एक गीत सौ कहानियाँ - 98
'मैं कहीं कवि ना बन जाऊँ...'
1968
में शंकर
जयकिशन को भारत सरकार द्वारा प्रदत्त पद्मश्री पुरस्कार से समानित किए
जाने की घोषणा
हुई। इस वर्ष फ़िल्म और संगीत के क्षेत्र में जिन कलाकारों को यह सम्मान दिया गया था
उनमें शामिल थे बेगम अख़तर, सुनिल दत्त, दुर्गा खोटे, एन. टी. रामाराव, और वैजयन्तीमाला।
उन्हीं दिनों फ़िल्म ’प्यार ही प्यार’ की प्लानिंग चल रही थी। फ़िल्म के निर्माता थे
सतीश वागले और राजाराम। निर्देशक थे भप्पी सोनी और संगीत निर्देशक थे शंकर-जयकिशन।
पद्मश्री पुरस्कार ग्रहण करने शंकर-जयकिशन और इसी फ़िल्म की नायिका वैजयन्तीमाला दिल्ली
पहुँच गए। तो साथ में सतीश वागले भी दिल्ली चले आए। वागले साहब शंकर-जयकिशन के साथ
ही ओबरोय होटल में रुके थे। फ़िल्म ’प्यार ही प्यार’ की कहानी जयकिशन सुन चुके थे और
उन्हें पता थी कि फ़िल्म में नायक की भूमिका में धर्मेन्द्र का नाम विजय और नायिका वैजयन्तीमाला
का नाम कविता है। “कविता” नाम जयकिशन के मन-मस्तिष्क पर जैसे छा गया था और अंजाने में
ही इस नाम का जाप उनके मन में चल रहा था। और इसका नतीजा यह हुआ कि कुछ ही समय के अन्दर
“कविता” पर एक पंक्ति उनके दिमाग़ में आ गया। सुबह नाशते के समय जयकिशन गुनगुना रहे
थे, केवन धुन ही नहीं बल्कि शब्दों के साथ कुछ गुनगुना रहे थे। वो गुनगुना रहे थे
“मैं कहीं कवि ना बन जाऊँ तेरे प्यार में ऐ कविता”। सतीश वागले को धुन भी पसन्द आई
और बोल भी बहुत भा गए। वो जयकिशन से बोले कि यह तो कमाल का गाना है यार! जयकिशन ने
कहा कि धुन भी मेरी है और बोल भी मेरे ही हैं। अगर आपको पसन्द है तो यह तोहफ़ा है आपके
लिए मेरी तरफ़ से, यह आपकी फ़िल्म का एक गाना होगा। और वापस पहुँचते ही हम इसे रेकॉर्ड
करेंगे। बम्बई पहुँच कर हसरत जयपुरी साहब से अन्तरे लिखवा कर गाना पूरा करवाया गया।
हसरत जयपुरी ने मुखड़े को ज़रा सा भी नहीं छेड़ा और ना ही कोई दूसरी लाइन जोड़ी। जैसा जयकिशन
ने लिखा था “मैं कहीं कवि ना बन जाऊँ तेरे प्यार में ऐ कविता”, वैसा ही ज्यों का त्यों
रखा गया मुखड़ा। यही नहीं अन्तरे से मुखड़े पर आने वाला कनेक्टिंग्लाइन भी नहीं रखा
गया। सीधे सीधे तीन अन्तरे लिख डाले –
From right to left - Rajaram, a guest, Satish Wagle, O P Ralhan, Dharmendra, Jaikshan, Bhappi Soni (in goggles) |
“तुझे दिल के आइने में मैंने
बार बार देखा,
तेरी अखड़ियों में देखा तो
झलकता प्यार देखा,
तेरा तीर मैंने देखा तो
जिगर के पार देखा”;
“तेरा रंग है सलौना तेरे
अंग में लचक है,
तेरी बात में है जादू तेरे
बोल में खनक है,
तेरी हर अदा मोहब्बत तू
ज़मीन की धनक है”;
“मेरा दिल लुभा रहा है तेरा
रूप सादा सादा,
ये झुकी झुकी निगाहें करे
प्यार दिल में ज़्यादा,
मैं तुझ ही पे जान दूँगा
है यही मेरा इरादा।“
Jaikishan & Rafi |
आलेख व प्रस्तुति : सुजॉय चटर्जी
प्रस्तुति सहयोग: कृष्णमोहन मिश्र
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