स्वरगोष्ठी – 389 में आज
पूर्वांग और उत्तरांग राग – 4 : राग मेघ मल्हार
नायिका और गायिका खुर्शीद बानो से फिल्म का एक गीत और पण्डित अजय चक्रवर्ती से राग मेघ मल्हार सुनिए
पण्डित अजय चक्रवर्ती |
खुर्शीद बानो |
वर्षाकालीन सभी
रागों में सबसे प्राचीन राग मेघ मल्हार माना जाता है। श्रृंखला की आज की
कड़ी में हम आपको राग मेघ मल्हार का रसास्वादन करा रहे हैं। भारतीय साहित्य
में भी राग मेघ मल्हार के परिवेश का भावपूर्ण चित्रण मिलता है। वर्षा ऋतु
के आगमन की आहट देने वाले राग मेघ की प्रवृत्ति को महाकवि कालिदास ने
‘मेघदूत’ के प्रारम्भिक श्लोकों में अत्यन्त यथार्थ रूप में किया है।
‘मेघदूत’ का यक्ष अपनी प्रियतमा तक सन्देश भेजने के लिए आषाढ़ मास के मेघों
को ही अपना दूत बनाता है। इससे थोड़ा भिन्न परिवेश पाँचवें दशक की एक फिल्म
से हमने लिया है। आज का गीत हमने 1942 में रणजीत स्टूडियो द्वारा निर्मित
और जयन्त देसाई द्वारा निर्देशित फिल्म ‘तानसेन’ से चुना है। फिल्म के
प्रसंग के अनुसार अकबर के आग्रह पर तानसेन ने राग ‘दीपक’ गाया, जिसके
प्रभाव से उनका शरीर जलने लगा। कोई उपचार काम में नहीं आने पर उनकी शिष्या
ने राग ‘मेघ मल्हार’ का आह्वान किया, जिसके प्रभाव से आकाश मेघाच्छन्न हो
गया और बरखा की बूँदों ने तानसेन के तप्त शरीर का उपचार किया। इस प्रसंग
में राग ‘मेघ मल्हार’ की अवतारणा करने वाली तरुणी को कुछ इतिहासकारों ने
तानसेन की प्रेमिका कहा है तो कुछ ने उसे तानसेन की पुत्री तानी बताया है।
बहरहाल, इस प्रसंग से यह स्पष्ट हो जाता है कि राग ‘मेघ मल्हार’ मेघों का
आह्वान करने में सक्षम है। दूसरे रूप में हम यह भी कह सकते हैं कि इस राग
में मेघाच्छन्न आकाश, उमड़ते-घुमड़ते बादलों की गर्जना और वर्षा के प्रारम्भ
की अनुभूति कराने की क्षमता है। फिल्म ‘तानसेन’ के संगीतकार खेमचन्द्र
प्रकाश और गीतकार पण्डित इन्द्र थे। फिल्म में तानसेन की प्रमुख भूमिका में
कुन्दनलाल (के.एल.) सहगल थे। फिल्म के लगभग सभी गीत विभिन्न रागों पर
आधारित थे। फिल्म ‘तानसेन’ में राग मेघ मल्हार पर आधारित गीत है- ‘बरसो रे कारे बादरवा हिया में बरसो...’,
जिसे उस समय की विख्यात गायिका-अभिनेत्री खुर्शीद बानो ने गाया और अभिनय
भी किया था। तीनताल में निबद्ध इस गीत में पखावज की संगति की गई है। आइए,
सुनते हैं वर्षा ऋतु का आह्वान करते राग ‘मेघ मल्हार’ पर आधारित यह गीत। आप
इस गीत के माध्यम से ऋतु के विपरीत पावस का आनन्द लीजिए।
राग मेघ मल्हार : ‘बरसो रे कारे बादरवा...’ : स्वर – खुर्शीद बानो : फिल्म – तानसेन
काफी
थाट का राग मेघ मल्हार औड़व-औड़व जाति का होता है, अर्थात इसके आरोह और
अवरोह में 5-5 स्वरों का प्रयोग होता है। गान्धार और धैवत स्वरों का प्रयोग
नहीं होता। समर्थ कलासाधक कभी-कभी परिवर्तन के तौर पर गान्धार स्वर का
प्रयोग करते है। भातखण्डे जी ने अपने ‘संगीत-शास्त्र’ ग्रन्थ में भी यह
उल्लेख किया है कि कोई-कोई कोमल गान्धार का प्रयोग भी करते हैं। लखनऊ के
वरिष्ठ संगीत-शिक्षक और शास्त्र-अध्येता पण्डित मिलन देवनाथ के अनुसार लगभग
एक शताब्दी पूर्व राग मेघ में कोमल गान्धार का प्रयोग होता था। आज भी कुछ
घरानों की गायकी में यह प्रयोग मिलता है। रामपुर, सहसवान घराने के
जाने-माने गायक उस्ताद राशिद खाँ जब राग मेघ गाते हैं तो कोमल गान्धार का
प्रयोग करते हैं। ऋषभ का आन्दोलन राग मेघ का प्रमुख गुण होता है। यह
पूर्वांग प्रधान राग है। इस राग के माध्यम से आषाढ़ मास के मेघों की
प्रतीक्षा, उमड़-घुमड़ कर आकाश पर छा जाने वाले काले मेघों और वर्षा ऋतु के
प्रारम्भिक परिवेश का सजीव चित्रण किया जाता है। आइए, अब हम राग मेघ मल्हार
में एक भावपूर्ण खयाल सुनते हैं। इसे प्रस्तुत कर रहे है, पटियाला गायकी
में सिद्ध गायक पण्डित अजय चक्रवर्ती। यह मध्यलय झपताल की रचना है, जिसके
बोल हैं- ‘गरजे घटा घन कारे कारे पावस रुत आई...’। आप यह खयाल सुनिए और हमें आज की इस कड़ी को यहीं विराम देने की अनुमति दीजिए।
राग मेघ मल्हार : ‘गरजे घटा घन कारे कारे, पावस रुत आई...’ : पण्डित अजय चक्रवर्ती
संगीत पहेली
‘स्वरगोष्ठी’
के 389वें अंक की संगीत पहेली में आज हम आपको वर्ष 1974 में प्रदर्शित एक
फिल्म से रागबद्ध गीत का अंश सुनवा रहे हैं। गीत के इस अंश को सुन कर आपको
दो अंक अर्जित करने के लिए निम्नलिखित तीन में से कम से कम दो प्रश्नों के
उत्तर देने आवश्यक हैं। यदि आपको तीन में से केवल एक अथवा तीनों प्रश्नों
का उत्तर ज्ञात हो तो भी आप प्रतियोगिता में भाग ले सकते हैं। 390वें अंक
की ‘स्वरगोष्ठी’ तक जिस प्रतिभागी के सर्वाधिक अंक होंगे, उन्हें वर्ष 2018
के चौथे सत्र का विजेता घोषित किया जाएगा। इसके साथ ही पूरे वर्ष के
प्राप्तांकों की गणना के बाद वर्ष के अन्त में महाविजेताओं की घोषणा की
जाएगी और उन्हें सम्मानित भी किया जाएगा।
1 – इस गीतांश को सुन कर बताइए कि इसमें किस राग की छाया है?
2 – इस गीत में प्रयोग किये गए ताल को पहचानिए और उसका नाम बताइए।
3 – इस गीत में किस गायिका के स्वर हैं?
आप उपरोक्त तीन मे से किन्हीं दो प्रश्नों के उत्तर केवल swargoshthi@gmail.com या radioplaybackindia@live.com
पर ही शनिवार, 20 अक्तूबर, 2018 की मध्यरात्रि से पूर्व तक भेजें। आपको
यदि उपरोक्त तीन में से केवल एक प्रश्न का सही उत्तर ज्ञात हो तो भी आप
पहेली प्रतियोगिता में भाग ले सकते हैं। COMMENTS
में दिये गए उत्तर मान्य हो सकते हैं, किन्तु उसका प्रकाशन पहेली का उत्तर
देने की अन्तिम तिथि के बाद किया जाएगा। “फेसबुक” पर पहेली का उत्तर
स्वीकार नहीं किया जाएगा। विजेता का नाम हम उनके शहर, प्रदेश और देश के नाम
के साथ ‘स्वरगोष्ठी’ के 391वें अंक में प्रकाशित करेंगे। इस अंक में
प्रस्तुत गीत-संगीत, राग, अथवा कलासाधक के बारे में यदि आप कोई जानकारी या
अपने किसी अनुभव को हम सबके बीच बाँटना चाहते हैं तो हम आपका इस संगोष्ठी
में स्वागत करते हैं। आप पृष्ठ के नीचे दिये गए COMMENTS के माध्यम से तथा swargoshthi@gmail.com अथवा radioplaybackindia@live.com पर भी अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त कर सकते हैं।
पिछली पहेली के विजेता
‘स्वरगोष्ठी’
की 387वें अंक की संगीत पहेली में हमने आपको वर्ष 1950 में प्रदर्शित
फिल्म “आँखें” के एक रागबद्ध गीत का अंश सुनवा कर आपसे तीन में से किसी दो
प्रश्न के उत्तर पूछा था। पहले प्रश्न का सही उत्तर है; राग – पहाड़ी, दूसरे प्रश्न का सही उत्तर है; ताल – कहरवा तथा दादरा और तीसरे प्रश्न का सही उत्तर है; स्वर – मीना कपूर।
“स्वरगोष्ठी”
की इस पहेली प्रतियोगिता में तीनों अथवा तीन में से दो प्रश्नो के सही
उत्तर देकर विजेता बने हैं; चेरीहिल न्यूजर्सी से प्रफुल्ल पटेल, कल्याण, महाराष्ट्र से शुभा खाण्डेकर, मेरिलैण्ड, अमेरिका से विजया राजकोटिया, फीनिक्स, अमेरिका से मुकेश लाडिया, वोरहीज, न्यूजर्सी से डॉ. किरीट छाया, जबलपुर, मध्यप्रदेश से क्षिति तिवारी और हैदराबाद से डी. हरिणा माधवी।
उपरोक्त सभी प्रतिभागियों को ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ की ओर से हार्दिक
बधाई। सभी प्रतिभागियों से अनुरोध है कि अपने पते के साथ कृपया अपना उत्तर
ई-मेल से ही भेजा करें। इस पहेली प्रतियोगिता में हमारे नये प्रतिभागी भी
हिस्सा ले सकते हैं। यह आवश्यक नहीं है कि आपको पहेली के तीनों प्रश्नों के
सही उत्तर ज्ञात हो। यदि आपको पहेली का कोई एक भी उत्तर ज्ञात हो तो भी आप
इसमें भाग ले सकते हैं।
अपनी बात
मित्रों,
‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ पर जारी हमारी
श्रृंखला “पूर्वांग और उत्तरांग राग” की चौथी कड़ी में आपने राग मेघ मल्हार
का परिचय प्राप्त किया। इस राग में आपने पण्डित अजय चक्रवर्ती के स्वर में
राग का यथार्थ स्वरूप का रसास्वादन किया। साथ ही आपने इस राग में पिरोया
संगीतकार खेमचन्द्र प्रकाश द्वारा स्वरबद्ध फिल्म “तानसेन” का गीत खुर्शीद
बानो से सुना। हमें विश्वास है कि हमारे अन्य पाठक भी “स्वरगोष्ठी” के
प्रत्येक अंक का अवलोकन करते रहेंगे और अपनी प्रतिक्रिया हमें भेजते रहेगे।
आज के अंक और श्रृंखला के बारे में यदि आपको कुछ कहना हो तो हमें अवश्य
लिखें। हमारी वर्तमान अथवा अगली श्रृंखला के लिए यदि आपका कोई सुझाव या
अनुरोध हो तो हमें swargoshthi@gmail.com
पर अवश्य लिखिए। अगले अंक में रविवार को प्रातः 7 बजे हम ‘स्वरगोष्ठी’ के
इसी मंच पर एक बार फिर सभी संगीत-प्रेमियों का स्वागत करेंगे।
प्रस्तुति : कृष्णमोहन मिश्र
राग मेघ मल्हार : SWARGOSHTHI – 389 : RAG MEGH MALHAR : 14 अक्तूबर, 2018
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