Skip to main content

राग बहार : SWARGOSHTHI – 463 : RAG BAHAR







स्वरगोष्ठी – 463 में आज

काफी थाट के राग – 7 : राग बहार

उस्ताद राशिद खाँ से राग बहार में एक खयाल और कुन्दनलाल सहगल के जन्मदिन पर उनसे फिल्मी गीत सुनिए




कुन्दनलाल सहगल
उस्ताद राशिद खाँ
“रेडियो प्लेबैक इण्डिया” के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी हमारी श्रृंखला “काफी थाट के राग” की सातवीं कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र, आप सब संगीत प्रेमियों का हार्दिक स्वागत करता हूँ। भारतीय संगीत के अन्तर्गत आने वाले रागों का वर्गीकरण करने के लिए मेल अथवा थाट व्यवस्था है। भारतीय संगीत में सात शुद्ध, चार कोमल और एक तीव्र अर्थात कुल बारह स्वरों का प्रयोग होता है। एक राग की रचना के लिए इन बारह स्वरों में से कम से कम पाँच स्वर का होना आवश्यक होता है। संगीत में थाट रागों के वर्गीकरण की पद्धति है। सप्तक के बारह में से मुख्य सात स्वरों के क्रमानुसार उस समुदाय को थाट कहते हैं, जिससे राग उत्पन्न होते हों। थाट को मेल भी कहा जाता है। दक्षिण भारतीय संगीत पद्धति में 72 मेल प्रचलित हैं, जबकि उत्तर भारतीय संगीत पद्धति में 10 थाट का प्रयोग किया जाता है। इसका प्रचलन पण्डित विष्णु नारायण भातखण्डे जी ने प्रारम्भ किया था। वर्तमान समय में रागों के वर्गीकरण के लिए यही पद्धति प्रचलित है। भातखण्डे जी द्वारा प्रचलित ये दस थाट हैं; कल्याण, बिलावल, खमाज, भैरव, पूर्वी, मारवा, काफी, आसावरी, तोड़ी और भैरवी। इन सभी प्रचलित और अप्रचलित रागों को इन्हीं दस थाट के अन्तर्गत सम्मिलित किया गया है। भारतीय संगीत में थाट स्वरों के उस समूह को कहते हैं जिससे रागों का वर्गीकरण किया जा सकता है। पन्द्रहवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में 'राग तरंगिणी’ ग्रन्थ के लेखक लोचन कवि ने रागों के वर्गीकरण की परम्परागत 'ग्राम और मूर्छना प्रणाली’ का परिमार्जन कर मेल अथवा थाट प्रणाली की स्थापना की। लोचन कवि के अनुसार उस समय सोलह हज़ार राग प्रचलित थे। इनमें 36 मुख्य राग थे। सत्रहवीं शताब्दी में थाट के अन्तर्गत रागों का वर्गीकरण प्रचलित हो चुका था। थाट प्रणाली का उल्लेख सत्रहवीं शताब्दी के ‘संगीत पारिजात’ और ‘राग विबोध’ नामक ग्रन्थों में भी किया गया है। लोचन द्वारा प्रतिपादित थाट प्रणाली का प्रयोग लगभग तीन सौ वर्षों तक होता रहा। उन्नीसवीं शताब्दी के अन्तिम और बीसवीं शताब्दी के प्रारम्भिक दशकों में पण्डित भातखण्डे ने भारतीय संगीत के बिखरे सूत्रों को न केवल संकलित किया बल्कि संगीत के कई सिद्धान्तों का परिमार्जन भी किया। भातखण्डे जी द्वारा निर्धारित दस थाट में से सातवाँ थाट काफी है। इस श्रृंखला में हम काफी थाट के रागों पर क्रमशः चर्चा कर रहे हैं। प्रत्येक थाट का एक आश्रय अथवा जनक राग होता है और शेष जन्य राग कहलाते हैं। आपके लिए इस श्रृंखला में हम काफी थाट के जनक और जन्य रागों पर चर्चा कर रहे हैं। आज के अंक में काफी थाट के जन्य राग बहार पर चर्चा करेंगे। आज श्रृंखला की सातवीं कड़ी में पहले हम आपको सुप्रसिद्ध गायक उस्ताद राशिद खाँ से राग बहार में निबद्ध खयाल का रसास्वादन करा रहे हैं और फिर इसी राग पर आधारित 1943 में प्रदर्शित फिल्म “तानसेन” से एक गीत कुन्दनलाल सहगल के स्वर में प्रस्तुत करेंगे। इसी सप्ताह 11 अप्रैल को सहगल की जयन्ती है। फिल्म के संगीतकार खेमचन्द्र प्रकाश हैं।


राग बहार का सम्बन्ध काफी थाट से माना जाता है। इस राग के आरोह में ऋषभ स्वर और अवरोह में धैवत स्वर वर्जित होता है। इस राग की जाति षाडव-षाडव होती है। इसमें गान्धार कोमल तथा दोनों निषाद का प्रयोग किया जाता है। शेष स्वर शुद्ध प्रयोग किये जाते हैं। राग का वादी स्वर मध्यम और संवादी स्वर षडज होता है। मध्यरात्रि में राग बहार के गाने-बजाने की परम्परा है। किन्तु यह ऋतु प्रधान राग है। बसन्त ऋतु में यह राग किसी भी समय गाया या बजाया जा सकता है। राग बहार में निबद्ध गीतों में बसन्त ऋतु का वर्णन मिलता है। इस राग का उल्लेख किसी भी प्राचीन ग्रन्थ में नहीं मिलता। वस्तुतः इस राग की रचना मध्यकाल में हुई है। वास्तव में यह राग तीन रागों; बागेश्री, अड़ाना और मियाँ मल्हार के मिश्रण से बना है। स्वयं भातखण्डे जी ने “क्रमिक पुस्तक माला” के चौथे भाग में राग बहार के लक्षण गीत में लिखा है; “बागेश्री, मल्हार सुम्मिलत...सुर अड़ाना बीच चमकत...”। राग बहार उत्तरांग प्रधान राग है। इसका चलन अधिकतर सप्तक के उत्तर अंग में तथा तार सप्तक में होता है। इसके आरोह में पंचम तथा अवरोह में गान्धार स्वर वक्र होते है। इस राग की प्रकृति चंचल है, अतः इसमें बड़ा खयाल तथा मसीतखानी गते कम सुनने को मिलती है। राग बहार के शास्त्रीय स्वरूप को समझने के लिए अब हम आपको उस्ताद राशिद खाँ के स्वर में इस राग में निबद्ध तीन ताल की एक रचना सुनवा रहे हैं, जिसके बोल हैं; “मतवारी कोयलिया डार डार...”। इसे हम "यूट्यूब" के सौजन्य से वीडियो माध्यम में प्रस्तुत कर रहे हैं।

राग बहार : “मतवारी कोयलिया डार डार...” : उस्ताद राशिद खाँ


उपरोक्त रचना में बसन्त ऋतु का चित्रण है। इस सप्ताह 11 अप्रैल को सुविख्यात गायक / अभिनेता कुन्दनलाल सहगल (के.एल. सहगल) की जयन्ती है। उनका जन्म इसी दिन वर्ष 1904 में हुआ था। उन्हीं के गाये गीतों में से राग बहार पर आधारित एक गीत हमने चुना है। इस गीत का चयन करने और उसे उपलब्ध कराने में हमे “फिल्म संगीत में रागों का योगदान” विषयक शोधकर्ता व संगीत के कई पुस्तकों के लेखक कन्हैयालाल पाण्डेय (के.एल. पाण्डेय) का सहयोग प्राप्त हुआ है। 1943 में सहगल के अभिनय और गायकी से सजी एक उल्लेखनीय फिल्म “तानसेन” का प्रदर्शन हुआ था। फिल्म संगीत के सुप्रसिद्ध इतिहासकार सुजॉय चटर्जी लिखते है; “रणजीत मूवीटोन’ के बैनर तले निर्मित ‘तानसेन’ ने न केवल खेमचन्द प्रकाश की प्रतिभा पर स्वर्णमुहर लगायी बल्कि संगीत सम्राट तानसेन के व्यक्तित्व और सुरसाधना को साकार करने में पूरा-पूरा न्याय किया। ध्रुवपद शैली और राजस्थानी लोक-संगीत, इन दोनों का प्रयोग करते हुए खेमचन्द ने इस फ़िल्म के गीतों की रचना की जिनमें राग-रागिनियों की सुमधुर छटा सुनने को मिली। शंकरा, मेघ मल्हार, दीपक, सारंग, दरबारी, तिलक कामोद और मियाँ मल्हार जैसे रागों का प्रयोग कर एक ऐसा सुरीला समा बाँधा जो आज तक बन्धा हुआ है अच्छे संगीत के रसिकों के मन में। तानसेन के किरदार को साकार करने के लिए कुन्दनलाल सहगल से बेहतर उस समय के नायकों में और कौन हो सकता था! एक तरफ़ सहगल तो उनकी नायिका बनीं एक और श्रेष्ठ गायिका-अभिनेत्री ख़ुर्शीद। हालाँकि फ़िल्म में कुल 12 गीत थे, पर केवल एक ही गीत इन दोनों ने युगल स्वरों में गाया। फ़िल्म के गीत लिखे पण्डित इन्द्र और डी. एन. मधोक ने। सहगल के एकल स्वर में गाये राग शंकरा आधारित “रुमझुम रुमझुम चाल तिहारी”, राग दीपक आधारित “दीया जलाओ जगमग जगमग”, राग कल्याण में उस्ताद अल्लादिया ख़ाँ की बन्दिशों पर आधारित “सप्त सुरन तीन ग्राम, साधो सब गुनी जन”, राग पीलू आधारित “काहे गुमान करे री गोरी”, राग बहार पर आधारित “बाग लगा दूँ सजनी तोरे नयनन में” जैसे गीत सर्वसाधारण के होठों पर लम्बे समय तक फिरते रहे। उधर ख़ुर्शीद भी पीछे नहीं थीं। राग मेघ मल्हार आधारित “बरसो रे बरसो रे काले बदरवा”, राग सारंग आधारित “घटा घनघोर मोर मचावे शोर”, “अब राजा भये मोरे बालम” और “हो दुखिया जियरा रोते नैना” जैसे ख़ुर्शीद के गाए गीतों ने भी ख़ूब धूम मचाया। ‘हमराज़ गीत कोश’ में यह जानकारी दी गई है कि संगीतकार बुलो. सी. रानी के अनुसार “हो दुखिया जियरा” की संगीत रचना वास्तव में उन्होंने की थी पर रेकॉर्ड पर उनका नाम नहीं आया। ख़ुर्शीद और सहगल का गाया फ़िल्म का एकमात्र युगल गीत “मोरे बालापन के साथी छैला भूल जैहो ना” भी उतना ही लोकप्रिय हुआ था जो तिलक कामोद पर आधारित था। संगीतकार नौशाद, जो खेमचन्द प्रकाश को अपना गुरु मानते थे, उन्होंने एक बार यह कहा था कि उन्होंने अपनी फ़िल्म ‘बैजू बावरा’ (1952) में ‘तानसेन’ जैसा जादू जगाना चाहा, पर वो उत्कृष्टता की उस ऊँचाई तक नहीं पहुँच सके जहाँ पर उनके गुरु ‘तानसेन’ में पहुँचे थे।” आप सहगल का गाया तीनताल में निबद्ध यह गीत सुनिए और मुझे आज के इस अंक को यहीं विराम देने की अनुमति दीजिए।

राग बहार : “बाग लगा दूँ सजनी...” : कुन्दनलाल सहगल : फिल्म – तानसेन




संगीत पहेली

‘स्वरगोष्ठी’ के 463वें अंक की संगीत पहेली में आज हम आपको वर्ष 1960 में निर्मित किन्तु अप्रदर्शित एक फिल्म के राग आधारित लोकप्रिय गीत का अंश सुनवा रहे हैं। गीत के इस अंश को सुन कर आपको दो अंक अर्जित करने के लिए निम्नलिखित तीन में से कम से कम दो प्रश्नों के सही उत्तर देना आवश्यक हैं। यदि आपको तीन में से केवल एक अथवा तीनों प्रश्नों का उत्तर ज्ञात हो तो भी आप प्रतियोगिता में भाग ले सकते हैं। श्रृंखला के दूसरे सत्र अर्थात 470वें अंक की पहेली का उत्तर प्राप्त होने के बाद तक जिस प्रतिभागी के सर्वाधिक अंक होंगे उन्हें वर्ष के द्वितीय सत्र का विजेता घोषित किया जाएगा। इसके साथ ही पूरे वर्ष के प्राप्तांकों की गणना के बाद वर्ष के अन्त में महाविजेताओं की घोषणा की जाएगी और उन्हें सम्मानित भी किया जाएगा।





1 - इस गीतांश को सुन कर बताइए कि इसमें किस राग की छाया है?

2 – इस गीत में प्रयोग किये गए ताल को पहचानिए और उसका नाम बताइए।

3 – इस गीत में किस पार्श्वगायक के स्वर है?

आप उपरोक्त तीन मे से किन्हीं दो प्रश्नों के उत्तर केवल swargoshthi@gmail.com या radioplaybackindia9@gmail.com पर ही शनिवार 11 अप्रैल, 2020 की मध्यरात्रि से पूर्व तक भेजें। आपको यदि उपरोक्त तीन में से केवल एक प्रश्न का सही उत्तर ज्ञात हो तो भी आप पहेली प्रतियोगिता में भाग ले सकते हैं। COMMENTS में दिये गए उत्तर मान्य हो सकते हैं, किन्तु उसका प्रकाशन पहेली का उत्तर देने की अन्तिम तिथि के बाद किया जाएगा। फेसबुक पर पहेली का उत्तर स्वीकार नहीं किया जाएगा। विजेताओं के नाम हम उनके शहर/ग्राम, प्रदेश और देश के नाम के साथ “स्वरगोष्ठी” के अंक संख्या 465 में प्रकाशित करेंगे। इस अंक में प्रस्तुत गीत, संगीत या कलाकार के बारे में यदि आप कोई जानकारी या अपने किसी अनुभव को हम सबके बीच बाँटना चाहते हैं तो हम आपका इस संगोष्ठी में स्वागत करते हैं। आप पृष्ठ के नीचे दिये गए COMMENTS के माध्यम से तथा swargoshthi@gmail.com अथवा radioplaybackindia9@gmail.com पर भी अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त कर सकते हैं।


पिछली पहेली के सही उत्तर और विजेता

“स्वरगोष्ठी” के 461वें अंक में हमने आपको 1953 में प्रदर्शित फिल्म “अनारकली” से एक गीत का अंश सुनवा कर आपसे तीन में से कम से कम दो सही उत्तरों की अपेक्षा की थी। पहेली के पहले प्रश्न का सही उत्तर है; राग – बागेश्री, दूसरे प्रश्न का सही उत्तर है; ताल – दादरा तथा तीसरे प्रश्न का सही उत्तर है; स्वर – हेमन्त कुमार और लता मंगेशकर।

‘स्वरगोष्ठी’ की इस पहेली का सही उत्तर देने वाले हमारे विजेता हैं; खण्डवा, मध्यप्रदेश से रविचन्द्र जोशी, कल्याण, महाराष्ट्र से शुभा खाण्डेकर, चेरीहिल न्यूजर्सी से प्रफुल्ल पटेल, अहमदाबाद, गुजरात से मुकेश लाडिया, वोरहीज, न्यूजर्सी से डॉ. किरीट छाया, जबलपुर, मध्यप्रदेश से क्षिति तिवारी और हैदराबाद से डी. हरिणा माधवी। उपरोक्त सभी प्रतिभागियों में से प्रत्येक को दो अंक मिलते हैं। ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ की ओर से आप सभी को हार्दिक बधाई। सभी प्रतिभागियों से अनुरोध है कि अपने पते के साथ कृपया अपना उत्तर ईमेल से ही भेजा करें। इस पहेली प्रतियोगिता में हमारे नए प्रतिभागी भी हिस्सा ले सकते हैं। यह आवश्यक नहीं है कि आपको पहेली के तीनों प्रश्नों के सही उत्तर ज्ञात हो। यदि आपको पहेली का कोई एक उत्तर भी ज्ञात हो तो भी आप इसमें भाग ले सकते हैं।

संवाद


मित्रों, इन दिनों हम सब भारतवासी, कोरोना वायरस से बचाव के लिए स्वैच्छिक लॉकडाउन पर हैं। बस अब कुछ हे दिन शेष बचे हैं। विश्वास कीजिए, हमारे इस अभियान से कोरोना वायरस पराजित होगा। आप सब से अनुरोध है कि लॉकडाउन कि स्थिति में शासकीय निर्देशों का पालन करें और अपने घर में ही सुरक्षित रहें। इस बीच शास्त्रीय संगीत का श्रवण करें और अनेक प्रकार के मानसिक और शारीरिक व्याधियों से स्वयं को मुक्त रखें। विद्वानों ने इसे “नाद योग पद्धति” कहा है। “स्वरगोष्ठी’ की नई-पुरानी श्रृंखलाएँ सुने और पढ़ें। साथ ही अपनी प्रतिक्रिया से हमें अवगत भी कराएँ।

अपनी बात

मित्रों, ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ पर जारी हमारी नई श्रृंखला “काफी थाट के राग” की सातवीं कड़ी में आज आपने काफी थाट के जन्य राग बहार का परिचय प्राप्त किया। साथ ही इस राग के शास्त्रीय स्वरूप को समझने के लिए आपने आज पहले हमने आपको सुप्रसिद्ध संगीतज्ञ उस्ताद राशिद खाँ से राग बहार में निबद्ध एक खयाल का रसास्वादन कराया और फिर इसी राग पर आधारित 1943 में प्रदर्शित एक फिल्म “तानसेन” से ऋतु प्रधान एक गीत कुन्दनलाल सहगल के स्वर में प्रस्तुत किया। गीतकार पण्डित इन्द्र हैं और फिल्म के संगीतकार खेमचन्द्र प्रकाश हैं। कुछ तकनीकी समस्या के कारण हम अपने फेसबुक के मित्र समूह पर “स्वरगोष्ठी” का लिंक साझा नहीं कर पा रहे हैं। सभी संगीत अनुरागियों से अनुरोध है कि हमारी वेबसाइट http://radioplaybackindia.com अथवा http://radioplaybackindia.blogspot.com पर क्लिक करके हमारे सभी साप्ताहिक स्तम्भों का अवलोकन करते रहें। “स्वरगोष्ठी” के वेब पेज के दाहिनी ओर निर्धारित स्थान पर अपना ई-मेल आईडी अंकित कर आप हमारे सभी पोस्ट को नियमित रूप से अपने ई-मेल पर प्राप्त कर सकते है। “स्वरगोष्ठी” की पिछली कड़ियों के बारे में हमें अनेक पाठकों की प्रतिक्रिया लगातार मिल रही है। हमें विश्वास है कि हमारे अन्य पाठक भी “स्वरगोष्ठी” के प्रत्येक अंक का अवलोकन करते रहेंगे और अपनी प्रतिक्रिया हमें भेजते रहेंगे। आज के इस अंक अथवा श्रृंखला के बारे में यदि आपको कुछ कहना हो तो हमें अवश्य लिखें। यदि आपका कोई सुझाव या अनुरोध हो तो हमें swargoshthi@gmail.com अथवा radioplaybackindia9@gmail.com पर अवश्य लिखिए। अगले अंक में रविवार को प्रातः सात बजे “स्वरगोष्ठी” के इसी मंच पर हम एक बार फिर संगीत के सभी अनुरागियों का स्वागत करेंगे।


प्रस्तुति : कृष्णमोहन मिश्र  



रेडियो प्लेबैक इण्डिया 
  राग बहार : SWARGOSHTHI – 463 : RAG BAHAR : 5 अप्रैल, 2020 

Comments

Popular posts from this blog

सुर संगम में आज -भारतीय संगीताकाश का एक जगमगाता नक्षत्र अस्त हुआ -पंडित भीमसेन जोशी को आवाज़ की श्रद्धांजली

सुर संगम - 05 भारतीय संगीत की विविध विधाओं - ध्रुवपद, ख़याल, तराना, भजन, अभंग आदि प्रस्तुतियों के माध्यम से सात दशकों तक उन्होंने संगीत प्रेमियों को स्वर-सम्मोहन में बाँधे रखा. भीमसेन जोशी की खरज भरी आवाज का वैशिष्ट्य जादुई रहा है। बन्दिश को वे जिस माधुर्य के साथ बदल देते थे, वह अनुभव करने की चीज है। 'तान' को वे अपनी चेरी बनाकर अपने कंठ में नचाते रहे। भा रतीय संगीत-नभ के जगमगाते नक्षत्र, नादब्रह्म के अनन्य उपासक पण्डित भीमसेन गुरुराज जोशी का पार्थिव शरीर पञ्चतत्त्व में विलीन हो गया. अब उन्हें प्रत्यक्ष तो सुना नहीं जा सकता, हाँ, उनके स्वर सदियों तक अन्तरिक्ष में गूँजते रहेंगे. जिन्होंने पण्डित जी को प्रत्यक्ष सुना, उन्हें नादब्रह्म के प्रभाव का दिव्य अनुभव हुआ. भारतीय संगीत की विविध विधाओं - ध्रुवपद, ख़याल, तराना, भजन, अभंग आदि प्रस्तुतियों के माध्यम से सात दशकों तक उन्होंने संगीत प्रेमियों को स्वर-सम्मोहन में बाँधे रखा. भीमसेन जोशी की खरज भरी आवाज का वैशिष्ट्य जादुई रहा है। बन्दिश को वे जिस माधुर्य के साथ बदल देते थे, वह अनुभव करने की चीज है। 'तान' को वे अपनी चे

‘बरसन लागी बदरिया रूमझूम के...’ : SWARGOSHTHI – 180 : KAJARI

स्वरगोष्ठी – 180 में आज वर्षा ऋतु के राग और रंग – 6 : कजरी गीतों का उपशास्त्रीय रूप   उपशास्त्रीय रंग में रँगी कजरी - ‘घिर आई है कारी बदरिया, राधे बिन लागे न मोरा जिया...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी लघु श्रृंखला ‘वर्षा ऋतु के राग और रंग’ की छठी कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र एक बार पुनः आप सभी संगीतानुरागियों का हार्दिक स्वागत और अभिनन्दन करता हूँ। इस श्रृंखला के अन्तर्गत हम वर्षा ऋतु के राग, रस और गन्ध से पगे गीत-संगीत का आनन्द प्राप्त कर रहे हैं। हम आपसे वर्षा ऋतु में गाये-बजाए जाने वाले गीत, संगीत, रागों और उनमें निबद्ध कुछ चुनी हुई रचनाओं का रसास्वादन कर रहे हैं। इसके साथ ही सम्बन्धित राग और धुन के आधार पर रचे गए फिल्मी गीत भी सुन रहे हैं। पावस ऋतु के परिवेश की सार्थक अनुभूति कराने में जहाँ मल्हार अंग के राग समर्थ हैं, वहीं लोक संगीत की रसपूर्ण विधा कजरी अथवा कजली भी पूर्ण समर्थ होती है। इस श्रृंखला की पिछली कड़ियों में हम आपसे मल्हार अंग के कुछ रागों पर चर्चा कर चुके हैं। आज के अंक से हम वर्षा ऋतु की

काफी थाट के राग : SWARGOSHTHI – 220 : KAFI THAAT

स्वरगोष्ठी – 220 में आज दस थाट, दस राग और दस गीत – 7 : काफी थाट राग काफी में ‘बाँवरे गम दे गयो री...’  और  बागेश्री में ‘कैसे कटे रजनी अब सजनी...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी नई लघु श्रृंखला ‘दस थाट, दस राग और दस गीत’ की सातवीं कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र, आप सब संगीत-प्रेमियों का हार्दिक अभिनन्दन करता हूँ। इस लघु श्रृंखला में हम आपसे भारतीय संगीत के रागों का वर्गीकरण करने में समर्थ मेल अथवा थाट व्यवस्था पर चर्चा कर रहे हैं। भारतीय संगीत में सात शुद्ध, चार कोमल और एक तीव्र, अर्थात कुल 12 स्वरों का प्रयोग किया जाता है। एक राग की रचना के लिए उपरोक्त 12 में से कम से कम पाँच स्वरों की उपस्थिति आवश्यक होती है। भारतीय संगीत में ‘थाट’, रागों के वर्गीकरण करने की एक व्यवस्था है। सप्तक के 12 स्वरों में से क्रमानुसार सात मुख्य स्वरों के समुदाय को थाट कहते है। थाट को मेल भी कहा जाता है। दक्षिण भारतीय संगीत पद्धति में 72 मेल का प्रचलन है, जबकि उत्तर भारतीय संगीत में दस थाट का प्रयोग किया जाता है। इन दस थाट