स्वरगोष्ठी – 401 में आज
सभी पाठकों और श्रोताओं का नववर्ष 2019 के पहले अंक में अभिनन्दन
महाविजेताओं की प्रस्तुतियाँ – 1
महाविजेता शुभा खाण्डेकर, विजया राजकोटिया और डॉ. किरीट छाया के सम्मान में उनकी प्रस्तुतियाँ
विजया राजकोटिया |
शुभा खाण्डेकर |
उस्ताद बिस्मिल्लाह खाँ |
“नये
साल के इस पहले रविवार की सुहानी सुबह में मैं, सुजॉय चटर्जी, आप सभी का
'आवाज़' पर स्वागत करता हूँ। यूँ तो हमारी मुलाक़ात नियमित रूप से 'ओल्ड
इज़ गोल्ड' पर होती रहती है, लेकिन अब से मैं 'ओल्ड इज़ गोल्ड' के अलावा हर
रविवार की सुबह भी आपसे मुख़ातिब रहूँगा इस नये स्तम्भ में जिसकी हम आज से
शुरुआत कर रहे हैं। दोस्तों, प्राचीनतम संगीत की अगर हम बात करें तो वो है
हमारा शास्त्रीय संगीत, जिसका उल्लेख हमें वेदों में मिलता है। चार वेदों
में सामवेद में संगीत का व्यापक वर्णन मिलता है। इन वैदिक ऋचाओं को सामगान
के रूप में गाया जाता था। फिर उससे 'जाति' बनी और फिर आगे चलकर 'राग' बनें।
ऐसी मान्यता है कि ये अलग-अलग राग हमारे अलग-अलग 'चक्र' (ऊर्जाविन्दु) को
प्रभावित करते हैं। ये अलग-अलग राग आधार बनें शास्त्रीय संगीत का और
युगों-युगों से इस देश के सुरसाधक इस परम्परा को निरन्तर आगे बढ़ाते चले जा
रहे हैं, हमारी संस्कृति को सहेजते हुए बढ़े जा रहे हैं। संगीत की तमाम
धाराओं में सबसे महत्वपूर्ण धारा है शास्त्रीय अर्थात रागदारी संगीत। बाकी
जितनी तरह का संगीत है, उन सबमें उच्च स्थान पर है अपना रागदारी संगीत। तभी
तो संगीत की शिक्षा का अर्थ ही है शास्त्रीय संगीत की शिक्षा। अक्सर
साक्षात्कारों में कलाकार इस बात का ज़िक्र करते हैं कि एक अच्छा गायक या
संगीतकार बनने के लिए शास्त्रीय संगीत का सीखना बेहद ज़रूरी है। तो
दोस्तों, आज से 'आवाज़' पर पहली बार एक ऐसा साप्ताहिक स्तम्भ शुरु हो रहा
है जो समर्पित है, भारतीय परम्परागत शास्त्रीय संगीत को। गायन और वादन,
यानी साज़ और आवाज़, दोनों को ही बारी-बारी से इसमें शामिल किया जाएगा।
भारतीय संगीत से इस स्तम्भ की हम शुरुआत कर रहे हैं, लेकिन आगे चलकर अन्य
संगीत शैलियों को भी शामिल करने की उम्मीद रखते हैं।”
तो
यह सन्देश हमारे इस स्तम्भ के प्रवेशांक का था। ‘स्वरगोष्ठी’ की कुछ और
पुरानी यादों को ताज़ा करने से पहले आज का का चुना हुआ संगीत सुनते हैं। आज
‘स्वरगोष्ठी’ नौवें वर्ष में प्रवेश कर रहा है। हम इस पावन अवसर पर
मंगलवाद्य शहनाई का वादन प्रस्तुत कर रहे हैं। इस अंक में हम देश के
सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘भारतरत्न’ से अलंकृत उस्ताद बिस्मिल्लाह खाँ की
शहनाई पर बजाया राग भैरवी प्रस्तुत कर रहे हैं।
मंगलध्वनि : राग भैरवी : शहनाई वादन : उस्ताद बिस्मिल्लाह खाँ और साथी
हमारे
दल के सर्वाधिक कर्मठ साथी सुजोय चटर्जी ने ‘स्वरगोष्ठी’ स्तम्भ की नीव
रखी थी। उद्देश्य था, शास्त्रीय और उपशास्त्रीय संगीत-प्रेमियों को एक ऐसा
मंच देना जहाँ किसी कलासाधक, प्रस्तुति अथवा किसी संगीत-विधा पर हम आपसे
संवाद कायम कर सकें और आपसे विचारों का आदान-प्रदान कर सकें। आज के 401वें
अंक के माध्यम से हम कुछ पुरानी स्मृतियों को ताज़ा कर रहे हैं। जैसा कि
पहले ही उल्लेख किया गया है कि इस स्तम्भ की बुनियाद सुजॉय चटर्जी ने रखी
थी और आठवें अंक तक अपने आलेखों के माध्यम से अनेक संगीतज्ञों व्यक्तित्व
और कृतित्व से हमें रससिक्त किया था। नौवें अंक से हमारे एक नये साथी सुमित
चक्रवर्ती हमसे जुड़े और आपके अनुरोध पर उन्होने शास्त्रीय, उपशास्त्रीय
संगीत के साथ लोक संगीत को भी ‘सुर संगम’ से जोड़ा। सुमित जी ने इस स्तम्भ
के 30वें अंक तक आपके लिए बहुविध सामग्री प्रस्तुत की, जिसे आप सब
पाठकों-श्रोताओं ने सराहा। इसी बीच मुझ अकिंचन को भी कई विशेष अवसरों पर
कुछ अंक प्रस्तुत करने का अवसर मिला। सुमित जी की पारिवारिक और व्यावसायिक
व्यस्तता के कारण 31वें अंक से ‘सुर संगम’ का पूर्ण दायित्व मेरे साथियों
ने मुझे सौंपा। मुझ पर विश्वास करने के लिए अपने साथियों का मैं आभारी हूँ।
साथ ही अपने पाठकों-श्रोताओं का अनमोल प्रोत्साहन भी मुझे मिला, जो आज भी
जारी है।
बीते
वर्ष के अंकों में ‘स्वरगोष्ठी’ से असंख्य पाठक, श्रोता, समालोचक और
संगीतकार जुड़े। हमें उनका प्यार, दुलार और मार्गदर्शन मिला। उन सभी का
नामोल्लेख कर पाना सम्भव नहीं है। ‘स्वरगोष्ठी’ का सबसे रोचक भाग प्रत्येक
अंक में प्रकाशित होने वाली ‘संगीत पहेली’ है। इस पहेली में बीते वर्ष के
दौरान अनेक संगीत-प्रेमियों ने सहभागिता की। इन सभी उत्तरदाताओं को उनके
सही उत्तर पर प्रति सप्ताह अंक दिये गए। वर्ष के अन्त में सभी प्राप्तांकों
की गणना की की गई। 399वें अंक तक की गणना की जा चुकी है। इनमें से
सर्वाधिक अंक प्राप्त करने वाले छः महाविजेताओं का चयन कर लिया गया है। आज
के इस अंक में हम आपका परिचय पहेली के दूसरे, तीसरे और चौथे महाविजेताओं से
करा रहे हैं। पहले और दूसरे महाविजेताओ की घोषणा और उनकी प्रस्तुतियों का
रसास्वादन हम अगले अंक में कराएँगे।
पहेली
प्रतियोगिता में चतुर्थ स्थान को सुशोभित करने वाली कल्याण, महाराष्ट्र
निवासी शुभा खाण्डेकर को संगीत की प्राथमिक शिक्षा दिल्ली में श्री चतुर
सेन जी से मिली। ये संस्कार आज 50 साल बाद भी शुभा जी में जीवित हैं। इनके
माता-पिता दोनों संगीतप्रेमी हैं। इनके घर में चौबीस घण्टे रेडियो पर अच्छा
संगीत सुनने को मिलता था। शास्त्रीय, उपशास्त्रीय के साथ-साथ हिन्दी और
मराठी फिल्म संगीत, मराठी नाट्य संगीत और भावगीत तथा भारत के हर प्रदेश के
लोकसंगीत भी सुनती रही हैं। उत्तर प्रदेश, बिहार, पंजाब और महाराष्ट्र के
लोकगीतों से खास लगाव रहा। कर्णाटक संगीत में ताल-वाद्य-कचेरी इन्हें बहुत
अच्छी लगी। शुभा जी का गान्धर्व महाविद्यालय की तीन परीक्षा पास करने के
बाद शिक्षा और रियाज़ तो छूट गया पर श्रवण-भक्ति जारी रही। राष्ट्रीय स्तर
का ऐसा कोई गायक या वादक नहीं, जिन्हें उन्होने महफ़िल में सामने बैठकर नहीं
सुना। 35 साल बाद मुम्बई में उन्हें फिर से गायन सीखने का मौका मिला,
श्रीमती मालती कामत जी से, जो कि श्रीमती किशोरी आमोणकरजी की शिष्या हैं।
परन्तु यह सिलसिला भी एक साल तक ही चल पाया। शुभा जी गाना तो अब भी चाहती
हैं पर उनके अनुसार अब सम्भव नहीं। इतिहास में दिल्ली विश्वविद्यालय से
एम्.ए. करने के बाद शुभा खाण्डेकर की रूचि पुरातत्त्व शास्त्र में हुई।
पुणे के डेक्कन कॉलेज से इस विषय में डाक्ट्रेट करने का प्रयास विफल होने
के बाद उन्होने कई साल मुम्बई में The Economic Times और अन्य अँग्रेजी
दैनिकों के news desk पर काम किया। उन्होने “अमर चित्र कथा” में ऐतिहासिक
विषयों पर scripts लिखे. इतिहास और पुरातत्त्वशास्त्र पर आधारित उनके लेख
प्रकाशित होते रहे हैं। 2017 में उनकी पुरातत्त्व सम्बन्धित पुस्तक
ArchaeoGiri : A Bridge Between the Archaeologist and the Common Man
दिल्ली के कावेरी बुक्स द्वारा प्रकाशित हो चुकी है। वर्तमान में शुभा
खाण्डेकर कल्याण, महाराष्ट्र में रहती हैं और भ्रमण के लिए पुरातत्त्वीय
स्थल या हिमालय की ओर निकल जाती हैं। बाकी समय पढ़ती हैं, लिखती हैं,
कार्टून्स बनाती हैं और हाथ की कढाई करती हैं, लेकिन यह सब करते समय संगीत
निरन्तर सुनती रहती हैं। “स्वरगोष्ठी” की पहेली प्रतियोगिता में शुभा जी ने
368वें अंक की पहेली से भाग लेना आरम्भ किया था। अपनी प्रतिभा और
संगीत-ज्ञान के बल पर उन्होने वर्ष के अन्त तक 58 अंक अर्जित कर चौथी
महाविजेता बनने का गौरव प्राप्त किया। आज के इस अंक के माध्यम से उन्हें
महाविजेता के रूप में सम्मानित करते हुए हमें अपार हर्ष हो रहा है। आज के
इस अंक में अपनी अभिरुचि का संगीत सुनाने के लिए शुभा खाण्डेकर जी ने आशा
भोसले का गाया हुआ एक मराठी अभंग (भजन) भेजा है, जिसकी असीम मिठास और
भक्तिभाव उन्हें हमेशा संवेदनशील बना देती है। यह अभंग सन्त जनाबाई (13वीं
शताब्दी) की रचना है।
मराठी अभंग : “येग येग विठाबाई...” : स्वर - आशा भोसले : प्रेषक - शुभा खाण्डेकर
“स्वरगोष्ठी” के अन्तर्गत आयोजित वर्ष 2018 की पहेली प्रतियोगिता में 66 अंक प्राप्त कर तृतीय महाविजेता का सम्मान प्राप्त करने वाली प्रतिभागी हैं, मेरिलैण्ड, अमेरिका से विजया राजकोटिया। पहले विजया जी पेंसिलवेनिया, अमेरिका में निवास करती थीं। संगीत की साधना में पूर्ण समर्पित विजया जी ने लखनऊ स्थित भातखण्डे संगीत महाविद्यालय (वर्तमान में विश्वविद्यालय) से संगीत विशारद की उपाधि प्राप्त की है। बचपन में ही उनकी प्रतिभा को पहचान कर उनके पिता, विख्यात रुद्रवीणा वादक और वीणा मन्दिर के प्राचार्य श्री पी.डी. शाह ने कई तंत्र और सुषिर वाद्यों के साथ-साथ कण्ठ संगीत की शिक्षा भी प्रदान की। श्री शाह की संगीत परम्परा को उनकी सबसे बड़ी सुपुत्री विजया जी ने आगे बढ़ाया। आगे चलकर विजया जी को अनेक संगीत गुरुओं से मार्गदर्शन मिला, जिनमें आगरा घराने के उस्ताद खादिम हुसेन खाँ की शिष्या सुश्री मिनी कापड़िया, पण्डित लक्ष्मण प्रसाद जयपुरवाले, सुश्री मीनाक्षी मुद्बिद्री और सुविख्यात गायिका श्रीमती शोभा गुर्टू प्रमुख नाम हैं। विजया जी संगीत साधना के साथ-साथ ‘क्रियायोग’ जैसी आध्यात्मिक साधना में भी संलग्न रहती हैं। उन्होने अपने गायन का प्रदर्शन मुम्बई, लन्दन, सैन फ्रांसिस्को, साउथ केरोलिना, न्यूजर्सी, और पेंसिलवानिया में किया है। विजया जी पेंसिलवानिया के अपने स्वयं के संगीत विद्यालय में हर आयु के विद्यार्थियों को संगीत की शिक्षा प्रदान कर रही थीं। वर्तमान में मेरीलैंड में रह कर संगीत-सेवा कर रही हैं। ‘स्वरगोष्ठी’ पहेली की महाविजेता के रूप में अब हम आपको विजया जी के स्वर में राग भीमपलासी के स्वर में पिरोया गोस्वामी तुलसीदास का एक भक्तिपद सुनवा रहे हैं। यह पद ग्वालियर घराने के संगीतज्ञ प्रायः प्रस्तुत करते हैं। लीजिए, राग भीमपलासी के स्वरों में भजन सुनिए और विजया जी को महाविजेता बनने पर बधाई दीजिए।
भजन राग भीमपलासी : “कहाँ के पथिक कहाँ किन्हों है गमनवा...” : विजया राजकोटिया
डॉ.किरीट छाया |
राग सोहनी : सितार वादन : पण्डित निखिल बनर्जी : प्रेषक – डॉ. किरीट छाया
संगीत पहेली
‘स्वरगोष्ठी’
के 401 और 402वें अंक में हम वर्ष 2018 की संगीत पहेली के महाविजेताओं को
उन्हीं की प्रस्तुतियों के माध्यम से सम्मानित कर रहे हैं, अतः इस अंक में
हम आपको कोई संगीत पहेली नहीं दे रहे हैं। अगले अंक में हम पुनः एक नई
पहेली के साथ उपस्थित होंगे।
इस
अंक में प्रस्तुत किये गए गीत-संगीत, राग अथवा कलासाधक के बारे में यदि आप
कोई जानकारी या अपने किसी अनुभव को हम सबके बीच बाँटना चाहते हैं तो हम
आपका इस मंच पर स्वागत करते हैं। आप पृष्ठ के नीचे दिये गए COMMENTS के माध्यम से तथा swargoshthi@gmail.com अथवा radioplaybackindia@live.com पर भी अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त कर सकते हैं।
पिछली पहेली के विजेता
‘स्वरगोष्ठी’
के 399वें अंक की संगीत पहेली में हमने आपको 1961 में प्रदर्शित फिल्म
“स्त्री” से एक रागबद्ध फिल्मी गीत का अंश सुनवाया था और आपसे तीन में से
किन्हीं दो प्रश्न का उत्तर पूछा था। पहले प्रश्न का सही उत्तर है- राग – बसन्त, दूसरे प्रश्न का सही उत्तर है- ताल – दादरा तथा तीनताल और तीसरे प्रश्न का सही उत्तर है- स्वर – आशा भोसले, महेन्द्र कपूर और साथी।
वर्ष 2018 की इस अन्तिम पहेली का सही उत्तर देने वाले हमारे विजेता हैं; फीनिक्स, अमेरिका से मुकेश लाडिया, चेरीहिल न्यूजर्सी से प्रफुल्ल पटेल, मेरिलैण्ड, अमेरिका से विजया राजकोटिया, जबलपुर, मध्यप्रदेश से क्षिति तिवारी, वोरहीज, न्यूजर्सी से डॉ. किरीट छाया और हैदराबाद से डी. हरिणा माधवी।
उपरोक्त सभी पाँच प्रतिभागियों को ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ की ओर से
हार्दिक बधाई। सभी प्रतिभागियों से अनुरोध है कि अपने पते के साथ कृपया
अपना उत्तर ई-मेल से ही भेजा करें। इस पहेली प्रतियोगिता में हमारे नये
प्रतिभागी भी हिस्सा ले सकते हैं। यह आवश्यक नहीं है कि आपको पहेली के
तीनों प्रश्नों के सही उत्तर ज्ञात हो। यदि आपको पहेली का कोई एक भी उत्तर
ज्ञात हो तो भी आप इसमें भाग ले सकते हैं।
अपनी बात
मित्रो,
‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर आज
का यह अंक नववर्ष 2019 का पहला अंक था। इस अंक में हमने आपको संगीत पहेली
के दूसरे महाविजेता डॉ. किरीट छाया, तीसरी महाविजेता विजया राजकोटिया और
चौथी महाविजेता शुभा खाण्डेकर से परिचित कराया और उनकी रचनाएँ भी प्रस्तुत
की। अगले अंक में हम आपका परिचय पहेली के प्रथम और द्वितीय स्थान के
महाविजेताओं से कराएँगे। वर्ष 2018 की प्रस्तुतियों को हमारे अनेकानेक
पाठकों ने पसन्द किया है। हम उन सबके प्रति आभार व्यक्त करते हैं।
‘स्वरगोष्ठी’ के विभिन्न अंकों के बारे में हमें पाठकों, श्रोताओं और पहेली
के प्रतिभागियों की अनेक प्रतिक्रियाएँ और सुझाव मिलते हैं। प्राप्त सुझाव
और फरमार्इशों के अनुसार ही हम अपनी आगामी प्रस्तुतियों का निर्धारण करते
हैं। आप भी यदि कोई सुझाव देना चाहते हैं तो आपका ई-मेल swargoshthi@gmail.com पर स्वागत है। अगले रविवार को प्रातः 7 बजे ‘स्वरगोष्ठी’ के अगले अंक के साथ हम उपस्थित होंगे। हमें आपकी प्रतीक्षा रहेगी।
प्रस्तुति : कृष्णमोहन मिश्र
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