एक मुलाकात ज़रूरी है
एपिसोड - 37
एपिसोड - 37
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श्रम मंत्रालय राजस्थान सरकार, भास्कर रचनापर्व, दैनिक भास्कर तथा जवाहर कला केन्द्र द्वारा पुरस्कृत लेखक विनय के. जोशी उदयपुर में रहते हैं। उनकी रचनायें विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से छपती रही हैं।
हर सप्ताह यहीं पर सुनें एक नयी हिन्दी कहानी "शर्माजी से जैरामजी कर आगे बढ़ने लगा तो पास में खड़े कुल्फी वाले ने कुरते की बाह पकड़ कर कहा ..." (विनय के. जोशी रचित "ईमानदार" से एक अंश) |
झुक जाती है मन की डाली, अपनी फलभरता के डर में। ~ जयशंकर प्रसाद (30-1-1889 - 14-1-1937) हर शनिवार को आवाज़ पर सुनिए एक नयी कहानी अब मैं घर जाऊंगी, अब मेरी शिक्षा समाप्त हो चुकी। (जयशंकर प्रसाद की "कला" से एक अंश) |
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“जब बिना कालर का चोर पकड़ा जाता हैं, तो उसे सबसे दुराचारी और दुष्ट कहा जाता है।”
~ ओ हेनरी हर सप्ताह यहीं पर सुनें एक नयी कहानी "अच्छा, जल्दी से हाथ मुँह धो लो, मैं खाना लगती हूँ।" (ओ हेनरी की "इबादत" से एक अंश) |
डॉ. पदुमलाल पन्नालाल बख्शी जन्म: २७ मई, १८९४ राजनांदगांव, छत्तीसगढ़, भारत मृत्यु: १८ दिसंबर, १९७१ रायपुर, छत्तीसगढ़, भारत हर सप्ताह यहीं पर सुनें एक नयी कहानी "'भाभी क्या तुम्हारे प्रेम के आलोक का इतना ही मूल्य है।?" (डॉ. पदुमलाल पन्नालाल बख्शी की लघुकथा "झलमला" से एक अंश) |
“सामान्य श्रेणी का मनुष्य भी महापुरुषों की श्रेणी में सहज ही पहुंच सकता है।”
~ श्री हंसराज “सुज्ञ” मुंबई में आयात-निर्यात और घरेलू आपूर्ति में व्यवसायरत। साहित्य, इतिहास और आध्यात्म में गहन रूचि। जीवन-शैली में नैतिक जीवन-मूल्यों के प्रसार प्रयोजन को समर्पित। निरामिष सामूहिक ब्लॉग के संस्थापक व संचालक। हर सप्ताह यहीं पर सुनें एक नयी कहानी "चिथड़ों में लिपटा उसका ढीला-ढाला और झुर्रियों से भरा बुढ़ापे का शरीर।" (श्री हंसराज “सुज्ञ” की लघुकथा "आसक्ति की मृगतृष्णा" से एक अंश) |
“जब बिना कालर का चोर पकड़ा जाता हैं, तो उसे सबसे दुराचारी और दुष्ट कहा जाता है।”
~ ओ हेनरी हर सप्ताह यहीं पर सुनें एक नयी कहानी "मिस्टर 'निमोनिया' स्त्रियों के साथ भी कोई रियायत नहीं करते थे।" (ओ हेनरी की "अनोखी कलाकृति" से एक अंश) |
“"मंजिल मिले ना मिले , ये ग़म नहीं मंजिल की जुस्तजू में, मेरा कारवां तो है।”
~ रश्मि रविजा हर सप्ताह यहीं पर सुनें एक नयी कहानी "सारी मुसीबत इनकी निरीहता को लेकर ही है। क्यूँ नहीं ये लोग भी उपेक्षा भरा व्यवहार अपनाते? क्यूँ इनकी निगाहें इतनी सहानुभूति भरी हैं?" (रश्मि रविजा की "कश्मकश" से एक अंश) |
श्री अशफाक उल्ला खां (22 अक्टूबर 1900 - 19 दिसम्बर 1927) “मरते बिसमिल रोशन, लहरी, अशफाक, अत्याचार से, होंगे पैदा सैकड़ों उनके रूधिर की धार से ।।” ~ श्री रामप्रसाद बिस्मिल (1897-19 दिसम्बर 1927) हर सप्ताह यहीं पर सुनें एक नयी कहानी "घर वालों के लाख मना करने पर भी अशफाक आर्य समाज जा पहुँचे और राम प्रसाद बिस्मिल से काफी देर तक गुफ्तगू करने के बाद उनकी पार्टी मातृवेदी के ऐक्टिव मेम्बर भी बन गये। यहीं से उनकी जिन्दगी का नया फलसफा शुरू हुआ। वे शायर के साथ-साथ कौम के खिदमतगार भी बन गये।" ("श्री अशफाक उल्ला खां – मैं मुसलमान तुम काफिर?" से एक अंश) |
“किसी भी व्यक्ति की हर चीज़ अच्छी होनी चाहिए। चाहे उसका चेहरा हो या उसकी आत्मा। चाहे उसके कपड़े हों या उसके विचार।”
~ अन्तोन चेख़व (1860-1904) हर सप्ताह यहीं पर सुनें एक नयी कहानी "नहीं, नहीं, तीस में ही बात की थी । तुम हमारे यहाँ दो ही महीने तो रही हो।" (अन्तोन चेख़व की "कमज़ोर" से एक अंश) |
उपन्यास बनकर इतिहास मानवीय समस्याओं को देखने, परखने के लिए ‘सूक्ष्मवीक्षण यन्त्र’ का-सा काम देने लगता है।
~ अमृतलाल नागर (17 अगस्त 1916 - 23 फ़रवरी 1990) हर सप्ताह यहीं पर सुनें एक नयी कहानी ‘‘तुम बुर्जुआ हो, अपने एक कवि मित्र का गौरव नहीं सहन कर सकते। तुम चूंकि कविता नहीं कर सकते मगर घड़ी खरीद सकते हो, इसलिए मेरे मान-सम्मान को अपने पैसे की शक्ति से दबाना चाहते हो......।’’ (अमृतलाल नागर की "कवि का साथ" से एक अंश) |
यह सत्य भी है कि चप्पल की 'रेड' से सरकार तक चौंक जाती है। ~ कमलेश्वर (1932-2007) हर शनिवार को आवाज़ पर सुनें एक नयी कहानी सदियों पुरानी सभ्यता मनुष्य के क्षुद्र विकारों का शमन करती रहती है एक दार्शनिक दृष्टि से जीवन की क्षण-भंगुरता का अहसास कराते हुए सारी विषमताओं को समतल करती रहती है। (कमलेश्वर की "चप्पल" से एक अंश) |
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“अब कोई दीन-दुखियों से मुँह न मोड़ेगा।” ~ सुदर्शन (मूल नाम: पंडित बद्रीनाथ भट्ट) (1895-1967) प्रेमचन्द, कौशिक और सुदर्शन, इन तीनों ने हिन्दी में कथा साहित्य का निर्माण किया है। ~ भगवतीचरण वर्मा (हम खंडहर के वासी) पहली बार "हार का जीत" पढी थी, तब से ही इसके लेखक के बारे में जानने की उत्सुकता थी। दुःख की बात है कि हार की जीत जैसी कालजयी रचना के लेखक के बारे में जानकारी बहुत कम लोगों को है। गुलज़ार और अमृता प्रीतम पर आपको अंतरजाल पर बहुत कुछ मिल जाएगा मगर यदि आप पंडित सुदर्शन की जन्मतिथि, जन्मस्थान (सिआलकोट) या कर्मभूमि के बारे में ढूँढने निकलें तो निराशा ही होगी। मुंशी प्रेमचंद और उपेन्द्रनाथ अश्क की तरह पंडित सुदर्शन हिन्दी और उर्दू में लिखते रहे हैं। उनकी गणना प्रेमचंद संस्थान के लेखकों में विश्वम्भरनाथ कौशिक, राजा राधिकारमणप्रसाद सिंह, भगवतीप्रसाद वाजपेयी आदि के साथ की जाती है। लाहोर की उर्दू पत्रिका हज़ार दास्ताँ में उनकी अनेकों कहानियां छपीं। उनकी पुस्तकें मुम्बई के हिन्दी ग्रन्थ रत्नाकर कार्यालय द्वारा भी प्रकाशित हुईं। उन्हें गद्य और पद्य दोनों ही में महारत थी। पंडित जी की पहली कहानी "हार की जीत" १९२० में सरस्वती में प्रकाशित हुई थी। मुख्य धारा के साहित्य-सृजन के अतिरिक्त उन्होंने अनेकों फिल्मों की पटकथा और गीत भी लिखे हैं. सोहराब मोदी की सिकंदर (१९४१) सहित अनेक फिल्मों की सफलता का श्रेय उनके पटकथा लेखन को जाता है। सन १९३५ में उन्होंने "कुंवारी या विधवा" फिल्म का निर्देशन भी किया। वे १९५० में बने फिल्म लेखक संघ के प्रथम उपाध्यक्ष थे। वे १९४५ में महात्मा गांधी द्वारा प्रस्तावित अखिल भारतीय हिन्दुस्तानी प्रचार सभा वर्धा की साहित्य परिषद् के सम्मानित सदस्यों में थे। उनकी रचनाओं में तीर्थ-यात्रा, पत्थरों का सौदागर, पृथ्वी-वल्लभ, बचपन की एक घटना, परिवर्तन, अपनी कमाई, हेर-फेर आदि के नाम उल्लेखनीय हैं। फिल्म धूप-छाँव (१९३५) के प्रसिद्ध गीत तेरी गठरी में लागा चोर, बाबा मन की आँखें खोल आदि उन्ही के लिखे हुए हैं। यदि आपके पास पण्डित सुदर्शन का कोई चित्र या रेखाचित्र हो तो कृपया हमारे साथ साझा कीजिये। धन्यवाद! (निवेदक: अनुराग शर्मा) कई दिन बीत गये पर हेमराज का बुखार नहीं उतरा। (पंडित सुदर्शन की "तीर्थयात्रा" से एक अंश) |
भीष्म साहनी (1915-2003) हर शनिवार को आवाज़ पर सुनिए एक नयी कहानी पद्म भूषण भीष्म साहनी का जन्म आठ अगस्त 1915 को रावलपिंडी में हुआ था। "ऊपर, आकाश में मण्डरा रही थी जब सहसा, अर्धवृत्त बनाती हुई तेजी से नीचे उतरी और एक ही झपट्टे में, मांस के लोथड़े क़ो पंजों में दबोच कर फिर से वैसा ही अर्द्ववृत्त बनाती हुई ऊपर चली गई।" ("चील" से एक अंश) |
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झुक जाती है मन की डाली, अपनी फलभरता के डर में। ~ जयशंकर प्रसाद (30-1-1889 - 14-1-1937) हर शनिवार को आवाज़ पर सुनिए एक नयी कहानी अब मैं घर जाऊंगी, अब मेरी शिक्षा समाप्त हो चुकी। (जयशंकर प्रसाद की "कला" से एक अंश) |
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अल्ताफ़ फ़ातिमा जन्म 1929 में लखनऊ में। माता-पिता: जहाँ मुम्ताज़ और फज़ले मुहम्मद अमीन वर्तमान निवास: लाहौर पाकिस्तान हर शनिवार को आवाज़ पर सुनिए एक नयी कहानी अब कैसी चुप्पी साधी है बडी बी ने। (अल्ताफ़ फ़ातिमा की "गैर मुल्की लडकी" से एक अंश) |
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झुक जाती है मन की डाली, अपनी फलभरता के डर में। ~ जयशंकर प्रसाद (30-1-1889 - 14-1-1937) हर शनिवार को आवाज़ पर सुनिए एक नयी कहानी ममता विधवा थी। उसका यौवन शोण के समान ही उमड़ रहा था। (जयशंकर प्रसाद की "ममता" से एक अंश) |
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पौड़ी की सर्दियाँ बहुत खूबसूरत होती हैं, और उससे भी ज्यादा खूबसूरत उस पहाड़ी कसबे की ओंस से भीगी सड़कें। ~ नीरज बसलियाल हर शनिवार को आवाज़ पर सुनिए एक नयी कहानी पता नहीं कितने सालों से, शायद जब से पैदा हुआ यही काम किया, ख्वाब बेचा। (नीरज बसलियाल की "फेरी वाला" से एक अंश) |
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झुक जाती है मन की डाली, अपनी फलभरता के डर में। ~ जयशंकर प्रसाद (30-1-1889 - 14-1-1937) हर शनिवार को आवाज़ पर सुनिए एक नयी कहानी साहस न हुआ, वही अंतिम रुपया था। (जयशंकर प्रसाद की "विजया" से एक अंश) |
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