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लव यू मिस्टर कलाकार है सुरीले प्रेम गीतों से सजी अल्बम

Taaza Sur Taal (TST) - 14/2011 - Love U Mr Kalakaar राजश्री प्रोडक्शन ने हमेशा ही साफ़ सुथरी संगीतमयी फिल्मों की परंपरा को निभाया है. पर मुझे लगता है कि वो अपनी फिल्मों के संगीत को सही रूप से प्रोमोट नहीं करते यही वजह है कि उनकी फिल्मों का संगीत अच्छा होने के बावजूद बहुत अधिक लोगों तक नहीं पहुँच पाता, हमेशा माउथ टू माउथ पब्लिसिटी काम नहीं करती है ये बात अब उन्हें समझनी चाहिए. तुषार कपूर और अमृता राव अभिनीत उनकी नयी फिल्म "लव यू मिस्टर कलाकार" एक और प्रेम कहानी है, जाहिर है संगीत में माधुर्य जरूरी है, संगीतकार के रूप में चुने गए हैं बेहद प्रतिभाशाली सन्देश शान्दलिया और गीत लिखे हैं नवोदित गीतकार मनोज मुन्तशिर ने. चलिए जरा सी चर्चा करें इस अल्बम में सजे गीतों की आज. अंग्रेजी शब्दों क इस्तेमाल अब राजश्री वालों को भी रास आ रहा है. "सरफिरा सा है दिल" में श्रेया की अधुर आवाज़ है, खूबसूरत बोल हैं और मधुर धुन है सन्देश की, पर मैं समझ नहीं पाता हूँ, नीरज श्रीधर से ये गीत क्यों गवाया गया. आज जब इंडस्ट्री में इतने नए पुराने गायक मौजूद हैं संगीतकार नीरज से ऐसे गीत गवाते हैं जो

छेड़ी मौत नें शहनाई, आजा आनेवाले....लिखा मजरूह साहब ने ये गीत अनिल दा के लिए

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 662/2011/102 'ओ ल्ड इज़ गोल्ड' के दोस्तों, नमस्कार! फ़िल्म जगत के सुप्रसिद्ध गीतकार व उर्दू के जानेमाने शायर मजरूह सुल्तानपुरी पर केन्द्रित लघु शृंखला '...और कारवाँ बनता गया' की दूसरी कड़ी में आप सब का हार्दिक स्वागत है। मजरूह सुल्तानपुरी का असली नाम था असरार उल हसन ख़ान, और उनका जन्म उत्तर प्रदेश के सुल्तानपुर नामक स्थान पर १९१९ या १९२० में हुआ था। कहीं कहीं पे १९२२ भी कहा गया है। 'लिस्नर्स बुलेटिन' में उनकी जन्म तारीख़ १ अक्तुबर १९१९ दी गई है। उनके पिता एक पुलिस सब-इन्स्पेक्टर थे। पिता का आय इतना नहीं था कि अपने बेटे को अंग्रेज़ी स्कूल में दाख़िल करवा पाते। इसलिए मजरूह को अरबी और फ़ारसी में सात साल 'दर्स-ए-निज़ामी' की तालीम मिली, और उसके बाद आलिम की डिग्री प्राप्त की। इसके बाद मजरूह नें लखनऊ के तकमील-उत-तिब कॉलेज में यूनानी चिकित्सा की तालीम ली। इसमें उन्होंने पारदर्शिता हासिल की और एक नामचीन हकीम के रूप में नाम कमाया। सुल्तानपुर में मुशायरे में भाग लेते समय वो एक स्थापित हकीम भी थे। लेकिन लोगों नें उनकी शायरी को इतना पसंद किया

जब उसने गेसु बिखराये...एक अदबी शायर जो दशक दर दशक रचता गया फ़िल्मी गीतों का कारवाँ भी

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 661/2011/101 "वो तो है अलबेला, हज़ारों में अकेला"। फ़िल्म 'कभी हाँ कभी ना" के गीत के ये शब्द ख़ुद उन पर भी लागू होते हैं जिन्होंने इसे लिखा है। १९४६ से लेकर अगले पाँच दशकों तक एक से एक कामयाब, लाजवाब, सदाबहार गीत देने वाले इस फ़िल्मी गीतकार का शुमार अदबी शायरों में भी होता है। और केवल लेखन ही नहीं, हकीम शास्त्र में भी पारंगत इस लाजवाब शख़्स को हम सब जानते हैं मजरूह सुल्तानपुरी के नाम से। आगामी २४ मई को मजरूह साहब की पुण्यतिथि के उपलक्ष्य पर आज से 'ओल्ड इज़ गोल्ड' पर शुरु हो रही है उनके लिखे दस अलग अलग संगीतकारों की स्वरबद्ध फ़िल्मी रचनाओं पर आधारित हमारी नई लघु शृंखला '...और कारवाँ बनता गया'। १९४५ में साबू सिद्दिक़ी इंस्टिट्युट में आयोजित एक मुशायरे में भाग लेने के लिये मजरूह साहब बम्बई तशरीफ़ लाये थे। वहाँ उनकी ग़ज़लों और नज़्मों का श्रोताओं पर गहरा असर हुआ और इन श्रोताओं में फ़िल्मकार ए. आर. कारदार भी शामिल थे। कारदार साहब नें फिर जिगर मोरादाबादी को सम्पर्क किया जिन्होंने उनकी मुलाक़ात मजरूह से करवा दी। लेकिन मजरूह साहब नें फ़िल्मों के लिय

सुर संगम में आज - गुरूदेव रबिंद्रनाथ ठाकुर और रबिंद्रसंगीत

सुर संगम - 21 - रविन्द्र संगीत में बसती है बंगाल की आत्मा इस शैली ने बंगाल की संगीत अवधारणा में एक नया आयाम जोड़ा। गुरूदेव ने लगभग २३०० गीत रचे जिनका संगीत भारतीय शास्त्रीय संगीत की ठुमरी शैली से प्रभावित है। ये गीत प्रकृति के प्रति उनके गहरे लगाव और मानवीय भावनाओं को दर्शाते हैं। तु म इस बार मुझे अपना ही लो हे नाथ, अपना लो। इस बार नहीं तुम लौटो नाथ हृदय चुराकर ही मानो। उपरोक्त पंक्तियों में समर्पण का भाव घुला हुआ है| समर्पण किसी प्रेमिका का प्रेमी के प्रति, समर्पण किसी भक्त का अपने ईश्वर के प्रति| और यह जानकर भी शायद आश्चर्य नहीं होगा की ये पंक्तियाँ एक ऐसे महकवि की रचना के हिन्दी अनुवाद में से ली गई हैं जिन्होंने अपना समस्त जीवन अपनी रचनाओं के माध्यम से देश व समाज में जागृति लाने में समर्पित कर दिया था| जी हाँ! मैं बात कर रहा हूँ 'गुरुदेव' श्री रबिंद्रनाथ ठाकुर की| सुर-संगम के सभी श्रोता-पाठकों का मैं, सुमित चक्रवर्ती हार्दिक अभिनंदन करता हूँ हमारी २१वीं कड़ी में जो समर्पित है महान कविगुरू श्री रबिंद्रनाथ ठाकुर को जिनका १५०वाँ जन्मदिवस वैसाख महीने की २५वीं तिथि यानि ९ मई २०११

ओल्ड इज़ गोल्ड - शनिवार विशेष - 42 - बेटे राकेश बक्शी की नज़रों में गीतकार आनंद बक्शी

अब तक आपने पढ़ा भाग १ भाग २ नमस्कार! 'ओल्ड इज़ गोल्ड शनिवार विशेष' में आप सभी का बहुत बहुत स्वागत है। दोस्तों, शनिवार की इस ख़ास प्रस्तुति को पिछले दो हफ़्तों से हम ख़ास बना रहे हैं फ़िल्म जगत के सुप्रसिद्ध गीतकार आनंद बक्शी के बेटे राकेश बक्शी के साथ बातचीत कर। पिछली दो कड़ियों में आपनें जाना कि किस तरह का माहौल हुआ करता था बक्शी साहब के घर का, कैसी शिक्षा/अनुशासन उन्होंने अपने बच्चों को दी, उनकी जीवन-संगिनी नें किस तरह का साथ निभाया, और भी कई दिल को छू लेने वाली बातें। आइए बातचीत के उसी सिलसिले को आगे बढ़ाते हैं। प्रस्तुत है शृंखला 'बेटे राकेश बक्शी की नज़रों में गीतकार आनंद बक्शी' की तीसरी कड़ी। सुजॉय - राकेश जी, नमस्कार! मैं, हिंद-युग्म की तरफ़ से आपका फिर एक बार स्वागत करता हूँ। राकेश जी - नमस्कार! सुजॉय - राकेश जी, आज सबसे पहले तो मैं आपको यह बता दूँ कि यह जो हमारी और आपकी बातचीत चल रही है, यह हमारे पाठकों को बहुत पसंद आ रही है। और यही नहीं, इसकी इंटरव्यु की चर्चा मीडिया तक पहुँच चुकी है। पिछले सोमवार को 'हिंदुस्तान' अखबार में इसके कुछ अंश प्रकाशित हुए थे। यह हमार

गिरिजेश राव की कहानी सुजान साँप

'सुनो कहानी' इस स्तम्भ के अंतर्गत हम आपको सुनवा रहे हैं प्रसिद्ध कहानियाँ। पिछले सप्ताह आपने अनुराग शर्मा की कहानी " घर और बाहर " का पॉडकास्ट अनुराग शर्मा की आवाज़ में सुना था। आज हम आपकी सेवा में प्रस्तुत कर रहे हैं गिरिजेश राव की कहानी " सुजान साँप ", जिसको स्वर दिया है अनुराग शर्मा ने। कहानी "सुजान साँप" का कुल प्रसारण समय 13 मिनट 55 सेकंड है। सुनें और बतायें कि हम अपने इस प्रयास में कितना सफल हुए हैं। इस कथा का टेक्स्ट एक आलसी का चिठ्ठा पर उपलब्ध है। यदि आप भी अपनी मनपसंद कहानियों, उपन्यासों, नाटकों, धारावाहिको, प्रहसनों, झलकियों, एकांकियों, लघुकथाओं को अपनी आवाज़ देना चाहते हैं हमसे संपर्क करें। अधिक जानकारी के लिए कृपया यहाँ देखें। "पास बैठो कि मेरी बकबक में नायाब बातें होती हैं। तफसील पूछोगे तो कह दूँगा,मुझे कुछ नहीं पता " ~ गिरिजेश राव हर शनिवार को आवाज़ पर सुनें एक नयी कहानी "यहाँ के लोग सीधे साधे हरगिज नहीं थे। उन्हें मजबूरी की नब्ज़ से खून सोखना बखूबी आता था।" ( गिरिजेश राव की कहानी "सुजा

दबंग सलमान खान "रेड्डी" हैं प्रीतम के साथ एक और संगीत धमाके के लिए

Taaza Sur Taal (TST) - 13/2011 - REDDY दोस्तों एक बार फिर से मैं हाज़िर हूँ एक और नयी फिल्म के संगीत पर अपनी राय लेकर. आज हम बात करेंगें "दबंग" सलमान खान की आने वाली फिल्म – रेड्डी की. टी सिर्रिस के भूषण कुमार ने इस फिल्म के लिए विश्वास जताया है अपने दोस्त प्रीतम पर. और जाहिर प्रीतम ने उन्हें निराश नहीं किया है एक बार फिर, बल्कि अपने पेट्ट गायकों को लेकर शायद इस साल की सबसे बड़ी हिट अल्बम देने में भी कामियाब हुए हैं. चलिए बात करते हैं इस अल्बम के गीतों की. कैरक्टर ढीला अल्बम का पहला गीत है, नीरज श्रीधर और अमृता काक की आवाजों में. अभी हाल ही में अनु मालिक ने इस फूट टेप्पिंग गीत के अंतरे की धुन अपने एक पुराने गीत से मिलता जुलता बताया था. खैर वो ९० का दशक था अनु मालिक का और अब जब प्रीतम की तूती बोल रही हो तो अनु की आवाज़ कौन सुने. खैर गीत का फिल्माकन देख कर लगता है कि सलमान इस गीत के माध्यम से राज कपूर, दिलीप कुमार और धमेन्द्र को टारगेट कर रहे हैं. पर यही तीन कलाकार ही क्यों कोई समझे तो कृपया बताएं. अमिताभ भट्टाचार्य के शब्द कुछ बहत प्रभावी नहीं लगे मुझे पर संगीत बीट्स और संयोजन