Skip to main content

Posts

फिल्मों के आँगन में ठुमकती पारम्परिक ठुमरी – ५

स्वरगोष्ठी – ९४ में आज ‘कौन गली गयो श्याम...’ : श्रृंगार और भक्ति का अनूठा समागम ‘स्वरगोष्ठी’ पर जारी लघु श्रृंखला ‘फिल्मों के आँगन में ठुमकती पारम्परिक ठुमरी’ की आज पाँचवीं कड़ी है। इस श्रृंखला में हम आपके लिए कुछ ऐसी पारम्परिक ठुमरियाँ प्रस्तुत कर रहे हैं, जिन्हें फिल्मों में भी शामिल किया गया। ऐसी ठुमरियों का पारम्परिक और फिल्मी, दोनों रूप आप सुन रहे हैं। आज के अंक में हम प्रस्तुत करने जा रहे हैं, खमाज की एक बेहद लोकप्रिय ठुमरी- ‘कौन गली गयो श्याम...’। आप सब संगीत-प्रेमियों का हार्दिक स्वागत करते हुए, मैं कृष्णमोहन मिश्र, आरम्भ करता हूँ, ‘फिल्मों के आँगन में ठुमकती पारम्परिक ठुमरी’ श्रृंखला का नया अंक। ह मारी आज की पारम्परिक ठुमरी राग खमाज की है, जिसके स्थायी के बोल हैं- ‘कौन गली गयो श्याम...’ । इस ठुमरी को कई गायक-गायिकाओं ने गाया है। इनमें से आज के अंक में हम विदुषी रसूलन बाई, डॉ. प्रभा अत्रे, पण्डित छन्नूलाल मिश्र और विदुषी परवीन सुलताना के स्वरों में यह ठुमरी प्रस्तुत करेंगे। पिछले अंक में भी हमने रसूलन बाई के स्वर में एक अन्य ठुमरी प्रस्तु

"रोमांस के जादूगर" और "हँसी के शहंशाह" को 'सिने पहेली' का सलाम...

(27 अक्टूबर, 2012) सिने-पहेली # 43 'रेडियो प्लेबैक इण्डिया' के सभी पाठकों और श्रोताओं को सुजॉय चटर्जी का सप्रेम नमस्कार। अक्टूबर का यह सप्ताह जहाँ एक ओर त्योहारों की ख़ुशियाँ लेकर आया, वहीं दूसरी ओर दो दुखद समाचारों ने सब के दिल पर गहरा चोट पहुँचाया। मनोरंजन जगत के दो दिग्गज कलाकारों को काल के क्रूर हाथों ने हम से छीन लिए। इनमें एक हैं रोमांस के जादूगर, सुप्रसिद्ध फ़िल्म निर्माता व निर्देशक  यश चोपड़ा और दूसरे हैं हँसी के शहंशाह, जाने-माने हास्य अभिनेता जसपाल भट्टी। आज की 'सिने पहेली' समर्पित है यश चोपड़ा और जसपाल भट्टी की पुण्य स्मृति को।  य श चोपड़ा अपनी फ़िल्मों (ख़ास कर अपनी निर्देशित फ़िल्मों) में रोमांस को उस मकाम तक लेकर गये कि हर पीढ़ी के लोगों को उनकी फ़िल्मों से, उनकी फ़िल्मों की नायक-नायिकाओं से प्यार हो गया। हर फ़िल्म में प्यार की एक नई परिभाषा उन्होंने बयाँ की। उनकी फ़िल्मों की सफलता का राज़ है कि लोग उनके किरदारों में अपनी झलक पाते हैं या अपने आप को उन किरदारों जैसा बनने का सपना देखते हैं। जनता की नव्ज़ को बख़ूबी पकड़ती रही है यश

शब्दों के चाक पर - 18

" आओ घोटाला करें " और " आवाज़ दे, कहाँ है " काजू भुने पलेट में, विस्की गिलास में उतरा है रामराज विधायक निवास में पक्के समाजवादी हैं, तस्कर हों या डकैत इतना असर है ख़ादी के उजले लिबास में आजादी का वो जश्न मनायें तो किस तरह जो आ गए फुटपाथ पर घर की तलाश में पैसे से आप चाहें तो सरकार गिरा दें संसद बदल गयी है यहाँ की नख़ास में जनता के पास एक ही चारा है बगावत यह बात कह रहा हूँ मैं होशो-हवास में दोस्तों, आज की कड़ी में हमारे दो विषय हैं - " आओ घोटाला करें " और " आवाज़ दे, कहाँ है " है। जीवन के इन दो अलग-अलग पहलुओंकी कहानियाँ पिरोकर लाये हैं आज हमारे विशिष्ट कवि मित्र। पॉडकास्ट को स्वर दिया है अभिषेक ओझा ओर  अनुराग शर्मा  ने, स्क्रिप्ट रची है विश्व दीपक ने, सम्पादन व संचालन है अनुराग शर्मा का, व सहयोग है वन्दना गुप्ता का। आइये सुनिए सुनाईये ओर छा जाईये ... (नीचे दिए गए किसी भी प्लेयेर से सुनें) या फिर यहाँ से डाउनलोड करें "शब्दों के चाक पर" हमारे कवि मित्रों के लिए हर हफ्ते हो