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लता संगीत पर्व- महीने भर चला संगीत प्रेमियों का उत्सव

आवाज़ पर आयोजित लता संगीत उत्सव पर एक विशेष रिपोर्ट और सुनें लता जी के चुने हुए २० गीत एक साथ. जब हमने लता संगीत उत्सव की शुरुवात की थी इस माह के पहले सप्ताह में, तब दो उद्देश्य थे, एक भारत रत्न और संगीत के कोहिनूर लता मंगेशकर पर हिन्दी भाषा में कुछ सहेजनीये आलेखों का संग्रह बने और दूसरा लता दी के चाहने वाले इंटरनेटिया श्रोताओं को हम प्रेरित करें की वो लता जी के बारे में हिन्दी भाषा में लिखें. जहाँ तक दूसरे उद्देश्य का सवाल है, हमें बहुत अधिक कमियाबी नही मिल पायी है. कुछ लिखते लिखते रह गए तो कुछ जब तक लिखना सीख पाते समय सीमा खत्म हो चली. प्रतियोगिता की दृष्टि से मात्र एक ही प्रवष्टि हमें मिली जिसे हम आवाज़ पर स्थान दे पाते. नागपुर के २२ वर्षीय अनूप मनचलवार ने अपनी मुक्कम्मल प्रस्तुति से सब का मन मोह लिया, सुंदर तस्वीरें और slide शो से अपने आलेख को और सुंदर बना दिया. हमारे माननीय निर्णायक श्री पंकज सुबीर जी ने अनूप जी को चुना है लता संगीत पर्व के प्रथम और एक मात्र विजेता के रूप में, अनूप जी को मिलेंगीं ५०० रुपए मूल्य की पुस्तकें और "पहला सुर" एल्बम की एक प्रति. अनूप जी का आलेख आ

प्रलय के बाद भी बचा रहेगा लता मंगेशकर का पावन स्वर !

लता मंगेशकर का जन्मदिन हर संगीतप्रेमी के लिये उल्लास का प्रसंग है. फ़िर हमारे प्रिय चिट्ठाकार संजय पटेल के लिये तो विशेष इसलिये है कि वे उसी शहर इन्दौर के बाशिंदे हैं जहाँ दुनिया की सबसे सुरीली आवाज़ का जन्म हुआ था. लताजी और उनका संगीत संजय भाई के लिये इबादत जैसा है. वे लताजी के गायन पर लगातार लिखते और अपनी अनूठी एंकरिंग के ज़रिये बोलते रहे हैं.आज आवाज़ के लिये लता मंगेशकर पर उनका यह भावपूर्ण लेख लता –मुरीदों के लिये एक विशिष्ट उपहार के रूप में पेश है. आइये भगवान से प्रार्थना करें लताजी दीर्घायु हों और उनकी पाक़ आवाज़ से पूरी क़ायनात सुरीली होती रहे...बरसों बरस. आप शास्त्रीय संगीत, लोक संगीत या चित्रपट या सुगम संगीत के पूरे विश्व इतिहास पर दृष्टि डाल लीजिये, किंतु आप निराश ही होंगे यह जानकर कि एक भी नाम ऐसा नहीं है जो अमरता का वरदान लेकर इस सृष्टि में आया हो; एक अपवाद छोड़कर और वह नाम है स्वर-साम्राज्ञी भारतरत्न लता मंगेशकर। लताजी के जन्मोत्सव की बेला में मन-मयूर जैसे बावला-सा हो गया है। दिमाग पर ज़ोर डालें तो याद आता है कि लताजी अस्सी के अनक़रीब आ गईं.श्रोताओं की चार पीढ़ियों से राब्ता रखने वा

स्वर कोकिला लता मंगेशकर के लिये एक अदभुत कविता-तुम स्वर हो,स्वर का स्वर हो

माया गोविंद देश की जानी मानी काव्य हस्ताक्षर हैं.हिन्दी गीत परम्परा को मंच पर स्थापित करने में मायाजी ने करिश्माई रचनाएँ सिरजीं हैं.आवाज़ पर भाई संजय पटेल के माध्यम से हमेशा नई – नई सामग्री मिलती रही है.लता दीदी के जन्मदिन के ठीक एक दिन पहले आवाज़ पर प्रस्तुत है समर्थ कवयित्री माया गोविंद की यह भावपूर्ण रचना. तुम स्वर हो, तुम स्वर का स्वर हो सरल-सहज हो, पर दुष्कर हो। हो प्रभात की सरस "भैरवी' तुम "बिहाग' का निर्झर हो। चरण तुम्हारे "मंद्र सप्तकी' "मध्य सप्तकी' उर तेरा। मस्तक "तार-स्वरों' में झंकृत गौरवान्वित देश मेरा। तुमसे जीवन, जीवन पाए तुम्हीं सत्य-शिव-सुंदर हो। हो प्रभात की... "मेघ मल्हार' केश में बॉंधे भृकुटी ज्यों "केदार' "सारंग'। नयन फागुनी "काफ़ी' डोले अधर "बसंत-बहार' सुसंग। कंठ शारदा की "वीणा' सा सप्त स्वरों का सागर हो। हो प्रभात की... सोलह कला पूर्ण गांधर्वी लगती हो "त्रिताल' जैसी। दोनों कर जैसे "दो ताली' "सम' जैसा है भाल सखी। माथे की बिंदिया "ख़ाली

लता मंगेशकर- संगीत की देवी

लता मंगेशकर का जीवन परिचय लता का परिवार लता मंगेशकर का जन्म इंदौर, मध्यप्रदेश में सितम्बर २८, १९२९ को हुआ। लता मंगेशकर का नाम विश्व के सबसे जानेमाने लोगों में आता है। इनका जन्म संगीत से जुड़े परिवार में हुआ। इनके पिता प्रसिद्ध शास्त्रीय गायक थे व उनकी एक अपनी थियेटर कम्पनी भी थी। उन्होंने ग्वालियर से संगीत की शिक्षा ग्रहण की। दीनानाथ जी ने लता को तब से संगीत सिखाना शुरू किया, जब वे पाँच साल की थी। उनके साथ उनकी बहनें आशा, ऊषा और मीना भी सीखा करतीं थीं। लता अमान अली खान, साहिब और बाद में अमानत खान के साथ भी पढ़ीं। लता मंगेशकर हमेशा से ही ईश्वर के द्वारा दी गई सुरीली आवाज़, जानदार अभिव्यक्ति व बात को बहुत जल्द समझ लेने वाली अविश्वसनीय क्षमता का उदाहरण रहीं हैं। इन्हीं विशेषताओं के कारण उनकी इस प्रतिभा को बहुत जल्द ही पहचान मिल गई थी। जब १९४२ में उनके पिता की मृत्यु हुई तब वे परिवार में सबसे बड़ी थीं इसलिये परिवार की जिम्मेदारी उन्हें के ऊपर आ गई। अपने परिवार के भरण पोषण के लिये उन्होंने १९४२ से १९४८ के बीच हिन्दी व मराठी में करीबन ८ फिल्मों में काम किया। उनके पार्श्व गायन की शुरुआत १९४२ की

जितनी सुरीली हैं ग़ालिब की ग़ज़लें; गाने में दोगुना तप मांगती हैं

आज एक बार फ़िर आवाज़ पर हमारे प्रिय संगीत समीक्षक और जानेमाने चिट्ठाकार संजय पटेल तशरीफ़ लाए हैं और बता रहे हैं लता मंगेशकर की गायकी की कुछ अदभुत ख़ासियतें.हमें उम्मीद है कि इस पोस्ट को पढ़कर संगीत विषय से जुड़े विद्यार्थी,गायक,संगीतकार बहुत लाभान्वित होंगे.आशा है आवाज़ पर जारी सुगम समारोह में सुनी और सराही जा रही ग़ालिब की ग़ज़लों का आनंद बढ़ाने वाली होगी संजय भाई की ये समीक्षा.मुलाहिज़ा फ़रमाएँ...... एक बात को तो साफ़ कर ही लेना चाहिये कि लता मंगेशकर अपने समय की सबसे समर्थ गायिका हैं.मीरा के भजन,डोगरी,मराठी,गुजराती,और दीगर कई भाषाओं के लोकगीत,भावगीत,भक्तिगीत और सुगम संगीत गाती इस जीवित किंवदंती से रूबरू होना यानी अपने आपको एक ऐसे सुखद संसार में ले जाना है जहाँ सुरों की नियामते हैं और संगीत से उपजने वाले कुछ दिव्य मंत्र हैं जो हमारे मानस रोगों और कलुष को धो डालने के लिये इस सृष्टि में प्रकट हुआ हैं. लता मंगेशकर के बारे में गुलज़ार कहते हैं कि लताजी के बारे में कोई क्या कह सकता है.उनके बारे में कोई बात करने की ज़रूरत ही नहीं है बल्कि उनको एकाग्र होकर सुनने की ज़रूरत है. उनके गायन के ब

पंकज सुबीर की कहानी "शायद जोशी" में लता मंगेशकर

(ये आलेख नहीं है बल्कि मेरी एक कहानी ''शायद जोशी'' का अंश है ये कहानी मेरे कहानी संग्रह ''ईस्‍ट इंडिया कम्‍पनी'' की संभावित कहानियों में से एक है ।) - पंकज सुबीर अचानक उसे याद आया कल रात को रेडियो पर सुना लता मंगेशकर का फिल्म शंकर हुसैन का वो गाना 'अपने आप रातों में' । उसे नहीं पता था कि शंकर हुसैन में एक और इतना बढ़िया गाना भी है वरना अभी तक तो वो 'आप यूं फासलों से गुज़रते रहे' पर ही फिदा था । हां क्या तो भी शुरूआत थी उस गाने की 'अपने आप रातों में चिलमनें सरकती हैं, चौंकते हैं दरवाज़े सीढ़ियाँ धड़कती हैं' उफ्फ क्या शब्द हैं, और कितनी खूबसूरती से गाया है लता मंगेशकर ने । 'अपने आप रातों में चिलमनें सरकती हैं चौंकते हैं दरवाज़े सीढियां धड़कती हैं अपने आप.....' और उस पर खैयाम साहब का संगीत, कोई भारी संगीत नहीं, हलके हल्‍के बजते हुए साज और बस मध्यम मध्यम स्वर में गीत । और उसके बाद 'अपने आप' शब्दों को दोहराते समय 'आ' और 'प' के बीच में लता जी का लंबा सा आलाप उफ्फ जानलेवा ही तो है । एक तो फिल्म का नाम ही कितना

ग़ालिब का कलाम और लता का अंदाज़ - क़यामत

लता संगीत उत्सव की एक और पेशकश - लता सुगम समारोह, पढ़ें और सुनें संजय पटेल की कलम का और लता की आवाज़ का जादू 28 सितम्बर तक लता मंगेशकर की ग़ैर-फ़िल्मी रचनाओं के इस सुगम समारोह में. लता मंगेशकर इस बरस पूरे ८० बरस की हो जाएंगी.सुरों की इस जीती-जागती किंवदंती का हमारे बीच होना हम पर क़ुदरत का एक अहसान है.आवाज़ के आग्रह पर हमारे चिर-परिचित संगीत समीक्षक श्री संजय पटेल ने हमारे लिये लताजी की कुछ ग़ैर-फ़िल्मी रचनाएँ,जिनमें ज़्यादातर उर्दू महाकवि ग़ालिब की ग़ज़लें शुमार हैं पर विशेष समीक्षाएँ की हैं .लताजी की इन रचनाओं पर संजय भाई २८ सितम्बर तक नियमित लिखेंगे. लता मंगेशकर द्वारा स्वरबध्द और पं.ह्र्दयनाथ मंगेशकर द्वारा संगीतबध्द ग़ालिब की रचनाओं को सुनना एक चमत्कारिक अनुभव है. आज संगीत में जिस तरह का शोर बढ़ता जा रहा है उस समय में इन क्लासिकी ग़ज़लों को सुनना किसी रूहानी अहसास से गुज़रना है. चूँकि यह प्रस्तुतियाँ सुगम संगीत की अनमोल अमानत हैं; हमने इसे लता सुगम समारोह नाम दिया है...... आइये आज से प्रारंभ करते हैं लता सुगम समारोह. उम्मीद है आवाज़ की ये सुरीली पेशकश आपको पंसद आएगी. दुर्लभ रचनाओं

कोई ना रोको दिल की उड़ान को...

लता संगीत उत्सव की नई प्रस्तुति प्रस्तावना: लता दीदी को जन्मदिन की ढेर सारी शुभकामनाएँ। लता दीदी की प्रसंशा में बहुत कुछ कहा गया है। फिर भी तारीफें अधूरी लगती हैं। मैंने दीदी के लिए सही शब्द ढूँढ़ने की कोशिश की तो शब्दकोष भी सोच में पड़ गया। कहते है, "लोग तमाम ऊँचाइयों तक पहुँचे हैं...पर जिस मुकाम तक लताजी पहुँची हैं...वहाँ तक कोई नहीं पहुँच सकता..." दीदी से रु-ब-रु होने का सौभाग्य तो अब तक प्राप्त नहीं हुआ, पर दीदी के गीत हमेशा साथ रहते है। लता दीदी वो कल्पवृक्ष हैं जो रंग-बिरंगी मीठे मधुर मनमोहक गीत-रूपी फूल बिखीरती रहती है. दीदी के देशभक्ति गीत सुनकर हौसले बुलंद होते हैं, अमर गाथा सुनकर आखों में पानी भर आता है, लोरी सुन कर ममता का एहसास होता है, खुशी के गीत सुनकर दिल को सुकून मिलता है, दर्द-भरे नगमे दिल की गहराई को छू जाते हैं, भजन सुनकर भक्ति भावना अपने शिखर तक पहुँचती है, और प्रेम गीत सुनकर लगता है जैसे प्रेमिका गा रही हो. जब भी लताजी के गीत सुनता हूँ तो मेरा दिल तो कहने लगता है ... "आज फिर जीने की तम्मना है, आज फिर मरने का इरादा है..." "कोई ना रोको द

लता संगीत उत्सव ( २ ) - लावण्या शाह

आज भी कहीं कुरमुरा देख लेतीं हैं उसे मुठ्ठी भर खाए बिना वे आगे नहीं बढ़ पातीं.. लता संगीत उत्सव की दूसरी कड़ी के रूप में हम आज लेकर आए हैं, लता जी की मुंहबोली छोटी बहन और मशहूर कवि गीतकार, स्वर्गीय श्री पंडित नरेन्द्र शर्मा (जिन्होंने नैना दीवाने, ज्योति कलश छलके, और सत्यम शिवम् सुन्दरम जैसे अमर गीत रचे हैं) की सुपुत्री, लावण्या शाह का यह आलेख - पापाजी और दीदी, २ ऐसे इंसान हैं जिनसे मिलने के बाद मुझे ज़िंदगी के रास्तों पे आगे बढ़ते रहने की प्रेरणा मिली है - सँघर्ष का नाम ही जीवन है। कोई भी इसका अपवाद नहीं- सत्चरित्र का संबल, अपने भीतर की चेतना को प्रखर रखे हुए किस तरह अंधेरों से लड़ना और पथ में कांटे बिछे हों या फूल, उनपर पग धरते हुए, आगे ही बढ़ते जाना ये शायद मैंने इन २ व्यक्तियों से सीखा। उनका सानिध्य मुझे ये सिखला गया कि अपने में रही कमजोरियों से किस तरह स्वयं लड़ना जरुरी है- उनके उदाहरण से हमें इंसान के अच्छे गुणों में विश्वास पैदा करवाता है। पापा जी का लेखन,गीत, साहित्य और कला के प्रति उनका समर्पण और दीदी का संगीत, कला और परिश्रम करने का उत्साह, मुझे बहुत बड़ी शिक्षा दे गया। उन दो