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ओल्ड इज़ गोल्ड - शनिवार विशेष - (41) बेटे राकेश बख्शी की नज़रों में गीतकार आनन्द बख्शी - भाग २

इस बातचीत का पहला भाग यहाँ पढ़ें ((भाग-2)) नमस्कार! 'ओल्ड इज़ गोल्ड शनिवार विशेष' में आप सभी का बहुत बहुत स्वागत है। दोस्तों, पिछले हफ़्ते से हमनें इस विशेषांक में शुरु की है एक लघु शृंखला 'बेटे राकेश बख्शी की नज़रों में गीतकार आनन्द बख्शी'। पिछले हफ़्ते अगर आपनें इसका पहला भाग नहीं पढ़ा था तो यहाँ क्लिक कर उसे अवश्य पढ़ें। आइए आज प्रस्तुत है बक्शी साहब के बेटे राकेश बख्शी से हमारी बातचीत का दूसरा भाग। सुजॉय - राकेश जी, नमस्कार और एक बार फिर स्वागत है आपका 'हिंद-युग्म' में। राकेश जी - नमस्कार! सुजॉय - पिछले हफ़्ते हमारी बातचीत आकर रुकी थी 'माँ' पर। आपनें बताया कि किस तरह से बक्शी साहब नें आप सब को माँ की अहमियत बतायी। आज बातचीत का सिलसिला वहीं से आगे बढ़ाते हैं। आज हम आपकी माँ से चर्चा शुरु करना चाहेंगे, क्योंकि हमारा ख़याल है कि उनके सहयोग के बिना आनन्द बक्शी साहब शायद यह मुकाम हासिल न कर पाते। किसी की सफलता के पीछे उसके जीवन-संगिनी का बड़ा हाथ होता है। तो बताइए न बक्शी साहब की जीवन-संगिनी, यानी आपकी माताजी के बारे में। राकेश जी - शादी के बाद पिताज

ओल्ड इस् गोल्ड - शनिवार विशेष- 'बेटे राकेश बक्शी की नज़रों में गीतकार आनंद बक्शी' ((भाग-१))

नमस्कार! 'ओल्ड इज़ गोल्ड शनिवार विशेष' आज अपना चालीसवाँ सप्ताह पूरा कर रहा है। दोस्तों, "आनंद बक्शी" एक ऐसा नाम है जो किसी तारीफ़ का मोहताज नहीं। यह वह नाम है जिसे हम बचपन से ही सुनते चले आ रहे हैं। रेडियो पर फ़िल्मी गीत सुनने में शौक़ीनों के लिये तो यह नाम जैसे एक दैनन्दिन नाम है। शायद ही कोई दिन ऐसा जाता होगा जिस दिन बक्शी साहब का नाम रेडियो पर घोषित न होता होगा। जिस आनंद बक्शी का नाम छुटपन से हर रोज़ सुनता चला आया हूँ, आज उसी बक्शी साहब के बेटे से एक लम्बी बातचीत करने का मौका पाकर जैसे मैं स्वप्नलोक में पहुँच गया हूँ। कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि यह दिन भी कभी आयेगा। दोस्तों, आज से हम एक शृंखला ही कह लीजिये, शुरु कर रहे हैं, जिसमें गीतकार आनंद बक्शी साहब के बारे में बतायेंगे उन्ही के सुपुत्र राकेश बक्शी। चार भागों में सम्पादित इस शृंखला का शीर्षक है 'बेटे राकेश बक्शी की नज़रों में गीतकार आनंद बक्शी'। आज प्रस्तुत है इस शृंखला का पहला भाग। सुजॉय - राकेश जी, 'हिंग-युग्म' की तरफ़ से, हमारे तमाम पाठकों की तरफ़ से, और मैं अपनी तरफ़ से आपका 'हिंद-य

ओल्ड इस गोल्ड -शनिवार विशेष - 'वन्देमातरम' गीत का एक और नवीन प्रयोग

नमस्कार! 'ओल्ड इज़ गोल्ड शनिवार विशेष' में मैं, कृष्णमोहन मिश्र आप सभी का हार्दित स्वागत करता हूँ। मध्य प्रदेश संस्कृति विभाग एवं उस्ताद अलाउद्दीन खां कला अकादमी के संयुक्त प्रयासों से चन्देल राजाओं की संस्कृति-समृद्ध भूमि, खजुराहो में महत्वाकांक्षी "खजुराहो नृत्य समारोह" प्रतिवर्ष आयोजित होता है| इस वर्ष समारोह की तीसरी संध्या में 'भरतनाट्यम' नृत्य शैली की विदुषी नृत्यांगना डाक्टर ज्योत्सना जगन्नाथन ने अपने नर्तन को 'भारतमाता की अर्चना' से विराम दिया| उन्होंने बंकिमचन्द्र चट्टोपाध्याय की कालजयी कृति -'वन्देमातरम ....' का चयन किया| इस गीत में भारतमाता के जिस स्निग्ध स्वरुप का वर्णन कवि ने शब्दों के माध्यम से किया है, विदुषी नृत्यांगना ने उसी स्वरुप को अपनी भंगिमाओं, हस्तकों, पद्संचालन आदि के माध्यम से मंच पर साक्षात् साकार कर दिया| आमतौर पर शास्त्रीय नर्तक/नृत्यांगना, नृत्य का प्रारम्भ 'मंगलाचरण' से तथा समापन द्रुत या अतिद्रुत लय की किसी नृत्य-संरचना से करते हैं| सुश्री ज्योत्सना ने 'वन्देमातरम' से अपने नर्तन को विराम देकर एक स

ओल्ड इज़ गोल्ड - शनिवार विशेष - एक मुलाक़ात शब्बीर कुमार से

ओल्ड इज़ गोल्ड - शनिवार विशेष - 38 'ओल्ड इज़ गोल्ड' के दोस्तों नमस्कार! आज शनिवार की इस विशेष प्रस्तुति के लिए हम लेकर आये हैं फ़िल्म जगत के जाने-माने पार्श्वगायक शब्बीर कुमार से एक छोटी सी मुलाक़ात। छोटी इसलिए क्योंकि शब्बीर साहब का हाल ही में विविध भारती ने भी एक साक्षात्कार लिया था, जिसमें बहुत ही विस्तार से शब्बीर साहब नें अपने जीवन के बारे में और अपने संगीत करीयर के बारे में बताया था। बचपन की बातें, किस तरह से संगीत में उनकी दिलचस्पी हुई, रफ़ी साहब के वे कैसे फ़ैन बने, रफ़ी साहब से उनकी पहली मुलाक़ात कब और किस तरह से हुई, रफ़ी साहब के अंतिम सफ़र में वो किस तरीके से शरीक हुए, वो ख़ुद एक पार्श्वगायक कैसे बने, ये सब कुछ विविध भारती के उस साक्षात्कार में आ चुका है। आप में से जो श्रोता-पाठक उस कार्यक्रम को सुनने से चूक गये थे, उनके लिए इस साक्षात्कार का लिखित रूप हमनें 'विविध भारती लिस्नर्स क्लब' में पोस्ट किया था। ये रहे उसके लिंक्स: 'आज के महमान - शब्बीर कुमार - भाग-१-१ ' 'आज के महमान - शब्बीर कुमार - भाग-१-२ ' 'आज के महमान - शब्बीर कुमार - भाग-२

ओल्ड इज़ गोल्ड -शनिवार विशेष - सुनहरे दौर के विस्मृत संगीतकार बसंत प्रकाश के पुत्र ॠतुराज सिसोदिआ से एक बातचीत

'ओल्ड इज़ गोल्ड' के दोस्तों नमस्कार। फ़िल्म संगीत के सुनहरे युग में जहाँ एक तरफ़ कुछ संगीतकार लोकप्रियता की बुलंदियों तक पहुँचे, वहीं दूसरी तरफ़ बहुत से संगीतकार ऐसे भी हुए जो बावजूद प्रतिभा सम्पन्न होने के बहुत अधिक दूर तक नहीं बढ़ सके। आज जब सुनहरे दौर के संगीतकारों की बात चलती है तब अनिल बिस्वास, नौशाद, सी. रामचन्द्र, रोशन, सचिन देव बर्मन, ओ.पी. नय्यर, मदन मोहन, रवि, हेमन्त कुमार, कल्याणजी-आनंदजी, लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल, राहुल देव बर्मन जैसे नाम सब से पहले लिए जाते हैं। इन चमकीले नामों की इस चकाचौंध के आगे बहुत से नाम ऐसे है जो नज़रअंदाज़ हो जाते हैं। ऐसा ही एक नाम है संगीतकार बसंत प्रकाश का। जी हाँ, वही बसंत प्रकाश जो ४० के दशक के सुप्रसिद्ध संगीतकार खेमचंद प्रकाश के छोटे भाई थे। खेमचंद जी की तरह बसंत प्रकाश इतने मशहूर तो नहीं हुए, पर फ़िल्म संगीत के ख़ज़ाने को समृद्ध करने में अपना अमूल्य योगदान दिया। आज बसंत प्रकाश जी हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन हमनें उनके बेटे श्री ॠतुराज सिसोदिआ से सम्पर्क स्थापित किया और पूछे चंद सवाल, जिनका उन्होंने पूरी उत्सुकता के साथ जवाब दिया। तो आइए

शनिवार विशेष में आज हम दे रहे हैं एक भावभीनी श्रद्धांजली स्वर्णिम दिनों के संगीतकार अजीत मर्चैण्ट को

'ओल्ड इज़ गोल्ड' के दोस्तों नमस्कार। मैं, सुजॊय चटर्जी एक बार फिर हाज़िर हूँ इस साप्ताहिक विशेषांक के साथ। यह करीब दो साल पहले की बात है। मुझे मेरे दोस्त रामास्वामी से गुज़रे ज़माने के इस विस्मृत संगीतकार का टेलीफ़ोन नंबर प्राप्त हुआ था। उस वक़्त मैं ख़ुद इंटरव्युज़ नहीं करता था और 'हिंद-युग्म' से बस जुड़ा ही था। यह सोच कर कि अगर इस भूले बिसरे संगीतकार का इंटरव्यु 'विविध भारती' पर प्रसारित हो जाये, तो कितना अच्छा हो! इस ख़याल और लालच से मैंने इस संगीतकार का टेलीफ़ोन नंबर 'विविध भारती' के एक उच्च अधिकारी को भेज दिया और उनसे इस इंटरव्यु की गुज़ारिश कर बैठा। लेकिन पता नहीं इनकी कोई मजबूरी ही रही होगी कि यह इंटरव्यु संभव नहीं हो पाया। पिछले कुछ महीनों से जब मैंने ख़ुद इंटरव्युज़ लेना शुरु किया तो इस संगीतकार का नाम भी मेरी लिस्ट में था। दो तीन महीनों से मैं सोच ही रहा था कि किसी रविवार के दिन उन्हें टेलीफ़ोन करूँगा और उनसे कुछ बातचीत करूँगा। आप शायद मेरी बात का यकीन न करें कि मैं पिछले ही रविवार २७ मार्च को उन्हें फ़ोन करने ही वाला था कि उससे पहले किसी कारणव

होली के हजारों रंग अपने गीतों में भरने वाले शकील बदायूनीं साहब को याद करें हम उनके बेटे जावेद बदायूनीं के मार्फ़त

होली है!!! 'ओल्ड इज़ गोल्ड' के दोस्तों, नमस्कार, और आप सभी को रंगीन पर्व होली पर हमारी ढेर सारी शुभकामनाएँ। तो कैसा रहा होली से पहले का दिन? ख़ूब मस्ती की न? हमनें भी की। और 'आवाज़' की हमारी टोली दिन भर रंग उड़ेलते हुए, मौज मस्ती करते हुए, लोगों को शुभकामनाएँ देते हुए, अब दिन ढलने पर आ पहुँचे हैं एक मशहूर शायर व गीतकार के बेटे के दर पर। ये उस अज़ीम शायर के बेटे हैं, जिस शायर नें अदबी शायरी के साथ साथ फ़िल्म-संगीत में भी अपना अमूल्य योगदान दिया। हम आये हैं शक़ील बदायूनी के साहबज़ादे जावेद बदायूनी के पास उनके पिता के बारे में थोड़ा और क़रीब से जानने के लिए और साथ ही शक़ील साहब के लिखे कुछ बेमिसाल होली गीत भी आपको सुनवायेंगे। सुजॊय - जावेद बदायूनी साहब, नमस्कार, और 'हिंद-युग्म' परिवार की तरफ़ से आपको और आपके परिवार को होली पर्व की हार्दिक शुभकामनाएँ! जावेद बदायूनी - शुक्रिया बहुत बहुत, और आपको भी होली की शुभकामनाएँ! सुजॊय - आज का दिन बड़ा ही रंगीन है, और हमें बेहद ख़ुशी है कि आज के दिन आप हमारे पाठकों से रु-ब-रु हो रहे हैं। जावेद बदायूनी - मुझे भी बेहद ख़ुशी है अ

ओल्ड इस गोल्ड - शनिवार विशेष - आनंद लीजिए एक अनूठे क्रिकेट का जो हैं "ही" और "शी" के बीच सदियों से जारी...

नमस्कार! दोस्तों, पिछले दिनों आपने 'ओल्ड इज़ गोल्ड' में २०११ विश्वकप क्रिकेट को समर्पित हमारी लघु शृंखला 'खेल खेल में' सुन व पढ़ रहे थे। यह शृंखला थी दस अंकों की। लेकिन दोस्तों, आपको नहीं लगता कि क्रिकेट के लिए दस का आँकड़ा कुछ बेमानी सा है? क्योंकि इसमें ग्यारह खिलाड़ी भाग लेते हैं और देखिये यह साल भी २०११ का है, ऐसे में इस शृंखला के अगर ग्यारह अंक होते तो ज़्यादा न अच्छा रहता? तो इसीलिए हमनें सोचा कि आज का यह विशेषांक समर्पित किया जाये क्रिकेट को और इस तरह से इसे आप 'खेल खेल में' शृंखला की ग्यारहवीं कड़ी भी मान सकते हैं। क्रिकेट और विश्वकप के इतिहास से जुड़ी तमाम बातों और रेकॊर्ड्स का हमनें पिछले दिनों ज़िक्र किया। आइए आज बात करें कनाडा के क्रिकेट टीम की। शायद आप हैरान हो रहे होंगे कि बाकी सब छोड़ कर अचानक कनाडियन क्रिकेट टीम में दिलचस्पी क्यों? दरअसल बात कुछ ऐसी है कि कनाडियन क्रिकेट टीम में एक नहीं, दो नहीं, बल्कि बहुत सारे ऐसे खिलाड़ी हैं जो दक्षिण-एशियाई मूल के हैं, यानी कि भारत, पाक़िस्तान और श्रीलंका के। और वर्तमान २०११ के विश्वकप के टीम में भी कम से कम

ओल्ड इस गोल्ड - शनिवार विशेष - अभिनेत्री व फ़िल्म-निर्मात्री आशालता के जीवन की कहानी उन्हीं की सुपुत्री शिखा बिस्वास वोहरा की जुबानी

नमस्कार! 'ओल्ड इज़ गोल्ड शनिवार विशेष' की ३१-वीं कड़ी में आप सभी का बहुत बहुत स्वागत है। आज हम आपको मिलवा रहे हैं एक ऐसी शख्सियत से जिनकी माँ ना केवल हिंदी सिनेमा की पहली पीढ़ी की एक जानीमानी अदाकारा रहीं, बल्कि अपने एक निजी बैनर तले कई फ़िल्मों का निर्माण भी किया। इस अदाकारा और फ़िल्म निर्मात्री को हम आशालता के नाम से जानते हैं। जी हाँ, वही आशालता बिस्वास जिन्हें आप मशहूर संगीतकार अनिल बिस्वास की पहली पत्नी के रूप में ज़्यादा जानते हैं। इसे हम अफ़सोस की बात ही कहेंगे कि आशालता जी के बारे में बहुत कम और ग़लत जानकारियाँ दुनिया को मिल पायी है, कारण चाहे कोई भी हो। लेकिन हक़ीक़त यह है कि आशालता जी का अपना भी एक अलग व्यक्तित्व था, अपनी अलग पहचान थी, और इस बात का अंदाज़ा आपको इस साक्षात्कार को पढ़ने के बाद हो जाएगा। आशालता जी के बारे में विस्तार से बातचीत करने के लिए 'हिंद-युग्म' की तरफ़ से हमने आमंत्रित किया उनकी सुपुत्री शिखा बिस्वास वोहरा जी को। तो आइए आपको मिलवाते हैं आशालता जी और अनिल दा की सुपुत्री शिखा बिस्वास वोहरा जी से। ******************************** सुजॊय - शिखा