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होरी ठुमरी : SWARGOSHTHI – 311 : HORI THUMARI

स्वरगोष्ठी – 311 में आज फागुन के रंग – 3 : होरी ठुमरी में फाल्गुनी रस पण्डित भीमसेन जोशी के दिव्य स्वर में सुनिए – “होरी खेलत नन्दकुमार...” ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के मंच पर ‘स्वरगोष्ठी’ की श्रृंखला “फागुन के रंग” की तीसरी कड़ी के साथ मैं कृष्णमोहन मिश्र, आप सब संगीत-प्रेमियों का हार्दिक स्वागत करता हूँ। मित्रों, इस श्रृंखला में हम आपसे फाल्गुनी संगीत पर चर्चा कर रहे हैं। भारतीय पंचांग के अनुसार बसन्त ऋतु की आहट माघ मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी को ही मिल जाती है। बसन्त ऋतु के आगमन के साथ ऋतु के अनुकूल गायन-वादन का सिलसिला आरम्भ हो जाता है। इस ऋतु में राग बसन्त और राग बहार आदि का गायन-वादन किया जाता है। होलिका दहन के साथ ही रंग-रँगीले फाल्गुन मास का आगमन होता है। पिछले दिनों हमने हर्षोल्लास से होलिका दहन और उसके अगले दिन रंगों का पर्व मनाया था। इस परिवेश का एक प्रमुख राग काफी होता है। स्वरों के माध्यम से फाल्गुनी परिवेश, विशेष रूप से श्रृंगार रस की अभिव्यक्ति के लिए राग काफी सबसे उपयुक्त राग है। अब तो चैत्र, शुक्ल प्रतिपदा अर्थात भारतीय नववर्ष का शुभा

चित्रकथा - 12: 'अप्रैल फ़ूल’ पर बनी देश-विदेश की दस फ़िल्में

अंक - 12 'अप्रैल फ़ूल’ पर बनी देश-विदेश की दस फ़िल्में “ अप्रैल फ़ूल बनाया तो उनको ग़ुस्सा आया... ” ’रेडियो प्लेबैक इण्डिया' के सभी श्रोता-पाठकों को सुजॉय चटर्जी का प्यार भरा नमस्कार। समूचे विश्व में मनोरंजन का सर्वाधिक लोकप्रिय माध्यम सिनेमा रहा है और भारत कोई व्यतिक्रम नहीं। बीसवीं सदी के चौथे दशक से सवाक् फ़िल्मों की जो परम्परा शुरु हुई थी, वह आज तक जारी है और इसकी लोकप्रियता निरन्तर बढ़ती ही चली जा रही है। और हमारे यहाँ सिनेमा के साथ-साथ सिने-संगीत भी ताल से ताल मिला कर फलती-फूलती चली आई है। सिनेमा और सिने-संगीत, दोनो ही आज हमारी ज़िन्दगी के अभिन्न अंग बन चुके हैं। ’चित्रकथा’ एक ऐसा स्तंभ है जिसमें बातें होंगी चित्रपट की और चित्रपट-संगीत की। फ़िल्म और फ़िल्म-संगीत से जुड़े विषयों से सुसज्जित इस पाठ्य स्तंभ में आपका हार्दिक स्वागत है।  वर्ष 1392 में प्रकाशित ’The Chaucer's Canterbury Tales' के अन्तरगत ’Nun's Priest's Tale' की कहानी जिस दिन विशेष पर आधारित है उसे उस पुस्तक में "Syn March bigan thritty dayes and two" के रूप

गीत अतीत 06 || हर गीत की एक कहानी होती है || हौले हौले || साहिल सुल्तानपुरी

Geet Ateet 06 Har Geet Kii Ek Kahaani Hoti Hai... Haule Haule  Sahil Sultanpuri - Lyricist हरिहरन के स्वरबद्ध किये और साहिल सुल्तानपुरी के लिखे इस गैर फ़िल्मी गीत को गाया है साधना जेजुरिकर ने, जिसका नाम है "हौले हौले", आईये आज सुनें इस गीत के गीतकार साहिल सुल्तानपुरी की जुबानी, इस नए गीत के बनने की कहानी, प्ले पर क्लिक करें और सुनें.... डाउनलोड कर के सुनें  यहाँ  से.... सुनिए इन गीतों की कहानियां भी - ओ रे रंगरेज़ा (जॉली एल एल बी) मैनरलैस मजनूं (रंनिंग शादी डॉट कॉम) रंग (अरविन्द तिवारी, गैर फ़िल्मी सिंगल) हमसफ़र (बदरी की दुल्हनिया) सनशाईन (गैर फ़िल्मी सिंगल)

फाल्गुनी गीत : SWARGOSHTHI – 310 : SONGS OF FAGUN

स्वरगोष्ठी – 310 में आज फागुन के रंग – 2 : राग काफी में कुछ और गीत पण्डित जसराज से सुनिए -“परमानन्द प्रभु चतुर ग्वालिनी तज रज तक मोरी जाए बलाए...” ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के मंच पर ‘स्वरगोष्ठी’ की श्रृंखला “फागुन के रंग” की दूसरी कड़ी के साथ मैं कृष्णमोहन मिश्र, आप सब संगीत-प्रेमियों का हार्दिक स्वागत करता हूँ। मित्रों, इस श्रृंखला में हम आपसे फाल्गुनी संगीत पर चर्चा कर रहे हैं। भारतीय पंचांग के अनुसार बसन्त ऋतु की आहट माघ मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी को ही मिल जाती है। बसन्त ऋतु के आगमन के साथ ऋतु के अनुकूल गायन-वादन का सिलसिला आरम्भ हो जाता है। इस ऋतु में राग बसन्त और राग बहार आदि का गायन-वादन किया जाता है। होलिका दहन के साथ ही रंग-रँगीले फाल्गुन मास का आगमन होता है। दो सप्ताह पूर्व ही हमने हर्षोल्लास से होलिका दहन और उसके अगले दिन रंगों का पर्व मनाया था। इस परिवेश का एक प्रमुख राग काफी होता है। स्वरों के माध्यम से फाल्गुनी परिवेश, विशेष रूप से श्रृंगार रस की अभिव्यक्ति के लिए राग काफी सबसे उपयुक्त राग है। पिछले अंक में हमने इस राग में ठुमरी और टप्पा

चित्रकथा - 11: 1997 की तीन फ़िल्मों में तीसरे लिंग का सकारात्मक चित्रण

अंक - 11 1997 की तीन फ़िल्मों में तीसरे लिंग का सकारात्मक चित्रण “ अपने देस में हम हैं परदेसी कोई ना पहचाने... ” ’रेडियो प्लेबैक इण्डिया' के सभी श्रोता-पाठकों को सुजॉय चटर्जी का प्यार भरा नमस्कार। समूचे विश्व में मनोरंजन का सर्वाधिक लोकप्रिय माध्यम सिनेमा रहा है और भारत कोई व्यतिक्रम नहीं। बीसवीं सदी के चौथे दशक से सवाक् फ़िल्मों की जो परम्परा शुरु हुई थी, वह आज तक जारी है और इसकी लोकप्रियता निरन्तर बढ़ती ही चली जा रही है। और हमारे यहाँ सिनेमा के साथ-साथ सिने-संगीत भी ताल से ताल मिला कर फलती-फूलती चली आई है। सिनेमा और सिने-संगीत, दोनो ही आज हमारी ज़िन्दगी के अभिन्न अंग बन चुके हैं। ’चित्रकथा’ एक ऐसा स्तंभ है जिसमें बातें होंगी चित्रपट की और चित्रपट-संगीत की। फ़िल्म और फ़िल्म-संगीत से जुड़े विषयों से सुसज्जित इस पाठ्य स्तंभ में आपका हार्दिक स्वागत है।  हिन्दी फ़िल्मों में तीसरे लिंग का चित्रण दशकों से होता आया है। अफ़सोस की बात है कि ऐसे चरित्रों को सस्ती कॉमेडी के लिए प्रयोग में लाये जाते हैं या फिर घृणा की नज़रों से देखा जाता है। बार-बार वही घिसा-पिटा रूढ़ीबद्ध

गीत अतीत 05 || हर गीत की एक कहानी होती है || सनशाईन || अनुराग मोहन ||

Geet Ateet 05 Har Geet Kii Ek Kahaani Hoti Hai... Sunshine Anurag Mohn- Singer & Composer आज के गैर फ़िल्मी गीत की बारी, गायक संगीतकार अनुराग मोहन सुना रहे हैं अपने नए गीत "सनशाईन" के बनने की दिलचस्प कहानी, इस गीत को स्वरबद्ध किया है खुद अनुराग ने और शब्द लिखे हैं अमित घरावी और श्रद्धा भिलावे ने, प्ले पर क्लिक करें और आनंद लें.... डाउनलोड कर के सुनें  यहाँ  से.... सुनिए इन गीतों की कहानियां भी - ओ रे रंगरेज़ा (जॉली एल एल बी) मैनरलैस मजनूं (रंनिंग शादी डॉट कॉम) रंग (अरविन्द तिवारी, गैर फ़िल्मी सिंगल) हमसफ़र (बदरी की दुल्हनिया)

लगता नहीं है जी मेरा उजड़े दयार में.. मादर-ए-वतन से दूर होने के ज़फ़र के दर्द को हबीब की आवाज़ ने कुछ यूँ उभारा

महफ़िल ए कहकशाँ 20 बहादुर शाह ज़फ़र  दो स्तों सुजोय और विश्व दीपक द्वारा संचालित "कहकशां" और "महफिले ग़ज़ल" का ऑडियो स्वरुप लेकर हम हाज़िर हैं, "महफिल ए कहकशां" के रूप में पूजा अनिल और रीतेश खरे  के साथ।  अदब और शायरी की इस महफ़िल में आज पेश है आखिरी मुग़ल बादशाह बहादुर शाह ज़फ़र की लिखी मशहूर गज़ल "लगता नहीं जी मेरा उजड़े दयार में" हबीब वली मोहम्मद की आवाज़ में|  मुख्य स्वर - पूजा अनिल एवं रीतेश खरे स्क्रिप्ट - विश्व दीपक एवं सुजॉय चटर्जी