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SIBM, पुणे के युवाओं का "जज्बा"

आज हिंद युग्मी दिव्य प्रकाश दुबे अपना २७ वां जन्मदिन मना रहे हैं, उनकी कविताओं से तो हम सब वाकिफ हैं, पर हम आपको बता दें कि उनका एक संगीत ग्रुप भी है- "जज्बा". जिसका बनाया हुआ ये गीत "आंगन में पंछी" हम चाहते थे कि हमारे वर्तमान सत्र का हिस्सा बनें, पर चूँकि ग्रुप के सभी छात्र अपनी पढ़ाई के अन्तिम दौर में हैं, इस कारण इस गीत को मुक्कमल तौर पर रिकॉर्ड नहीं कर पाये, पर एक preview के तौर पर इस शानदार गीत को आज हम यहाँ प्रस्तुत कर रहे हैं. साथ में है इस गीत का एक फोटो विडियो भी, जिसमें आप SIBM, पुणे के इन छात्रों की आँखों में बसे एक नए हिंद के सपनों को देख पायेंगें, और महसूस कर पायेंगें उस जज्बे को जिसको देखकर आपको अपनी इस नई पीढ़ी पर अवश्य गर्व होगा. Presenting to you all "The passion to live it up and the spirit to wear it on our sleeve" Debut song of team Jazba अब सवाल ये है कि जज़्बा आखिर है क्या तो जानिए ख़ुद दिव्य से - जज़्बा में आभार दाधीच, शिखर रंजन, विकास और दिव्य प्रकाश ये चार लोग हैं जो की SIBM,Pune (सिम्ब्योसिस इंस्टिट्यूट ऑफ़ बिज़नस मैनेजमेंट, पुणे )

सुनो कहानी: प्रेमचंद की "वरदान"

उपन्यास सम्राट मुंशी प्रेमचंद की लघु कहानी 'वरदान' 'सुनो कहानी' इस स्तम्भ के अंतर्गत हम आपको सुनवा रहे हैं उपन्यास सम्राट मुंशी प्रेमचंद की प्रसिद्ध कहानियाँ। पिछले सप्ताह आपने अनुराग शर्मा की आवाज़ में प्रेमचंद की रचना ' कौशल ' का पॉडकास्ट सुना था। आवाज़ की ओर से आज हम लेकर आये हैं प्रेमचंद की एक छोटी किंतु प्रेरणादायी कहानी "वरदान" , जिसको स्वर दिया है अनुराग शर्मा ने। सुनें और बतायें कि हम अपने इस प्रयास में कितना सफल हुए हैं। कहानी का कुल प्रसारण समय है: तीन मिनट और बाईस सेकंड। यदि आप भी अपनी मनपसंद कहानियों, उपन्यासों, नाटकों, धारावाहिको, प्रहसनों, झलकियों, एकांकियों, लघुकथाओं को अपनी आवाज़ देना चाहते हैं हमसे संपर्क करें। अधिक जानकारी के लिए कृपया यहाँ देखें। मैं एक निर्धन अध्यापक हूँ...मेरे जीवन मैं ऐसा क्या ख़ास है जो मैं किसी से कहूं ~ मुंशी प्रेमचंद (१८८०-१९३६) हर शनिवार को आवाज़ पर सुनिए प्रेमचंद की एक नयी कहानी माता! मैंने सैकड़ों व्रत रखे, देवताओं की उपासनाएं की, तीर्थयाञाएं की, परन्तु मनोरथ पूरा न हुआ। तब तुम्हारी शरण आयी। अब तुम्हें छोड़क

दिल को बहलाना है, इस तरह या उस तरह...

इश्क हो या दुनिया की चाहत, अक्सर वो नसीब नही होता जिसको पाने की आरजू होती है. जिंदगी चलती रहती है, बहती रहती है. पर कहीं न कहीं दिल के किसी कोने में एक खला बनी रहती है. कहीं कुछ रहता है जो कचोटता है तन्हाईयों में. कुछ कमरे ऐसे भी होते हैं जहनो दिल में जो किसी के जाने के बाद भी हमेशा खाली रहते हैं, उन्हें कोई भर नही पाता. कुछ ऐसे ही जज़्बात लिए है इस शुक्रवार का ये नया गीत. जिसके रचनाकार, संगीतकार और गायक हैं सुदीप यशराज . नए सत्र में उनका ये दूसरा गीत है, तो सुनतें हैं सुदीप की आवाज़ में "उड़ता परिंदा". अपनी राय देकर इस उभरते हुए बेहद प्रतिभाशाली संगीतकार गायक का मार्गदर्शन अवश्य करें - गीत को सुनने के लिए नीचे के प्लयेर पर क्लिक करें - After his first song "beintehaa pyar" Sudeep Yashraj is here again in this new season with a brand new song "udta parinda". Penned and composed by Sudeep himself, this song has a retro feel to it which come across with his unique style of singing. So guys, lets enjoy this brand new song and let us know what you feel about it

मेरी आवाज़ ही पहचान है.... पार्श्व गायक भूपेंद्र

इनसे मिलिए (1)- भूपेन्द्र आज से हम आवाज़ पर एक नई शृंखला शुरू कर रहे हैं. विविध भारती से प्रसारित हुए कुछ अनमोल साक्षात्कारों को हम यहाँ टेक्स्ट और ऑडियो फॉर्मेट में पुनर्प्रस्तुत कर रहे हैं. इस काम में हमारी सहायता कर रहे हैं सुजोय चट्टर्जी. पहली कड़ी के रूप में आज हम AIR विविध भारती की रेणू बंसल द्वारा लिया गया पार्श्व गायक भूपेंद्र का ये साक्षात्कार यहाँ प्रस्तुत कर रहे हैं. साथ में हैं भूपेंद्र के गाये कुछ बेहद यादगार गीत जो कार्यक्रम के दौरान सुनवाये गए. कलाकार: भूपेंद्र (पार्श्व गायक) साक्षात्कारकर्ता : रेणु बंसल (विविध भारती AIR) रेणु बंसल : दोस्तों, पार्श्व गायन की दुनिया में यूँ तो बहुत सी आवाज़ें सुनाई देते हैं, लेकिन एक आवाज़ सबसे अलग सुनाई पड़ती है,यूँ लगता है जैसे बहुत अलसाई सी हो और मीठी खुमारी से भारी हो.जैसे जैसे वो आवाज़ तान लेती है, यूँ लगता है कोई दोशीजा अंगडाई ले रही हो. यह वो आवाज़ है जो कभी हमारा हाथ पकड़ के बचपन की गलियों में,कभी गाँवों की मेडों पर दूर किसी राह पर ले जाती है जहाँ यादों के साथ साथ ज़िंदगी के कितने ही रंगों के खूबसूरत अहसासों से होकर हम गुज़रते है

एक मुलाकात कवयित्री, गायिका और चित्रकार सुनीता यादव से

हिंद युग्म ने जिस उद्देश्य से बाल-उद्यान मंच की शुरूआत की थी, वो था बच्चों को सीधे तौर पर इस हिन्दी इंटरनेटिया आयाम से जोड़ने की। आज हम अगर इस उद्देश्य में काफी हद तक सफल हो पाये हैं तो उसका एक बड़ा श्रेय जाता है हमारे सबसे सक्रिय और समर्पित कार्यकर्ताओं में से एक सुनीता यादव को। महाराष्ट्र राष्ट्रभाषा सभा, पुणे द्वारा आदर्श शिक्षक पुरस्कार (२००४) और जॉर्ज फेर्नादिज़ पुरस्कार (२००६) से सम्मानित सुनीता ने और भी बहुत सी उपलब्धियाँ हासिल की है जैसे केंद्रीय हिन्दी निदेशालय द्वारा आयोजित हिन्दी नव लेखक शिविरों में कविता पाठ, आकाशवाणी औरंगाबाद से भी कविताओं का प्रसारण, परिचर्चायों में भागीदारी, गायन में अनेक पुरस्कारों से पुरस्कृत, २००५ में कत्थक नृत्यांगना कु.पार्वती दत्ता द्वारा आयोजित विश्व नृत्य दिवस कार्यक्रम का संचालन आदि। अभी पिछले महीने की आकाशवाणी औरंगाबाद के हिन्दी कार्यक्रम में सुनीता यादव का काव्य-पाठ प्रसारित हुआ, जिसे सुनीता ने बहुत ही अलग ढंग से पेश किया। हमें इस कार्यक्रम की रिकॉर्डिंग प्राप्त हुई है, आपको भी सुनवाते हैं- उर्जा से भरपूर सुनीता यादव हैं - हमारी सप्ताह की

केरवा जे फरेला घवद से : सुनिए छठ के अवसर पर ये लोक गीत

आज छठ पर्व है। इन पंक्तियों के लिखे जाने तक श्रृद्धालु डूबते सूरज को अर्घ्य दे चुके होंगे और कल भोर में दूसरा अर्घ्य उगते सूरज को दिया जाएगा। छठ का नाम बिहार और पूर्वी उत्तर प्रदेश के सबसे पावन पर्वों में शुमार होता है। विश्व में जहाँ कहीं भी इन प्रदेशों के लोग गए हैं वो अपने साथ इसकी परंपराओं को ले कर गए हैं। छठ जिस धार्मिक उत्साह और श्रृद्धा से मनाया जाता है इसका अंदाजा इसी बात से लगा सकते हैं कि जब तीन चौथाई पुलिसवालों के छुट्टी पर रहते हुए भी बिहार जैसे राज्य में इस दौरान आपराधिक गतिविधियाँ सबसे कम हो जाती हैं। अब छठ की बात हो और छठ के गीतों का जिक्र ना आए ये कैसे हो सकता है। बचपन से मुझे इन गीतों की लय ने खासा प्रभावित किया था। इन गीतों से जुड़ी एक रोचक बात ये है कि ये एक ही लए में गाए जाते हैं और सालों साल जब भी ये दिन आता है मुझे इस लय में छठ के गीतों को गुनगुनाने में बेहद आनंद आता है। यूँ तो शारदा सिन्हा ने छठ के तमाम गीत गा कर काफी प्रसिद्धि प्राप्त की है पर आज जिस छठ गीत की मैं चर्चा कर रहा हूँ उसे मैंने टीवी पर भोजपुरी लोक गीतों की गायिका देवी की आवाज में सुना था और इतने

छठ पर्व और शारदा सिंहा, कविता पौडवाल, अनुराधा पौडवाल, सुनील छैला बिहारी आदि के गाये गीत

भारत पर्व प्रधान देश है। बिहार, झारखंड और पूर्वी उत्तर प्रदेश में इन दिनों छठ पूजा की धूम है। इस अवसर हम आपके लिए गीत-संगीत से सजा आलेख लेकर आये हैं। छठ गीत की पारम्परिक धुन इतनी मधुर है कि जिसे भोजपुरी बोली समझ में न भी आती हो तो भी गीत सुंदर लगता है। यही कारण है कि इस पारम्परिक धुन का इस्तेमाल सैकड़ों गीतों में हुआ है, जिसपर लिखे बोलों को बहुत से गायक और गायिकाओं ने अपनी आवाज़ दी है। आलेख की शुरूआत पहले हम इसी पारम्परिक धुन पर पद्मश्री शारदा सिंहा द्वारा गाये एक गीत 'ओ दीनानाथ' को सुना कर करना चाहेंगे। पद्मश्री शारदा सिंहा को बिहार की कोकिला भी कहा जाता है। यह मशहूर लोकगायिका विंध्यवासिनी देवी की शिष्या थीं। सुख-समृद्धि और और सूर्य उपासना का पर्व है 'छठ' सूर्य नमन इस वर्ष ४ नवम्बर को मनाई जा रही सूर्य षष्ठी गायत्री साधको के लिए अनुदानों का अक्षय कोष है। गायत्री महामंत्र के अधिष्ठाता भगवन सूर्य प्रत्यक्ष देव हैं। सूर्य देव की आराधना एवं उपासना से शारीरिक स्वास्थ्य, मानसिक शान्ति एवं अध्यात्मिक अनुदान-वरदान की उपलब्धि होती है। सूर्योपासना के लिए निर्धारित तिथि को

सुनो कहानी: प्रेमचंद की 'कौशल'

प्रेमचंद की कहानी 'कौशल' का प्रसारण 'सुनो कहानी' इस स्तम्भ के अंतर्गत हम आपको सुनवा रहे हैं उपन्यास सम्राट मुंशी प्रेमचंद की प्रसिद्ध कहानियाँ। पिछले सप्ताह आपने अनुराग शर्मा की आवाज़ में प्रेमचंद की रचना ' आधार ' का पॉडकास्ट सुना था। आवाज़ की ओर से आज हम लेकर आये हैं प्रेमचंद की एक और कहानी 'कौशल' , जिसको स्वर दिया है अनुराग शर्मा ने। सुनें और बतायें कि हम अपने इस प्रयास में कितना सफल हुए हैं। कहानी का कुल प्रसारण समय है: आठ मिनट और सत्ताईस सेकंड। मैं एक निर्धन अध्यापक हूँ...मेरे जीवन मैं ऐसा क्या ख़ास है जो मैं किसी से कहूं ~ मुंशी प्रेमचंद (१८८०-१९३६) प्रेमचंद की एक नयी कहानी सुनिए हर शनिवार को आवाज़ पर पण्डित जी ब्राह्मणत्व के गौरव को इतने सस्ते दामों न बेचना चाहते थे। आलस्य छोड़कर धनोपार्जन में दत्तचित्त हो गये। छ: महीने तक उन्होने दिन को दिन और रात को रात नहीं जाना। दोपहर को सोना छोड दिया, रात को भी बहुत देर तक जागते। (प्रेमचंद की 'कौशल' से एक अंश) नीचे के प्लेयर से सुनें. (प्लेयर पर एक बार क्लिक करें, कंट्रोल सक्रिय करें फ़िर 'प्ले'

तूने ये क्या कर दिया ...ओ साहिबा...

दूसरे सत्र के १८ वें गीत का विश्वव्यापी उदघाटन आज " जीत के गीत " और " मेरे सरकार " गीत गाकर अपनी आवाज़ का जादू बिखेरने वाले बिस्वजीत आज लौटे हैं एक नए गीत के साथ, और लौटे हैं कोलकत्ता के सुभोजित जिन्होंने छोटी सी उम्र में ही अपनी प्रतिभा से हर किसी को प्रभावित किया है. सजीव सारथी के लिखे इस नए गीत में प्रेम की पहली छुअन है जिसका बिस्वजीत अपने शब्दों में कुछ इस तरह बखान करते हैं - "कुछ गाने ऐसे होते है जिनमें खो जाने को मन करता है. "साहिबा" ऐसा एक गाना है. सच बताऊँ तो गाने के समय एक बार भी मुझे लगा नहीं कि मैं गा रहा हूँ. ऐसे लगा जैसे इस कहानी में मैं ही वो लड़का हूँ जिस पर कोई लड़की जादू कर गई है, कुछ पल की मुलाक़ात के बाद और चंद लम्हों में मेरी साहिबा बन चुकी है. तड़प रहा हूँ मैं दूरी से, जो दिल में बस गई है उसके ना होने से. सजीव जी के शब्दों ने मुझे मजबूर कर दिया उस तड़प की गहराइयों को महसूस करने के लिए. सुभोजित का म्यूजिक भी लाजवाब है. आशा कर रहा हूँ ये गाना भी सभी को पसंद आएगा" आप भी सुनें सुभोजित का स्वरबद्ध और बिस्वजीत का गाया ये नया गीत

देखो, वे आर डी बर्मन के पिताजी जा रहे हैं...

सचिन देव बर्मन साहब की ३३ वीं पुण्यतिथि पर दिलीप कवठेकर का विशेष आलेख - सचिन देव बर्मन एक ऐसा नाम है, जो हम जैसे सुरमई संगीत के दीवानों के दिल में अंदर तक जा बसा है. मेरा दावा है कि अगर आप और हम से यह पूछा जाये कि आप को सचिन दा के संगीतबद्ध किये गये गानों में किस मूड़ के, या किस Genre के गीत सबसे ज़्यादा पसंद है, तो आप कहेंगे, कि ऐसी को विधा नही होगी, या ऐसी कोई सिने संगीत की जगह नही होगी जिस में सचिन दा के मेलोड़ी भरे गाने नहीं हों. आप उनकी किसी भी धुन को लें. शास्त्रीय, लोक गीत, पाश्चात्य संगीत की चाशनी में डूबे हुए गाने. ठहरी हुई या तेज़ चलन की बंदिशें. संवेदनशील मन में कुदेरे गये दर्द भरे नग्में, या हास्य की टाईमिंग लिये संवाद करते हुए हल्के फ़ुल्के फ़ुलझडी़यांनुमा गीत. जहां उनके समकालीन गुणी संगीतकारों नें अपने अपने धुनों की एक पहचान बना ली थी, सचिन दा हमेशा हर धुन में कोई ना कोई नवीनता देने के लिये पूरी मेहनत करते थे. इसीलिये, उनके बारे में सही ही कहा है, देव आनंद नें (जिन्होने अपने लगभग हर फ़िल्म में - बाज़ी से प्रेम पुजारी तक सचिन दा का ही संगीत लिया था)- He was One of the Most Cultu

मुसाफिर...जाएगा कहाँ...यादें एस डी बर्मन की

महान संगीतकार एस. डी. बर्मन की पुण्यतिथि पर सुनिए उन्हीं के गाये 7 अमर गीत कोलकाता के संगीत प्रेमियों में "सचिन कारता", मुम्बई के संगीतकारों के लिये "बर्मन दा", बांग्लादेश और पश्चिम बंगाल के रेडियो श्रोताओं में "शोचिन देब बोर्मोन", सिने जगत में "एस.डी. बर्मन" और "जींस" फिल्मी फ़ैन वालों में "एस.डी"-उनके गीतों ने हर किसी के दिल में अमिट छाप छोड़ी है। उनके गीतों में विविधता थी। उनके संगीत में लोक गीत की धुन झलकती, वहीं शास्त्रीय संगीत का स्पर्श भी था। उनका अपरंपरागत संगीत जीवंत लगता था। नौ भाई-बहनों में एक सचिन देव बर्मन का जन्म १ अक्तूबर,१९०६ में त्रिपुरा में हुआ। सचिन देव ने शास्त्रीय संगीत की शिक्षा अपने पिता व सितार-वादक नबद्वीप चंद्र देव बर्मन से ली। उसके बाद वे उस्ताद बादल खान और भीष्मदेव चट्टोपाध्याय के यहाँ शिक्षित हुए और इसी शिक्षा से उनमें शास्त्रीय संगीत की जड़ें पक्की हुई जो उनके संगीत में बाद में दिखा भी। अपने पिता की मृत्यु के पश्चात वे घर से निकल गये और असम व त्रिपुरा के जंगलों में घूमें। जहाँ उन्हें बंगाल व आसपास

गीत में तुमने सजाया रूप मेरा

मिलिए संगीत का नया सितारा 'कुमार आदित्य' से हिन्द-युग्म ने 'आवाज़' का बीज इंटरनेट रूपी जमीन में पिछले वर्ष इसलिए बोया ताकि इससे उपजने वाले वटवृक्ष की छाया तले नई प्रतिभाएँ सुस्ताएँ, कुछ आराम महसूस करें, इसकी घनी छायातले सुर-साधना कर सकें। २७ अक्टूबर को आवाज़ ने अपनी पहली वर्षगाँठ भी मनाई। और पिछले एक साल में जिस तरह इस वृक्ष को खाद-पानी मिलता रहा उससे यह लगने लगा कि इसकी जड़ें बहुत गहरी जायेंगी और छाया भी घनी से अत्यधिक घनी होती जायेगी। कुमार आदित्य आज हम आपको एक और नये कलाकार से मिलवाने जा रहे हैं। इस सत्र में आप हमारे अब तक रीलिज्ज़ १७ गीतों के संगीतकारों के अतिरिक्त ग़ज़ल-नज़्म गायक-संगीतकार रफ़ीक़ शेख़ , शिशिर पारखी से मिल चुके हैं। आज सुगम संगीत गायक कुमार आदित्य से आपका परिचय करवाने जा रहे हैं। आदित्य कुमार हिन्दी के सुप्रसिद्ध कवि डॉ॰ महेन्द्र भटनागर के सुपुत्र हैं। संगीत एवं कला की नगरी ग्वालियर के एक सुप्रसिद्ध सुगम संगीत गायक हैं। इनकी ईश्वरीय प्रदत्त मधुर आवाज़ के कारण श्रोताओं और चाहने वालों की संख्या दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। अपनी मधुर आवाज़ में गज़ल गायक क

दीपावली गली गली बन के खुशी आई रे...

आवाज़ के सभी साथियों और श्रोताओं को दीपावली के पावन पर्व की ढेरों शुभकामनाये,हमारे नियमित श्रोता गुरु कवि हकीम ने हमें इस अवसर पर अपना संदेश इस कविता के माध्यम से दिया - दीप जले प्यार का जीत का ना हार का हर किसी के साथ का हर किसी के हाथ का दीप जले प्यार का तोड़ दे दीवार कों बीच में जो है खडी स्नेह निर्मल की भीत तो दीवार से भी है बड़ी ये दीप ना थके कभी प्रकाश ना रुके कभी ये दीप ना बुझे कभी हर किसी के द्वार का दीप जले प्यार का जीत का ना हार का ............. सुधि से सबके मन खिले सिहर सिहर से ना मिले पलक भीगी ना रहे अलक झीनी ना रहे उज्जवल विलास बन के वो लौ ज्वाला की धार का दीप जले प्यार का जीत का ना हार का.... हिंद युग्म के आंगन में आज हमने कविताओं के दीप जलाये हैं. २४ कवियों की इन २४ कविताओं में गजब की विविधता है. अवश्य आनंद लें. बच्चों की आँखों से भी देखें दिवाली की जगमग . आवाज़ पर हम अपने श्रोताओं के लिए लाये हैं, एक अनूठा गीत. टेलिविज़न पर एक संगीत प्रतियोगिता में चुने गए टॉप १० में से ५ प्रतिभागियों ने मिलकर दीपावली पर अपने श्रोताओं को शुभकामनायें देने के उद्देश्य से इस गीत को रचा. इ

हम होंगे कामियाब

कभी कभी छोटी छोटी कोशिशें एक बड़ी सोच का रूप धारण कर लेती है. और फ़िर उस सोच का अंकुर पल्लवित होकर एक बड़ा वृक्ष बनने की दिशा में बढ़ने लगता है और उसकी शाखायें आसमान को छूने निकल पड़ती है. आज से ठीक एक साल पहले २७ अक्टूबर २००७ की शाम को हिंद युग्म ने अपना पहला संगीतबद्ध गीत जारी किया था. दिल्ली, हैदराबाद और नागपुर में बैठे एक गीतकार, एक संगीतकार और एक गायक ने ऑनलाइन बैठकों के माध्यम से तैयार किया था एक अनूठा गीत "सुबह की ताजगी". और इसी के साथ नींव पड़ी एक विचार की जो आज आपके सामने "आवाज़" के रूप में फल फूल रहा है. हिंद युग्म ने महसूस किया कि जिस तरह हमने उभरते हुए कवियों,कथाकारों और बाल साहित्य सृजकों को एक मंच दिया क्यों न इन नए गीतकारों,संगीतकारों और गायकों को भी हम एक ऐसा आधार दें जहाँ से ये बिना किसी बड़े निवेश के अपनी कला का नमूना दुनिया के सामने रख सकें. चूँकि इन्टनेट जुडाव का माध्यम था तो दूरियां कोई समस्या ही नही थी. कोई भी कहीं से भी एक दूसरे से जुड़ सकता था बस कड़ी जोड़नी थी हिंद युग्म के साथ. सिलसिला शुरू हुआ तो एक से बढ़कर एक कलाकार सामने आए. मात्र तीन महीने