु बैरागी की यह उजास चाहिए मुझे

'बोलती कहानियाँ' इस स्तम्भ के अंतर्गत हम आपको सुनवा रहे हैं प्रसिद्ध कहानियाँ। पिछले सप्ताह आपने अनुराग शर्मा की आवाज़ में आचार्य चतुरसेन की कहानी अब्बाजान का प्रसारण सुना था। आज हम लेकर आये हैं "विष्णु बैरागी" की कहानी "यह उजास चाहिए मुझे", जिसको स्वर दिया है अनुराग शर्मा ने। सुनें और बतायें कि हम अपने इस प्रयास में कितना सफल हुए हैं। कहानी का कुल प्रसारण समय है: 12 मिनट 39 सेकंड। इस कथा का मूल आलेख विष्णु जी के ब्लॉग एकोऽहम् पर पढ़ा जा सकता है| यदि आप भी अपनी मनपसंद कहानियों, उपन्यासों, नाटकों, धारावाहिको, प्रहसनों, झलकियों, एकांकियों, लघुकथाओं को अपनी आवाज़ देना चाहते हैं तो अधिक जानकारी के लिए कृपया admin@radioplaybackindia.com पर सम्पर्क करें। भ्रष्टाचार का लालच मनुष्य की आत्मा को मार देता है। ~ विष्णु बैरागी हर सप्ताह यहीं पर सुनें एक नयी कहानी “चारों के चारों, मेरे इस नकार को, घुमा-फिराकर मेरी कंजूसी साबित करना चाह रहे हैं। मुझे हँसी आती है किन्तु हँस नहीं पाता। डरता हूँ कि ये सब बुरा न मान जाएँ।” ( विष्णु बैरागी की "

प्लेबैक वाणी - संगीत समीक्षा - जब तक है जान

प्लेबैक वाणी - संगीत समीक्षा - जब तक है जान  “तेरी आँखों की नमकीन मस्तियाँ, तेरी हँसी की बेपरवाह गुस्ताखियाँ, तेरी जुल्फों की लहराती अंगडाईयाँ, नहीं भूलूँगा मैं...जब तक है जान...”, दोस्तों सिने प्रेमी भी यश चोपड़ा और उनकी यादगार फिल्मों को वाकई नहीं भूलेंगें...जब तक है जान...यश जी की हर फिल्म उसके बेहतरीन संगीत के लिए भी दर्शकों और श्रोताओं के दिलो जेहन में हमेशा बसी रहेगीं. उन्होंने फिल्म और कहानी की जरुरत के मुताबिक अपने गीतकार संगीतकार चुने, मसलन आनंद बख्शी और लक्ष्मीकांत प्यारेलाल की जबरदस्त सफलता के दौर में उन्होंने एल पी के साथ साहिर की जोड़ी बनायीं “दाग” के लिए और परिणाम जाहिर है उत्कृष्ट ही रहा. वहीँ उन्होंने आनंद बख्शी को मिलाया शिव हरी से और अद्भुत गीत निकलवाये. स्क्रिप्ट लेखक जावेद अख्तर को गीतकार बनाया. खय्याम को “कभी कभी” और उत्तम सिंह को “दिल तो पागल है” के रूप में वो व्यावसयिक कामयाबी दिलवाई जिसके के वो निश्चित ही हकदार थे. मदन मोहन की बरसों पुरानी धुनों को नयी सदी में फिर से जिंदा कर मदन जी को आज के श्रोताओं से रूबरू करवाया. ये सब सिर्फ और सिर्फ यशी जी ही कर

नवोदित संगीत प्रतिभाओ के ताज़गी भरे स्वर

स्वरगोष्ठी - विशेष अंक में आज   उत्तर प्रदेश की बाल, किशोर और युवा संगीत प्रतिभाएँ- देवांशु, पूजा, अपूर्वा और भैरवी ‘उत्तर प्रदेश के सुरीले स्वर’  देवांशु घोष को पुरस्कृत करते हुए  महामहिम राज्यपाल अन्य कला-विधाओं की भाँति पारम्परिक संगीत का विस्तार भी एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक होता रहा है। संगीत की नवोदित प्रतिभाओं को खोजने, प्रोत्साहित करने और उनकी प्रतिभा को सही दिशा देने में कुछ संस्थाएँ संलग्न हैं। इनमें एक नाम जुड़ता है, लखनऊ की संस्था ‘संगीत मिलन’ का। संगीत की शिक्षा, शोध और प्रचार-प्रसार में यह संस्था विगत ढाई दशक से संलग्न है। पिछले दिनों संस्था ने पूरे उत्तर प्रदेश में बाल, किशोर और युवा वर्ग की संगीत प्रतिभाओं को खोजने का अभियान चलाया, जिसका समापन गत रविवार को प्रदेश के महामहिम राज्यपाल बी.एल. जोशी के हाथों विजेता बच्चों को पुरस्कृत करा कर हुआ। ‘स्वरगोष्ठी’ के आज के विशेष अंक में हम इस प्रतिभा-खोज प्रतियोगिता में चुनी गईं संगीत प्रतिभाओं की गायकी से आपका परिचय कराएँगे। उ न्नीसवीं शताब्दी के उत्तर प्रदेश में संगीत-शिक्षा के अनेक केन्द