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श्याम कोरी उदय ने कड़वे सच में घोले कुछ मीठे गीत, आज ब्लोग्गर्स चोईस में

श्याम कोरी उदय जी अपने ब्लॉग से मुड़े और कहा - वैसे तो फ़िल्में बहुत ही कम देखना होता है और न ही गाने सुनने का कोई स्पेशल शौक है ... आपके आदेश पर कुछ पसंदीदा गाने भेज रहा हूँ लेकिन इन्हें सुने हुए भी एक अर्सा-सा हो गया है ... पसंद की वजह - गानों में प्रयोग किये गए शब्द व उनके भाव ... १ जिंदगी का सफ़र, है ये कैसा सफ़र, कोई समझा नहीं, कोई जाना नहीं है, जिंदगी को बहुत प्यार हमने किया...(किशोर/सफर) २ होंठों से छू लो तुम, मेरा गीत अमर कर दो / बन जाओ प्रीत मेरी, मेरी जीत अमर कर दो...(प्रेम गीत/जगजीत) ३ कोई फ़रियाद तेरे दिल में दबी हो जैसे...(तुम बिन/ जगजीत सिंह) ४ कहीं दूर जब दिन ढल जाए, सांझ की दुल्हन ... मेरे ख्यालों के आँगन में, कोई सपनों के दीप जलाए...(मुकेश/आनंद) ५ जब कोई बात बिगड़ जाए, जब कोई मुश्किल पड़ जाए, तुम देना साथ मेरा, ओ मेरे हमनवा ... ( कुमार सानु/जुर्म )

सिने-पहेली # 12

'सिने पहेली' के द्वितीय सेगमेण्ट की दूसरी कड़ी लेकर मैं, आपका ई-दोस्त सुजॉय चटर्जी, फिर एक बार हाज़िर हूँ 'रेडियो प्लेबैक इण्डिया' पर। दोस्तों, 'सिने पहेली' की पिछली दो कड़ियों में कृष्णमोहन जी आपसे मुख़ातिब थे, और मैं उनका शुक्रिया अदा करते हुए इस स्तंभ का कार्यभार फिर एक बार अपने कंधे ले रहा हूँ। तो फिर एक बार मुक़ाबला शुरु हो चुका है। सभी साथियों से निवेदन है कि इस नए सेगमेण्ट का फ़ायदा उठायें, अपना फ़िल्मी और फ़िल्म-संगीत के ज्ञान को आज़माते हुए अन्य प्रतियोगियों को कांटे का टक्कर दें, और इस स्तंभ को मनोरंजक तथा इस प्रतियोगिता को दिलचस्प बनायें। हमारे बहुत से साथी ऐसे हैं जो 'सिने पहेली' में पधारते तो हैं पर हिस्सा नहीं लेते। उन सब से यह गुज़ारिश है कि जितने भी जवाब मालूम हों, हमें ज़रूर लिख भेजें, इससे प्रतियोगिता और भी ज़्यादा मज़ेदार बन जाएगी। और क्योंकि अब इसे सेगमेण्ट्स में विभाजित कर दिया गया है, इसलिए आप किसी भी चरण से इसमें भाग ले सकते हैं और महाविजेता भी बन सकते हैं। चलिए बातें बहुत हो गईं, अब शुरु करते हैं 'सिने पहेली - सेगमेण्ट-२'

चैत्र मास और चैती का रंग

स्वरगोष्ठी – ६२ में आज ‘सेजिया से सइयाँ रूठि गइलें हो रामा.....’ भारतीय संगीत की कई ऐसी लोक-शैलियाँ हैं, जिनका प्रयोग उपशास्त्रीय संगीत में भी किया जाता है। होली पर्व के बाद, आरम्भ होने वाले चैत्र से ग्रीष्म ऋतु का आगमन हो जाता है। इस परिवेश में पूरे उत्तर भारत में चैती-गायन आरम्भ हो जाता है। गाँव की चौपालों से लेकर मेलों में, मंदिरों में चैती के स्वर गूँजने लगते हैं। ‘स्व रगोष्ठी’ के एक नए अंक में, मैं कृष्णमोहन मिश्र एक बार पुनः सभी संगीत-प्रेमियों का स्वागत करता हूँ। मित्रों, भारतीय संगीत के अक्षय भण्डार में ऋतु-प्रधान गीत-संगीत का महत्त्वपूर्ण स्थान है। बसन्त ऋतु से आरम्भ होकर पावस ऋतु की समाप्ति तक देश के हर क्षेत्र और हर आंचलिक बोलियों में, प्रकृति के हर बदलाव को रेखांकित करते ग्राम्य-गीतों का खजाना है। होलिका-दहन के अगले दिन से ही भारतीय पंचांग का चैत्र मास आरम्भ हो जाता है। प्रकृति में ग्रीष्म का प्रभाव बढ़ने लगता है और खेतों में कृषक का श्रम सार्थक नज़र आने लगता है। ऐसे परिवेश में जनजीवन उल्लास से परिपूर्ण होकर गा उठता है। उत्तर भारत में इस गीत को चैती, चैता या घाटो के न

"कहानी" में गूंथे मधुर गीत अन्विता दास और विशाल शेखर ने

रेडियो प्लेबैक की राय में कैसा है विध्या बालन अभिनीत "कहानी" का संगीत, सुनिए इस अल्बम रिव्यू में -

बोलती कहानियाँ: घीसा (महादेवी वर्मा) - अर्चना चावजी

'बोलती कहानियाँ' स्तम्भ के अंतर्गत हम आपको सुनवा रहे हैं प्रसिद्ध कहानियाँ। पिछले सप्ताह आपने अमर साहित्यकार बाबा नागार्जुन की मार्मिक कहानी " असमर्थ दाता का पॉडकास्ट प्राख्यात ब्लॉगर अर्चना चावजी की आवाज़ में सुना था। आज हम आपकी सेवा में प्रस्तुत कर रहे हैं छायावाद की अमर कवयित्री महादेवी वर्मा द्वारा लिखी हृदयस्पर्शी कहानी " घीसा , जिसको स्वर दिया है अर्चना चावजी ने।  कहानी का कुल प्रसारण समय 10 मिनट 17 सेकंड है। सुनें और बतायें कि हम अपने इस प्रयास में कितना सफल हुए हैं। यदि आप भी अपनी मनपसंद कहानियों, उपन्यासों, नाटकों, धारावाहिको, प्रहसनों, झलकियों, एकांकियों, लघुकथाओं को अपनी आवाज़ देना चाहते हैं तो अधिक जानकारी के लिए कृपया admin@radioplaybackindia.com पर सम्पर्क करें। अश्रु यह पानी नहीं है, यह व्यथा चंदन नहीं है! ~  महादेवी वर्मा (26 मार्च 1906 – 11 सितम्बर, 198) हर शुक्रवार को यहीं पर सुनें एक नयी कहानी जला हुआ काला वर्ण, टेढ़े मेढ़े पैर, दरकी हुई त्वचा, शुष्क बेतरतीब रस्सीनुमा केश। चीकट मैले कुरते की एक बांह पूरी, एक बांह आधी। मानो खेत म

१५ मार्च- आज का गाना

गाना: आओ हुज़ूर तुमको, सितारों में ले चलूँ चित्रपट: किस्मत संगीतकार: ओ पी नय्यर गीतकार: नूर देवासी स्वर: आशा हमसे रौशन हैं चाँद और तारे हम को दामन समझिये न ग़ैरत का उठ गये हम गर ज़माने से नाम मिट जायेगा मुहब्बत का दिल है नाज़ुक कली से फूलों से यह न टूटे ख़याल रखियेगा और अगर आप से यह टूट गया जान-ए-जां इतना ही समझीयेगा [ंअले वोइचे:] क्या? फिर कोई बाँवरी मुहब्बत की अप्नी ज़ुल्फ़ें नहीं सँवारेगी आरती फिर किसी कन्हैया की कोई राधा नहीं उतारेगी, हिक! आओ हुज़ूर तुमको ... आओ हुज़ूर तुमको, सितारों में ले चलूँ ... हिक! दिल झूम जाए ऐसी, बहारों में ले चलूँ आओ हुज़ूर आओ ... (हमराज़ हमख़याल तो हो, हमनज़र बनो तय होगा ज़िंदगी का सफ़र, हमसफ़र बनो) - २ आ हा हा, ओ ओ, हो हो हो, आ हा आ हा हा, ओ हो हो ... हिक! चाहत के उजले-उजले नज़ारों में ले चलूँ दिल झूम जाए ऐसी, बहारों में ले चलूँ आओ हुज़ूर आओ ... लिख दो किताब-ए-दिल पे कोई, ऐसी दास्तां जिसकी मिसाल दे न सके, सातों आसमां आ हा हा, ओ ओ, हो हो हो, आ हा आ हा हा, ओ हो हो ... हिक! बाहों में बाहें डाले, हज़ारों में ले च

"दे दे ख़ुदा के नाम पे प्यारे..." - बोलती फ़िल्मों के ८१ वर्ष पूर्ती पर आज एक बार फिर से 'आलम आरा' की यादों को ताज़ा किया जाए!

आज १४ मार्च २०१२ है। ८१ वर्ष पहले आज ही के दिन बम्बई के 'मजेस्टिक सिनेमा' में रिलीज़ हुई थी पहली सवाक फ़िल्म 'आलम आरा'। आज 'एक गीत सौ कहानियाँ' की ग्यारहवीं कड़ी में इसी फ़िल्म के गीतों की चर्चा, सुजॉय चटर्जी के साथ, और साथ में सुनिए प्रथम फ़िल्मी गीत "दे दे ख़ुदा के नाम पे प्यारे" का एक संस्करण गायक हरिहरण की आवाज़ में। एक गीत सौ कहानियाँ # 11 जैसा कि सर्वविदित है पहली भारतीय बोलती फ़िल्म ‘आलम-आरा’ के १४ मार्च १९३१ के दिन बम्बई में प्रदर्शित होने के साथ ही फ़िल्म-संगीत का युग भी शुरु हो गया था। इम्पीरियल फ़िल्म कंपनी के बैनर तले अरदशेर ईरानी और अब्दुल अली यूसुफ़ भाई ने मिलकर इस फ़िल्म का निर्माण किया था। इम्पीरियल मूवीटोन कृत आ ल म – आ रा सम्पूर्ण बोलती, गाती, बजती फ़िल्म वार्ता : जोसफ़ डेविड सीनार्यो : अरदेशर एम. ईरानी ध्वनि-आलेखन (साउण्ड रिकार्डिंग्) : अरदेशर एम. ईरानी कैमरामैन : अदि एम. ईरानी डायरेक्टर : अरदेशर एम. ईरानी (सहयोगी : रुस्तम भरुचा, पेसी करानी, मोती गिडवानी) संगीत : पी. एम. मिस्त्री तथा बी. ईरानी सेटिंग्: मुनव्वर अ