नमस्कार दोस्तों! स्वागत है एक बार फिर आप सभी का 'ओल्ड इज़ गोल्ड' के साप्ताहिक विशेषांक 'ईमेल के बहाने, यादों के ख़ज़ाने' में। यह एक ऐसा स्तंभ है जिसमें हम वही छापते हैं जो आप हमें ईमेल के माध्यम से लिख भेजते हैं। आप में से कुछ अपने फ़रमाइशी नग़में हमें लिख भेजते हैं तो कुछ किसी गीत से जुड़ी अपनी यादें। कुछ हमरे दोस्त ऐसे भी हैं जो 'ओल्ड इज़ गोल्ड' और 'आवाज़' की प्रस्तुतियों से इतने प्रभावित हैं कि 'हिंदयुग्म' के इस प्रयास को बढ़ावा देने हेतु अंशदान भी करने की इच्छा ज़ाहिर करते हैं। हम आप सभी का तहे दिल से शुक्रिया अदा करते हैं। जिस किसी तरह से भी आप हमारा हौसला अफ़ज़ाई करते हैं, हम उसे अपना सौभाग्य समाझते हैं। आप में से कुछ दोस्त हमारी लघु शृंखलाओं की भी समय समय पर तारीफ़ करते हैं, जिससे यकीन मानिए, हमें और अच्छे और अनूठे शृंखलाओं को प्रस्तुत करने की उर्जा मिलती रहती है। ऐसे ही एक हमारे नियमित पाठक व श्रोता हैं ख़ानसाब ख़ान। ख़ान साहब अक्सर हमें ईमेल के द्वारा इन शृंखलाओं के बारे में अपने विचार लिख भेजते हैं। पिछले दिनों ख़ान साहब ने लता जी के गा