स्वरगोष्ठी – 404 में आज
कल्याण थाट के राग – 2 : राग कामोद
पण्डित राजन-साजन मिश्र से राग कामोद की बन्दिश और लता मंगेशकर से एक फिल्मी गीत सुनिए
पण्डित राजन और साजन मिश्र |
लता मंगेशकर |
आज के
अंक में हम आपसे राग कामोद पर चर्चा करेंगे। कल्याण थाट और कल्याण अंग से
संचालित होने वाले इस राग को कुछ गायक और प्राचीन ग्रन्थकार बिलावल थाट के
अन्तर्गत भी मानते हैं। औड़व-सम्पूर्ण जाति के इस राग के आरोह में गान्धार
और निषाद स्वर का प्रयोग नहीं किया जाता। तीव्र मध्यम का अल्प प्रयोग केवल
आरोह में पंचम के साथ और शुद्ध मध्यम का प्रयोग आरोह और अवरोह दोनों में
किया जाता है। इस राग का वादी स्वर पंचम और संवादी स्वर ऋषभ होता है। राग
कामोद के आरोह के स्वर हैं; सा, रे, प, म(तीव्र), प, ध, प, नि, ध, सां तथा अवरोह के स्वर हैं; सां, नि, ध, प, म(तीव्र), प, ध, प, ग, म(शुद्ध), रे, सा।
राग वर्गीकरण के प्राचीन सिद्धान्तों के अनुसार राग कामोद को राग दीपक की
पत्नी माना जाता है। इस राग का गायन-वादन पाँचवें प्रहर अर्थात रात्रि के
प्रथम प्रहर में किया जाता है। राग हमीर के समान कामोद राग के वादी और
संवादी स्वर रागों के समय सिद्धान्त की दृष्टि से खरा नहीं उतरता। रागों के
समय सिद्धान्त के अनुसार जो राग दिन के पूर्व अंग में उपयोग किये जाते
हैं, उनका वादी स्वर सप्तक के पूर्व अंग में होना चाहिए। कामोद राग को इस
नियम का अपवाद माना गया है, क्योंकि यह रात्रि के प्रथम प्रहर गाया जाता है
और इसका वादी स्वर पंचम है। यह स्वर सप्तक के उत्तरांग का एक स्वर है। अब
आपको इस राग की एक बन्दिश सुप्रसिद्ध युगल गायक पण्डित राजन मिश्र और साजन
मिश्र की आवाज़ में प्रस्तुत कर रहे हैं। राग कामोद की यह अत्यन्त प्रचलित
परम्परागत रचना है, जिसके बोल हैं- “एरी जाने न दूँगी...”। इस प्रस्तुति में तबला संगति सुधीर पाण्डेय ने और हारमोनियम संगति महमूद धौलपुरी ने की है।
राग कामोद : ‘एरी जाने न दूँगी...’ : पण्डित राजन मिश्र और साजन मिश्र
श्रृंगार
रस की अभिव्यक्ति के लिए कामोद आदर्श राग है। इस राग में ऋषभ-पंचम स्वरों
की संगति अधिक होती है। ऋषभ से पंचम को जाते समय सर्वप्रथम मध्यम से
मींड़युक्त झटके के साथ ऋषभ स्वर पर आते हैं और फिर पंचम को जाते हैं। यह
ध्यान रखना चाहिए कि इस प्रक्रिया में पंचम के साथ ऋषभ की संगति कभी न हो।
राग हमीर और केदार के समान राग कामोद में भी कभी-कभी कोमल निषाद का प्रयोग
अवरोह में राग की रंजकता बढ़ाने के लिए किया जाता है। राग कामोद में गान्धार
का प्रयोग कभी भी सपाट नहीं बल्कि वक्र प्रयोग होता है। राग हमीर और केदार
इसके समप्रकृति राग हैं। इन रागो की चर्चा हम इसी श्रृंखला के आगामी अंकों
में करेंगे। ऊपर आपने राग कामोद की जो बन्दिश सुनी है, उस बन्दिश का उपयोग
फिल्म में भी हुआ है। सुप्रसिद्ध साहित्यकार भगवतीचरण वर्मा के चर्चित
उपन्यास ‘चित्रलेखा’ पर आधारित 1964 में इसी नाम से फिल्म बनी थी, जिसमें
यह बन्दिश शामिल की गई थी। फिल्म के गीतकार साहिर लुधियानवी हैं, जिन्होने
राग कामोद की मूल पारम्परिक बन्दिश की स्थायी के शब्दों को यथावत रखते हुए
अन्तरों में परिवर्तन किया है। फिल्म में यह गीत लता मंगेशकर ने रोशन के
संगीत निर्देशन में गाया था। संगीतकार रोशन ने भी साहिर का यह गीत राग
कामोद के स्वरों में संगीतबद्ध किया है। अब आप लता मंगेशकर की आवाज़ में राग
कामोद की इस खयाल रचना का फिल्मी रूप सुनिए और हमे आज के इस अंक को यहीं
विराम देने की अनुमति दीजिए।
राग कामोद : ‘एरी जाने न दूँगी...’ : लता मंगेशकर : फिल्म – चित्रलेखा
संगीत पहेली
“स्वरगोष्ठी”
के 404थे अंक की संगीत पहेली में आज हम आपको वर्ष 1957 में प्रदर्शित एक
फिल्म के रागबद्ध गीत का अंश सुनवा रहे हैं। गीत के इस अंश को सुन कर आपको
दो अंक अर्जित करने के लिए निम्नलिखित तीन में से कम से कम दो प्रश्नों के
सही उत्तर देने आवश्यक हैं। यदि आपको तीन में से केवल एक अथवा तीनों
प्रश्नों का उत्तर ज्ञात हो तो भी आप प्रतियोगिता में भाग ले सकते हैं।
पहेली क्रमांक 410 तक जिस प्रतिभागी के सर्वाधिक अंक होंगे, उन्हें वर्ष
2019 के पहले सत्र का विजेता घोषित किया जाएगा। इसके साथ ही पूरे वर्ष के
प्राप्तांकों की गणना के बाद वर्ष के अन्त में महाविजेताओं की घोषणा की
जाएगी और उन्हें सम्मानित भी किया जाएगा।
1 – इस गीतांश को सुन कर बताइए कि इस गीत में किस राग का स्पर्श है?
2 – इस गीत में प्रयोग किये गए ताल को पहचानिए और उसका नाम बताइए।
3 – इस गीत में किस पार्श्वगायक के स्वर हैं?
आप उपरोक्त तीन मे से किन्हीं दो प्रश्नों के उत्तर केवल swargoshthi@gmail.com या radioplaybackindia@live.com
पर ही शनिवार, 2 फरवरी, 2019 की मध्यरात्रि से पूर्व तक भेजें। आपको यदि
उपरोक्त तीन में से केवल एक प्रश्न का सही उत्तर ज्ञात हो तो भी आप पहेली
प्रतियोगिता में भाग ले सकते हैं। COMMENTS
में दिये गए उत्तर मान्य हो सकते हैं, किन्तु उसका प्रकाशन पहेली का उत्तर
देने की अन्तिम तिथि के बाद किया जाएगा। “फेसबुक” पर पहेली का उत्तर
स्वीकार नहीं किया जाएगा। विजेता का नाम हम उनके शहर, प्रदेश और देश के नाम
के साथ ‘स्वरगोष्ठी’ के अंक संख्या 406 में प्रकाशित करेंगे। इस अंक में
प्रस्तुत गीत-संगीत, राग, अथवा कलासाधक के बारे में यदि आप कोई जानकारी या
अपने किसी अनुभव को हम सबके बीच बाँटना चाहते हैं तो हम आपका इस संगोष्ठी
में स्वागत करते हैं। आप पृष्ठ के नीचे दिये गए COMMENTS के माध्यम से तथा swargoshthi@gmail.com अथवा radioplaybackindia@live.com पर भी अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त कर सकते हैं।
पिछली पहेली के विजेता
‘स्वरगोष्ठी’
क्रमांक 402 की पहेली में हमने आपसे वर्ष 1975 में प्रदर्शित फिल्म
“मृगतृष्णा” के एक गीत का एक अंश सुनवा कर तीन प्रश्नों में से पूर्ण अंक
प्राप्त करने के लिए कम से कम दो प्रश्नों के सही उत्तर की अपेक्षा की थी।
पहेली के पहले प्रश्न का सही उत्तर है; राग – कल्याण अथवा यमन, दूसरे प्रश्न का सही उत्तर है; ताल – रूपकताल और तीसरे प्रश्न का सही उत्तर है; स्वर – मोहम्मद रफी।
‘स्वरगोष्ठी’ क्रमांक 402 की पहेली का सही उत्तर देने वाले हमारे विजेता हैं; वोरहीज, न्यूजर्सी से डॉ. किरीट छाया, फीनिक्स, अमेरिका से मुकेश लाडिया, चेरीहिल न्यूजर्सी से प्रफुल्ल पटेल और जबलपुर, मध्यप्रदेश से क्षिति तिवारी।
उपरोक्त सभी चार प्रतिभागियों को ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ की ओर से
हार्दिक बधाई। सभी प्रतिभागियों से अनुरोध है कि अपने पते के साथ कृपया
अपना उत्तर ई-मेल से ही भेजा करें। इस पहेली प्रतियोगिता में हमारे नये
प्रतिभागी भी हिस्सा ले सकते हैं। यह आवश्यक नहीं है कि आपको पहेली के
तीनों प्रश्नों के सही उत्तर ज्ञात हो। यदि आपको पहेली का कोई एक भी उत्तर
ज्ञात हो तो भी आप इसमें भाग ले सकते हैं।
अपनी बात
मित्रों,
‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ पर जारी
श्रृंखला “कल्याण थाट के राग” की दूसरी कड़ी में आज आपने राग कामोद का परिचय
प्राप्त किया। साथ ही इस राग के शास्त्रीय स्वरूप को समझने के लिए
सुविख्यात युगल गायक पण्डित राजन और साजन मिश्र इस राग की एक लोकप्रिय
बन्दिश का रसास्वादन किया। इसी बन्दिश को ही आधार बना कर 1964 में
प्रदर्शित फिल्म “चित्रलेखा” में एक गीत शामिल किया गया था। गीतकार साहिर
लुधियानवी बन्दिश के स्थायी को बरकरार रखते हुए अन्तरे जोड़े थे। संगीतकार
रोशन ने इस गीत को राग कामोद में ही संगीतबद्ध किया है और इसे लता मंगेशकर
ने स्वर दिया है। “स्वरगोष्ठी” पर हमारी पिछले अंकों के बारे में हमें अनेक
पाठकों की प्रतिक्रिया लगातार मिल रही है। हमें विश्वास है कि हमारे अन्य
पाठक भी “स्वरगोष्ठी” के प्रत्येक अंक का अवलोकन करते रहेंगे और अपनी
प्रतिक्रिया हमें भेजते रहेगे। आज के अंक और श्रृंखला के बारे में यदि आपको
कुछ कहना हो तो हमें अवश्य लिखें। हमारी वर्तमान अथवा अगली श्रृंखला के
लिए यदि आपका कोई सुझाव या अनुरोध हो तो हमें swargoshthi@gmail.com
पर अवश्य लिखिए। अगले अंक में रविवार को प्रातः 7 बजे हम ‘स्वरगोष्ठी’ के
इसी मंच पर एक बार फिर सभी संगीत-प्रेमियों का स्वागत करेंगे।
प्रस्तुति : कृष्णमोहन मिश्र
राग कामोद : SWARGOSHTHI – 404 : RAG KAMOD : 27 Jan, 2019
Comments
शब्द अभिव्यक्ति के माध्यम होते हैं बहुत लंबी चौड़ी बात करने पर भी आप अपने दिल की बात नहीं कह सकते और एक शब्द में ही सब समझ जाएं तो क्या ही अच्छा हो
तुम बहुत बहुत आभार आपका मिश्र जी
क्षमा करें