एक गीत सौ कहानियाँ - 25 ‘कहीं दूर जब दिन ढल जाये...’ हम रोज़ाना न जाने कितने ही गीत सुनते हैं, और गुनगुनाते हैं। पर ऐसे बहुत कम ही गीत होंगे जिनके बनने की कहानी से हम अवगत होंगे। फ़िल्मी गीतों की रचना प्रक्रिया, उनसे जुड़ी दिलचस्प बातें, और कभी-कभी आश्चर्य में डाल देने वाले तथ्यों की जानकारियों को समेटता है 'रेडियो प्लेबैक इण्डिया' का साप्ताहिक स्तंभ 'एक गीत सौ कहानियाँ'। इसकी 25-वीं कड़ी में आज जानिये फ़िल्म 'आनन्द' के एक सदाबहार गीत के बारे में... संगीतकार ओ. पी. नय्यर ने सच ही कहा है कि किसी भी गीत के लिए 50% श्रेय गीतकार को मिलना चाहिये, 25% संगीतकार को, और बाकी के 25% में गायक और साज़िन्दे आदि आते हैं। सच ही तो है कि किसी गीत को कालजयी बनाता है उसके असरदार बोल, उसका सुन्दर काव्य, उसमें छुपा दर्शन और संदेश। ऐसी ही एक कालजयी रचना है फ़िल्म 'आनन्द' में - "कहीं दूर जब दिन ढल जाये, सांझ की दुल्हन बदन चुराये, चुपके से आये, मेरे ख़यालों के आंगन में कोई सपनों के दीप जलाये, दीप जलाये"। योगेश, सलिल चौधरी और मुकेश की तिकड़ी ने क