ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 316/2010/16 आ ज १६ जनवरी, संगीतकार ओ. पी. नय्यर साहब का जन्मदिवस है। जन्मदिन की मुबारक़बाद स्वीकार करने के लिए वो हमारे बीच आज मौजूद तो नहीं हैं, लेकिन हम उन्हे अपनी श्रद्धांजली ज़रूर अर्पित कर सकते हैं उन्ही के बनाए एक दिल को छू लेने वाले गीत के ज़रिए। नय्यर साहब के बहुत सारे गानें अब तक हमने 'ओल्ड इज़ गोल्ड' में सुनवाया है। आज हम जो गीत सुनेंगे वो उस दौर का है जब नय्यर साहब के गानों की लोकप्रियता कम होती जा रही थी। ७० के दशक के आते आते नए दौर के संगीतकारों, जैसे कि राहुल देव बर्मन, लक्ष्मीकांत प्यारेलाल आदि, ने धूम मचा दी थी। ऐसे में पिछले पीढ़ी के संगीतकार थोड़े पीछे ही रह गए। उनमें नय्यर साहब भी शामिल थे। लेकिन १९७२ की फ़िल्म 'प्राण जाए पर वचन न जाए' में उन्होने कुछ ऐसा संगीत दिया कि इस फ़िल्म के गानें ना केवल सुपरहिट हुए, बल्कि जो लोग कहने लगे थे कि नय्यर साहब के संगीत में अब वो बात नहीं रही, उनके ज़ुबान पर ताला लगा दिया। आशा भोसले की आवाज़ में इस फ़िल्म का "चैन से हमको कभी आप ने जीने ना दिया, ज़हर जो चाहा अगर पीना तो पीने ना दिया"