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"हैंगोवर तेरी यादों का..." - क्यों सोनू निगम नहीं गा सके इस गीत को?

एक गीत सौ कहानियाँ - 54   ‘ हैंगओवर  तेरी यादों का... ’ 'रेडियो प्लेबैक इण्डिया' के सभी श्रोता-पाठकों को सुजॉय चटर्जी का प्यार भरा नमस्कार! दोस्तों, हम रोज़ाना रेडियो पर, टीवी पर, कम्प्यूटर पर, और न जाने कहाँ-कहाँ, जाने कितने ही गीत सुनते हैं, और गुनगुनाते हैं। ये फ़िल्मी नग़में हमारे साथी हैं सुख-दुख के, त्योहारों के, शादी और अन्य अवसरों के, जो हमारी ज़िन्दगियों से कुछ ऐसे जुड़े हैं कि इनके बिना हमारी ज़िन्दगी बड़ी ही सूनी और बेरंग होती। पर ऐसे कितने गीत होंगे जिनके बनने की कहानियों से, उनसे जुड़ी दिलचस्प क़िस्सों से आप अवगत होंगे? बहुत कम, है न? कुछ जाने-पहचाने, और कुछ कमसुने फ़िल्मी गीतों की रचना प्रक्रिया, उनसे जुड़ी दिलचस्प बातें, और कभी-कभी तो आश्चर्य में डाल देने वाले तथ्यों की जानकारियों को समेटता है 'रेडियो प्लेबैक इण्डिया' का यह स्तंभ 'एक गीत सौ कहानियाँ'। इसकी 54 वीं कड़ी में आज जानिये फ़िल्म 'किक' के मशहूर गीत "हैंगओवर तेरी यादों का" से जुड़ी कुछ दिलचस्प बातें।  "चांदी की डाल पर सो

समाज-सुधार का दायित्व निभाती दो फिल्में

भारतीय सिनेमा के सौ साल – 44 कारवाँ सिने-संगीत का 1934 की दो फिल्में : ‘चण्डीदास’ और ‘अमृत मन्थन’ भारतीय सिनेमा के शताब्दी वर्ष में ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ द्वारा आयोजित विशेष अनुष्ठान- ‘कारवाँ सिने संगीत का’ में आप सभी सिनेमा-प्रेमियों का हार्दिक स्वागत है। आज माह का दूसरा गुरुवार है और इस दिन हम ‘कारवाँ सिने-संगीत का’ स्तम्भ के अन्तर्गत ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के संचालक मण्डल के सदस्य सुजॉय चटर्जी की प्रकाशित पुस्तक ‘कारवाँ सिने-संगीत का’ से किसी रोचक प्रसंग का उल्लेख करते हैं। आज के अंक में सुजॉय जी 1934 में ‘न्यू थिएटर्स’ की फिल्म ‘चण्डीदास’ और ‘प्रभात’ द्वारा निर्मित फिल्म ‘अमृत मन्थन’ का ज़िक्र कर रहे हैं। इन फिल्मों ने समाज में व्याप्त रूढ़ियों के विरुद्ध जनमानस को प्रेरित करने में अग्रणी भूमिका का निर्वहन किया था।  सहगल 1934 की सबसे चर्चित फ़िल्म थी ‘न्यू थिएटर्स’ की ‘चण्डीदास’। उमा शशि के साथ सहगल की जोड़ी बनी और इस फ़िल्म ने चारों तरफ़ कामयाबी के परचम लहरा दिए। भले ही सहगल के पहले के गीत भी काफ़ी लोकप्रिय हुए थे, पर सही मायने में सहगल

भारतीय सिनेमा के सौ साल : विशेषांक

एक शताब्दी का हुआ भारतीय सिनेमा ‘राजा हरिश्चन्द्र’ से शुरू हुआ भारतीय सिनेमा का इतिहास आज से ठीक एक शताब्दी पहले, आज के ही दिन अर्थात 3 मई, 1913 को विदेशी उपकरणों से बनी किन्तु भारतीय चिन्तन और संस्कृति के अनुकूल पहली भारतीय फिल्म ‘राजा हरिश्चन्द्र’ का प्रदर्शन हुआ था। भारतीय सिनेमा के इतिहास में ढुंडिराज गोविन्द फालके, उपाख्य दादा साहेब फालके द्वारा निर्मित मूक फिल्म ‘राजा हरिश्चन्द्र’ को भारत के प्रथम कथा-चलचित्र का सम्मान प्राप्त है। इस चलचित्र का पहला सार्वजनिक प्रदर्शन 3 मई, 1913 को गिरगाँव, मुम्बई स्थित तत्कालीन कोरोनेशन सिनेमा में किया गया था। इस ऐतिहासिक अवसर पर ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ की ओर से सभी पाठकों, श्रोताओं और दर्शकों का हार्दिक स्वागत और अभिनन्दन है। आज के इस विशेष अंक में हम आपके लिए लेकर आए हैं, प्रथम भारतीय फिल्म ‘राजा हरिश्चन्द्र’ का एक ऐतिहासिक और दुर्लभ वीडियो अंश।  दादा साहेब फालके पि छली एक शताब्दी में भारतीय जनजीवन पर सिनेमा का सर्वाधिक प्रभाव पड़ा है। सामान्य जीवन के हर क्षेत्र को सिनेमा ने सर्वाधिक प्रभावित किया है। यहाँ तक क

कारवाँ सिने-संगीत का : 1933 की दो उल्लेखनीय फिल्में

भारतीय सिनेमा के सौ साल – 42 कारवाँ सिने-संगीत का वाडिया मूवीटोन की फिल्म ‘लाल-ए-यमन’ और हिमांशु राय की ‘कर्म’ भारतीय सिनेमा के शताब्दी वर्ष में ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ द्वारा आयोजित विशेष अनुष्ठान- ‘कारवाँ सिने संगीत का’ में आप सभी सिनेमा-प्रेमियों का हार्दिक स्वागत है। आज माह का चौथा गुरुवार है और इस दिन हम ‘कारवाँ सिने-संगीत का’ स्तम्भ के अन्तर्गत ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के संचालक मण्डल के सदस्य सुजॉय चटर्जी की प्रकाशित पुस्तक ‘कारवाँ सिने-संगीत का’ से किसी रोचक प्रसंग का उल्लेख करते हैं। आज के अंक में सुजॉय जी 1933 में ‘वाडिया मूवीटोन’ के गठन और इसी संस्था द्वारा निर्मित फिल्म ‘लाल-ए-यमन’ का ज़िक्र कर रहे हैं। इसके साथ ही देविका रानी और हिमांशु राय अभिनीत पहली ‘ऐंग्लो-इण्डियन’ को-प्रोडक्शन फ़िल्म ‘कर्म’ की चर्चा भी कर रहे हैं। 1933 की एक महत्वपूर्ण उपलब्धि रही ‘वाडिया मूवीटोन’ का गठन। वाडिया भाइयों, जे. बी. एच. वाडिया और होमी वाडिया, ने इस कंपनी के ज़रिए स्टण्ट और ऐक्शन फ़िल्मों का दौर शुरु किया। दरअसल वाडिया भाइयों ने मूक फ़िल्मों के जौनर म

तन रंग लो जी आज मन रंग लो... होली के गीतों से तन मन भीगोने वाला गीतकार

भारतीय सिनेमा के सौ साल – 40 कारवाँ सिने-संगीत का  होली के हजारों रंग भरने वाले गीतकार शकील बदायूनी के सुपुत्र जावेद बदायूनी से बातचीत ‘लाई है हज़ारों रंग होली...’ भारतीय सिनेमा के शताब्दी वर्ष में ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ द्वारा आयोजित विशेष अनुष्ठान- ‘कारवाँ सिने संगीत का’ में आप सभी सिनेमा-प्रेमियों का रस-रंग के उल्लासपूर्ण परिवेश में हार्दिक स्वागत है। आज माह का चौथा गुरुवार है और इस दिन हम ‘कारवाँ सिने-संगीत का’ स्तम्भ के अन्तर्गत ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के संचालक मण्डल के सदस्य सुजॉय चटर्जी की प्रकाशित पुस्तक ‘कारवाँ सिने-संगीत का’ से किसी रोचक प्रसंग का उल्लेख करते हैं। परन्तु आज होली पर्व के विशेष अवसर के कारण हम दो वर्ष पूर्व सुजॉय चटर्जी द्वारा सुप्रसिद्ध गीतकार शकील बदायूनी के बेटे जावेद बदायूनी से की गई बातचीत का पुनर्प्रकाशन कर रहे हैं। आप जानते ही हैं कि शकील बदायूनी ने फिल्मों में कई लोकप्रिय होली गीत रचे थे, जो आज भी गाये-गुनगुनाए जाते हैं।  हो ली है!!! 'रेडियो प्लेबैक इण्डिया' के दोस्तों, नमस्कार, और आप सभी को रंग