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बोलती कहानियाँ - कमज़ोर - अन्तोन चेख़व

'बोलती कहानियाँ' स्तम्भ के अंतर्गत हम आपको सुनवा रहे हैं प्रसिद्ध कहानियाँ। पिछले सप्ताह आपने अनुराग शर्मा की आवाज़ में प्राख्यात साहित्यकार अमृतलाल नागर की कहानी " "कवि का साथ" का पॉडकास्ट सुना था। आज हम आपकी सेवा में प्रस्तुत कर रहे हैं प्रसिद्ध रूसी लोकप्रिय लेखक श्री अन्तोन चेख़व की कहानी " कमज़ोर ", अनुराग शर्मा की आवाज़ में। कहानी " कमज़ोर " का टेक्स्ट "हिन्दी समय" पर उपलब्ध है। कहानी का कुल प्रसारण समय 3 मिनट 19 सेकंड है। सुनें और बतायें कि हम अपने इस प्रयास में कितना सफल हुए हैं।  यदि आप भी अपनी मनपसंद कहानियों, उपन्यासों, नाटकों, धारावाहिको, प्रहसनों, झलकियों, एकांकियों, लघुकथाओं को अपनी आवाज़ देना चाहते हैं तो अधिक जानकारी के लिए कृपया admin@radioplaybackindia.com पर सम्पर्क करें। “किसी भी व्यक्ति की हर चीज़ अच्छी होनी चाहिए। चाहे उसका चेहरा हो या उसकी आत्मा। चाहे उसके कपड़े हों या उसके विचार।” ~  अन्तोन चेख़व (1860-1904) हर सप्ताह यहीं पर सुनें एक नयी कहानी "नहीं, नहीं, तीस में ही बात की थी । तुम

प्लेबैक इंडिया वाणी (२०) आइय्या , और आपकी बात-- बोल्ड थीम के अनुरूप ही बोल्ड है "आइय्या" का संगीत

संगीत समीक्षा -    आइय्या दोस्तों पिछले सप्ताह हमने बात की थी अमित त्रिवेदी के “इंग्लिश विन्गलिश” की और हमने अमित को आज का पंचम कहा था. अमित दरअसल वो कर सकते हैं जो एक श्रोता के लिहाज से शायद हम उनसे उम्मीद भी न करें. उन्होंने हमें कई बार चौंकाया है. लीजिए तैयार हो जाईये एक बार फिर हैरान होने के लिए. जी हाँ आज हम चर्चा कर रहे उनकी एक और नयी फिल्म “आइय्या” का, जिसमें वो लौटे हैं अपने प्रिय गीतकार अमिताभ भट्टाचार्य के साथ. मुझे लगता है कि अमिताभ भी अमित के साथ जब मिलते हैं तो अपने श्रेष्ठ दे पाते हैं. आईये जानें की क्या है आइय्या के संगीत में आपके लिए. हाँ वैधानिक चेतावनी एक जरूरी है. दोस्तों ये संगीत ऐसा नहीं है कि आप पूरे परिवार के साथ बैठ कर सुन सकें. हाँ मगर अकेले में आप इसका भरपूर आनंद ले सकते हैं. वैसे बताना हमारा फ़र्ज़ था बाकी आप बेहतर जानते हैं. खैर बढते हैं अल्बम के पहले गीत की तरफ. ८० के डिस्को साउंड के साथ शुरू होता है “ड्रीमम वेकपम” गीत, जो जल्दी ही दक्षिण के रिदम में ढल जाता है. पारंपरिक नागास्वरम और मृदंग मिलकर एक पूरा माहौल ही रच डालते हैं. ये गीत आपको ह

फिल्मों के आँगन में ठुमकती पारम्परिक ठुमरी – ३

स्वरगोष्ठी – ९२ में आज  मन्ना डे ने गाया उस्ताद फ़ैयाज़ खाँ का दादरा ‘बनाओ बतियाँ चलो काहे को झूठी...’   ‘स्वरगोष्ठी’ पर जारी लघु श्रृंखला ‘फिल्मों के आँगन में ठुमकती पारम्परिक ठुमरी’ के एक नए अंक में, मैं कृष्णमोहन मिश्र, आप सब संगीत-प्रेमियों का हार्दिक अभिनन्दन करता हूँ। इस श्रृंखला में हम कुछ ऐसी ठुमरियों पर चर्चा कर रहे हैं, जिन्हें स्वयं मूल गायक-गायिका ने अथवा किसी फिल्मी पार्श्वगायक-गायिका ने फिल्म में भी गाया है। पिछले दो अंकों में हमने आपसे क्रमशः उस्ताद अब्दुल करीम खाँ और बेगम अख्तर की गायी ठुमरियों के फिल्मी प्रयोग पर चर्चा की थी। आज के अंक में हम ‘आफ़ताब-ए-मौसिकी’ के खिताब से नवाज़े गए उस्ताद फ़ैयाज़ खाँ के व्यक्तित्व पर चर्चा करेंगे। साथ ही उनके गाये एक दादरा- “बनाओ बतियाँ चलो काहे को झूठी...” और उसके फिल्मी प्रयोग का भी उल्लेख करेंगे। उ न्नीसवीं शताब्दी के अन्तिम दशक से लेकर पिछली शताब्दी के मध्यकाल तक के जिन संगीतज्ञों की गणना हम शिखर-पुरुष के रूप में करते हैं, उस्ताद फ़ैयाज़ खाँ उन्ही में से एक थे। ध्रुवपद-धमार, खयाल-तराना, ठुमरी-दादरा,