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फ़िल्मी प्रसंग - 1: धारावाहिक 'रामायण’ और फ़िल्म ’हिना’ का सम्बन्ध

 

फ़िल्मी प्रसंग - 1

रामायण... रामानन्द सागर... रवीन्द्र जैन... राज कपूर

धारावाहिक 'रामायण’ और फ़िल्म ’हिना’ का सम्बन्ध 



रेडियो प्लेबैक इंडिया’ के नए साप्ताहिक स्तंभ ’फ़िल्मी प्रसंग’ में आप सभी का स्वागत है।  फ़िल्म एवम् फ़िल्म-संगीत निर्माण प्रक्रिया के दौरान घटने वाली रोचक घटनाओं व अन्य पहलुओं से सम्बन्धित दिलचस्प प्रसंग जिनके बारे में जान कर आश्चर्य भी होता है और रोमांच भी। फ़िल्म इतिहासकारों, रेडियो व टेलीविज़न कार्यक्रमों, कलाकारों व कलाकारों के परिवारजनों के सोशल मीडिया पोस्ट्स व उनसे साक्षात्कारों, विभिन्न फ़िल्मी पत्र-पत्रिकाओं जैसे विश्वसनीय माध्यमों से संकलित जानकारियों से सुसज्जित प्रसंग - फ़िल्मी प्रसंग!


इन दिनों दूरदर्शन पर ’रामायण’, ’महाभारत’, ’श्रीकृष्ण’ जैसे पुराने धारावाहिक अन्य सभी चैनलों को TRP में कांटे का टक्कर दे रहा है। ’रामायण' धारावाहिक के लिए रामानन्द सागर और अभिनेताओं की जितनी तारीफ़ें होती रही हैं, इसके गीतकार - संगीतकार रवीन्द्र जैन जी की तरफ़ शायद दर्शकों का उतना ध्यान नहीं गया। ’रामायण’ देखते हुए यह महसूस किया जा सकता है कि हर दृश्य या प्रसंग के लिए रवीन्द्र जैन जी ने गीत लिखे हैं। यह कोई आसान काम नहीं। पौराणिक विषयवस्तु पर गीत लिखने के लिए विषय पर गहन शोध आवश्यक है। इतने सारे गीतों की रचना करना पर्वत समान कार्य है। यह कोई विद्वान व्यक्ति ही कर सकता है। और इस कार्य को उन्होंने सिर्फ़ औपचारिकता के रूप में पूरा नहीं किया, बल्कि एक एक गीत सच में दिल को छू लेता है। यह कहना तनिक भी अतिशयोक्ति नहीं होगी कि किसी भी दृश्य के इम्पैक्ट को बढ़ाने में, अर्थात् दृश्य को और अधिक भावुक और प्रभावशाली बनाने में पार्श्व में चल रहे गीत का महत्वपूर्ण योगदान रहा है।


जहाँ ’रामायण’ के ढेर सारे गीतों की रचना करना रवीन्द्र जैन जी के संगीत सफ़र का एक मील का पत्थर था, वहीं इस वजह से राज कपूर की तत्कालीन निर्माणाधीन फ़िल्म ’हिना’ का ऑफ़र उनके हाथ से जाते-जाते बचा। इस रोचक संस्मरण का उल्लेख रवीन्द्र जैन जी ने विविध भारती के ’उजाले उनकी यादों के’ कार्यक्रम में किया था। वरिष्ठ उद्घोषक अमरकान्त दुबे जी से लम्बी बातचीत के दौरान 27 दिसम्बर 2007 को प्रसारित इस श्रृंखला की नौवी कड़ी में रवीन्द्र जैन जी ने कहा - "फ़िल्म 'हिना' के साथ भी बड़ा मज़ेदार किस्सा हुआ। वो किस्सा आपको बयान करने से पहले मैं सागर साहब को प्रणाम करता हूँ, कल तक हमारे साथ थे, ’रामायण’ जो हमारा महाकाव्य, जिसको उन्होंने घर घर पहुँचाया, अपने नाम के अनुरूप, राम का आनन्द रामानन्द और उसका सागर, आनन्द का सागर, है ना! राम के आनन्द का सागर बहाने वाले, घर घर पहुँचाने वाले रामानन्द सागर, उनका यह धारावाहिक मैं कर रहा था। तो उनका एक गाना रिकॉर्ड करके उसी दिन फिर मैंने वो गाना सुनाया राज कपूर साहब को। और वो गाना था, सिचुएशन बहुत अजीब थी कि कैकेयी और भरत के बीच में था, भरत ने फिर कभी माँ नहीं बुलाया उनको, तो उनकी आपस में बातचीत हो रही थी कहीं, एक फ़कीर को हमने यह गाना दिया, बैकग्राउन्ड से गा रहा था, गाने का पहला मुखड़ा सुनाता हूँ... ओ मैया तैने का ठानी मन में, राम सिया भेज दे री बन में... ऐसा मैंने सुनाया राज साहब को और कहा कि आज मैंने यह गाना रिकॉर्ड किया है ’रामायण’ के लिए। तो उन्होंने कहा कि देख देख देख, तूने यह गाना सुनाया ना, मेरे रोंगटे खड़े हो गए, देख देख देख! यह तो मुझे बड़ा अच्छा लगा लेकिन अगले ही पल उन्होंने क्या कहा कि तू अब ’हिना’ नहीं कर सकता। मैंने सोचा कि मर गए, यह क्या हो गया! मेरे बड़ा मन में था कि ये इतना बड़ा प्रोजेक्ट मेरे हाथ से चला जाएगा। तो एक दिन मुझे इनका फ़ोन आया, जो राज साहब के यहाँ प्रोडक्शन देखते थे, उन्होंने कहा कि राज साहब ने कहा है कि उनके साथ श्रीनगर चलना है। तो फिर तबलेवाला मेरा, दिव्य, और मैं, दोनों गए श्रीनगर। कुछ नहीं साहब, कोई ज़िक्र नहीं फ़िल्म का। चलो आज यहाँ शिकारे में घूमो, यहाँ खाना खाओ, चलो ये करो वो करो, ये ही सब करते रहे। तो बाद में मुझे पता चला कि ये सारा काम राज साहब ने इसलिए किया ताकि मेरे दिमाग से ’रामायण’ को निकाल दे और ’हिना’ डाल दे। इसके लिए इन्होंने इतनी कोशिशें की, इतना खर्च किया कि मुझे कश्मीर ले गए, लोगों से मिलवाया, कास्ट के जो लोग थे, बनजारे, उनको बुलाया। तो ये सब प्रयत्न था उनका ’हिना’ के लिए।"

इससे साफ़ पता चलता है कि रवीन्द्र जैन जी जितने उद्यमी और ईमानदार गीतकार-संगीतकार थे, उतने ही ईमानदार राज कपूर भी थे अपनी फ़िल्म के प्रति। इन दोनों महान कलाकारों ने अपने अपने काम से ज़रा सा भी समझौता नहीं किया। और ’रामायण’ में रवीन्द्र जैन जी का जो अनमोल योगदान है, उतना ही लोकप्रिय रहा ’हिना’ फ़िल्म का गीत-संगीत भी। इन दोनों अद्भुत कलाकारों को सलाम!



आपकी राय

’फ़िल्मी प्रसंग’ स्तंभ का आज का यह अंक आपको कैसा लगा, हमें ज़रूर बताएँ नीचे टिप्पणी में या soojoi_india@yahoo.co.in के ईमेल पते पर पत्र लिख कर। 


शोध,आलेख व प्रस्तुति : सुजॉय चटर्जी 

रेडियो प्लेबैक इण्डिया 

Comments

बेहद दिलचस्प प्रसंग।

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