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"ससुराल गेंदा फूल..." - क्यों की जाती है ससुराल की तुलना गेंदे के फूल से?

'डेल्ही-६' फ़िल्म में "ससुराल गेंदा फूल" गीत ने हम सभी को कम या ज़्यादा थिरकाया ज़रूर है। छत्तीसगढ़ी लोक गीत पर आधारित इस गीत के बनने की कहानी के साथ-साथ जानिये कि ससुराल को क्यों गेंदे का फूल कहा जाता है। 'एक गीत सौ कहानियाँ' की 19वीं कड़ी में सुजॉय चटर्जी के साथ... एक गीत सौ कहानियाँ # 19 हि न्दी फ़िल्मी गीतों में लोक-संगीत के प्रयोग की बात करें तो उत्तर प्रदेश, बिहार, बंगाल, पंजाब और महाराष्ट्र राज्यों के लोक-संगीत का ही सर्वाधिक प्रयोग इस क्षेत्र में हुआ है। पहाड़ी पृष्ठभूमि पर बनने वाले गीतों में हिमाचल, जम्मू-कश्मीर, उत्तरांचल और उत्तर बंगाल व उत्तर-पूर्व के लोक धुनों का इस्तेमाल भी समय-समय पर होता आया है। पर छत्तीसगढ़ के लोक-संगीत की तरफ़ फ़िल्मी संगीतकारों का रुख़ उदासीन ही रहा है। हाल के वर्षों में दो ऐसी फ़िल्में बनी हैं जिनमें छत्तीसगढ़ी लोक-संगीत का सफल प्रयोग हुआ है। इसमें एक है आमिर ख़ान की फ़िल्म 'पीपली लाइव', जिसमें रघुवीर यादव और साथियों का गाया "महंगाई डायन" और नगीन तनवीर का गाया "चोला माटी के राम"

सुमन सिन्हा की पसंद लेकर आयीं हैं रश्मि जी आज अपनी महफ़िल में

जिं दगी  ख्वाब है और सुमन सिन्हा जी,. सोचते जो हैं वो कहते नहीं, लिखते जो हैं वो भूल जाते हैं,  पर ये गीत कभी नहीं खोते उनकी जुबां से - किसी की मुस्कुराहटों पे हो निसार  - जीना इसी का नाम है    ज़िन्दगी ख्वाब है   ख्वाब में सच है क्या और भला झूट ..... जागते रहो मुझसे पहली सी मुहब्बत   मेरे महबूब ना मांग - फैज़   यारों मुझे मुआफ करो   मैं नशे में हूँ - C H Atma आग लगी हमरी झोपडिया में हम गाएँ मल्हार - सगीना महतो    

सिने-पहेली # 19 (जीतिये 5000 रुपये के इनाम)

सिने-पहेली # 19 (7 मई, 2012)  नमस्कार दोस्तों, 'सिने पहेली' की 19-वीं कड़ी में मैं, सुजॉय चटर्जी, आप सभी का फिर एक बार स्वागत करता हूँ। दोस्तों, 'सिने-पहेली' में पिछले कुछ सप्ताहों से कई नए नए प्रतियोगी जुड़े हैं और इस सप्ताह भी यह सिलसिला जारी रहा। इस सप्ताह हमारे साथ जुड़ने वाले दो नाम हैं बरेली, उत्तर प्रदेश के दयानिधि वत्स और बीकानेर, राजस्थान के गौतम केवलिया। गौतम जी ने जवाबों के साथ-साथ अपने ईमेल में यह भी लिखा है कि पेशे से वो एक दवा-प्रतिनिधि हैं और साहित्य से गहरा जुड़ाव रखने वाले परिवार से ताल्लुख़ रखते हैं। वर्ष १९८२ में, जब वो दसवीं कक्षा में पढ़ते थे, उनका एक लघु-व्यंग 'धर्मयुग' के कॉलम 'व्यंग परिहास: अपने आसपास' में प्रकाशित हुआ था। तब से वर्ष १९९२ तक देश की अनेक पत्र-पत्रिकाओं में उनके व्यअंग, कवितायें, कहानियाँ, रेखांकन, कार्टून आदि छपते रहे हैं। उस दौरान आकाशवाणी से भी नियमित जुड़ाव गौतम जी का बना रहा। १९९२ के बाद इस निरंतरता में एक ठहराव-सा आ गया। लिखना तो कमोबेश जारी रहा मगर छपना बहुत कम हो गया। पिछले कुछ अरसे से सोयी हुई

सुर-गन्धर्व मन्ना डे को स्वरांजलि भाग-२

स्वरगोष्ठी – ६९ में आज स्वर-साधक मन्ना डे से सुनिए- बागेश्री, छायानट और खमाज हि न्दी फिल्मों के पार्श्वगायकों में मन्ना डे ऐसे गायक हैं जो गीतों की संख्या से नहीं बल्कि गीतों की गुणबत्ता और संगीत-शैलियों की विविधता से पहचाने जाते हैं। पूरे छः दशक तक फिल्मों में हर प्रकार के गीतों के साथ-साथ राग आधारित गीतों के गायन में मन्ना डे का कोई विकल्प नहीं था। ‘स्वरगोष्ठी’ के पिछले अंक में हमने राग दरबारी पर आधारित उनके गाये तीन अलग-अलग रसों के गीत प्रस्तुत किये थे। आज के अंक में हम आपको तीन भिन्न रागों के रंग, मन्ना डे के स्वरों के माध्यम प्रस्तुत कर रहे हैं। ‘स्व रगोष्ठी’ के एक नए अंक के साथ मैं कृष्णमोहन मिश्र आप सब संगीत-प्रेमियों की गोष्ठी में पुनः उपस्थित हूँ। अपने पिछले अंक में हमने फिल्मों के पार्श्वगायक मन्ना डे के ९४वें जन्म-दिवस के उपलक्ष्य में उनके गाये राग दरबारी पर आधारित कुछ गीतों का सिलसिला आरम्भ किया था। आज के अंक में हम इस श्रृंखला को आगे बढ़ाएँगे और आपको मन्ना डे के स्वरों में तीन और रागों- बागेश्री, छायानट और खमाज पर आधारित गीत सुनवाएँगे। पिछले अंक में हम यह चर्चा

६ मई- आज का गाना

गाना:  दिल में तुझे बिठाके, कर लूँगी मैं बंद आँखें चित्रपट:  फकीरा संगीतकार: रवीन्द्र जैन गीतकार: रवीन्द्र जैन स्वर:  रफ़ी, लता दिल में तुझे बिठाके,  कर लूँगी मैं बन्द आँखें पूजा करूँगी तेरी,  हो के रहूँगी तेरी मैं ही मैं देखूँ तुझे पिया और न देखे कोई एक पल भी ये सोच रहे ना किस विधि मिलना होई सबसे तुम्हें बचाके, कर लूँगी मैं बंद आँखें पूजा करूँगी तेरी ... ना कोई बंधन जगत का कोई पहरा ना दीवार कोई न जाने दो दीवाने जी भर कर ले प्यार कदमों में तेरे आके, कर लूँगी मैं बंद आँखें पूजा करूँगी तेरी ... तेरा ही मुख देख के पिया रात को मैं सो जाऊं भोर भई जब आँख खुले तो  तेरे ही दरशन पाऊं तुझको गले लगाके,  कर लूँगी मैं बंद आँखें पूजा करूँगी तेरी ...

दिग दिग दिगंत - नया ओरिजिनल

Manoj Agarwal प्लेबैक ओरिजिनलस् एक कोशिश है दुनिया भर में सक्रिय उभरते हुए गायक/संगीतकार और गीतकारों की कला को इस मंच के माध्यम से अधिक से अधिक लोगों तक पहुँचाने की. इसी कड़ी में हम आज लाये हैं दो नए उभरते हुए फनकार, और उनके समागम से बना एक सूफी रौक् गीत. ये युवा कलाकार हैं गीतकार राज सिल्स्वल (कांस निवासी) और संगीतकार गायक मनोज अग्रवाल, तो दोस्तों आनंद लें इस नए ओरिजिनल गीत का, और हमें बताएं की इन प्रतिभाशाली फनकारों का प्रयास आपको कैसा लगा गीत के बोल - दिग दिग दिगंत  तू भी अनंत, में भी अनंत  चल छोड़ घोंसला, कर जमा होंसला  ये जीवन है, बस एक बुदबुदा  फड पंख हिला और कूद लगा   थोडा जोश में आ, ज़ज्बात जगा  पींग बड़ा आकाश में जा  ले ले आनंद, दे दे आनंद दिग दिग दिगंत दिग दिग दिगंत    तारा टूटा, सारा टूटा  जो हारा , हारा टूटा  क्यों हार मना, दिल जोर लगा  सोतान का सगा है कोन यहाँ  तेरे रंग में रंगा है कौन यहाँ  तू खुद का खुदा है, और खुद में खुदा है  ढोंगी है संत झूठे महंत  दिग दिग दिगंत दिग दिग दिगंत   

५ मई- आज का गाना

गाना:  जा रे, जा रे उड़ जा रे पंछी, बहारों के देस जा रे चित्रपट:  माया संगीतकार: सलिल चोधरी गीतकार: मजरूह सुलतान पुरी स्वर:  लता जा रे, जा रे उड़ जा रे पंछी बहारों के देस जा रे यहाँ क्या है मेरे प्यारे क्यूँ उजड़ गई बगिया मेरे मन की जा रे ... ना डाली रही ना कली अजब ग़म की आँधी चली उड़ी दुख की धूल राहों में जा रे ... मैं वीणा उठा ना सकी तेरे संग गा ना सकी ढले मेरे गीत आहों में जा रे ...