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Showing posts with the label kishore kumar

देखो ओ दीवानों तुम ये काम न करो...धार्मिक उन्माद के नाम पर ईश्वर को शर्मिंदा करने वालों को सीख देता एक गीत

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 305/2010/05 'पं चम के दस रंग' शृंखला का आज का रंग है भक्ति रस का। राहुल देव बर्मन ने जब जब कहानी में सिचुयशन आए हैं, उसके हिसाब से भक्ति मूलक गानें बनाए हैं। कुछ गानें गिनाएँ आपको? फ़िल्म 'अमर प्रेम' का "बड़ा नटखट है रे कृष्ण कन्हैया", फ़िल्म 'मेरे जीवन साथी' का "आओ कन्हाई मेरे धाम", फ़िल्म 'बुड्ढा मिल गया' का "आयो कहाँ से घनश्याम", फ़िल्म 'नरम गरम' का "मेरे अंगना आए रे घनश्याम आए रे", फ़िल्म 'दि बर्निंग् ट्रेन' का "तेरी है ज़मीं तेरा आसमाँ", आदि। लेकिन आज हमने जिस गीत को चुना है वह एक भक्ति गीत होने के साथ साथ उससे भी ज़्यादा उपदेशात्मक गीत है। यह गीत आज की पीढ़ी, जो क्षणिक भोग की ख़ातिर ग़लत राह पर चल पड़ते हैं, उस पीढ़ी को सही राह पर लाने की एक छोटी सी अर्थपूर्ण कोशिश है। 'फ़िल्म 'हरे रामा हरे कृष्णा' का यह गीत है "देखो ओ दीवानो तुम ये काम ना करो, राम का नाम बदनाम ना करो"। फ़िल्म की कहानी तो आपको मालूम ही है, और हमने इस फ़िल्म की चर्चा भी क

ओ मेरे दिल के चैन....किशोर का अद्भुत रूमानी अंदाज़ और मजरूह-पंचम का कमाल

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 303/2010/03 शा स्त्रीय और पाश्चात्य रंगों के बाद 'पंचम के दस रंग' शृंखला की तीसरी कड़ी में आज बारी है रुमानीयत की। यानी कि रोमांटिक गाने की। युं तो आर. डी. बर्मन के संगीत में एक से एक रोमांटिक गानें बने हैं समय समय पर, लेकिन जिस गीत को हमने चुना है वह एक अलग ही मुकाम रखती है इस जौनर में। और वह गीत है १९७२ की फ़िल्म 'मेरे जीवन साथी' का, "ओ मेरे दिल के चैन, चैन आए मेरे दिल को दुआ कीजिए"। ७० का दशक वह दशक था जब पंचम ज़्यादातर तेज़ रफ़्तार वाले और जोशिले गानें लेकर आ रहे थे। लेकिन जब भी सिचुयशन ने डिमाण्ड की किसी सॊफ़्ट एण्ड सेन्सिटिव गाने की, उसमें भी पंचम अपना जादू दिखा गए। फ़िल्म 'मेरे जीवन साथी' में राजेश खन्ना के लिए एक से एक सुपर डुपर हिट गानें बनें जो किशोर दा की आवाज़ पा कर अमर हो गए। वैसे भी राजेश खन्ना की फ़िल्मों की यही खासियत हुआ करती थी कि फ़िल्म चाहे चले ना चले, उनके गानें ज़रूर कामयाब हो जाते थे। इसी फ़िल्म को अगर लें तो प्रस्तुत गीत के अलावा किशोर दा ने जो गानें इसमें गाए वो हैं "दीवाना लेके आया दिल का तराना&qu

मुन्ना बड़ा प्यारा, अम्मी का दुलारा...जब किशोर ने स्वर दिए शैलेन्द्र के शब्दों को

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 285 रा ज कपूर के आर.के.फ़िल्म्स के बैनर के बाहर की फ़िल्मों में लिखे हुए गीतकार शैलेन्द्र के गीतों का करवाँ इन दिनों बढ़ा जा रहा है 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की इस ख़ास शृंखला "शैलेन्द्र- आर.के.फ़िल्म्स के इतर भी" के अंतर्गत। मन्ना डे, लता मंगेशकर, मोहम्मद रफ़ी और मुकेश के बाद आज बारी है हमारे किशोर दा की। इससे पहले हमने 'ओल्ड इज़ गोल्ड' पर शैलेन्द्र, सलिल चौधरी और किशोर कुमार की तिकड़ी का केवल गीत बजाया है फ़िल्म 'नौकरी' से "छोटा सा घर होगा बादलों की छाँव में" । आज हम आपको सुनवाने के लिए लाए हैं इसी तिकड़ी का बनाया हुआ १९५७ की फ़िल्म 'मुसाफ़िर' का एक बड़ा ही प्यारा सा बच्चों वाला गीत - "मुन्ना बड़ा प्यारा अम्मी का दुलारा, कोई कहे चाँद कोई आँख का तारा"। 'फ़िल्म ग्रूप' के बैनर तले बनी इस फ़िल्म को निर्देशित किया ॠषीकेश मुखर्जी ने। फ़िल्म की कहानी काफ़ी दिलचस्प थी। कहानी एक मकान और उसमें रहने वाले किराएदारों के इर्द-गिर्द घूमती है। हर किराएदार कुछ दिनों के लिए रहता है, दर्शकों के दिलों में जगह बनाता है

आ मोहब्बत की बस्ती बसाएँगे हम....पहली बार ओल्ड इस गोल्ड पर लता किशोर एक साथ

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 257 दो स्तों, आज 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की २५७ वी कड़ी है। पता नहीं आपने कभी ग़ौर किया होगा या नहीं कि अब तक 'ओल्ड इज़ गोल्ड' में एक भी लता-किशोर डुएट नहीं बजा है जब कि युगल गीतों के इतिहास में लता-किशोर की जोड़ी एक बहुत ही महत्वपूर्ण और लोकप्रिय जोड़ी रही है। अगर ऒल-टाइम एवरग्रीन डुएट्स के जोड़ियों का ज़िक्र छेड़ा जाए तो यकीनन लता-किशोर की जोड़ी का नाम प्रथम पाँच में ज़रूर होगी। हमने कई कई बार ऐसे फ़िल्मों के गानें बजाए हैं जिनमें लता-किशोर के युगल गीत रहे हैं, लेकिन हर बार हम उन फ़िल्मो के किसी और ही गीत को बजा बैठे हैं। जैसे कि 'जुवेल थीफ़', 'मिस्टर एक्स इन बॊम्बे', 'गैम्बलर', 'चाचा ज़िंदाबाद', 'हरे रामा हरे कॄष्णा', 'आराधना', 'प्रेम पुजारी', 'जुली', और 'शर्मिली'। इन सभी फ़िल्मों में लोकप्रिय लता-किशोर डुएट्स मौजूद हैं। दरसल सब से ज़्यादा हिट युगल गीत इस जोड़ी की रही है ६० के दशक आख़िर से लेकर ८० के दशक के शुरुआती सालों तक। लेकिन आज हम सुनने जा रहे हैं लता जी और किशोर दा का गाय

दुखी मन मेरे सुन मेरा कहना...जहाँ न गूंजे बर्मन दा के गीत वहां क्या रहना

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 248 आ ज है ३१ अक्तुबर। १९७५ साल के आज ही के दिन सचिन देव बर्मन हम सब को हमेशा के लिए छोड़ गए थे। आज उनके हमसे बिछड़े लगभग ३५ साल हो चुके हैं, लेकिन ऐसा लगता ही नहीं कि वो हमारे बीच नहीं है। उनके रचे गीत इतने ज़्यादा लोकप्रिय हैं कि आज भी हर रोज़ उनके गानें रेडियो पर सुनने को मिल जाते हैं। किसी ने ठीक ही कहा है कि एक अच्छा कलाकार ना तो कभी बूढ़ा होता है और ना ही मरता है, वो अमरत्व को प्राप्त करता है अपनी कला के ज़रिए, अपनी रचनाओं के ज़रिए, अपनी प्रतिभा के ज़रिए। सचिन देव बर्मन एक ऐसे ही संगीत शिल्पी थे। उनकी सुमधुर संगीत रचनाएँ आज भी हमारे मन की वादियों में अक्सर गूँजते ही रहते हैं। शारीरिक रूप से वो भले ही हमसे बहुत दूर चले गए हों, लेकिन उनकी आत्मा उनके ही रचे संगीत के माध्यम से दुनिया की फ़िज़ाओं में गूँजती रहती है, और गूँजती रहेगी अनंत काल तक। 'जिन पर नाज़ है हिंद को' शृंखला में सचिन देव बर्मन और साहिर लुधियानवी की जोड़ी के गीतों का सफ़र जारी है, और आज जिस सुरीले मोती को हम चुन लाए हैं वह है फ़िल्म 'फ़ंटूश' का, "दुखी मन मेरे सुन मेरा कहना

जीवन के सफर में राही मिलते है बिछुड़ जाने को...और बिछड़ गया वो संजीदा शायर हमसे

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 242 "रो ..रो के इन्ही राहों में खोना पड़ा एक अपने को, हँस हँस के इन्ही राहों में अपनाया था बेगाने को। जीवन के सफ़र में राही मिलते हैं बिछड़ जाने को, और दे जाते हैं यादें तन्हाई में तड़पाने को"। ये पंक्तियाँ सुनने में निराशावादी भले ही लगे, लेकिन है बिल्कुल सच। आज २५ अक्तुबर का दिन हम सब के लिए एक आम तारीख़ हो सकता है, लेकिन साहित्य और फ़िल्म संगीत के रसिकों के लिए आज का दिन यादगार दिन है, क्योंकि आज है महान शायर व गीतकार साहिर लुधियानवी साहब की पुण्यतिथि। २५ अक्तुबर १९८० के दिन इस दुनिया-ए-फ़ानी को हमेशा के लिए छोड़ गये थे साहिर साहब, और अपने पीछे छोड़ गए अपने शब्दों का एक ऐसा महासागर जिसमें मोतियाँ हैं अनगिनत, और जिनमें सुरीली तरंगें हैं बेशुमार! साहिर लुधियानवी और सचिन देव बर्मन पर केन्द्रित शृंखला 'जिन पर नाज़ है हिंद को' का आज का यह अंक समर्पित है साहिर साहब की पुण्य स्मृति को। मोह भंग, विद्रोह और निराशा के सुर साहिर लुधियानवी की ज़िंदगी के हिस्से बन गए थे। पिता का दुर्व्यवहार और कॊलेज का पहला असफ़ल प्रेम उनके कोमल मन पर गहरा असर कर गया था

आये तुम याद मुझे, गाने लगी हर धड़कन...जब याद आये किशोर और अशोक एक साथ तो क्यों न ऐसा हो

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 231 आ ज है १३ अक्तुबर का दिन। फ़िल्म जगत के लिए आज का दिन बड़ा मायने रखता है, क्योंकि आज का दिन एक नहीं बल्कि दो ऐसे कलाकारों को याद करने का दिन है जिन्होने इस फ़िल्म जगत में अपनी अमिट छाप छोड़ी है। ये दो लेजेंडरी फ़नकार अपने अपने क्षेत्र के महारथी तो थे ही, वे एक दूसरे के सगे भाई भी थे। इनमें से एक का आज जन्मदिन है और दूसरे की पुण्यतिथि। कितनी अजीब बात है कि दादामुनि अशोक कुमार का जन्मदिन और किशोर कुमार की पुण्यतिथि एक ही है, १३ अक्तुबर। १३ अक्तुबर १९११ को अशोक कुमार का जन्म हुआ था और १३ अक्तुबर १९८७ को किशोर दा हमें छोड़ गए थे हमेशा के लिए। जी हाँ, १३ अक्तुबर १९८७। अपने बड़े भाई के जन्मदिन पर अनूप कुमार के साथ मिलकर किशोर दा उन्हे एक सरप्राइज़ देना चाहते थे, जिसके लिए वे शाम को ५:३० बजे मिलने वाले थे। पर यह हो ना सका और समय ने ही सारी दुनिया को स्तब्ध कर दिया। नियति अपने दस्तावेज़ पर किशोर का नाम लिख कर चला गया, और वो मदहोश करने वाली आवाज़ हमेशा के लिए ख़ामोश हो गयी, और तब से लेकर आज तक वो आवाज़ बसी हुई है हमारी यादों में, हमारे दिलों में, हमारी ज़िंदगियों मे

जीवन से भरी तेरी आँखें....काव्यात्मक शैली में लिखा था इन्दीवर ने इस गीत को

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 204 ल ता मंगेशकर, मोहम्मद रफ़ी, और आशा भोंसले के बाद, अदा जी की अगली फ़रमाइश में है किशोर कुमार की आवाज़। वैसे तो इन चारों गायकों ने इतने सारे मशहूर गानें गाए हैं कि किसी एक गीत को चुनना नामुमकिन सी बात हो जाती है। फिर भी अदा जी ने इनके एक एक गीत ऐसे चुन कर हमें भेजे हैं कि भई वाह! आप के पसंद की दाद देनी पड़ेगी। हर एक गीत लाजवाब है अपने अपने अंदाज़ का। तो आज जैसा कि हम ने कहा, किशोर दा की आवाज़ की बारी है, जो आवाज़ ज़िंदगी से हारे हुए लोगों को वापस जीने के लिए मजबूर कर देती है। जी हाँ, आज का गीत है फ़िल्म 'सफ़र' का, "जीवन से भरी तेरी आँखें मजबूर करे जीने के लिए, सागर भी तरसते रहते हैं तेरे रूप का रस पीने के लिए"। आँखों की ख़ूबसूरती पर असंख्य गीत बने हैं और आज भी बन रहे हैं। लेकिन इस गीत में जो काव्य है, जो जीवन दर्शन है, शॄंगार रस और जीवन दर्शन का ऐसा समावेश हर गीत में सुनाई नहीं देता। गीतकार इंदीवर का शुमार उन गीतकारों में होता है जिनके अनमोल गीत निराशा भरे मन में आशा का संचार करते हैं, उदास ज़िंदगी को जीवंत कर देते है, और इस दुनिया को समझने

मैं बांगाली छोरा करूँ प्यार को नामोश्काराम....बंगाल और मद्रास के बीच छिडी प्यार की जंग आशा और किशोर के मार्फ़त

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 196 क्या आप के ज़हन में है दोस्तों कि आज तारीख़ कौन सी है? आज है ८ सितंबर। और ८ सितंबर का दिन है हमारी, आपकी, हम सब की चहीती गायिका आशा भोंसले जी का जन्मदिन । आज ८ सितंबर २००९ को आशा जी मना रहीं हैं अपना ७८-वाँ जन्म दिवस। पिछले ६ दशकों से उनकी आवाज़ हमारी ज़िंदगियों में रस घोलती चली आ रही है। क्या बच्चे, क्या जवान, क्या बूढ़े, हर किसी के दिल पर छायी हुई है आशा जी की दिलकश आवाज़। यह वो आवाज़ है दोस्तों जिस पर समय का कोई असर नहीं है। आशा जी ने फ़िल्म संगीत के कई बदलते दौर देखे हैं, और हर दौर में उन्होने अपनी आवाज़ का जादू कुछ इस क़दर बिखेरा है कि हर दौर में उन्होंने सुनने वालों के दिलों पर राज किया है। मैं अपनी तरफ़ से, 'आवाज़' की तरफ़ से और पूरे 'हिंद युग्म' परिवार की तरफ़ से आशा जी को दे रहा हूँ ढेरों शुभकामनाएँ। आशा जी के जन्मदिवस को केन्द्र कर हम इन दिनों सुन रहे हैं उनके युगल गीतों की एक ख़ास लघु शृंखला '१० गायक और एक आपकी आशा'। क्योंकि आज आशा जी का बर्थडे है, तो क्यों न आज थोड़ी से मस्ती की जाए, थोड़े हँसी मज़ाक के साथ आज के 'ओल

कन्हैया किसको कहेगा तू मैया....इन्दीवर साहब को सलाम करें इस जन्माष्ठमी पर

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 171 श्री कृष्ण जन्माष्टमी के पावन उपलक्ष्य पर हम सभी श्रोतायों और पाठकों का हार्दिक अभिनंदन करते हैं। दोस्तों, पिछले दस दिनों से आप किशोर दा के गाये गीतों का आनंद उठा रहे थे। उनके गाये उन गीतों को सुनते हुए हम इस क़दर उनकी आवाज़ में खो गये थे कि आज के इस विशेष पर्व पर प्रसारण योग्य गीत भी हम उन्ही की आवाज़ में चुन बैठे। और हमें पूरा विश्वास है कि प्रस्तुत गीत आप को भी बहुत पसंद आयेगा। श्रीकृष्ण के जन्म की कहानी तो आप को मालूम ही होगी, लेकिन आज के इस गीत के महत्व को बेहतर तरीके से समझने के लिए हम उस पौराणिक कहानी को संक्षेप में आप को बता रहे हैं। देवकी और रोहिणी को मिलाकर राजा वासुदेव की ६ पत्नियाँ थीं। देवकी से विवाह के बाद, देवकी के भाई कंस को यह भविष्यवाणी मिली थी कि देवकी के आठवें पुत्र के हाथों उनका वध होगा। वासुदेव के अनुरोध पर कंस ने देवकी को नहीं मारा, लेकिन देवकी के पहले ६ पुत्रों की जीवन लीला ज़रूर समाप्त कर दी। जब देवकी साँतवीं बार माँ बनने जा रही थीं, तो भगवान विष्णु ने देवकी का गर्भ रोहिणी के कोख में स्थानांतरित कर दिया ताकि उस बच्चे का कंस के हाथों

मुसाफिर हूँ यारों...न घर है न ठिकाना...हमें भी तो किशोर दा को गीतों को बस सुनते ही चले जाना है....

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 170 दो स्तों, पिछले ९ दिनों से लगातार किशोर दा की आवाज़ में ज़िंदगी के नौ अलग अलग रूपों से गुज़रते हुए आज हम आ पहुँचे हैं 'दस रूप ज़िंदगी के और एक आवाज़' शृंखला की अंतिम कड़ी में। जिस तरह से एक मुसाफ़िर निरंतर चलते जाता है, ठीक वैसे ही हम भी 'ओल्ड इज़ गोल्ड' के सुरीले मुसाफ़िर ही तो हैं, जो हर रोज़ एक नया सुरीला मंज़िल तय करते हुए आगे बढ़ते चले जा रहे हैं। जी हाँ, आज इस शृंखला की आख़िरी कड़ी में बातें उस यायावर की जिसकी ज़िंदगी का फ़लसफ़ा किशोर दा की आवाज़ में ढ़लकर कुछ इस क़दर बयाँ हुआ कि "दिन ने हाथ थाम कर इधर बिठा लिया, रात ने इशारे से उधर बुला लिया, सुबह से शाम से मेरा दोस्ताना, मुसाफ़िर हूँ यारों न घर है न ठिकाना, मुझे चलते जाना है, बस चलते जाना"। यह फ़िल्म 'परिचय' का गीत है। फ़िल्म १८ अक्टुबर सन् १९७२ में प्रदर्शित हुई थी जिसे लिखा व निर्देशित किया था गुलज़ार साहब ने। फ़िल्म की कहानी आधारित थी अंग्रेज़ी फ़िल्म 'द साउंड औफ़ म्युज़िक' पर, जिसका गुलज़ार साहब ने बहुत ही उन्दा भारतीयकरण किया था। फ़िल्म के मुख्य कलाकार

रूप तेरा मस्ताना...प्यार मेरा दीवाना...रोमांस का समां बाँधती किशोर की आवाज़

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 169 हा ल ही में एक गीत आया था "कभी मेरे साथ कोई रात गुज़ार तुझे सुबह तक मैं करूँ प्यार", जिसमें सेन्सुयसनेस कम और अश्लीलता ज़्यादा थी। अगर हम आज से ४० साल पीछे की तरफ़ चलें, तो फ़िल्म 'आराधना' में आनंद बक्शी साहब ने एक गीत लिखा था "रूप तेरा मस्ताना प्यार मेरा दीवाना, भूल कोई हम से न हो जाए"। यह गीत भी मादक और कामोत्तेजक था लेकिन अश्लील कदापि नहीं। दोस्तों, हमने इन दोनों गीतों का एक साथ ज़िक्र यह कहने के लिए किया कि उस पुराने दौर में भी इस तरह के सिचुयशन बनते थे, लेकिन उस दौर के फ़िल्मकार, गीतकार व संगीतकार इन पर ऐसे गानें बनाते थे जो स्थान काल व पात्रों का भी न्याय करे और साथ ही साथ इस बात का भी ध्यान रखें कि उसका फ़िल्मांकन रुचिकर हो, न कि अश्लील। आज 'दस रूप ज़िंदगी के और एक आवाज़' के अंतर्गत सुनिए किशोर दा की आवाज़ में इसी मादक नशीले गीत को, जिसे सुनकर दिल में हलचल सी होने लगती है। गीत के बोल और संगीत मादक और उत्तेजक तो हैं ही, किशोर दा ने भी उसी अंदाज़ में इसे गाया जिस अंदाज़ की इस गीत को ज़रूरत थी। फ़िल्म 'आराधना'

हम मतवाले नौजवान मंजिलों के उजाले...युवा दिलों की धड़कन बनी किशोर कुमार की आवाज़

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 168 ज न्म से लेकर मृत्यु तक आदमी की ज़िंदगी उसे कई पड़ावों से पार करवाता हुआ अंजाम की ओर ले जाती है। इन पड़ावों में एक बड़ा ही सुहाना, बड़ा ही आशिक़ाना, और बड़ा ही मस्ती भरा पड़ाव होता है, जिसे हम जवानी कहते हैं। ज़िंदगी में कुछ बड़ा बनने का ख़्वाब, दुनिया को कुछ कर दिखाने का इरादा, अपने परिवार के लिए बेहतर से बेहतर ज़िंदगी की चाहत हर जवाँ दिल की धड़कनों में बसी होती है। साथ ही होता है हला-गुल्ला, ढ़ेर सारी मस्ती, और बिन पीये ही चढ़ता हुआ नशा। नशा आशिक़ी का, प्यार मोहब्बत का। जी हाँ, जवानी के जस्बों की दास्तान आज सुनिए किशोर दा की सदा-जवाँ आवाज़ में। यह है फ़िल्म 'शरारत' का गीत "हम मतवाले नौजवाँ मंज़िलों के उजाले, लोग करे बदनामी कैसे ये दुनियावाले". सन् १९५९ में बनी फ़िल्म 'शरारत' के निर्देशक थे हरनाम सिंह रावल और मुख्य कलाकार थे किशोर कुमार, मीना कुमारी, राजकुमार और कुमकुम। आप को याद होगा 'ओल्ड इज़ गोल्ड' में इससे पहले हमने आप को किशोर कुमार और मीना कुमारी पर फ़िल्माया हुआ फ़िल्म 'नया अंदाज़' का "मेरी नींदों में त

बड़ी मुश्किल से मगर दुनिया में दोस्त मिलते है...कितना सही कहा था शायर ने किशोर में स्वरों में बसकर

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 167 "फू लों से ख़ूबसूरत कोई नहीं, सागर से गहरा कोई नहीं, अब आप की क्या तारीफ़ करूँ, दोस्ती में आप जैसा प्यारा कोई नहीं"। जी हाँ, आज 'ओल्ड इज़ गोल्ड' में दोस्त और दोस्ती की बातें। एक अच्छा दोस्त जहाँ एक ओर आप की ज़िंदगी को सफलता में बदल सकता है, वहीं बुरी संगती आदमी को बरबादी की तरफ़ धकेल देती है। इसलिए हर आदमी को अपने दोस्त बहुत सावधानी से चुनने चाहिए। वो बड़े क़िस्मत वाले होते हैं जिन्हे ज़िंदगी में सच्चे दोस्त नसीब होते हैं। कुछ इसी तरह का फ़लसफ़ा आज किशोर दा हमें सुना रहे हैं 'दस रूप ज़िंदगी के और एक आवाज़' के अंतर्गत। "दीये जलते हैं, फूल खिलते हैं, बड़ी मुश्किल से मगर दुनिया में दोस्त मिलते हैं". यूँ तो दोस्ती पर किशोर दा ने कई हिट गीत गाये हैं जैसे कि फ़िल्म 'शोले' में "ये दोस्ती हम नहीं तोड़ेंगे", फ़िल्म 'दोस्ताना' में "बने चाहे दुश्मन ज़माना हमारा, सलामत रहे दोस्ताना हमारा", फ़िल्म 'याराना' मे "तेरे जैसा यार कहाँ", आदि। लेकिन इन सभी गीतों को पीछे छोड़ देता है फ़िल्म

किसका रस्ता देखे ऐ दिल ऐ सौदायी...दर्द ऐसा था किशोर की आवाज़ में कि सुनते ही आंख भर आये

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 167 'द स रूप ज़िंदगी के और एक आवाज़'। दोस्तों, इन दिनों 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की महफ़िल सज रही है किशोर कुमार के गाये ज़िंदगी के अलग अलग रंगों के गीतों से। आज की कड़ी का जो रंग है, वह ज़रा दर्दीला है। हमेशा मुस्कुराने वाले किशोर दा के इस चेहरे के पीछे एक तन्हा दिल भी था जो उनके दर्द भरे गीतों से छलक पड़ता और सुननेवालों को रुलाये बिना नहीं छोड़ता। गुदगुदाने वाले किशोर ने जब कुछ संजीदे फ़िल्मों का निर्माण किया तो उनमें उनका उदासीन चेहरा लोग पचा नहीं पाये, लिहाज़ा उनकी सब संजीदा फ़िल्में असफल रहीं। लेकिन उनका वह दर्द जब उनके गीतों से बाहर फूट पड़ा तो लोगों ने उन्हे पलकों पर बिठा लिया। उनके गाये दर्द भरे गीत कुछ इस क़दर मशहूर हैं कि म्युज़िक कंपनियाँ समय समय उनके दर्दीले गीतों के कैसेट्स व सीडीज़ जारी करते रहते हैं। ख़ैर, आज इस रंग के जिस गीत को हमने चुना है वह है 'जोशीला' फ़िल्म का, "किसका रस्ता देखे ऐ दिल ऐ सौदाई, मीलों है ख़ामोशी, बरसों हैं तन्हाई". १९७३ की इस फ़िल्म में देव आनंद नायक थे और अभिनेत्रियाँ थीं हेमा मालिनी व राखी। ५० के

समाँ है सुहाना सुहाना नशे में जहाँ है....जहाँ किशोर की आवाज़ गूंजे वहां ऐसा क्यों न हो

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 165 पि छ्ले तीन दिनों से आप किशोर दा की आवाज़ में सुन रहे हैं जीवन के कुछ ज़रूरी और थोड़े संजीदे किस्म के विषयों पर आधारित गानें। आज माहौल को थोड़ा सा हल्का बनाते हैं और आज चुनते हैं ज़िंदगी का एक ऐसा रूप जिसमें है मस्ती, रोमांस और नशा। ऐसे गीतों में भी किशोर दा की आवाज़ ने वो अदाकारी दिखायी है कि ये गानें हर प्रेमी के दिल की आवाज़ बन कर रह गये हैं। आनंद बक्शी का लिखा और कल्याणजी-आनंदजी का स्वरबद्ध किया एक ऐसा ही गीत आज पेश है फ़िल्म 'घर घर की कहानी' से। जी हाँ, "समा है सुहाना, नशे में जहाँ है, किसी को किसी की ख़बर ही कहाँ है, हर दिल में देखो मोहब्बत जवाँ है"। कभी जवाँ दिलों की धड़कन बन कर गूँजा करता था यह नग़मा। इसमें कोई शक़ नहीं कि यह गीत समा को सुहाना बना देता है, इसकी मंद मंद रीदम से मन नशे में डूबता सा चला जाता है, और हर दिल में मोहब्बत की लौ जगा देती है। १९७० की फ़िल्म 'घर घर की कहानी' के मुख्य कलाकार थे राकेश रोशन और भारती। यह एक लो बजट फ़िल्म थी जिसकी बाकी सभी चीज़ों को लोग क्रमश: भूलने लगे हैं सिवाय एक चीज़ के, और वह है फ़िल्