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मिलिए "सिगरेट की तरह" के संगीतकार सुदीप बैनर्जी से

ग़ज़ल गायक और संगीतकार सुदीप बैनर्जी 50 से भी अधिक एलबम्स को स्वरबद्ध कर चुके हैं. आशा भोसले, जगजीत सिंह, उस्ताद राशिद खान, हरिहरण, रूप कुमार राठोड, अनूप जलोटा, सुरेश वाडकर, शान, श्रेया घोषाल, और कैलाश खेर जैसे ढेरों बड़े फनकारों के साथ काम कर चुके हैं. "चौसर", "लव तुम्हारा' और अभी हाल ही में प्रदर्शित "सिगरेट की तरह" के इनके संगीतबद्ध गीतों को हम आप सुन चुके हैं. गायक संगीतकार के रूप में इनकी ताज़ा एल्बम "इरशाद" को वर्ष २०१२ की सर्वश्रेष्ठ गज़ल एल्बम के लिए नामांकित किया गया है. सुदीप आज हमारे साथ हैं अपने संगीत और अपनी ताज़ा फिल्म के बारे कुछ बातें हमारे साथ बांटने के लिए, उनसे हुई हमारी बातचीत का आनंद लें  सजीव – नमस्कार सुदीप , स्वागत है आपका रेडियो प्लेबॅक इंडिया पर … और बधाई आपको आपकी नयी फिल्म ‘ सिगरेट की तरह ’ के लिए … सुदीप – बहुत बहुत शुक्रिया सजीव जी.. सजीव – फिल्म में आपके दो गीत हैं , सबसे पहले तो इस फिल्म के बारे में कुछ विस्तार से बताएँ … सुदीप – ये एक मर्डर मिस्टरी फिल्म है जहाँ एक भोला भाला लड़का जो लखनऊ स

बोलती कहानी - कछुआ और खरगोश - इब्ने इंशा

'बोलती कहानियाँ' इस स्तम्भ के अंतर्गत हम आपको सुनवा रहे हैं प्रसिद्ध कहानियाँ। पिछले सप्ताह आपने अनुराग शर्मा की आवाज़ में साहित्य वाचस्पति पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी ‘मास्टरजी’ की लघुकथा " झलमला " का पॉडकास्ट सुना था। आज हम आपकी सेवा में प्रस्तुत कर रहे हैं इब्ने इंशा की लघुकथा " कछुआ और खरगोश ", जिसको स्वर दिया है अनुराग शर्मा ने।  कहानी " कछुआ और खरगोश " का कुल प्रसारण समय 2 मिनट 22 सेकंड है। सुनें और बतायें कि हम अपने इस प्रयास में कितना सफल हुए हैं।  यदि आप भी अपनी मनपसंद कहानियों, उपन्यासों, नाटकों, धारावाहिको, प्रहसनों, झलकियों, एकांकियों, लघुकथाओं को अपनी आवाज़ देना चाहते हैं तो अधिक जानकारी के लिए कृपया admin@radioplaybackindia.com पर सम्पर्क करें। सब माया है, सब चलती फिरती छाया है तेरे इश्क़ में हमने जो खोया है जो पाया है जो तुमने कहा और फैज़ ने जो फरमाया है सब माया है, सब माया है। ~ इब्ने इंशा (1927-1978) हर सप्ताह को यहीं पर सुनें एक नयी कहानी काफी जमाना सुस्ता लिए तो फिर मंजिल की तरफ चल पड़े। ( इब्ने इंशा की &qu

रेडियो प्लेबैक टॉप २० हिट परेड

रे डियो प्लेबैक इंडिया के इस वार्षिक आयोजन में आप सबका स्वागत है. इस बार वर्ष के टॉप २० गीत चुनने में अहम भूमिका निभाई हमारे श्रोताओं ने भी. हमने आपके सामने रखे थे हमारी टीम द्वारा चुने गए ५० गीत  . और आप सबकी वोटिंग के आधार पर हमें मिले उन ५० श्रेष्ठ गीतों में से छन कर आये २० सर्वश्रेष्ठ गीत. वो गीत जो हैं आप यानी हमारे श्रोताओं की राय में वर्ष के सबसे यादगार गीत. याद रहे हमने ५० गीत जो चुने थे वो लोकप्रियता के आधार पर नहीं, वरन वो थे जो हमारी आतंरिक समीक्षा के मापदंडों पर खरे उतरे थे. तो लीजिए आनंद लीजिए साल २०१२ के २० सर्वश्रेष्ठ गीतों का जिन्हें चुना है रेडियो प्लेबैक की टीम और उसके श्रोताओं ने.

संगीतकार नौशाद के 94वें जन्मदिवस पर एक विशेष श्रृंखला

स्वरगोष्ठी-101 में आज   फिल्म संगीत के गुलदस्ते को रागों की खुशबू दी अप्रतिम साधक नौशाद अली ने    ‘स्वरगोष्ठी’ का यह 101वाँ अंक है और इस विशेष अंक में मैं कृष्णमोहन मिश्र सभी संगीत-प्रेमियों का हार्दिक अभिनन्दन करता हूँ। मित्रों, दो दिन बाद ही अर्थात 25 दिसम्बर को भारतीय सिनेमा के एक महान संगीतकार नौशाद अली का 94वाँ जन्मदिवस हम मनाने जा रहे हैं। इस उपलक्ष्य में हम ‘स्वरगोष्ठी’ की दो कड़ियों के माध्यम से सिनेमा संगीत का एक मानक स्थापित करने वाले संगीतकार नौशाद के व्यक्तित्व और कृतित्व का स्मरण कर रहे हैं। आज के अंक के लिए हमने 1946 से लेकर 1955 तक, अर्थात एक दशक की अवधि के कुछ राग आधारित गीतों को चुना है जिनमें नौशाद की सांगीतिक प्रतिभा के स्पष्ट दर्शन होते हैं। 25 दिसम्बर, 1919 को सांगीतिक परम्परा से समृद्ध शहर लखनऊ के कन्धारी बाज़ार में एक साधारण परिवार में नौशाद का जन्म हुआ था। नौशाद जब कुछ बड़े हुए तो उनके पिता घसियारी मण्डी स्थित अपने नए घर में आ गए। यहीं निकट ही मुख्य मार्ग लाटूश रोड (वर्तमान गौतम बुद्ध मार्ग) पर संगीत के वाद्ययंत्र बनाने और ब

'सिने पहेली' में आज क्रिस्मस स्पेशल

22 दिसम्बर, 2012 सिने-पहेली - 51  में आज   पहचानिये सैण्टा क्लॉस के पीछे छुपे चेहरों को 'रेडियो प्लेबैक इण्डिया' के सभी पाठकों और श्रोताओं को सुजॉय चटर्जी का सप्रेम नमस्कार। दोस्तों, पिछली कड़ी में हमने आपसे जो सवाल पूछा था, उसके जो जवाब आप सब ने भेजे हैं, उसे देख कर हम सचमुच चकित रह गए हैं। हमने तो यही सोचा था कि आप ज़्यादा से ज़्यादा 40-50 गीत चुन कर भेजेंगे, पर आप में से कई प्रतियोगियों ने तो इससे कई गुणा अधिक गीत लिख कर भेजे हैं। पर दोस्तों, कई बार क्या होता है कि क्वान्टिटी के अधिक होने से क्वालिटी पर असर पड़ता है, आप सब के साथ भी वही हुआ। बिना जाँच-पड़ताल किए सीधे इंटरनेट से उपलब्ध जानकारी के अनुसार गीतों की सूची भेजने की वजह से कई गीत आप ने ग़लत भी भेज दिए हैं। तीन गायकों वाले कुछ गीतों में चौथा नाम डाल कर भी कुछ गीत आये हैं (उदाहरण - फ़िल्म 'राम लखन' के गीत "माइ नेम इज़ लखन" को मोहम्मद अज़ीज़, अनुराधा पौडवाल और नितिन मुकेश ने गाया है, जबकि कुछ प्रतियोगियों ने अनुराधा श्रीराम का नाम भी शामिल कर दिया है, जो ग़लत है)। इसी तरह से पाँच गायको

शब्दों के चाक पर - अंक 22

जब तुम्हारे दिल में मेरे लिए प्यार उमड़ आये, और वो तुम्हारी आँखो से छलक सा जाए मुझसे अपनी दिल के बातें सुनने को यह दिल तुम्हारा मचल सा जाए तब एक आवाज़ दे कर मुझको बुलाना दिया है जो प्यार का वचन सजन, तुम अपनी इस प्रीत की रीत को निभाना ~ रंजु भाटिया दोस्तों, कविता पाठ के इस साप्ताहिक कार्यक्रम की आज की कड़ी में हमारा विषय है - "प्रीत की रीत निभाये" एवं "उस पार और एक आवाज़ "। हमने शुरूआत प्यार से की और सफर खत्म पर किया यादों पर। दोनों विषयों पर हमें एक से बढकर कविताएँ पढने को मिलीं और हमने पूरी कोशिश की कि उनमें से कुछ कविताएँ आपको सुनवा दें। उम्मीद करते हैं कि हम इस प्रयास में सफल हुए होंगे। कविताएं पिरोकर लाये हैं आज हमारे विशिष्ट कवि मित्र। पॉडकास्ट को स्वर दिया है शेफाली गुप्ता ओर अनुराग शर्मा ने, स्क्रिप्ट रची है विश्व दीपक ने, सम्पादन व संचालन है अनुराग शर्मा का। आइये सुनिए सुनाईये ओर छा जाईये ... (नीचे दिए गए किसी भी प्लेयेर से सुनें)  या फिर यहाँ से डाउनलोड करें (राईट क्लिक करके 'सेव ऐज़ चुनें') &

रफी ने जब नौशाद का पहला गीत गाया : नौशाद के 94वें जन्मदिन पर विशेष

स्मृतियों के झरोखे से : भारतीय सिनेमा के सौ साल – 28 नौशाद की बारात में जब बैंड पर उन्हीं के रचे गीतों की धुन बजी भारतीय सिनेमा के शताब्दी वर्ष में ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ द्वारा आयोजित विशेष अनुष्ठान- ‘स्मृतियों के झरोखे से’ में आप सभी सिनेमा प्रेमियों का मैं कृष्णमोहन मिश्र अपने साथी सुजॉय चटर्जी के साथ हार्दिक स्वाग त करता हूँ । मित्रों, लगभग आधी शताब्दी तक सिने-संगीत पर एकछत्र राज करने वाले चर्चित संगीतकार नौशाद अली का 25 दिसम्बर को 94वाँ जन्मदिवस है। इस अवसर के लिए आज का यह अंक हम उनकी स्मृतियों को समर्पित कर रहे हैं। फिल्मों में नौशाद का पदार्पण चौथे दशक में ही हो गया था, किन्तु उन्हे स्वतंत्र रूप से पहचान मिली पाँचवें दशक के आरम्भिक वर्षों में। उनके संगीत से सजी, 1944 में प्रदर्शित फिल्म ‘रतन’ को आशातीत सफलता मिली थी। आज के अंक में फिल्म ‘रतन’ और इसी वर्ष बनी तीन अन्य फिल्मों में नौशाद के रचनात्मक योगदान की  चर्चा करेंगे। 1944 का साल संगीतकार नौशाद के करीयर का ‘टर्निंग पॉयण्ट ईयर’ साबित हुआ। गीतकार के रूप में ख्याति अर्जित करने के बाद दीनान