ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 515/2010/215 'ओ ल्ड इज़ गोल्ड' के दोस्तों, नमस्कार! इन दिनों जारी है लघु शृंखला 'गीत गड़बड़ी वाले', और इसमें अब तक हमने आपको चार गानें सुनवा चुके हैं जिनमें कोई ना कोई भूल हुई थी, और उस भूल को नज़रंदाज़ कर गाने में रख लिया गया था। दोस्तों, अभी दो दिन पहले ही हमने 'बाप रे बाप' फ़िल्म का गीत सुनवाते वक़्त इस बात का ज़िक्र किया था कि किस तरह से फ़िल्मांकन के ज़रिए आशा जी की ग़लती को गीत का हिस्सा बना दिया था किशोर कुमार ने। लेकिन दोस्तों, अगर फ़िल्मांकन से इस ग़लती को सम्भाल लिया गया है, तो कई बार ऐसे भी हादसे हुए हैं कि फ़िल्मांकन की व्यर्थता की वजह से अच्छे गानें गड्ढे में चले गए। अब आप ही बताइए कि अगर गीत में बात हो रही है काले काले बादलों की, बादलों के गरजने की, पिया मिलन के आस की, लेकिन गाना फ़िल्माया गया हो कड़कते धूप में, वीरान पथरीली पहाड़ियों में, तो इसको आप क्या कहेंगे? जी हाँ, कई गानें ऐसे हुए हैं, जो कम बजट की फ़िल्मों के हैं। क्या होता है कि ऐसे निर्माताओं के पास धन की कमी रहती है, जिसकी वजह से उन्हें विपरीत हालातों में भी शूटिं