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तेरे नैनों ने चोरी किया....सुर्रैया का नटखट अंदाज़ इस मधुर और सदाबहार गीत में

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 585/2010/285 सु रैया के गाये गीतों से सजी लघु शृंखला 'तेरा ख़याल दिल से भुलाया ना जाएगा' लेकर 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की महफ़िल में हम फिर उपस्थित हैं। आज इस शृंखला की पाँचवी कड़ी है। जैसा कि कल हमने बताया था कि सुरैया जी ने संगीत की कोई विधिवत शिक्षा नहीं ली थी; लेकिन सुर को, लय को, बहुत आसान दक्षता से पकड़ लिया करती थीं। उन्होंने नूरजहाँ, ख़ुरशीद, ज़ोहराबाई, अमीरबाई जैसी उस दौर की गायिकाओं के बीच अपनी ख़ास जगह और पहचान बनाई। उनकी मधुर आवाज़ को दुनिया के सामने लाये थे नौशाद, लेकिन बाद में पंडित हुस्नलाल-भगतराम ने उनसे एक से बढ़कर एक गीत गवाया। ४० से लेकर ५० के दशक के बीच उनका फ़िल्मी सफ़र बुलंदियों पर था। उनकी अदाकारी और गायकी परवान चढ़ती गई। हुस्नलाल भगतराम के ज़िक्र से याद आया कि १९४८ में एक फ़िल्म आयी थी 'प्यार की जीत'। 'बड़ी बहन' की तरह इस फ़िल्म के गीतों ने भी अपार कामयाबी हासिल की। इस फ़िल्म को याद करते हुए सुरैया ने 'जयमाला' में कहा था - "फ़ौजी भाइयों, फ़िल्म 'प्यार की जीत' आप लोगों में से बहुतों ने देखी होगी

एक तुम हो एक मैं हूँ, और नदी का किनारा है....जब सुर्रैया ने याद किया अपने शुरूआती रेडियो के दिनों को

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 584/2010/284 ओ ल्ड इज़ गोल्ड' के दोस्तों नमस्कार! 'तेरा ख़याल दिल से भुलाया ना जाएगा' लघु शृंखला की चौथी कड़ी में आज हम फिर एक बार सुरैया के बचपन के दिनों में चलना चाहेंगे, जब वो रेडियो से जुड़ी हुई थीं। दोस्तों, १९७१ में 'विशेष जयमाला' के अलावा भी १९७५ में सुरैया जी को विविध भारती के स्टुडिओज़ में आमंत्रित किया गया था एक इंटरव्यु के लिए। उसी इंटरव्यु से चुनकर एक अंश यहाँ हम पेश कर रहे हैं। सुरैया से बातचीत कर रहे हैं शमीम अब्बास। शमीम: सुरैया जी, आदाब! सुरैया: आदाब! शमीम: सुरैया जी, मुझे आप बता सकती हैं कि कितने दिनों के बाद विविध भारती के स्टुडियो में आप फिर आयी हैं? सुरैया: देखिए अब्बास साहब, मेरे ख़याल से, वैसे तो मैं सालों के बाद आयी हूँ, लेकिन आपको मैं एक बात बताऊँगी कि मैं पाँच की उम्र से रेडियो स्टेशन में आ गई थी और मेरे लिए यह कोई नयी जगह नहीं है। मैं कैसे आयी यह आपको ज़रूर बताऊँगी। संगीतकार मदन मोहन जी मेरे पड़ोसी हुआ करते थे, और वो बच्चों के कार्यक्रम में हमेशा हिस्सा लिया करते थे। तो वे मुझे खींचकर यहाँ ले आये। शमीम: विविध भारती त

मिलने के दिन आ गए....सुर्रैया और सहगल की युगल आवाजों में एक यादगार गीत

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 583/2010/283 फ़ि ल्म जगत की सुप्रसिद्ध गायिका-अभिनेत्री सुरैया पर केन्द्रित लघु शृंखला 'तेरा ख़याल दिल से भुलाया ना जाएगा' की तीसरी कड़ी लेकर हम हाज़िर हैं 'ओल्ड इज़ गोल्ड' के महफ़िल की शमा जलाने के लिए। ३० और ४० के दशकों में कुंदन लाल सहगल का कुछ इस क़दर असर था कि उस ज़माने के सभी कलाकार उनके साथ काम करने के लिए एक पाँव पर खड़े रहते थे। और अगर किसी नए कलाकार को यह सौभाग्य प्राप्त हो जाए तो उसके लिए यह बहुत बड़ी बात होती थी। ऐसा ही मौका सुरैया जी को भी मिला जब १९४५ में फ़िल्म 'तदबीर' में उन्हें सहगल साहब के साथ न केवल अभिनय करने का मौका मिला, बल्कि उनके साथ युगल गीत गाने का भी मौका मिला। और क्योंकि सुरैया जी ख़ुद यह मानती थी कि यह उनके लिए एक बहुत बड़ी बात थी, इसलिए हमने सोचा कि सुरैया और सहगल साहब का गाया उसी फ़िल्म का एक युगल गीत इस शृंखला में बजाया जाए। गीत के बोल हैं "मिलने के दिन आ गये"। इस फ़िल्म में संगीत था कमचर्चित संगीतकार लाल मोहम्मद का। उनके बारे में अभी आपको बताएँगे, लेकिन उससे पहले सुनिए सुरैया के शब्दों में सहगल स

तेरे लिए किशमिश चुनें, पिस्ते चुनें: ऐसे मासूम बोल पर सात क्या सत्तर खून माफ़! गुलज़ार और विशाल का कमाल!

Taaza Sur Taal (TST) - 04/2011 - SAAT KHOON MAAF एक गीतकार जो सीधे-सीधे यीशु से सवाल पूछता है कि तुम अपने चाहने वालों को कैसे चुनते हो, एक गीतकार जो अपनी प्रेमिका के लिए परिंदों से बागों का सौदा कर लेता है ताकि उसके लिए किशमिश और पिस्ते चुन सके, एक गीतकार जो प्रेमिका की तारीफ़ के लिए "म्याउ-सी लड़की" जैसे संबोधन और उपमाओं की पोटली उड़ेल देता है, एक गीतकार जो आँखों से आँखें चार करने की जिद्द तो करता है, लेकिन मुआफ़ी भी माँगता है कि "सॉरी तुझे संडे के दिन ज़हमत हुई", एक गीतकार जो ओठों से ओठों की छुअन को "ऒठ तले चोट चलने" की संज्ञा देता है, एक गीतकार जो सूखे पत्तों को आवारा बताकर ज़िंदगी की ऐसी सच्चाई बयां करता है कि सीधी-सादी बात भी सूफ़ियाना लगने लाती है .. यह एक ऐसे गीतकार की कहानी है जो शब्दों से ज्यादा भाव को अहमियत देता है और इसलिए शब्दों के गुलेल लेकर भावों के बगीचे में नहीं घुमता, बल्कि भावों के खेत में खड़े होकर शब्दों की चिड़ियों को प्यार से अपने दिल के मटर मुहैया कराता है और फिर उन चिड़ियों को छोड़ देता है खुले आसमान में परवाज़ भरने के लिए, फिर जो

तेरा ख्याल दिल से भुलाया न जायेगा....वाकई सुर्रैया को कभी भी भुला नहीं पायेगें हिंदी फिल्म संगीत के रसिक

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 582/2010/282 'ओ ल्ड इज़ गोल्ड' के दोस्तों नमस्कार! आज ३१ जनवरी है। आज के ही दिन सन् २००४ में गायिका-अभिनेत्री सुरैया इस दुनिया-ए-फ़ानी को हमेशा के लिए छोड़ कर चली गईं थीं। सुरैया ने गीत गाना ६० के दशक में ही छोड़ दिया था, लेकिन उनकी आवाज़ में कुछ ऐसी बात है कि आज इतने दशकों बाद भी उनके गाये गीतों को हमने अपने कलेजे से लगा रखा है। 'आवाज़' परिवार की तरफ़ से सुरैया जी को हम श्रद्धांजली अर्पित करते हैं और उन्हीं पर केन्द्रित लघु शृंखला 'तेरा ख़याल दिल से भुलाया ना जाएगा' को आगे बढ़ाते हैं। सच ही तो कहा है इस गीत के गीतकार शक़ील बदायूनी ने कि "तेरा ख़याल दिल से भुलाया ना जाएगा, उल्फ़त की ज़िंदगी को मिटाया ना जाएगा"। सुरैया की सुंदरता, अभिनय और गायन, इन तीनों आयामों में ही सुरैया अपने दौर में सब से उपर रहीं। और क्यों ना हो जब उनका नाम ही "सुर" से शुरु होता है! युं तो हर फ़िल्म कलाकार के अपने प्रशंसक होते हैं, 'फ़ैन फ़ॊलोविंग्' होती है, पर अगर कलाकार में रूप के साथ-साथ स्वर का भी संगम हो, बड़ी-बड़ी नशीली आँखों के साथ-

पंछी जा पीछे रहा बचपन मेरा....एक कोशिश ओल्ड इस गोल्ड की अमर गायिका सुर्रैया की यादों को ताज़ा करने की

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 581/2010/281 न मस्कार! 'ओल्ड इज़ गोल्ड' के दोस्तों नमस्कार! आज ३० जनवरी, राष्ट्रपिता महात्मा गांधी जी का शहीदी दिवस है। आज के इस दिन का हम शहीदी दिवस के रूप में पालन करते हैं। 'आवाज़' परिवार की तरफ़ से हम श्रद्धांजली अर्पित करते हैं इस मातृभूमि पर अपने प्राण न्योचावर करने वाले हर जाँबाज़ वीर को। आज से 'ओल्ड इज़ गोल्ड' पर न केवल एक नई सप्ताह का आग़ाज़ हो रहा है, बल्कि आज से एक नई लघु शृंखला भी शुरु हो रही है। हिंदी फ़िल्मों के पहले और दूसरे दौर में गायक-अभिनेताओं का रिवाज़ हुआ करता था। बहुत से ऐसे सिंगिंग स्टार्स हुए हैं जो न केवल अपने अभिनय से बल्कि अपने गायन से भी पूरी दुनिया पर छा गये। ऐसी ही एक गायिका-अभिनेत्री जिन्होंने जनसाधारण के दिलों पर राज किया, अपने सौंदर्य और सुरीली आवाज़ से लोगों के मनमोर को मतवाला बनाया, जिनके नैनों ने लोगों के छोटे छोटे जिया को चोरी किया, और जिनके गाये गीतों को सुनकर लोगों ने भी स्वीकारा कि उनकी गायकी में एक उम्र तक असर होनेवाली बात है। जी हाँ, हम उसी गायिका अभिनेत्री की बात कर रहे हैं जो ३१ जनवरी २००४ को हम

सुर संगम में आज -भारतीय संगीताकाश का एक जगमगाता नक्षत्र अस्त हुआ -पंडित भीमसेन जोशी को आवाज़ की श्रद्धांजली

सुर संगम - 05 भारतीय संगीत की विविध विधाओं - ध्रुवपद, ख़याल, तराना, भजन, अभंग आदि प्रस्तुतियों के माध्यम से सात दशकों तक उन्होंने संगीत प्रेमियों को स्वर-सम्मोहन में बाँधे रखा. भीमसेन जोशी की खरज भरी आवाज का वैशिष्ट्य जादुई रहा है। बन्दिश को वे जिस माधुर्य के साथ बदल देते थे, वह अनुभव करने की चीज है। 'तान' को वे अपनी चेरी बनाकर अपने कंठ में नचाते रहे। भा रतीय संगीत-नभ के जगमगाते नक्षत्र, नादब्रह्म के अनन्य उपासक पण्डित भीमसेन गुरुराज जोशी का पार्थिव शरीर पञ्चतत्त्व में विलीन हो गया. अब उन्हें प्रत्यक्ष तो सुना नहीं जा सकता, हाँ, उनके स्वर सदियों तक अन्तरिक्ष में गूँजते रहेंगे. जिन्होंने पण्डित जी को प्रत्यक्ष सुना, उन्हें नादब्रह्म के प्रभाव का दिव्य अनुभव हुआ. भारतीय संगीत की विविध विधाओं - ध्रुवपद, ख़याल, तराना, भजन, अभंग आदि प्रस्तुतियों के माध्यम से सात दशकों तक उन्होंने संगीत प्रेमियों को स्वर-सम्मोहन में बाँधे रखा. भीमसेन जोशी की खरज भरी आवाज का वैशिष्ट्य जादुई रहा है। बन्दिश को वे जिस माधुर्य के साथ बदल देते थे, वह अनुभव करने की चीज है। 'तान' को वे अपनी चे