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हम इश्क़ के मारों को दो दिल जो दिए होते....एक और खूबसूरत ख्याल सुर्रैय्या की खनकती आवाज़ में

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 587/2010/287 'ओ ल्ड इज़ गोल्ड' में इन दिनों हम आप तक पहुँचा रहे हैं फ़िल्म जगत की सुप्रसिद्ध सिंगिंग् स्टार सुरैया पर केन्द्रित लघु शृंखला 'तेरा ख़याल दिल से भुलाया ना जाएगा'। दोस्तों, हमने इस शृंखला में आपको बताया था कि सुरैया ने फ़िल्मों में बाल कलाकार के रूप में क़दम रख था। बतौर बालकलाकार उनकी पहली फ़िल्म थी 'उसने क्या सोचा', जो बनी थी १९३७ में। जब वो १२ साल की थीं, उन्होंने फ़िल्म 'ताज महल' में अभिनय किया था जिसका श्रेय उनके मामाजी को जाता है। आइए आज इसी वाक्या के बारे में जान लेते हैं सुरैया के जुबाँ से जो उन्होंने शमिम अब्बास के उसी इंटरव्यु में कहा था। "इसमें भी एक इत्तफ़ाक़ है, मेरा कोई इरादा नहीं था फ़िल्म जॊयन करने का। लेकिन मेरे एक अंकल हैं जो फ़िल्मों में काम किया करते थे, 'ऐज़ ए विलन'। He was a very popular actor of his time। तो मैं स्कूल में पढ़ा करती थी, उस वक़्त छुट्टियाँ थी, वकेशन था, तो मैं उनके साथ शूटिंग् देखने चली गई। तो मोहन स्टुडियो में उनकी शूटिंग् थी। वहाँ एक डिरेक्टर थे नानुभाई वकील। तो वो उस

मनमोर हुआ मतवाला किसने जादू डाला....सुर्रैया के लिए प्रेम वो जादू था जो मन से कभी नहीं उतरा

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 586/2010/286 न मस्कार! रविवार की शाम और 'ओल्ड इज़ गोल्ड' पर एक नई सप्ताह का आग़ाज़। दोस्तों नमस्कार, और बहुत बहुत स्वागत है इस महफ़िल में। इन दिनों 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की महफ़िल रोशन है उस गायिका-अभिनेत्री के गाये हुए गीतों से जिन्हें हम जानते हैं सुरैया के नाम से। इस शृंखला के पहले हिस्से में पाँच गानें ४० के दशक के सुनने के बाद, आइए आज क़दम रखते हैं ५० के दशक में। सुरैया की ज़िंदगी का एक अध्याय रहे हैं अभिनेता देव आनंद। सुरैया और देव साहब का प्रेम-संबंध इण्डस्ट्री में चर्चा का विषय बन गया था। सुरैया पर केन्द्रित कोई भी चर्चा देव साहब के ज़िक्र के बिना समाप्त नहीं हो सकती। क्या हुआ था कि वे दोनों मिल ना सके, एक दूजे का हमसफ़र बन ना सके। आइए आज देव साहब की किताब 'रोमांसिंग् विद् लाइफ़' से कुछ अंश यहाँ पेश करें। देव साहब कहते हैं, "मैं सातवें आसमान पर उड़ रहा था क्योंकि हम दोनों अब एन्गेज हो चुके थे। मैं उसे पाना चाहता था, ज़्यादा, और भी ज़्यादा, लेकिन फिर मुझे उसकी तरफ़ से कोई आवाज़ नहीं आई। हमारी फ़िल्मों की शूटिंग् भी ख़त्म हो गई, और

सुर संगम में आज - उस्ताद हबीब ख़ान का बजाया विचित्र वीणा वादन

सुर संगम - 06 विचित्र वीणा का रेंज पाँच ऒक्टेव का होता है। सितार की तरह विचित्र वीणा भी उंगलियों में मिज़राब (plectrums) पहनकर बजाया जाता है, तथा मेलडी के लिए शीशे का एक बट्टा मुख्य तारों पर फेरा जाता है। दो नोट्स के बीच दो इंच का फ़ासला हो सकता है। सु प्रभात! 'सुर-संगम' में आप सभी का बहुत बहुत स्वागत है। दोस्तों, हमारे देश में प्राचीण काल से जितने भी साज़ हुए हैं, उनमें से कुछ साज़ आज विलुप्त प्राय हो गये हैं, यानी कि जिनका आज इस्तमाल ना के बराबर हो गये हैं। रुद्र-वीणा और सुरशृंगार की तरह विचित्र-वीणा एक ऐसा ही साज़ है। प्राचीन काल में एकतंत्री वीणा नाम का एक साज़ हुआ करता था; विचित्र वीणा उसी साज़ का आधुनिक रूप है। इस वीणा में तीन फ़ीट लम्बा और ६ इंच चौड़ा एक डंड होता है, और दोनों तरफ़ दो तुम्बे होते हैं कद्दु के आकार के जिन्हें हम रेज़ोनेटर भी कह सकते हैं। डंड के दोनों छोर पर मोर के सर की आकृति बनी होती है। विचित्र वीणा वादक वीणा को अपने सामने ज़मीन पर रख कर अपनी उंगलियाँ तारों पर फेरता है। विचित्र वीणा में मौजूद तारों (स्ट्रिंग्स) की बात करें तो इसमें चार मुख्य 'प्लेयि

ई मेल के बहाने यादों के खजाने - हमारी ही मुठ्ठी में आकाश सारा...फिर क्यों ये नन्हीं जानें भटकने को मजबूर हैं बेसहारा

नमस्कार! 'ओल्ड इज़ गोल्ड शनिवार विशेष' में आप सभी का बहुत बहुत स्वागत है। इस साप्ताहिक विशेषांक को हम सजाते हैं या तो आप ही के भेजे हुए प्यारे प्यारे ईमेल से 'ईमेल के बहाने यादों के ख़ज़ाने' के रूप में, या किसी कलाकार से आपको मिलवाया जाता है, या फिर कोई विशेषालेख पेश होता है। आज बारी है 'ईमेल के बहाने यादों के ख़ज़ाने' की। आज एक ऐसा ईमेल पेश हो रहा है जिसे पढ़ कर हम सब थोड़ा सोचने पर भी मजबूर हो जाएँगे, थोड़ी सी उदासी भी छायेगी, और थोड़ा सा आशावादी स्वर भी गूंजेगा। लीजिए पहले ईमेल पढ़िए जिसे लिख भेजा है मेरे प्रिय दोस्त सुमित चक्रवर्ती ने चण्डीगढ़ से। यह उनका भेजा हुआ दूसरा ईमेल है जिसे हम शामिल कर रहे हैं। ******************************************* प्रिय सुजॊय दा 'ई-मेल के बहाने यादों के ख़ज़ाने' में मेरे पिछ्ले ई-मेल को शामिल करने का शुक्रिया। आज मैं आपको अपने एक अनोखे अनुभव के बारे में बताने जा रहा हूँ। किसी ने सच ही कहा है कि बच्चे ईश्वर का रूप होते हैं| एक नन्हे सदस्य के आते ही पूरे घर का माहौल बदल जाता है| उनकी नन्ही-नन्ही किलकारियाँ और नटखट अटखेल

तेरे नैनों ने चोरी किया....सुर्रैया का नटखट अंदाज़ इस मधुर और सदाबहार गीत में

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 585/2010/285 सु रैया के गाये गीतों से सजी लघु शृंखला 'तेरा ख़याल दिल से भुलाया ना जाएगा' लेकर 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की महफ़िल में हम फिर उपस्थित हैं। आज इस शृंखला की पाँचवी कड़ी है। जैसा कि कल हमने बताया था कि सुरैया जी ने संगीत की कोई विधिवत शिक्षा नहीं ली थी; लेकिन सुर को, लय को, बहुत आसान दक्षता से पकड़ लिया करती थीं। उन्होंने नूरजहाँ, ख़ुरशीद, ज़ोहराबाई, अमीरबाई जैसी उस दौर की गायिकाओं के बीच अपनी ख़ास जगह और पहचान बनाई। उनकी मधुर आवाज़ को दुनिया के सामने लाये थे नौशाद, लेकिन बाद में पंडित हुस्नलाल-भगतराम ने उनसे एक से बढ़कर एक गीत गवाया। ४० से लेकर ५० के दशक के बीच उनका फ़िल्मी सफ़र बुलंदियों पर था। उनकी अदाकारी और गायकी परवान चढ़ती गई। हुस्नलाल भगतराम के ज़िक्र से याद आया कि १९४८ में एक फ़िल्म आयी थी 'प्यार की जीत'। 'बड़ी बहन' की तरह इस फ़िल्म के गीतों ने भी अपार कामयाबी हासिल की। इस फ़िल्म को याद करते हुए सुरैया ने 'जयमाला' में कहा था - "फ़ौजी भाइयों, फ़िल्म 'प्यार की जीत' आप लोगों में से बहुतों ने देखी होगी

एक तुम हो एक मैं हूँ, और नदी का किनारा है....जब सुर्रैया ने याद किया अपने शुरूआती रेडियो के दिनों को

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 584/2010/284 ओ ल्ड इज़ गोल्ड' के दोस्तों नमस्कार! 'तेरा ख़याल दिल से भुलाया ना जाएगा' लघु शृंखला की चौथी कड़ी में आज हम फिर एक बार सुरैया के बचपन के दिनों में चलना चाहेंगे, जब वो रेडियो से जुड़ी हुई थीं। दोस्तों, १९७१ में 'विशेष जयमाला' के अलावा भी १९७५ में सुरैया जी को विविध भारती के स्टुडिओज़ में आमंत्रित किया गया था एक इंटरव्यु के लिए। उसी इंटरव्यु से चुनकर एक अंश यहाँ हम पेश कर रहे हैं। सुरैया से बातचीत कर रहे हैं शमीम अब्बास। शमीम: सुरैया जी, आदाब! सुरैया: आदाब! शमीम: सुरैया जी, मुझे आप बता सकती हैं कि कितने दिनों के बाद विविध भारती के स्टुडियो में आप फिर आयी हैं? सुरैया: देखिए अब्बास साहब, मेरे ख़याल से, वैसे तो मैं सालों के बाद आयी हूँ, लेकिन आपको मैं एक बात बताऊँगी कि मैं पाँच की उम्र से रेडियो स्टेशन में आ गई थी और मेरे लिए यह कोई नयी जगह नहीं है। मैं कैसे आयी यह आपको ज़रूर बताऊँगी। संगीतकार मदन मोहन जी मेरे पड़ोसी हुआ करते थे, और वो बच्चों के कार्यक्रम में हमेशा हिस्सा लिया करते थे। तो वे मुझे खींचकर यहाँ ले आये। शमीम: विविध भारती त

मिलने के दिन आ गए....सुर्रैया और सहगल की युगल आवाजों में एक यादगार गीत

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 583/2010/283 फ़ि ल्म जगत की सुप्रसिद्ध गायिका-अभिनेत्री सुरैया पर केन्द्रित लघु शृंखला 'तेरा ख़याल दिल से भुलाया ना जाएगा' की तीसरी कड़ी लेकर हम हाज़िर हैं 'ओल्ड इज़ गोल्ड' के महफ़िल की शमा जलाने के लिए। ३० और ४० के दशकों में कुंदन लाल सहगल का कुछ इस क़दर असर था कि उस ज़माने के सभी कलाकार उनके साथ काम करने के लिए एक पाँव पर खड़े रहते थे। और अगर किसी नए कलाकार को यह सौभाग्य प्राप्त हो जाए तो उसके लिए यह बहुत बड़ी बात होती थी। ऐसा ही मौका सुरैया जी को भी मिला जब १९४५ में फ़िल्म 'तदबीर' में उन्हें सहगल साहब के साथ न केवल अभिनय करने का मौका मिला, बल्कि उनके साथ युगल गीत गाने का भी मौका मिला। और क्योंकि सुरैया जी ख़ुद यह मानती थी कि यह उनके लिए एक बहुत बड़ी बात थी, इसलिए हमने सोचा कि सुरैया और सहगल साहब का गाया उसी फ़िल्म का एक युगल गीत इस शृंखला में बजाया जाए। गीत के बोल हैं "मिलने के दिन आ गये"। इस फ़िल्म में संगीत था कमचर्चित संगीतकार लाल मोहम्मद का। उनके बारे में अभी आपको बताएँगे, लेकिन उससे पहले सुनिए सुरैया के शब्दों में सहगल स