Skip to main content

राग कामोद : SWARGOSHTHI – 404 : RAG KAMOD






स्वरगोष्ठी – 404 में आज

कल्याण थाट के राग – 2 : राग कामोद

पण्डित राजन-साजन मिश्र से राग कामोद की बन्दिश और लता मंगेशकर से एक फिल्मी गीत सुनिए




पण्डित राजन और साजन मिश्र
लता मंगेशकर
“रेडियो प्लेबैक इण्डिया” के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी हमारी नई लघु श्रृंखला “कल्याण थाट के राग” के दूसरे अंक में मैं कृष्णमोहन मिश्र, आप सब संगीत-प्रेमियों का हार्दिक स्वागत करता हूँ। भारतीय संगीत के अन्तर्गत आने वाले रागों का वर्गीकरण करने के लिए मेल अथवा थाट-व्यवस्था है। भारतीय संगीत में 7 शुद्ध, 4 कोमल और 1 तीव्र, अर्थात कुल 12 स्वरों का प्रयोग होता है। एक राग की रचना के लिए उपरोक्त 12 स्वरों में से कम से कम 5 स्वरों का होना आवश्यक है। संगीत में थाट रागों के वर्गीकरण की पद्धति है। सप्तक के 12 स्वरों में से क्रमानुसार 7 मुख्य स्वरों के समुदाय को थाट कहते हैं। थाट को मेल भी कहा जाता है। दक्षिण भारतीय संगीत पद्धति में 72 मेल प्रचलित हैं, जबकि उत्तर भारतीय संगीत पद्धति में 10 थाट का प्रयोग किया जाता है। इसका प्रचलन पण्डित विष्णु नारायण भातखण्डे जी ने प्रारम्भ किया था। वर्तमान समय में रागों के वर्गीकरण के लिए यही पद्धति प्रचलित है। भातखण्डे जी द्वारा प्रचलित ये 10 थाट हैं- कल्याण, बिलावल, खमाज, भैरव, पूर्वी, मारवा, काफी, आसावरी, तोड़ी और भैरवी। इन्हीं 10 थाटों के अन्तर्गत प्रचलित-अप्रचलित सभी रागों को सम्मिलित किया गया है। भारतीय संगीत में थाट स्वरों के उस समूह को कहते हैं जिससे रागों का वर्गीकरण किया जा सकता है। पन्द्रहवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में 'राग तरंगिणी’ ग्रन्थ के लेखक लोचन कवि ने रागों के वर्गीकरण की परम्परागत 'ग्राम और मूर्छना प्रणाली’ का परिमार्जन कर मेल अथवा थाट प्रणाली की स्थापना की। लोचन कवि के अनुसार उस समय सोलह हज़ार राग प्रचलित थे। इनमें 36 मुख्य राग थे। सत्रहवीं शताब्दी में थाटों के अन्तर्गत रागों का वर्गीकरण प्रचलित हो चुका था। थाट प्रणाली का उल्लेख सत्रहवीं शताब्दी के ‘संगीत पारिजात’ और ‘राग विबोध’ नामक ग्रन्थों में भी किया गया है। लोचन कवि द्वारा प्रतिपादित थाट प्रणाली का प्रयोग लगभग 300 सौ वर्षों तक होता रहा। उन्नीसवीं शताब्दी के अन्तिम और बीसवीं शताब्दी के प्रारम्भिक दशकों में पण्डित विष्णु नारायण भातखण्डे ने भारतीय संगीत के बिखरे सूत्रों को न केवल संकलित किया बल्कि संगीत के कई सिद्धान्तों का परिमार्जन भी किया। भातखण्डे जी द्वारा निर्धारित दस थाट में से पहला थाट कल्याण है। इस श्रृंखला में हम कल्याण थाट के दस रागों पर क्रमशः चर्चा कर रहे हैं। प्रत्येक थाट का एक आश्रय अथवा जनक राग होता है और शेष जन्य राग कहलाते हैं। आज के अंक में कल्याण थाट के एक जन्य राग “कामोद” पर चर्चा करेंगे। इस राग में पहले सुविख्यात संगीतज्ञ पण्डित राजन और साजन मिश्र के स्वर में इस राग की एक बन्दिश प्रस्तुत कर रहे हैं। इसके बाद इसी राग पर आधारित एक गीत फिल्म “चित्रलेखा” से लता मंगेशकर के स्वर में प्रस्तुत कर रहे हैं।



आज के अंक में हम आपसे राग कामोद पर चर्चा करेंगे। कल्याण थाट और कल्याण अंग से संचालित होने वाले इस राग को कुछ गायक और प्राचीन ग्रन्थकार बिलावल थाट के अन्तर्गत भी मानते हैं। औड़व-सम्पूर्ण जाति के इस राग के आरोह में गान्धार और निषाद स्वर का प्रयोग नहीं किया जाता। तीव्र मध्यम का अल्प प्रयोग केवल आरोह में पंचम के साथ और शुद्ध मध्यम का प्रयोग आरोह और अवरोह दोनों में किया जाता है। इस राग का वादी स्वर पंचम और संवादी स्वर ऋषभ होता है। राग कामोद के आरोह के स्वर हैं; सा, रे, प, म(तीव्र), प, ध, प, नि, ध, सां तथा अवरोह के स्वर हैं; सां, नि, ध, प, म(तीव्र), प, ध, प, ग, म(शुद्ध), रे, सा। राग वर्गीकरण के प्राचीन सिद्धान्तों के अनुसार राग कामोद को राग दीपक की पत्नी माना जाता है। इस राग का गायन-वादन पाँचवें प्रहर अर्थात रात्रि के प्रथम प्रहर में किया जाता है। राग हमीर के समान कामोद राग के वादी और संवादी स्वर रागों के समय सिद्धान्त की दृष्टि से खरा नहीं उतरता। रागों के समय सिद्धान्त के अनुसार जो राग दिन के पूर्व अंग में उपयोग किये जाते हैं, उनका वादी स्वर सप्तक के पूर्व अंग में होना चाहिए। कामोद राग को इस नियम का अपवाद माना गया है, क्योंकि यह रात्रि के प्रथम प्रहर गाया जाता है और इसका वादी स्वर पंचम है। यह स्वर सप्तक के उत्तरांग का एक स्वर है। अब आपको इस राग की एक बन्दिश सुप्रसिद्ध युगल गायक पण्डित राजन मिश्र और साजन मिश्र की आवाज़ में प्रस्तुत कर रहे हैं। राग कामोद की यह अत्यन्त प्रचलित परम्परागत रचना है, जिसके बोल हैं- “एरी जाने न दूँगी...”। इस प्रस्तुति में तबला संगति सुधीर पाण्डेय ने और हारमोनियम संगति महमूद धौलपुरी ने की है।

राग कामोद : ‘एरी जाने न दूँगी...’ : पण्डित राजन मिश्र और साजन मिश्र 



श्रृंगार रस की अभिव्यक्ति के लिए कामोद आदर्श राग है। इस राग में ऋषभ-पंचम स्वरों की संगति अधिक होती है। ऋषभ से पंचम को जाते समय सर्वप्रथम मध्यम से मींड़युक्त झटके के साथ ऋषभ स्वर पर आते हैं और फिर पंचम को जाते हैं। यह ध्यान रखना चाहिए कि इस प्रक्रिया में पंचम के साथ ऋषभ की संगति कभी न हो। राग हमीर और केदार के समान राग कामोद में भी कभी-कभी कोमल निषाद का प्रयोग अवरोह में राग की रंजकता बढ़ाने के लिए किया जाता है। राग कामोद में गान्धार का प्रयोग कभी भी सपाट नहीं बल्कि वक्र प्रयोग होता है। राग हमीर और केदार इसके समप्रकृति राग हैं। इन रागो की चर्चा हम इसी श्रृंखला के आगामी अंकों में करेंगे। ऊपर आपने राग कामोद की जो बन्दिश सुनी है, उस बन्दिश का उपयोग फिल्म में भी हुआ है। सुप्रसिद्ध साहित्यकार भगवतीचरण वर्मा के चर्चित उपन्यास ‘चित्रलेखा’ पर आधारित 1964 में इसी नाम से फिल्म बनी थी, जिसमें यह बन्दिश शामिल की गई थी। फिल्म के गीतकार साहिर लुधियानवी हैं, जिन्होने राग कामोद की मूल पारम्परिक बन्दिश की स्थायी के शब्दों को यथावत रखते हुए अन्तरों में परिवर्तन किया है। फिल्म में यह गीत लता मंगेशकर ने रोशन के संगीत निर्देशन में गाया था। संगीतकार रोशन ने भी साहिर का यह गीत राग कामोद के स्वरों में संगीतबद्ध किया है। अब आप लता मंगेशकर की आवाज़ में राग कामोद की इस खयाल रचना का फिल्मी रूप सुनिए और हमे आज के इस अंक को यहीं विराम देने की अनुमति दीजिए।

राग कामोद : ‘एरी जाने न दूँगी...’ : लता मंगेशकर : फिल्म – चित्रलेखा



संगीत पहेली

“स्वरगोष्ठी” के 404थे अंक की संगीत पहेली में आज हम आपको वर्ष 1957 में प्रदर्शित एक फिल्म के रागबद्ध गीत का अंश सुनवा रहे हैं। गीत के इस अंश को सुन कर आपको दो अंक अर्जित करने के लिए निम्नलिखित तीन में से कम से कम दो प्रश्नों के सही उत्तर देने आवश्यक हैं। यदि आपको तीन में से केवल एक अथवा तीनों प्रश्नों का उत्तर ज्ञात हो तो भी आप प्रतियोगिता में भाग ले सकते हैं। पहेली क्रमांक 410 तक जिस प्रतिभागी के सर्वाधिक अंक होंगे, उन्हें वर्ष 2019 के पहले सत्र का विजेता घोषित किया जाएगा। इसके साथ ही पूरे वर्ष के प्राप्तांकों की गणना के बाद वर्ष के अन्त में महाविजेताओं की घोषणा की जाएगी और उन्हें सम्मानित भी किया जाएगा।





1 – इस गीतांश को सुन कर बताइए कि इस गीत में किस राग का स्पर्श है?

2 – इस गीत में प्रयोग किये गए ताल को पहचानिए और उसका नाम बताइए।

3 – इस गीत में किस पार्श्वगायक के स्वर हैं?

आप उपरोक्त तीन मे से किन्हीं दो प्रश्नों के उत्तर केवल swargoshthi@gmail.com या radioplaybackindia@live.com पर ही शनिवार, 2 फरवरी, 2019 की मध्यरात्रि से पूर्व तक भेजें। आपको यदि उपरोक्त तीन में से केवल एक प्रश्न का सही उत्तर ज्ञात हो तो भी आप पहेली प्रतियोगिता में भाग ले सकते हैं। COMMENTS में दिये गए उत्तर मान्य हो सकते हैं, किन्तु उसका प्रकाशन पहेली का उत्तर देने की अन्तिम तिथि के बाद किया जाएगा। “फेसबुक” पर पहेली का उत्तर स्वीकार नहीं किया जाएगा। विजेता का नाम हम उनके शहर, प्रदेश और देश के नाम के साथ ‘स्वरगोष्ठी’ के अंक संख्या 406 में प्रकाशित करेंगे। इस अंक में प्रस्तुत गीत-संगीत, राग, अथवा कलासाधक के बारे में यदि आप कोई जानकारी या अपने किसी अनुभव को हम सबके बीच बाँटना चाहते हैं तो हम आपका इस संगोष्ठी में स्वागत करते हैं। आप पृष्ठ के नीचे दिये गए COMMENTS के माध्यम से तथा swargoshthi@gmail.com अथवा radioplaybackindia@live.com पर भी अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त कर सकते हैं।


पिछली पहेली के विजेता

‘स्वरगोष्ठी’ क्रमांक 402 की पहेली में हमने आपसे वर्ष 1975 में प्रदर्शित फिल्म “मृगतृष्णा” के एक गीत का एक अंश सुनवा कर तीन प्रश्नों में से पूर्ण अंक प्राप्त करने के लिए कम से कम दो प्रश्नों के सही उत्तर की अपेक्षा की थी। पहेली के पहले प्रश्न का सही उत्तर है; राग – कल्याण अथवा यमन, दूसरे प्रश्न का सही उत्तर है; ताल – रूपकताल और तीसरे प्रश्न का सही उत्तर है; स्वर – मोहम्मद रफी

‘स्वरगोष्ठी’ क्रमांक 402 की पहेली का सही उत्तर देने वाले हमारे विजेता हैं; वोरहीज, न्यूजर्सी से डॉ. किरीट छाया, फीनिक्स, अमेरिका से मुकेश लाडिया, चेरीहिल न्यूजर्सी से प्रफुल्ल पटेल और जबलपुर, मध्यप्रदेश से क्षिति तिवारी। उपरोक्त सभी चार प्रतिभागियों को ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ की ओर से हार्दिक बधाई। सभी प्रतिभागियों से अनुरोध है कि अपने पते के साथ कृपया अपना उत्तर ई-मेल से ही भेजा करें। इस पहेली प्रतियोगिता में हमारे नये प्रतिभागी भी हिस्सा ले सकते हैं। यह आवश्यक नहीं है कि आपको पहेली के तीनों प्रश्नों के सही उत्तर ज्ञात हो। यदि आपको पहेली का कोई एक भी उत्तर ज्ञात हो तो भी आप इसमें भाग ले सकते हैं।


अपनी बात

मित्रों, ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ पर जारी श्रृंखला “कल्याण थाट के राग” की दूसरी कड़ी में आज आपने राग कामोद का परिचय प्राप्त किया। साथ ही इस राग के शास्त्रीय स्वरूप को समझने के लिए सुविख्यात युगल गायक पण्डित राजन और साजन मिश्र इस राग की एक लोकप्रिय बन्दिश का रसास्वादन किया। इसी बन्दिश को ही आधार बना कर 1964 में प्रदर्शित फिल्म “चित्रलेखा” में एक गीत शामिल किया गया था। गीतकार साहिर लुधियानवी बन्दिश के स्थायी को बरकरार रखते हुए अन्तरे जोड़े थे। संगीतकार रोशन ने इस गीत को राग कामोद में ही संगीतबद्ध किया है और इसे लता मंगेशकर ने स्वर दिया है। “स्वरगोष्ठी” पर हमारी पिछले अंकों के बारे में हमें अनेक पाठकों की प्रतिक्रिया लगातार मिल रही है। हमें विश्वास है कि हमारे अन्य पाठक भी “स्वरगोष्ठी” के प्रत्येक अंक का अवलोकन करते रहेंगे और अपनी प्रतिक्रिया हमें भेजते रहेगे। आज के अंक और श्रृंखला के बारे में यदि आपको कुछ कहना हो तो हमें अवश्य लिखें। हमारी वर्तमान अथवा अगली श्रृंखला के लिए यदि आपका कोई सुझाव या अनुरोध हो तो हमें swargoshthi@gmail.com पर अवश्य लिखिए। अगले अंक में रविवार को प्रातः 7 बजे हम ‘स्वरगोष्ठी’ के इसी मंच पर एक बार फिर सभी संगीत-प्रेमियों का स्वागत करेंगे।


प्रस्तुति : कृष्णमोहन मिश्र  


रेडियो प्लेबैक इण्डिया 
राग कामोद : SWARGOSHTHI – 404 : RAG KAMOD : 27 Jan, 2019

Comments

Dr D.G.Pancholi said…
"बहुत खूब" अब इसके अलावा क्या कहूं मेरे जैसे रसिक संगीत प्रिय जिसको संगीत का व्याकरण नहीं आता हो और कैसे अभिव्यक्ति करूं बस इतना ही कह सकता हूं "बहुत बहुत आभार"
शब्द अभिव्यक्ति के माध्यम होते हैं बहुत लंबी चौड़ी बात करने पर भी आप अपने दिल की बात नहीं कह सकते और एक शब्द में ही सब समझ जाएं तो क्या ही अच्छा हो
तुम बहुत बहुत आभार आपका मिश्र जी
Dr D.G.Pancholi said…
कृपया क्षमा करें बहुत-बहुत आभार से पहले "तुम" शब्द पोस्ट हो गया है अफसोस कि हम अपने जवाब को एडिट नहीं कर सकते
क्षमा करें

Popular posts from this blog

सुर संगम में आज -भारतीय संगीताकाश का एक जगमगाता नक्षत्र अस्त हुआ -पंडित भीमसेन जोशी को आवाज़ की श्रद्धांजली

सुर संगम - 05 भारतीय संगीत की विविध विधाओं - ध्रुवपद, ख़याल, तराना, भजन, अभंग आदि प्रस्तुतियों के माध्यम से सात दशकों तक उन्होंने संगीत प्रेमियों को स्वर-सम्मोहन में बाँधे रखा. भीमसेन जोशी की खरज भरी आवाज का वैशिष्ट्य जादुई रहा है। बन्दिश को वे जिस माधुर्य के साथ बदल देते थे, वह अनुभव करने की चीज है। 'तान' को वे अपनी चेरी बनाकर अपने कंठ में नचाते रहे। भा रतीय संगीत-नभ के जगमगाते नक्षत्र, नादब्रह्म के अनन्य उपासक पण्डित भीमसेन गुरुराज जोशी का पार्थिव शरीर पञ्चतत्त्व में विलीन हो गया. अब उन्हें प्रत्यक्ष तो सुना नहीं जा सकता, हाँ, उनके स्वर सदियों तक अन्तरिक्ष में गूँजते रहेंगे. जिन्होंने पण्डित जी को प्रत्यक्ष सुना, उन्हें नादब्रह्म के प्रभाव का दिव्य अनुभव हुआ. भारतीय संगीत की विविध विधाओं - ध्रुवपद, ख़याल, तराना, भजन, अभंग आदि प्रस्तुतियों के माध्यम से सात दशकों तक उन्होंने संगीत प्रेमियों को स्वर-सम्मोहन में बाँधे रखा. भीमसेन जोशी की खरज भरी आवाज का वैशिष्ट्य जादुई रहा है। बन्दिश को वे जिस माधुर्य के साथ बदल देते थे, वह अनुभव करने की चीज है। 'तान' को वे अपनी चे

कल्याण थाट के राग : SWARGOSHTHI – 214 : KALYAN THAAT

स्वरगोष्ठी – 214 में आज दस थाट, दस राग और दस गीत – 1 : कल्याण थाट राग यमन की बन्दिश- ‘ऐसो सुघर सुघरवा बालम...’  ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर आज से आरम्भ एक नई लघु श्रृंखला ‘दस थाट, दस राग और दस गीत’ के प्रथम अंक में मैं कृष्णमोहन मिश्र, आप सब संगीत-प्रेमियों का हार्दिक स्वागत करता हूँ। आज से हम एक नई लघु श्रृंखला आरम्भ कर रहे हैं। भारतीय संगीत के अन्तर्गत आने वाले रागों का वर्गीकरण करने के लिए मेल अथवा थाट व्यवस्था है। भारतीय संगीत में 7 शुद्ध, 4 कोमल और 1 तीव्र, अर्थात कुल 12 स्वरों का प्रयोग होता है। एक राग की रचना के लिए उपरोक्त 12 स्वरों में से कम से कम 5 स्वरों का होना आवश्यक है। संगीत में थाट रागों के वर्गीकरण की पद्धति है। सप्तक के 12 स्वरों में से क्रमानुसार 7 मुख्य स्वरों के समुदाय को थाट कहते हैं। थाट को मेल भी कहा जाता है। दक्षिण भारतीय संगीत पद्धति में 72 मेल प्रचलित हैं, जबकि उत्तर भारतीय संगीत पद्धति में 10 थाट का प्रयोग किया जाता है। इसका प्रचलन पण्डित विष्णु नारायण भातखण्डे जी ने प्रारम्भ किया

‘बरसन लागी बदरिया रूमझूम के...’ : SWARGOSHTHI – 180 : KAJARI

स्वरगोष्ठी – 180 में आज वर्षा ऋतु के राग और रंग – 6 : कजरी गीतों का उपशास्त्रीय रूप   उपशास्त्रीय रंग में रँगी कजरी - ‘घिर आई है कारी बदरिया, राधे बिन लागे न मोरा जिया...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी लघु श्रृंखला ‘वर्षा ऋतु के राग और रंग’ की छठी कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र एक बार पुनः आप सभी संगीतानुरागियों का हार्दिक स्वागत और अभिनन्दन करता हूँ। इस श्रृंखला के अन्तर्गत हम वर्षा ऋतु के राग, रस और गन्ध से पगे गीत-संगीत का आनन्द प्राप्त कर रहे हैं। हम आपसे वर्षा ऋतु में गाये-बजाए जाने वाले गीत, संगीत, रागों और उनमें निबद्ध कुछ चुनी हुई रचनाओं का रसास्वादन कर रहे हैं। इसके साथ ही सम्बन्धित राग और धुन के आधार पर रचे गए फिल्मी गीत भी सुन रहे हैं। पावस ऋतु के परिवेश की सार्थक अनुभूति कराने में जहाँ मल्हार अंग के राग समर्थ हैं, वहीं लोक संगीत की रसपूर्ण विधा कजरी अथवा कजली भी पूर्ण समर्थ होती है। इस श्रृंखला की पिछली कड़ियों में हम आपसे मल्हार अंग के कुछ रागों पर चर्चा कर चुके हैं। आज के अंक से हम वर्षा ऋतु की