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तरबूज का भूत

पिछले महीने हिन्द-युग्म ने उद्‌घोषणा की थी कि जल्द ही प्रो॰ राजीव शर्मा की आवाज में उन्हीं की व्यंग्य कविताएँ पॉडकास्ट की जायेंगी। आज हम पहली व्यंग्य कविता लेकर हाज़िर हैं।

विपुल शुक्ला के सहयोग से प्रो॰ राजीव शर्मा की व्यंग्य रचना 'तरबूज का भूत' हम तक पहुँच सका है।

नीचे ले प्लेयर से सुनें और ज़रूर बतायें कि कैसा लगा?

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यदि आप इस पॉडकास्ट को नहीं सुन पा रहे हैं तो नीचे दिये गये लिंकों से डाऊनलोड कर लें (ऑडियो फ़ाइल तीन अलग-अलग फ़ॉरमेट में है, अपनी सुविधानुसार कोई एक फ़ॉरमेट चुनें)

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Comments

बहुत सही और सुंदर लगा यह व्यंग ,.सुनने में इसको बहुत ही मज़ा आया
आगे भी आपकी आवाज़ में और सुनने को मिलेगा राजीव जी ...
इसी शुभकामना के साथ
रंजू
kaafi koshish karne ke baad bhi link active nahin ho raha hai-kya karaan ho sakta hai??
अल्पना जी,

आपके सिस्टम पर फ्लैश प्लेयर का कौन का संस्करण (Version) है? मैंने कई जगह चेक कराया, हर जगह ठीक चल रहा है। यदि आपके पास IE के अलावा Mozilla हो तो उसमें भी ट्राई कीजिए
वाह बढ़िया व्यंग और गहरा भी sataire सा .... आपका अंदाज़ भी अच्छा लगा, पर आवाज़ बहुत धीमी आई है, कुछ background में संगीत आदि भी होता तो और एफ्फेक्ट आ जाता
बहुत अच्छा व्यंग्य सुनकर आनंद आ गया ....
* शुरू में आवाज़ धीमी है.
*बहुत ही संवेदनशील कविता ---
'बेरोजगारी के कारण एक ईमानदार युवा का ऐसा अंत जानकर दुःख होता है.
**और आज के समाज पर सही कटाक्ष किया गया है.
जहाँ कितनी ही प्रतिभाएं सिफारिशी लोगों की भेंट चढ़ गयी हैं.
एक सुझाव है--इस कहानी का शीर्षक तरबूज का भूत नहीं होना चाहिये था-क्योंकि एक बहुत ही गंभीर विषय को लेकर इस कहानी की रचना हुई है.तरबूज का भूत मुझे किसी बाल कथा का शीर्षक लगता रहा जब तक मैंने पूरी कहानी नहीं सुन ली.

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