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उपन्यास में वास्तविक जीवन की प्रतिष्ठा हुई रविन्द्र युग में - माधवी बंधोपाध्याय

सुर संगम - 34 -रवीन्द्रनाथ ठाकुर की सार्द्धशती वर्ष-२०११ पर श्रद्धांजलि (दूसरा भाग) बांग्ला और हिन्दी साहित्य की विदुषी श्रीमती माधवी बंद्योपाध्याय से कृष्णमोहन मिश्र की रवीन्द्र साहित्य और उसके हिन्दी अनुवाद विषयक चर्चा पहला भाग पढ़ें ‘सु र संगम’ के आज के अंक में मैं कृष्णमोहन मिश्र, आप सब संगीत प्रेमियों का हार्दिक स्वागत करता हूँ। दोस्तों, गत सप्ताह के अंक में हमने आपको बांग्ला और हिन्दी साहित्य की विदुषी श्रीमती माधवी बंद्योपाध्याय से रवीन्द्र-साहित्य पर बातचीत की शुरुआत की थी। पिछले अंक में माधवी जी ने रवीन्द्र-साहित्य के विराट स्वरूप का परिचय देते हुए रवीन्द्र-संगीत की विविधता के बारे में चर्चा की थी। आज हम उससे आगे बातचीत का सिलसिला आरम्भ करते हैं। कृष्णमोहन- माधवी दीदी, नमस्कार और एक बार फिर स्वागत है,"सुर संगम" के मंच पर। पिछले अंक में आपने रवीन्द्र संगीत पर चर्चा आरम्भ की थी और प्रकृतिपरक गीतों की विशेषताओं के बारे में हमें बताया। आज हम आपसे रवीन्द्र संगीत की अन्य विशेषताओं के बारे में जानना चाहते हैं। माधवी दीदी- सभी पाठकों को नमस्कार करती हुई आज मैं विश्वकवि रवीन

...और जो बिक ही नहीं पाई वो वैसे भी किसी काम की नहीं थी - असद भोपाली

सुविख्यात शायर और फिल्म-गीतकार श्री असद भोपाली के सुपुत्र श्री ग़ालिब खाँ साहब से उनके पिता के व्यक्तित्व और कृतित्व पर बातचीत अब तक आपने पढ़ा... अब आगे ‘ओल्ड इज़ गोल्ड’ के ‘शनिवार विशेषांक’ में आपका एक बार पुनः स्वागत है। दोस्तों, पिछले सप्ताह हमने फिल्म-जगत के सुप्रसिद्ध गीतकार असद भोपाली के सुपुत्र ग़ालिब खाँ से उनके पिता के व्यक्तित्व और कृतित्व पर बातचीत का पहला भाग प्रस्तुत किया था। इस भाग में आपने पढ़ा था कि असद भोपाली को भाषा और साहित्य की शिक्षा अपने पिता मुंशी अहमद खाँ से प्राप्त हुई थी। आपने यह भी जाना कि अपनी शायरी के उग्र तेवर के कारण असद भोपाली, तत्कालीन ब्रिटिश सरकार द्वारा गिरफ्तार कर जेल में डाल दिये गये थे। आज़ादी के बाद अपनी शायरी के बल पर ही उन्होने फिल्म-जगत में प्रवेश किया था। आज हम उसके आगे की बातचीत को आपके लिए प्रस्तुत कर रहे हैं। कृष्णमोहन- ग़ालिब साहब, ‘शनिवार विशेषांक’ के दूसरे भाग में एक बार फिर आपका हार्दिक स्वागत है। ग़ालिब खाँ- धन्यवाद, और सभी पाठकों को मेरा नमस्कार। अपने पिता असद भोपाली के बारे में ज़िक्र करते हुए पिछले भाग में मैंने बताया था कि १९४

अनुराग शर्मा की कहानी "बी. एल. नास्तिक"

'सुनो कहानी' इस स्तम्भ के अंतर्गत हम आपको सुनवा रहे हैं प्रसिद्ध कहानियाँ। पिछले सप्ताह आपने अनुराग शर्मा की कहानी " सौभाग्य " का पॉडकास्ट अनुराग शर्मा और डॉ. मृदुल कीर्ति की आवाज़ में सुना था। आज हम आपकी सेवा में प्रस्तुत कर रहे हैं अनुराग शर्मा की एक कहानी " बी. एल. नास्तिक ", जिसको स्वर दिया है अनुराग शर्मा ने। कहानी "बी. एल. नास्तिक" का कुल प्रसारण समय 5 मिनट 44 सेकंड है। सुनें और बतायें कि हम अपने इस प्रयास में कितना सफल हुए हैं। इस कथा का टेक्स्ट बर्ग वार्ता ब्लॉग पर उपलब्ध है। यदि आप भी अपनी मनपसंद कहानियों, उपन्यासों, नाटकों, धारावाहिको, प्रहसनों, झलकियों, एकांकियों, लघुकथाओं को अपनी आवाज़ देना चाहते हैं हमसे संपर्क करें। अधिक जानकारी के लिए कृपया यहाँ देखें। शक्ति के बिना धैर्य ऐसे ही है जैसे बिना बत्ती के मोम। ~ अनुराग शर्मा हर शनिवार को आवाज़ पर सुनें एक नयी कहानी "डंडे के ज़ोर पर उसके पिता उसे अपने साथ तीर्थ यात्रा पर भी ले जाते थे और झाड़ू के ज़ोर पर माँ की छठ पूजा की तैयारियाँ भी वही करता था।" ( अनुर

करलो जितना सितम कर सको तुम...शमशाद जी का गाया अंतिम फ़िल्मी गीत

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 740/2011/180 पा र्श्वगायिका शमशाद बेगम पर केन्द्रित 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की लघु शृंखला 'बूझ मेरा क्या नाव रे' की अंतिम कड़ी लेकर हम हाज़िर हैं। आज शमशाद बेगम मुंबई के पवई में हीरानंदानी कॉम्प्लेक्स में अपनी बेटी उषा रात्रा और उषा की पति के साथ रहती हैं, मीडिया से दूर, अपने चाहने वालों से दूर। शमशाद जी अपने पति गणपत लाल बट्टो के १९५५ में मृत्यु के बाद से ही अपनी बेटी के साथ रहती हैं। अपने रूढ़ीवादी पिता को दिये वादे के मुताबिक उन्होंने पहले के तीन दशकों में किसी को अपनी तसवीर खींचने नहीं दी। रेकॉर्डिंग् स्टुडिओ भी वो बुर्खे में जाया करती थीं। भले ही उनके लाखों फ़ैन थे, लेकिन इंडस्ट्री के चंद लोगों को ही मालूम था कि वो दिखती कैसी हैं। कभी उन्होंने प्रेस या मीडिआ को इंटरव्यू नहीं दिया। बस उनकी आवाज़ और उनके गाये हुए गीत ही उनकी पहचान बनी रही। और हम भी यही समझते हैं कि यही सबसे ज़्यादा ज़रूरी है। शमशाद जी नें अपना पहला स्टेज शो पचास साल की उम्र में पेश किया। अपना पहला फ़ोटो भी 'टाइम्स ऑफ़ इण्डिया' को इसी दौरान खींचने दिया। अभी कुछ समय पहले मीडिआ

भीगा भीगा प्यार का समां....भीगे भीगे मौसम में सुनिए ये युगल गीत

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 740/2011/180 'ओ ल्ड इज़ गोल्ड' में इन दिनों जारी है सुप्रसिद्ध पार्श्वगायिका शमशाद बेगम पर केन्द्रित लघु शृंखला 'बूझ मेरा क्या नाव रे'। आज इस शृंखला की नवी कड़ी में प्रस्तुत है शमशाद जी का गाया एक युगल गीत। अब तक आपनें उनके गाये हुए एकल गीत सुनें, पर आज वो आवाज़ मिला रही हैं रफ़ी साहब के साथ। यूं तो तलत महमूद और मुकेश के साथ भी शमशाद जी गा चुकी हैं, पर किशोर कुमार के साथ उन्होंने बहुत से मज़ाइया गीत गाये हैं, और उनके सब से ज़्यादा युगल गीत रफ़ी साहब के साथ हैं। आज की कड़ी के लिए हमने जिस रफ़ी-शमशाद डुएट को चुना है, वह है साल १९६० की फ़िल्म 'सावन' का रिमझिम सावन बरसाता हुआ "भीगा भीगा प्यार का समा, बता दे तुझे जाना है कहाँ"। संगीतकार हैं हंसराज बहल। नय्यर साहब के संगीत की थोड़ी बहुत झलक मिलती है इस गीत में, शायद घोड़ा-गाड़ी रीदम की वजह से। और यह भी सच है कि नय्यर साहब से पहले पंकज मल्लिक और नौशाद साहब इस तरह के रीदम का प्रयोग अपने गीतों में कर चुके थे। क्योंकि नय्यर साहब नें इस रीदम पर सब से ज़्यादा गानें कम्पोज़ किये, इसलिये यह र

कहाँ चले हो जी प्यार में दीवाना करके...अपनी आवाज़ से दीवाना करती शमशाद बेगम

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 739/2011/179 'ओ ल्ड इज़ गोल्ड' के सभी दोस्तों को सुजॉय चटर्जी का सप्रेम नमस्कार! शमशाद बेगम के गाये गीतों पर केन्द्रित इस लघु शृंखला में आइए आज एक बार फिर से रुख़ करते हैं कमल शर्मा द्वारा ली गई साक्षात्कार की तरफ़ और पढ़ा जाये उसी साक्षात्कार से कुछ और अंश। कमल जी - मुंबई में आने के बाद यहाँ आपकी पहली फ़िल्म कौन सी थी? शमशाद जी - पहली फ़िल्म महबूब साहब का किया, 'तक़दीर', वो लाहौर गये थे। 'तक़दीर' पिक्चर के लिए मुझे बूक किया था। वहाँ उनकी हीरोइन थी, उनका ससुराल भी वहीं था। वो तो नहीं आईं, महबूब साहब मेरे घर आए और कहा कि तुम मेरे साथ चलो। मेरे बाबा आने नहीं देते थे। वो कहते थे इधर ही ठीक है, तुम क्या इतनी दूर बम्बई जाओगी? दो दो साल शक्ल देखने को नहीं मिलेंगे। महबूब साहब नें कहा कि अरे समुंदर में जाने दो उसको। उन्होंने बाबा से कहा कि मिया, आप ग़लत समझ रहे हैं, इसको जाने दीजिए। अब इसका नाम इतना है कि जाने दो इसे, आप नें सोचा भी नहीं होगा कितनी बड़ी इंडस्ट्री है। उनके कहने पर बाबा नें कहा कि अच्छा जाने देते हैं। फिर 'तक़दीर' पिक्चर बन

पी के घर आज प्यारी दुल्हन....एक विदाई गीत शमशाद के स्वरों में

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 738/2011/178 पा र्श्वगायिका शमशाद बेगम पर केन्द्रित 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की लघु शृंखला 'बूझ मेरा क्या नाव रे' की सातवीं कड़ी में आप सब का स्वागत है। नय्यर साहब के दो गीत सुनने के बाद आज एक बार फिर बारी नौशाद साहब की। १९५७ में नौशाद साहब की एक बेहद महत्वपूर्ण फ़िल्म रही 'मदर इण्डिया'। इस फ़िल्म में शमशाद बेगम के गाये दो एकल गीतों नें फ़िल्म के अन्य गीतों के साथ साथ ख़ूब धूम मचाई। इनमें से एक तो है मशहूर होली गीत "होली आयी रे कन्हाई रंग छलके सुना दे ज़रा बांसुरी", जिसे हम 'ओल्ड इज़ गोल्ड' में पिछले साल सुनवाया था, और इस साल भी होली के अवसर पर शकील बदायूनी के बेटे जावेद बदायूनी से की गई बातचीत पर केन्द्रित 'शनिवार विशेष' में सुनवाया था। शमशाद जी का गाया 'मदर इण्डिया' का दूसरा गीत था विदाई गीत "पी के घर आज प्यारी दुल्हनिया चली, रोये माता पिता उनकी दुनिया चली"। बड़ा ही दिल को छू लेने वाला विदाई गीत है यह। शमशाद बेगम के गाये मस्ती भरे गीतों को हमने ज़्यादा सुना है। लेकिन कुछ गीत उनके ऐसे भी हैं जो सीरियस