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Showing posts with the label Shankar Jaikishan

चक्के पे चक्का, चक्के पे गाडी....बच्चों के संग एक मस्ती भरी यात्रा पे चलिए

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 266 'ब्र ह्मचारी' गीतकार शैलेन्द्र की अंतिम फ़िल्म थी। इस फ़िल्म के गीत "मैं गाऊँ तुम सो जाओ" के लिये उन्हे मरणोपरांत सर्वश्रेष्ठ गीतकार के फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। बच्चों पर केन्द्रित फ़िल्मों की फ़हरिस्त में १९६८ की इस फ़िल्म का एक महत्वपूर्ण स्थान रहा है। इस फ़िल्म में कई कालजयी गीत हैं, और कुछ तो लोकप्रियता की कसौटी पर ऐसे खरे उतरे हैं कि आज भी अक्सर कहीं ना कहीं से "आजकल तेरे मेरे प्यार के चर्चे" या "दिल के झरोखे में तुझको बिठा के" सुनाई दे जाता है। अनाथ बच्चों पर आधारित इस फ़िल्म में दो बच्चों वाले गीत थे, एक जिसका उल्लेख हमने शुरु में ही किया ("मैं गाऊँ तुम सो जाओ"), और दूसरा गीत था बड़ा ही मस्ती भरा "चक्के पे चक्का, चक्के पे गाड़ी, गाड़ी में निकली अपनी सवारी", जिसे रफ़ी साहब और बच्चों ने बड़े ही बच्चों वाले अंदाज़ में गाया था। आज 'ओल्ड इज़ गोल्ड' पर है इसी गीत की बारी। इस गीत के बोल साफ़ साफ़ इसी बात की तरफ़ इशारा करते हैं कि यह गीत किसी ख़ास मक़सद या सिचुएशन के लिए न

इचक दाना बिचक दाना....पहेलियों में गुंथा एक अनूठा गाना

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 265 'ओ ल्ड इज़ गोल्ड' पर आप लगातार सुन रहे हैं बच्चों वाले गानें एक के बाद एक। दोस्तों, हर रोज़ गीत के आख़िर में हम आप से एक पहेली पूछते हैं, आज भी पूछेंगे, लेकिन आज का जो गीत है ना वो भरा हुआ है पहेलियों से। पहेली बूझना बच्चों का एक मनपसंद खेल रहा है हर युग में। हिंदी फ़िल्मों में कई गीत ऐसे हैं जो पहेलियों पर आधारित हैं, जैसे कि उदाहरण के तौर पर फ़िल्म 'ससुराल' का गीत "एक सवाल मैं करूँ एक सवाल तुम करो", 'मिलन' फ़िल्म का गीत "बोल गोरी बोल तेरा कौन पिया"। और भी कई गीत हैं इस तरह के, लेकिन इन सब में जो सब से ज़्यादा प्रोमिनेंट है वह है राज कपूर की फ़िल्म 'श्री ४२०' का "ईचक दाना बीचक दाना दाने उपर दाना"। इस गीत का मुखड़ा और सारे के सारे अंतरे पहेलियों पर आधारित है। लता मंगेशकर, मुकेश और बच्चों के गाए इस गीत का फ़िल्मांकन कुछ इस तरह से हुआ है कि नरगिस एक स्कूल टीचर बच्चों को पहेलियों के माध्यम से पाठ पढ़ा रही हैं, और छत पर खड़े दूर दूर से राज कपूर ख़ुद भी उन पहेलियों को सुलझाने की कोशिश कर रहे हैं। हर प

महताब तेरा चेहरा किस ख्वाब में देखा था....लता मुकेश की मखमली आवाज़ में एक सुरीला नगमा

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 235 दो स्तों, एक के बाद एक तीन गीत हम आपको सुनवा रहें हैं शंकर जयकिशन के स्वरबद्ध किए हुए, और मौका है शंकर जी के जन्म दिवस का जो था १५ अक्तुबर को। कल की तरह आज का गीत भी शैलेन्द्र का ही लिखा हुआ है। फ़िल्म 'आशिक़' का युगल गीत है मुकेश और लता मंगेशकर की आवाज़ों में "महताब तेरा चेहरा किस ख़्वाब में देखा था, ऐ हुस्न-ए-जहाँ बतला तू कौन मैं कौन हूँ"। 'आशिक़' १९६२ की फ़िल्म थी जिसके निर्माता थे विजय किशोर दुबे और बनी रूबेन। ऋषीकेश मुकर्जी ने फ़िल्म को निर्देशित किया और इसके मुख्य कलाकार थे राज कपूर, नंदा और पद्मिनी। जहाँ तक म्युज़िक डिपार्ट्मेंट की बात है, तो शंकर जयकिशन के अलावा जिनका फ़िल्म के संगीत में योगदान रहा वे हैं मिनू कात्रक (रिकार्डिस्ट), डी. ओ. भंसाली (सहायक रिकार्डिस्ट), दत्ताराम वाडकर (संगीत सहायक), और सेबास्टियन डी' सूज़ा (संगीत सहायक)। गीतों में आवाज़ें लता जी और मुकेश जी के थे। आज के प्रस्तुत गीत के अलावा इस फ़िल्म का एक और युगल गीत "ओ शमा मुझे फूँक दे, मैं ना मैं रहूँ तू ना तू रहे" भी लोकप्रिय हुआ था। और मुकेश

अंधे जहाँ के अंधे रास्ते, जाए तो जाए कहाँ... शैलेन्द्र ने पेश किया अर्थपूर्ण काव्यात्मक अभिव्यक्ति का उत्कृष्ट उदाहरण

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 234 क ल शंकर साहब के जन्मदिवस के अवसर पर हमने सुना था फ़िल्म 'असली नक़ली' का युगल गीत । शंकर जयकिशन और देव आनंद के कॊम्बिनेशन का वह एक सदाबहार गीत रहा है। आइए आज भी शंकर जयकिशन और देव आनंद का ही एक और गीत सुनें। कल हमने आपको यह भी बताया था कि शुरु शुरु में जब शंकर जयकिशन देव साहब के लिए गानें बना रहे थे तो पार्श्वगायन के लिए तलत महमूद और हेमन्त कुमार की आवाज़ें ले रहे थे, बाद में रफ़ी साहब बने देव आनंद की आवाज़। तो आज ऐसी एक फ़िल्म जिसमें देव साहब का प्लेबैक किया था तलत साहब और हेमन्त दा ने। यह फ़िल्म है 'पतिता'। इस फ़िल्म में कम से कम तीन एकल गीत हैं तलत महमूद की आवाज़ में और शैलेन्द्र के लिखे हुए जिन्हे बेहद शोहरत हासिल हुई, और एक युगल गीत लता जी और हेमन्त दा का गाया हुआ और हसरत जयपुरी का लिखा हुआ ऐसा था जिसका शुमार आज इस जोड़ी के सदाबहार युगल गीतों में होता है। याद है ना वह युगल गीत "याद किया दिल ने कहाँ हो तुम, झूमती बहार है कहाँ हो तुम"! लेकिन आज हम सुनेंगे तलत महमूद का गाया और शैलेन्द्र का लिखा "अंधे जहाँ के अंधे रास्ते जाऊँ

आवाज़ देकर हमें तुम बुलालो...लता रफी से स्वरों में एक बेमिसाल युगल गीत

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 223 'द स राग दस रंग' शृंखला के अंतर्गत आज हम ने जिस राग को चुना है वह है शिवरंजनी। बहुत ही सुरीला राग है दोस्तों जिसे संध्या और रात्री के बीच गाया जाता है (लेट ईवनिंग)। जैसा कि नाम से ही प्रतीत होता है यह राग भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए गाया जाता है। जहाँ एक तरफ़ यह राग रुमानीयत की अभिव्यक्ति कर सकता है, वहीं दूसरी तरफ़ दर्द में डूबे हुए किसी दिल की सदा बन कर भी बाहर आ सकती है। मूल रूप से शिवरंजनी का जन्म दक्षिण भारतीय शास्त्रीय संगीत में हुआ था, जो बाद में हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत मे भी घुल मिल गया। दोस्तों, आप मे से कई लोगों को यह सवाल सताता होगा कि जब एक ही राग पर कई गीत बनते हैं तो फिर वो सब गानें अलग अलग क्यों सुनाई देते हैं? वो एक जैसे क्यों नहीं लगते? दोस्तों, इसका कारण यह है कि किसी एक राग पर कोई गीत तीन सप्तक (ऒक्टेव्ज़) के किसी भी एक सप्तक पर कॊम्पोज़ किया जा सकता है। और यही कारण भी है कि जिन्हे संगीत की तकनीक़ी जानकारी नहीं है, वो सिर्फ़ गीत को सुन कर यह नहीं आसानी से बता पाते कि गीत किस राग पर आधारित है। कुछ गीतों में राग को आसानी से

दर्द-ए-उल्फ़त छुपाऊँ कहाँ....लता ने किया एक मासूम सवाल शंकर जयकिशन के संगीत में

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 219 गी तकार शैलेन्द्र, संगीतकार जोड़ी शंकर-जयकिशन और गायिका लता मंगेशकर की जब एक साथ बात चलती है तो इतने सारे मशहूर, हिट और शानदार गीत एक के बाद एक ज़हन में आते जाते हैं कि जिनका कोई अंत नहीं। चाहे राज कपूर की फ़िल्मों के गानें हों या किसी और फ़िल्मकार के, इस टीम ने 'बरसात' से जो सुरीली बरसात शुरु की थी उसकी मोतियों जैसी बूँदें हमें आज तक भीगो रही है। लेकिन ऐसे बेशुमार हिट गीतों के बीच बहुत से ऐसे गीत भी समय समय पर बने हैं जो उतनी ज़्यादा लोकप्रिय नहीं हुए और इन हिट गीतों की चमक धमक में इनकी मंद ज्योति कहीं गुम हो गई, खो गई, लोगों ने भुला दिया, समय ने उन पर पर्दा डाल दिया। ऐसा ही एक गीत आज के अंक में सुनिए। फ़िल्म 'औरत' का यह गीत है "दर्द-ए-उल्फ़त छुपाऊँ कहाँ, दिल की दुनिया बसाऊँ कहाँ"। बड़ा ही ख़ुशरंग और ख़ुशमिज़ाज गीत है यह जिसमें है पहले पहले प्यार की बचैनी और मीठे मीठे दर्द का ज़िक्र है। मज़ेदार बात यह है कि बिल्कुल इसी तरह का गीत शंकर जयकिशन ने अपनी पहली ही फ़िल्म 'बरसात' में लता जी से गवाया था। याद है न आपको हसरत साहब का

बज उठेंगीं हरे कांच की चूडियाँ....आशा की आवाज़ में एक चहकता नग्मा...

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 203 'ओ ल्ड इज़ गोल्ड' पर इन दिनों आप सुन रहे हैं स्वप्न मंजूषा शैल 'अदा' जी के फ़रमाइशी नग़में। आज बारी है उनके पसंद का तीसरा गीत सुनने की। आशा भोंसले की आवाज़ में यह गीत है फ़िल्म 'हरे कांच की चूड़ियाँ' का शीर्षक गीत "बज उठेंगी हरे कांच की चूड़ियाँ"। यह गीत बहुत ज़्यादा प्रचलित गीतों में नहीं गिना जाता है, और शायद हम में से बहुत लोगों को यह गीत कभी कभार ही याद आता होगा। ऐसे में इस सुंदर गीत का ध्यान हम सब की ओर आकृष्ट करने के लिए हम अदा जी का शुक्रिया अदा किए बग़ैर नहीं रह सकते। 'हरे कांच की चूड़ियाँ' १९६७ की फ़िल्म थी। नायिका प्रधान इस फ़िल्म में नैना साहू ने मुख्य भूमिका निभायी और उनके साथ में थे विश्वजीत, नासिर हुसैन, सप्रू, और राजेन्द्र नाथ प्रमुख। फ़िल्म की मूल कहानी कुछ इस तरह की थी कि मोहिनी (नैना साहू) प्रोफ़ेसर किशनलाल (नासिर हुसैन) की बेटी है। मोहिनी मेडिकल की छात्रा है जो सभी के साथ खुले दिल से मिलती जुलती है। एक बार वो बेहोश हो जाने के बाद जब डाक्टरी जाँच करायी जाती है तो डाक्टर उसे गर्भवती करार देता है। कि

रे मन सुर में गा...फ़िल्मी गीतों में भी दिए हैं मन्ना डे और आशा ने उत्कृष्ट राग गायन की मिसाल

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 193 फ़ि ल्म संगीत के सुनहरे दौर के पार्श्वगायकों में एक महत्वपूर्ण नाम मन्ना डे साहब का रहा है। भले ही उन्हे नायकों के पार्श्व गायन के लिए बहुत ज़्यादा मौके नहीं मिले, लेकिन उनकी गायकी का लोहा हर संगीतकार मानता था। शास्त्रीय संगीत में उनकी मज़बूत पकड़ का ही नतीजा था कि जब भी किसी फ़िल्म में शास्त्रीय संगीत पर आधारित, या फिर दूसरे शब्दों में, मुश्किल गीतों की बारी आती थी तो फ़िल्मकारों और संगीतकारों को सब से पहले मन्ना दा की ही याद आ जाती थी। आज '१० गायक और एक आपकी आशा' की तीसरी कड़ी में आशा भोंसले का साथ निभाने के लिए हमने आमंत्रण दिया है इसी सुर गंधर्व मन्ना डे साहब को! युं तो मन्ना दा ने लता मंगेशकर के साथ ही अपने ज़्यादातर लोकप्रिय युगल गीत गाए हैं, लेकिन आशा जी के साथ भी उनके गाए बहुत सी सुमधुर रचनाएँ हैं। आज 'ओल्ड इस गोल्ड' में छा रहा है शास्त्रीय संगीत का रंग मन्ना दा और आशा जी की आवाज़ों में। फ़िल्म 'लाल पत्थर' का यह गीत है "रे मन सुर में गा"। क्या गाया है इन दोनों ने इस गीत को! कोई किसी से कम नहीं। इस जैसे गीत को सुन कर

दोस्त दोस्त न रहा प्यार प्यार न रहा...पर मुकेश का आवाज़ न बदली न बदले उनके चाहने वाले

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 186 मु केश के पसंदीदा गीतों में घूम फिर कर राज कपूर की फ़िल्मों के गानें शामिल होना कोई अचरज की बात नहीं है। राज साहब ने दिए भी तो हैं एक से एक बेहतर गीत मुकेश को गाने के लिए। शैलेन्द्र, हसरत जयपुरी और शंकर जयकिशन ने ये तमाम कालजयी गीतों की रचना की है। कल आप ने सुने थे राम गांगुली की बनाई धुन पर राज कपूर की पहली निर्मित व निर्देशित फ़िल्म 'आग' का गीत। इस फ़िल्म के बाद राज कपूर ने अपनी नई टीम बनायी थी और उपर्युक्त नाम उस टीम में शामिल हुए थे। इस टीम के नाम आज जो गीत हम कर रहे हैं वह है सन् १९६४ की फ़िल्म 'संगम' का। 'संगम' राज कपूर की फ़िल्मोग्राफ़ी का एक ज़रूरी नाम है, जिसने सफलता के कई झंडे गाढ़े। जहाँ तक फ़िल्म-फ़ेयर पुरस्कार की बात है, इस फ़िल्म की नायिका वैजयंतीमाला को सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का पुरस्कार मिला और राजेन्द्र कुमार को सर्वश्रेष्ठ सह-अभिनेता का पुरस्कार। राज कपूर को सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का पुरस्कार नहीं मिल पाया क्योंकि वह पुरस्कार उस साल दिया गया था दिलीप कुमार को फ़िल्म 'लीडर' के लिए। दोस्तों, फ़िल्म 'संगम'

जीना यहाँ मरना यहाँ, इसके सिवा जाना कहाँ....वो आवाज़ जिसने दी हर दिल को धड़कने की वजह- मुकेश

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 184 "क ल खेल में हम हों न हों गर्दिश में तारे रहेंगे सदा, भूलोगे तुम भूलेंगे वो, पर हम तुम्हारे रहेंगे सदा"। वाक़ई मुकेश जी के गानें हमारे साथ सदा रहे हैं, और आनेवाले समय में भी ये हमारे साथ साथ चलेंगे, हमारे सुख और दुख के साथी बनकर, क्योंकि इसी गीत के मुखड़े में उन्होने ही कहा है कि "जीना यहाँ मरना यहाँ इसके सिवा जाना कहाँ, जी चाहे जब हमको आवाज़ दो, हम हैं वहीं हम थे जहाँ"। मुकेश जी को गये ३५ साल हो गए हैं ज़रूर लेकिन उनके गानें जिस तरह से हर रोज़ कहीं न कहीं से सुनाई दे जाते हैं, इससे एक बात साफ़ है कि मुकेश जी कहीं नहीं गए हैं, वो तो हमारे साथ हैं हमेशा हमेशा से। दोस्तों, आज है २७ अगस्त, यानी कि मुकेश जी का स्मृति दिवस। इस अवसर पर हम 'हिंद युग्म' की तरफ़ से उन्हे दे रहे हैं भावभीनी श्रद्धांजली। '१० गीत जो मुकेश को थे प्रिय' लघु शृंखला के अंतर्गत इन दिनों आप मुकेश जी के पसंदीदा १० गीत सुन रहे हैं। आज जैसा कि आप को पता चल ही गया है कि हम सुनवा रहे हैं फ़िल्म 'मेरा नाम जोकर' से "जीना यहाँ मरना यहाँ"। दोस्तों

सजन रे झूठ मत बोलो खुदा के पास जाना है...शायद ये गीत काफी करीब था मुकेश की खुद की सोच से

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 181 "ह म छोड़ चले हैं महफ़िल को, याद आए कभी तो मत रोना, इस दिल को तसल्ली दे लेना, घबराए कभी तो मत रोना।" आज से लगभग ३५ साल पहले, २७ अगस्त १९७६ को, दुनिया की इस महफ़िल को हमेशा के लिए छोड़ गए थे फ़िल्म जगत के सुप्रसिद्ध पार्श्व गायक और एक बेहतरीन इंसान मुकेश। मुकेश उस आवाज़ का नाम है जिसमें है दर्द, मोहब्बत, और मस्ती भी। आज उनके गए ३५ साल हो गए हैं, लेकिन उनके गाए अनगिनत नग़में आज भी वही ताज़गी लिए हुए है, समय असर नहीं कर पाया है मुकेश के गीतों पर। मुकेश का नाम ज़हन में आते ही सुर लहरियों की पंखुड़ियाँ ख़ुद ब ख़ुद मचलने लग जाती हैं, दुनिया की फिजाओं में ख़ुशबू बिखर जाती है। २७ अगस्त को मुकेश की पुण्यतिथि के उपलक्ष्य पर आज से 'ओल्ड इज़ गोल्ड' में हम शुरु कर रहे हैं मुकेश को समर्पित १० विशेषांकों की एक ख़ास लघु शृंखला '१० गीत जो थे मुकेश को प्रिय'। जी हाँ, ये वो १० गीत हैं, जो मुकेश को बहुत पसंद थे और जिन्हे वो अपने हर शो में गाते थे। इस शृंखला की शुरुआत हम कर रहे हैं जीवन दर्शन पर आधारित फ़िल्म 'तीसरी क़सम' के एक मशहूर गीत से - &

हम मतवाले नौजवान मंजिलों के उजाले...युवा दिलों की धड़कन बनी किशोर कुमार की आवाज़

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 168 ज न्म से लेकर मृत्यु तक आदमी की ज़िंदगी उसे कई पड़ावों से पार करवाता हुआ अंजाम की ओर ले जाती है। इन पड़ावों में एक बड़ा ही सुहाना, बड़ा ही आशिक़ाना, और बड़ा ही मस्ती भरा पड़ाव होता है, जिसे हम जवानी कहते हैं। ज़िंदगी में कुछ बड़ा बनने का ख़्वाब, दुनिया को कुछ कर दिखाने का इरादा, अपने परिवार के लिए बेहतर से बेहतर ज़िंदगी की चाहत हर जवाँ दिल की धड़कनों में बसी होती है। साथ ही होता है हला-गुल्ला, ढ़ेर सारी मस्ती, और बिन पीये ही चढ़ता हुआ नशा। नशा आशिक़ी का, प्यार मोहब्बत का। जी हाँ, जवानी के जस्बों की दास्तान आज सुनिए किशोर दा की सदा-जवाँ आवाज़ में। यह है फ़िल्म 'शरारत' का गीत "हम मतवाले नौजवाँ मंज़िलों के उजाले, लोग करे बदनामी कैसे ये दुनियावाले". सन् १९५९ में बनी फ़िल्म 'शरारत' के निर्देशक थे हरनाम सिंह रावल और मुख्य कलाकार थे किशोर कुमार, मीना कुमारी, राजकुमार और कुमकुम। आप को याद होगा 'ओल्ड इज़ गोल्ड' में इससे पहले हमने आप को किशोर कुमार और मीना कुमारी पर फ़िल्माया हुआ फ़िल्म 'नया अंदाज़' का "मेरी नींदों में त

लिखे जो ख़त तुझे वो तेरी याद में...शशि कपूर का रोमांस और रफी साहब का अंदाज़-ए-बयां

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 156 अ भी दो दिन पहले हम ने आप को प्रेम-पत्र पर लिखा एक मशहूर गीत सुनवाया था फ़िल्म 'संगम' का। रफ़ी साहब का गाया एक और ख़त वाला मशहूर गीत है फ़िल्म 'कन्यादान' का "लिखे जो ख़त तुझे वह तेरी याद में हज़ारों रंग के नज़ारे बन गये"। यह गीत भी उतना ही लोकप्रिय हुआ जितना कि फ़िल्म 'संगम' का गीत। इन दोनों गीतों में कम से कम दो बातें सामान थी, एक तो रफ़ी साहब की आवाज़, और दूसरा शंकर जयकिशन का संगीत। "ये मेरा प्रेम-पत्र" फ़िल्माया गया था राजेन्द्र कुमार पर और फ़िल्म 'कन्यादान' का यह गीत है शशी कपूर के अभिनय से सजा हुआ। जी हाँ, 'दस चेहरे एक आवाज़ - मोहम्मद रफ़ी' के अंतर्गत आज हम जिस चेहरे पर फ़िल्माये गीत से आप का रु-ब-रु करवा रहे हैं, वो शशी कपूर ही हैं। फ़िल्म 'कन्यादान' बनी थी सन् १९६८ में जिसमें शशी कपूर के साथ नायिका की भूमिका में थीं आशा पारेख। मोहन सहगल की यह फ़िल्म एक पारिवारिक सामाजिक फ़िल्म थी जिसका आधार था शादी, झूठ, तथा पुराने और नये ख़यालातों में द्वंद। फ़िल्म तो कामयाब थी ही, उसका गीत संगीत

ये मेरा प्रेम पत्र पढ़ कर के तुम नाराज़ न होना....राजेंद्र कुमार की दरख्वास्त रफी साहब की आवाज़ में

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 154 'ओ ल्ड इज़ गोल्ड' के तहत इन दिनों आप सुन रहें हैं लघु शृंखला 'दस चेहरे एक आवाज़ - मोहम्मद रफ़ी'। अब तक जिन चेहरों से आपका परिचय हुआ है, वो हैं शम्मी कपूर, दिलीप कुमार और सुनिल दत्त। आज का चेहरा भी बहुत ख़ास है क्योंकि इनके भी ज़्यादातर गानें रफ़ी साहब ने ही गाये हैं। इस चेहरे को हम सब जुबिली कुमार, यानी कि राजेन्द्र कुमार के नाम से जानते हैं। रफ़ी साहब और राजेन्द्र कुमार की जोड़ी की अगर बात करें तो जो जो प्रमुख फ़िल्में ज़हन में आती हैं, उनके नाम हैं धूल का फूल, मेरे महबूब, आरज़ू, सूरज, गंवार, दिल एक मंदिर, और आयी मिलन की बेला। लेकिन एक और फ़िल्म ऐसी है जिसमें मुख्य नायक राज कपूर थे, और सह नायक रहे राजेन्द्र कुमार। ज़ाहिर सी बात है कि फ़िल्म के ज़्यादातर गानें मुकेश ने ही गाये होंगे, लेकिन उस फ़िल्म में दो गानें ऐसे थे जो राजेन्द्र कुमार पर फ़िल्माये जाने थे। उनमें से एक गीत तो लता-मुकेश-महेन्द्र कपूर का गाया हुआ था जिसमें राजेन्द्र साहब का प्लेबैक किया महेन्द्र कपूर ने, और दूसरा जो गीत था वह रफ़ी साहब की एकल आवाज़ में था। जी हाँ, यहाँ फ़िल्

ये मेरा दीवानापन है या मोहब्बत का सरूर.... एक सदाबहार गीत मुकेश का गाया

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 148 रो म में एक समय ऐसा था जब यहूदियों के साथ बड़ी ज़्यादतियाँ की जाती थी। फ़िल्म 'यहूदी' की कहानी भी इसी समय को आधार बनाकर लिखी गयी 'पीरियड फ़िल्म' थी। यह कहानी थी एक यहूदी लड़की की, कि किस तरह से उसे एक रोमन राजकुमार से प्यार हो जाता है, और फिर रोमन समाज उस प्यार को क्या अंजाम देता है। बिमल राय निर्देशित यह फ़िल्म आयी थी सन् १९५८ में। फ़िल्म में कई बड़े कलाकार थे जैसे कि सोहराब मोदी (एज़रा), दिलीप कुमार (प्रिंस मारकस), मीना कुमारी (हना), नासिर हुसैन (ब्रूटस) और निगार सुल्ताना (औक्टाविया)। हृषिकेश मुखर्जी ने इस फ़िल्म की एडिटिंग की थी। एक विदेशी पीरियड फ़िल्म होने की वजह से इस फ़िल्म के गीत संगीत की ज़िम्मेदारी एक बहुत बड़ी ज़िम्मेदारी थी। किसी भी पीरियड फ़िल्म में उस समय के संगीत का होना बेहद ज़रूरी हो जाता है वर्ना फ़िल्म की आत्मा ही ख़त्म हो जाती है। और अगर कहानी विदेशी हो तो मामला और भी गम्भीर हो जाता है। इस मामले में यह ज़रूर कहना पड़ेगा कि इस फ़िल्म के संगीतकार शंकर जयकिशन ने गीतों में वही रंग भरने की पूरी पूरी कोशिश की है। इससे पहले शंकर

आजा सनम मधुर चांदनी में हम तुम मिले तो वीराने में भी आ जायेगी बहार....

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 145 १९५६ का साल संगीतकार शंकर जयकिशन के लिए एक बहुत कामयाब साल रहा। इस साल उनके संगीत से सजी फ़िल्में आयी थीं - बसंत बहार, चोरी चोरी, हलाकू, क़िस्मत का खेल, न्यु डेल्ही, पटरानी, और राजहठ। 'क़िस्मत का खेल' को छोड़कर बाक़ी सभी फ़िल्में हिट रहीं। दक्षिण का मशहूर बैनर ए.वी.एम की फ़िल्म थी 'चोरी चोरी' जो अंग्रेज़ी फ़िल्म 'रोमन हौलिडे' पर आधारित थी। अनंत ठाकुर ने फ़िल्म का निर्देशन किया और यह फ़िल्म राज कपूर और नरगिस की जोड़ी की आख़िरी फ़िल्म थी। फ़िल्म की एक और ख़ास बात कि इस फ़िल्म ने संगीतकार जोड़ी शंकर जयकिशन को दिलवाया उनके जीवन का पहला फ़िल्म-फ़ेयर पुरस्कार। शैलेन्द्र और हसरत जयपुरी साहब के गानें थे और मुकेश के बदले मन्ना डे से राज कपूर का पार्श्वगायन करवाया गया, जिसके बारे में मन्ना दा के उद्‍गार हम पहले ही आप तक पहुँचा चुके हैं 'राज कपूर विशेष' के अंतर्गत । आज 'ओल्ड इज़ गोल्ड' में सुनिये 'चोरी चोरी' फ़िल्म से लता मंगेशकर और मन्ना डे का गाया एक बड़ा ही सदाबहार रोमांटिक युगल गीत। चांदनी रात में दो प्यार करनेवाले