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बोलती कहानियाँ: कारा मत नापो मिन्नी

लोकप्रिय स्तम्भ " बोलती कहानियाँ " के अंतर्गत हम हर सप्ताह आपको सुनवाते रहे हैं नई, पुरानी, अनजान, प्रसिद्ध, मौलिक और अनूदित, यानि के हर प्रकार की कहानियाँ। इस शृंखला में पिछली बार आपने  अर्चना चावजी  के स्वर में  मालती जोशी की कहानी  आखरी शर्त का वाचन सुना था। आज हम आपकी सेवा में प्रस्तुत कर रहे हैं प्रमिला वर्मा की कहानी कारा मत नापो मिन्नी , जिसे स्वर दिया है पूजा अनिल ने। प्रस्तुत अंश का कुल प्रसारण समय 24 मिनट 54 सेकंड है। सुनें और बतायें कि हम अपने इस प्रयास में कितना सफल हुए हैं। यदि आप भी अपनी मनपसंद कहानियों, उपन्यासों, नाटकों, धारावाहिको, प्रहसनों, झलकियों, एकांकियों, लघुकथाओं को अपनी आवाज़ देना चाहते हैं तो अधिक जानकारी के लिए कृपया admin@radioplaybackindia.com पर सम्पर्क करें। लेखिका: प्रमिला वर्मा हर सप्ताह यहीं पर सुनें एक नयी हिन्दी कहानी "मान जाओ निम्मो”  ( प्रमिला वर्मा  कृत " कारा मत नापो मिन्नी " से एक अंश ) नीचे के प्लेयर से सुनें. (प्लेयर पर एक बार क्लिक करें, कंट्रोल सक्रिय करें फ़िर 'प्ले' पर क्लि

राग भीमपलासी : SWARGOSHTHI – 317 : RAG BHIMPALASI

स्वरगोष्ठी – 317 में आज संगीतकार रोशन के गीतों में राग-दर्शन – 3 : राग भीमपलासी में मीरा भजन राग भीमपलासी में विदुषी गंगूबाई हंगल से खयाल और लता मंगेशकर से भजन सुनिए ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के मंच पर ‘स्वरगोष्ठी’ की जारी श्रृंखला “संगीतकार रोशन के गीतों में राग-दर्शन” की तीसरी कड़ी के साथ मैं कृष्णमोहन मिश्र, आप सब संगीत-प्रेमियों का हार्दिक स्वागत करता हूँ। मित्रों, इस श्रृंखला में हम फिल्म जगत में 1948 से लेकर 1967 तक सक्रिय रहे संगीतकार रोशन के राग आधारित गीत प्रस्तुत कर रहे हैं। रोशन ने भारतीय फिल्मों में हर प्रकार का संगीत दिया है, किन्तु राग आधारित गीत और कव्वालियों को स्वरबद्ध करने में उन्हें विशिष्टता प्राप्त थी। भारतीय फिल्मों में राग आधारित गीतों को स्वरबद्ध करने में संगीतकार नौशाद और मदन मोहन के साथ रोशन का नाम भी चर्चित है। इस श्रृंखला में हम आपको संगीतकार रोशन के स्वरबद्ध किये राग आधारित गीतों में से कुछ गीतों को चुन कर सुनवा रहे हैं और इनके रागों पर चर्चा भी कर रहे हैं। इस परिश्रमी संगीतकार का पूरा नाम रोशन लाल नागरथ था। 14 जुलाई 191

चित्रकथा - 18: उस्ताद रईस ख़ाँ के सितार का फ़िल्म संगीत में योगदान

अंक - 18 उस्ताद रईस ख़ाँ के सितार का फ़िल्म संगीत में योगदान "मेरी आँखों से कोई नींद लिए जाता है.."  ’रेडियो प्लेबैक इण्डिया' के सभी श्रोता-पाठकों को सुजॉय चटर्जी का प्यार भरा नमस्कार। समूचे विश्व में मनोरंजन का सर्वाधिक लोकप्रिय माध्यम सिनेमा रहा है और भारत कोई व्यतिक्रम नहीं। बीसवीं सदी के चौथे दशक से सवाक् फ़िल्मों की जो परम्परा शुरु हुई थी, वह आज तक जारी है और इसकी लोकप्रियता निरन्तर बढ़ती ही चली जा रही है। और हमारे यहाँ सिनेमा के साथ-साथ सिने-संगीत भी ताल से ताल मिला कर फलती-फूलती चली आई है। सिनेमा और सिने-संगीत, दोनो ही आज हमारी ज़िन्दगी के अभिन्न अंग बन चुके हैं। ’चित्रकथा’ एक ऐसा स्तंभ है जिसमें बातें होंगी चित्रपट की और चित्रपट-संगीत की। फ़िल्म और फ़िल्म-संगीत से जुड़े विषयों से सुसज्जित इस पाठ्य स्तंभ में आपका हार्दिक स्वागत है।  6 मई को सुप्रसिद्ध सितार वादक उस्ताद रईस ख़ाँ साहब के निधन हो जाने से सितार जगत का एक उज्ज्वल नक्षत्र अस्त हो गया। शास्त्रीय संगीत जगत में उनका जितना योगदान रहा है, वैसा ही योगदान उन्होंने सिने संगीत जगत में भी दि

गीत अतीत 12 || हर गीत की एक कहानी होती है || पूरी कायनात || पूर्णा || राज पंडित

Geet Ateet 12 Har Geet Kii Ek Kahaani Hoti Hai... Poori Qayanat Poorna (Salim Sulaiman, Amitabh Bhattacharya, Vishal Dadlani) Raj Pandit- Singer कुछ गीत अपने आप में इतने गहरे और इतने मुक्कमल होते हैं कि उनके बारे में कुछ कहा नहीं जा सकता, बस सुनकर महसूस किया जा सकता है, आज बारी एक ऐसे ही गीत की. जीवन को नयी ऊर्जा और प्रेरणा से भरने वाला ये गीत है फिल्म "पूर्णा" से - ' है पूरी कायनात तुझमें कहीं, सवालों का जवाब खुद है तू ही' , बोल लिखे हैं अमिताभ भट्टचार्य ने, संगीत है सलीम सुलेमान का और गाया है राज पंडित और विशाल ददलानी ने, आज रेडिओ प्लेबैक पर इसी गीत की कहानी गायक राज पंडित की जुबानी   डाउनलोड कर के सुनें  यहाँ  से.... सुनिए इन गीतों की कहानियां भी - ओ रे रंगरेज़ा (जॉली एल एल बी) मैनरलैस मजनूं (रंनिंग शादी डॉट कॉम) रंग (अरविन्द तिवारी, गैर फ़िल्मी सिंगल) हमसफ़र (बदरी की दुल्हनिया) सनशाईन (गैर फ़िल्मी सिंगल) हौले हौले (गैर फ़िल्मी सिंगल) कागज़ सी है ज़िन्दगी (जीना इसी का नाम है)  बेखुद (गैर फ़िल्मी सिंगल) इतना

उषा छाबड़ा का साक्षात्कार - सजीव सारथी

लोकप्रिय स्तम्भ " बोलती कहानियाँ " के अंतर्गत हम हर सप्ताह आपको सुनवाते रहे हैं नई, पुरानी, अनजान, प्रसिद्ध, मौलिक और अनूदित, यानि के हर प्रकार की कहानियाँ। इस शृंखला में पिछली बार आपने अर्चना चावजी के स्वर में मालती जोशी की लघुकथा आखरी शर्त का वाचन सुना था। आज हम आपकी सेवा में प्रस्तुत कर रहे हैं बाल साहित्य के क्षेत्र में एक जाना पहचाना नाम, उषा छाबड़ा, जिनसे बातचीत कर रहे हैं, रेडियो प्लेबैक इंडिया के संस्थापक व प्रमुख सम्पादक, सजीव सारथी। तो आइये, जानें उषा जी की साहित्य यात्रा को। प्रस्तुत साक्षात्कार का कुल प्रसारण समय 15 मिनट 34 सेकंड है। सुनें और बतायें कि हम अपने इस प्रयास में कितना सफल हुए हैं। यदि आप भी अपनी मनपसंद कहानियों, उपन्यासों, नाटकों, धारावाहिको, प्रहसनों, झलकियों, एकांकियों, लघुकथाओं को अपनी आवाज़ देना चाहते हैं तो अधिक जानकारी के लिए कृपया admin@radioplaybackindia.com पर सम्पर्क करें। उषा जी साहित्यिक अभिरुचि वाली अध्यापिका हैं। वे पिछले उन्नीस वर्षों से दिल्ली पब्लिक स्कूल ,रोहिणी में अध्यापन कार्य में संलग्न हैं। उन्होंने कक्

राग भैरव : SWARGOSHTHI – 316 : RAG BHAIRAV

स्वरगोष्ठी – 316 में आज संगीतकार रोशन के गीतों में राग-दर्शन – 2 : राग भैरव में लोरी राग भैरव में निबद्ध प्रभा अत्रे से शिव-स्तुति और लता मंगेशकर से लोरी सुनिए ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के मंच पर ‘स्वरगोष्ठी’ की नई श्रृंखला “संगीतकार रोशन के गीतों में राग-दर्शन” की दूसरी कड़ी के साथ मैं कृष्णमोहन मिश्र, आप सब संगीत-प्रेमियों का हार्दिक स्वागत करता हूँ। मित्रों, इस श्रृंखला में हम फिल्म जगत में 1948 से लेकर 1967 तक सक्रिय रहे संगीतकार रोशन के राग आधारित गीत प्रस्तुत कर रहे हैं। रोशन ने भारतीय फिल्मों में हर प्रकार का संगीत दिया है, किन्तु राग आधारित गीत और कव्वालियों को स्वरबद्ध करने में उन्हें विशिष्टता प्राप्त थी। भारतीय फिल्मों में राग आधारित गीतों को स्वरबद्ध करने में संगीतकार नौशाद और मदन मोहन के साथ रोशन का नाम भी चर्चित है। इस श्रृंखला में हम आपको संगीतकार रोशन के स्वरबद्ध किये राग आधारित गीतों में से कुछ गीतों को चुन कर सुनवा रहे हैं और इनके रागों पर चर्चा भी कर रहे हैं। इस परिश्रमी संगीतकार का पूरा नाम रोशन लाल नागरथ था। 14 जुलाई 1917 को तत्काल

चित्रकथा - 17: नक़्श ल्यालपुरी के लिखे 60 मुजरे (भाग-2)

अंक - 17 नक़्श ल्यालपुरी के लिखे 60 मुजरे - भाग 2 "क़दर तूने ना जानी, बीती जाए जवानी..."  ’रेडियो प्लेबैक इण्डिया' के सभी श्रोता-पाठकों को सुजॉय चटर्जी का प्यार भरा नमस्कार। समूचे विश्व में मनोरंजन का सर्वाधिक लोकप्रिय माध्यम सिनेमा रहा है और भारत कोई व्यतिक्रम नहीं। बीसवीं सदी के चौथे दशक से सवाक् फ़िल्मों की जो परम्परा शुरु हुई थी, वह आज तक जारी है और इसकी लोकप्रियता निरन्तर बढ़ती ही चली जा रही है। और हमारे यहाँ सिनेमा के साथ-साथ सिने-संगीत भी ताल से ताल मिला कर फलती-फूलती चली आई है। सिनेमा और सिने-संगीत, दोनो ही आज हमारी ज़िन्दगी के अभिन्न अंग बन चुके हैं। ’चित्रकथा’ एक ऐसा स्तंभ है जिसमें बातें होंगी चित्रपट की और चित्रपट-संगीत की। फ़िल्म और फ़िल्म-संगीत से जुड़े विषयों से सुसज्जित इस पाठ्य स्तंभ में आपका हार्दिक स्वागत है।  एक बार ’विविध भारती’ के एक साक्षात्कार में गीतकार नक़्श ल्यालपुरी साहब ने फ़रमाया था कि उन्होंने क़रीब 60 मुजरे लिखे हैं जो कि अलग-अलग रंग, अलग-अलग मिज़ाज के हैं। उन्होंने श्रोताओं से इन्हें सुनने का भी सुझाव दिया था। यह बात म