Skip to main content

Posts

बोलती कहानियाँ - मेले का ऊँट - बालमुकुन्द गुप्त

 'बोलती कहानियाँ' स्तम्भ के अंतर्गत हम आपको सुनवा रहे हैं प्रसिद्ध कहानियाँ। पिछले सप्ताह आपने  रीतेश खरे "सब्र जबलपुरी" की आवाज़ में निर्मल वर्मा की डायरी ' धुंध से उठती धुंध ' का अंश " क्या वे उन्हें भूल सकती हैं का पॉडकास्ट सुना था। आज हम आपकी सेवा में प्रस्तुत कर रहे हैं बालमुकुन्द गुप्त का व्यंग्य " मेले का ऊँट , जिसको स्वर दिया है अर्चना चावजी ने। इस प्रसारण का कुल समय 7 मिनट 33 सेकंड है। सुनें और बतायें कि हम अपने इस प्रयास में कितना सफल हुए हैं। यदि आप भी अपनी मनपसंद कहानियों, उपन्यासों, नाटकों, धारावाहिको, प्रहसनों, झलकियों, एकांकियों, लघुकथाओं को अपनी आवाज़ देना चाहते हैं तो अधिक जानकारी के लिए कृपया admin@radioplaybackindia.com पर सम्पर्क करें। समझ इस बात को नादां जो तुम में कुछ भी गैरत हो, न कर उस काम को हरगिज कि जिसमें तुझको जिल्लत हो।  ~  "बालमुकुन्द गुप्त" (1865 - 1907) हर शुक्रवार को यहीं पर सुनें एक नयी कहानी न जाने आप घर से खाकर गये थे या नहीं ... ( बालमुकुन्द गुप्त की "मेले का ऊँट" से एक

३० मार्च- आज का गाना

गाना: आज मैं ऊपर, आसमाँ नीचे चित्रपट: खामोशी- द म्यूजिकल संगीतकार: जतिन-ललित गीतकार: मजरूह सुलतान पुरी स्वर: कविता कृष्णमुर्ती, कुमार शानू प द नि नि, अह रे वे तार रेवे ता रारा नि प द नि नि, रिवि तारा रिवि रि रि पा रम आज मैं ऊपर, आसमाँ नीचे आज मैं आगे, ज़माना है पीछे टेल मी ओ ख़ुदा अब मैं क्या करूँ चह्लूँ सीधी कि उल्टी चलूँ आज मैं ऊपर, आसमाँ नीचे ... यूँ ही बिन बात के, छलके जाये हँसी डोले जब हवा, लागे गुद्गुदी सम्भालो गिर पड़ूँ अरे अरे अरे अरे अरे तौबा क्या करूँ चलूँ सीधी की उल्टी चलूँ आज मैं ऊपर ... आज मैं ऊपर, आसमाँ नीचे आज मैं आगे, ज़माना है पीछे टेल मी ओ ख़ुदा अब मैं क्या करूँ सर के बल या कदम से चलूँ आज मैं ऊपर ... झूमें जा मौज में रुकना न जान\-ए\-जाँ देखूँ ये तरंग रुकती है कहाँ मैं भी तेरे संग इन लहरों पे चलूँ सर के बल या कदम से चलूँ आज मैं ऊपर ...

२९ मार्च- आज का गाना

गाना: छुप गया कोई रे, दूर से पुकार के चित्रपट: चम्पाकली संगीतकार: हेमंत कुमार गीतकार: राजिंदर कृष्ण स्वर: लता मंगेशकर  छुप गया कोई रे, दूर से पुकार के दर्द अनोखे हाय, दे गया प्यार के छुप गया ... आज हैं सूनी सूनी, दिल की ये गलियाँ बन गईं काँटे मेरी, खुशियों की कलियाँ प्यार भी खोया मैने, सब कुछ हार के दर्द अनोखे हाय, दे गया प्यार के छुप गया ... अँखियों से नींद गई, मनवा से चैन रे छुप छुप रोए मेरे, खोए खोए नैन रे हाय यही तो मेरे, दिन थे सिंगार के दर्द अनोखे हाय, दे गया प्यार के छुप गया ...

"न किसी की आँख का नूर हूँ" - क्या इस ग़ज़ल के शायर वाक़ई बहादुर शाह ज़फ़र हैं?

पौराणिक, धार्मिक व ऐतिहासिक फ़िल्मों के जौनर में संगीतकार एस. एन. त्रिपाठी का नाम सर्वोपरि है। आज उनकी पुण्यतिथि पर उनके द्वारा स्वरबद्ध बहादुर शाह ज़फ़र की एक ग़ज़ल की चर्चा 'एक गीत सौ कहानियाँ' में सुजॉय चटर्जी के साथ। साथ ही बहस इस बात पर कि क्या इस ग़ज़ल के शायर ज़फ़र ही हैं या फिर कोई और? एक गीत सौ कहानियाँ # 13 फ़ि ल्म निर्माण के पहले दौर से ही पौराणिक, धार्मिक और ऐतिहासिक फ़िल्मों का अपना अलग जौनर रहा है, अपना अलग जगत रहा है। और हमारे यहाँ ख़ास तौर से यह देखा गया है कि अगर किसी कलाकार ने इस जौनर में एक बार क़दम रख दिया तो फिर इससे बाहर नहीं निकल पाया। शंकरराव व्यास, अविनाश व्यास, चित्रगुप्त और एस. एन. त्रिपाठी जैसे संगीतकारों के साथ भी यही हुआ। दो चार बड़ी बजट की सामाजिक फ़िल्मों को अगर अलग रखें तो इन्हें अधिकतर पौराणिक, धार्मिक, ऐतिहासिक, स्टण्ट और फ़ैंटसी फ़िल्मों में ही काम मिले। पर इस क्षेत्र में इन संगीतकारों ने अपना उत्कृष्ट योगदान दिया और इस जौनर की फ़िल्मों को यादगार बनाया। एस. एन. त्रिपाठी की बात करें तो काव्य की सुन्दरता, मधुरता, शीतलता, सहजता औ