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शब्दों के चाक पर - अंक 14- कहानी माटी की...

माटी सभी की कहानी कहेगी अगर मिट्टी अपनी कहानी कहने बैठे तो इसकी कहानी में इंसानों की कई पीढियाँ निकल जाएँगी। अनगिनत इंसानों की अनगिनत जीवन-गाथएँ सिमट जाएँगी इसकी एक कहानी में ... और यकीन मानिए मिट्टी हर एक कहानी कहेगी. कुछ ऐसे ही भाव सजा कर लाये हैं हमारे कवि मित्र आज अपने शब्दों में. जिसे आवाज़ दी है अभिषेक ओझा ओर शैफाली गुप्ता ने. स्क्रिप्ट रची है विश्व दीपक ने ओर संयोजन सहयोग है वंदना गुप्ता, अनुराग शर्मा ओर सजीव सारथी का, तो सुनिए सुनाईये ओर छा जाईये. (नीचे दिए गए किसी भी प्लेयेर से सुनें)   या फिर  यहाँ   से डाउनलोड करें  "शब्दों के चाक पर" हमारे कवि मित्रों के लिए हर हफ्ते होती है एक नयी चुनौती, रचनात्मकता को संवारने  के लिए मौजूद होती है नयी संभावनाएँ और खुद को परखने और साबित करने के लिए तैयार मिलता है एक और रण का मैदान. यहाँ श्रोताओं के लिए भी हैं कवि मन की कोमल भावनाओं उमड़ता घुमड़ता मेघ समूह जो जब आवाज़ में ढलकर बरसता है तो ह्रदय की सूक्ष्म इन्द्रियों को ठडक से भर जाता है. तो दोस्तों, इससे पहले कि  हम पिछले हफ्ते की

स्मृतियों के झरोखे से : भारतीय सिनेमा के सौ साल – 13

         भूली-बिसरी यादें भारतीय सिनेमा के शताब्दी वर्ष में आयोजित विशेष श्रृंखला ‘स्मृतियों के झरोखे से’ के एक नये अंक के साथ मैं कृष्णमोहन मिश्र आपका स्वागत करता हूँ। इस श्रृंखला में प्रत्येक मास के पहले और तीसरे गुरुवार को हम आपके लिए लेकर आते हैं, मूक फिल्मों के प्रारम्भिक दौर के कुछ रोचक तथ्य और आलेख के दूसरे हिस्से में सवाक फिल्मों के प्रारम्भिक दौर की कोई उल्लेखनीय संगीत रचना और रचनाकार का परिचय। आज के अंक में हम आपसे इस युग के कुछ रोचक तथ्य साझा करेंगे। ‘राजा हरिश्चन्द्र’ से पहले : मंच-नाटक का फिल्मांकन- ‘पुण्डलीक’ भा रत में सिनेमा-निर्माण और प्रदर्शन के प्रयास 1896 से ही आरम्भ हुए थे। शुरुआती दौर में भारतीय और विदेशी फिल्मों में मात्र किसी घटना का फिल्मांकन कर कर दिया जाता था। 1899 में सावे दादा के नाम से विख्यात हरिश्चन्द्र सखाराम भटवाडेकर ने इंग्लैंड से सिने-कैमरा मँगवा कर दो पहलवानों के बीच कुश्ती का फिल्मांकन किया था। उस दौर में परदे पर चलती-फिरती देखना एक चमत्कार से कम नहीं था। चमत्कार के आगे कथ्य की ओर किसी का ध्यान नहीं जाता था। परन्तु यह सि

प्लेबैक इंडिया ब्रोडकास्ट -वर्षा कालीन राग (पहला भाग)

प्लेबैक इंडिया ब्रोडकास्ट के इस ग्यारहवें एपिसोड के साथ आज हम अपने बोर्ड में शामिल कर रहे हैं हमसे जुडी नयी हमसफ़र संज्ञा टंडन जी को. संज्ञा जी १९७७ में रायपुर आकाशवाणी केंद्र की पहली भुगतान प्राप्त बाल कलाकार हैं. १९८६ से १९८८ तक आप युववाणी उद्गोषिका रही,  तत्पश्चात १९९१ से बिलासपुर आकाशवाणी की निमेत्तिक उद्गोषिका हैं. संज्ञा जी ने छत्तीसगढ़ के लगभग सभी आकशवाणी केन्द्रों के लिए प्रायोजित कार्यक्रमों का निर्माण किया है. हर प्रकार के कार्यक्रमों के मंच संचालन में माहिर संज्ञा जी एक सफल ऑनलाईन वोईस ओवर आर्टिस्ट भी हैं. आईये सुनें उनकी आवाज़ में आज वर्षा कालीन राग कार्यक्रम का ये पहला भाग. स्क्रिप्ट है स्वर गोष्टी के संचालक कृष्णमोहन मिश्र जी की.

वो लोग ही कुछ और होते हैं - अभिषेक ओझा

'बोलती कहानियां' इस स्तम्भ के अंतर्गत हम आपको सुनवा रहे हैं प्रसिद्ध कहानियाँ। पिछली बार आपने उषा महाजन की कहानी " बचपन " का पॉडकास्ट शेफाली गुप्ता की आवाज़ में सुना था। आज हम आपकी सेवा में प्रस्तुत कर रहे हैं अभिषेक ओझा की कहानी " वो लोग ही कुछ और होते हैं ", आवाज़ अनुराग शर्मा की। कहानी "वो लोग ही कुछ और होते हैं" का कुल प्रसारण समय 3 मिनट 59 सेकंड है। सुनें और बतायें कि हम अपने इस प्रयास में कितना सफल हुए हैं। इस कथा का टेक्स्ट ओझा-उवाच पर उपलब्ध है। यदि आप भी अपनी मनपसंद कहानियों, उपन्यासों, नाटकों, धारावाहिको, प्रहसनों, झलकियों, एकांकियों, लघुकथाओं को अपनी आवाज़ देना चाहते हैं तो अधिक जानकारी के लिए कृपया admin@radioplaybackindia.com पर सम्पर्क करें। वास्तविकता तो ये है कि किसे फुर्सत है मेरे बारे में सोचने की, लेकिन ये मानव मन भी न! ~ अभिषेक ओझा हर मंगलवार को आवाज़ पर सुनें एक नयी कहानी "उस दुपहरी की लू में लोगों को काम करते देख थोड़ी शर्मिन्दगी तो जरुर हुई और शायद यही कारण था कि मैंने उस आदमी पर ध्यान दिया।"

प्लेबैक इंडिया वाणी (१४) जलपरी - द डेजर्ट मरमेड, और आपकी बात

संगीत समीक्षा -  जलपरी - द डेजर्ट मरमेड इस सप्ताह प्रदर्शित होने वाली फिल्मों में एक बाल फिल्म है 'जलपरी: The Desert Mermaid".हिंदी फिल्मों में ऐसा कम ही होता है जब बच्चों के लिए बनी किसी फिल्म को बच्चों के साथ साथ व्यस्क दर्शकों का प्यार भी मिले. इसकी एक वजह ये भी है कि बच्चों के लिए बनी फिल्मों को ज़रूरत से ज़्यादा नाटकीय रूप से प्रस्तुत किया जाता है.पिछले कुछ समय से इसमें परिवर्तन आया है और बच्चों की फिल्मों के स्वरुप को बदला है. इसी कड़ी में एक और कड़ी जोड़ती है 'जलपरी'. जलपरी का निर्देशन करा है 'आई एम कलाम' के निर्देशक नीला माधब पांडा ने.फिल्म कन्या भ्रूण हत्या पर आधारित है जो आज भी भारत के कई राज्यों में की जाती है.फिल्म की कहानी लिखी है दीपक वेंकटेशन ने. इसका संगीत दिया है आशीष चौहान त और MIDIval Punditz के नाम से मशहूर दिल्ली बेस्ड  Indian fusion group ने. इस  fusion group के कलाकार हैं गोरव राणा और तपन राज. इस फिल्म का कांस फिल्म समारोह में प्रदर्शन हो चुका है. इस फिल्म का पहला गाना है 'बरगद'. इसे गया है गुलाल फिल्म से चर्चा में आये प

आशा भोसले : ८०वें जन्मदिवस पर एक स्वरांजलि

स्वरगोष्ठी – ८६ में आज फिल्म संगीत को विविध शैलियों से सजाने वाली कोकिलकंठी गायिका सं गीत के क्षेत्र में ऐसा उदाहरण बहुत कम मिलता है, जब किसी कलाकार ने मात्र अपने अस्तित्व की रक्षा के लिए लीक से अलग हट कर एक ऐसा मार्ग चुना हो, जो तत्कालीन देश, काल और परिवेश से कुछ भिन्न प्रतीत होता है। परन्तु आगे चल कर वही कार्य एक मानक के रूप में स्थापित हो जाता है। फिल्म संगीत के क्षेत्र में आशा भोसले इसकी जीती-जागती मिसाल हैं। आगामी ८सितम्बर को विश्वविख्यात पार्श्वगायिका आशा भोसले का ८०वाँ जन्मदिवस है। इस अवसर के लिए आज की ‘स्वरगोष्ठी’ में हमने उनके गाये कुछ राग आधारित गीतों का चयन किया है। ये गीत उनकी बहुआयामी गायकी को सिद्ध करने के लिए पर्याप्त हैं। आज की चर्चित पार्श्वगायिका आशा भोसले का जन्म ८सितम्बर, १९३३ को महाराष्ट्र के सांगली में मराठी रंगमंच के सुप्रसिद्ध अभिनेता और गायक दीनानाथ मंगेशकर के घर दूसरी पुत्री के रूप में हुआ था। दीनानाथ जी की बड़ी पुत्री और आशा भोसले की बड़ी बहन विश्वविख्यात लता मंगेशकर हैं, जिनका जन्म २८सितम्बर, १९२९ को हुआ था। दोनों बहनों की प्रारम्भिक संगीत-

आज की 'सिने-पहेली' में है नंबरों का खेल....

सिने-पहेली # 35 (1 सितम्बर, 2012) 'रे डियो प्लेबैक इण्डिया' के सभी पाठकों और श्रोताओं को सुजॉय चटर्जी का सप्रेम नमस्कार, और स्वागत है आप सभी का 'सिने पहेली' स्तंभ में। दोस्तों, इस सप्ताह 'सिने पहेली' परिवार के साथ जुड़े हैं बीकानेर, राजस्थान से महेंद्र कुमार रंगा । महेंद्र जी, आपका हार्दिक स्वागत है इस प्रतियोगिता में और निवेदन है कि आगे भी नियमित रूप से 'सिने पहेली' में भाग लें और अन्य खिलाड़ियों को अच्छी टक्कर देकर प्रतियोगिता को और रोचक बनाएँ। तो इस तरह से बीकानेर से कुल तीन प्रतियोगी जुड़ चुके हैं इस प्रतियोगिता में, अन्य दो खिलाड़ी हैं गौतम केवलिया और विजय कुमार व्यास। दोस्तों, आज 1 सितंबर है, यानी कि साल के आख़िर के चार महीने शुरू हो गए हैं। और इस तरह से 'सिने पहेली' के सफ़र में हम और आप, एक साथ आठ महीने चलते चले आ रहे हैं। आपका और हमारा साथ यूं ही बना रहे, आप यूं ही हमारी पहेलियों को सुलझाते रहें, इस खेल को यूं ही मज़ेदार और ज्ञानवर्धक बनाये रखें, यही आप सब से हमारा निवेदन है। 'सिने पहेली' में हम हमेशा ही कोशिश करते रहे हैं विविध