Skip to main content

Posts

स्वाधीनता संग्राम और फ़िल्मी गीत (भाग-3)

विशेष अंक : भाग 3 भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में फिल्म संगीत की भूमिका   'रेडियो प्लेबैक इण्डिया' के सभी पाठकों को सुजॉय चटर्जी का नमस्कार! मित्रों, इन दिनों हर शनिवार को आप हमारी विशेष श्रृंखला 'भारत के स्वाधीनता संग्राम में फ़िल्म-संगीत की भूमिका' पढ़ रहे हैं। पिछले सप्ताह हमने इस विशेष श्रृंखला का दूसरा भाग प्रस्तुत किया था। आज प्रस्तुत है, इस श्रृंखला का तीसरा भाग। गतांक से आगे... 1943 में ही नितिन बोस निर्देशित फ़िल्म ‘काशीनाथ’ में पंडित भूषण का लिखा, पंकज मल्लिक का स्वरबद्ध किया और असित बरन का गाया एक देशभक्ति गीत था “हम चले वतन की ओर, खेंच रहा है कोई हमको”। सन्‍1944 में मुमताज़ शान्ति, मोतीलाल, शेख मुख्तार, कन्हैयालाल अभिनीत ‘रणजीत मूवीटोन’ की फ़िल्म ‘पगली दुनिया’ में रामानन्द का लिखा और बुलो सी. रानी का स्वरबद्ध किया भोला का गाया एक देश भक्ति गीत था “सोए हुए भारत के मुकद्दर को जगा दे”। यह बुलो सी. रानी की पहली फ़िल्म थी बतौर संगीतकार। पहली फ़िल्म की बात करें तो संगीतकार जोड़ी हुस्नलाल-भगतराम की भी इसी वर्ष पहली फ़िल्म आई ‘चाँद’ जि

सुधियों के गाँव में विचरते रोहित रूसिया और मनोज जैन मधुर से मिलें

दोस्तों रेडियो प्लेबैक पर हम निरंतर नए और उभरते हुए गायकों, गीतकारों और संगीतकारों को अपने श्रोताओं से जोड़ते चले आये हैं, आज इस सूची में हम जोड़ रहे हैं एक ऐसे अनूठे कलाकार का नाम भी जो एक अच्छे गायक होने के साथ साथ शब्दों के अच्छे पारखी भी है और किसी भी कविता /गीत को सहज धुन में पिरो लेने की महारत भी रखते हैं. ये हैं रोहित रूसिया जो मध्य प्रदेश के छिंदवाडा जिले से हैं, आज अपनी पहली प्रस्तुति के रूप में ये लाये हैं कवि मनोज जैन 'मधुर' की रचना. हालाँकि संगीत संयोजन रोहित नहीं कर पाए पर गीत अपनी मधुरता में किसी भी पूर्ण रूप से संयोजित गीत से कम नहीं है. आप भी सुनें और इस प्रतिभाशाली फनकार को अपनी प्रतिक्रिया देकर प्रोत्साहित करें-  # A Radio Playback Original  Man Paakhi Ud chal re   Lyrics - Manoj Jain Madhur  Music and Vocals - Rohit Rusia  

‘मेरा रंग दे बसन्ती चोला...’ शहीद-ए-आजम को नमन

भारतीय सिनेमा के सौ साल – 39 एक गीत सौ कहानियाँ – 23 बलिदानी भगत सिंह का सर्वप्रिय गीत : ‘मेरा रंग दे बसन्ती चोला...’ आपके प्रिय स्तम्भकार सुजॉय चटर्जी ने 'रेडियो प्लेबैक इण्डिया' पर गत वर्ष 'एक गीत सौ कहानियाँ' नामक स्तम्भ आरम्भ किया था, जिसके अन्तर्गत हर अंक में वे किसी फिल्मी या गैर-फिल्मी गीत की विशेषताओं और लोकप्रियता पर चर्चा करते थे। यह स्तम्भ 20 अंकों के बाद मई 2012 में स्थगित कर दिया गया था। गत जनवरी माह से हमने इस स्तम्भ का प्रकाशन ‘भारतीय सिनेमा के सौ साल’ श्रृंखला के अन्तर्गत पुनः शुरू किया है। आज 'एक गीत सौ कहानियाँ' स्तम्भ की 23वीं कड़ी में सुजॉय चटर्जी प्रस्तुत कर रहे हैं, भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम का अत्यन्त चर्चित गीत- ‘मेरा रंग दे बसन्ती चोला...’ के बारे में कुछ विस्मृत विवरण। यह गीत सरदार भगत सिंह का सर्वप्रिय गीत था, जिसे गाते हुए उन्होने 23 मार्च, 1931 को देश की खातिर अपने दो अन्य साथियों के साथ स्वयं का बलिदान किया था। आज के इस अंक के माध्यम से हम इसी गीत के बहाने इन तीनों बलिदानियों को नमन करते हैं।