Skip to main content

Posts

बोल मेरे मालिक क्या यही तेरा इन्साफ है....जब लता जी की इस छोटी सी गलती को नज़रंदाज़ कर दिया गया

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 513/2010/213 'गी त गड़बड़ी वाले', दोस्तों, 'ओल्ड इज़ गोल्ड' पर इन दिनों आप सुन रहे हैं यह शृंखला, जिसके अंतर्गत वो गानें शामिल हो रहे हैं जिनमें कोई कोई न कोई गड़बड़ी हुई है। अब तक हमने दो युगल गीत सुनें हैं जिनमें एक गायक ने ग़लती से दूसरे गायक की लाइन पर गा उठे हैं। सहगल साहब और आशा जी की ग़लतियों के बाद आज बारी स्वर कोकिला लता मंगेशकर की। जी नहीं, लता जी के किसी अन्य गायक की लाइन पर नहीं गाया, बल्कि उन्होंने एक शब्द का ग़लत उच्चारण किया है। छोटी "इ" के स्थान पर बड़ी "ई" गा बैठीं हैं लाता जी इस गीत में। यह है फ़िल्म 'हलाकू' का गीत "बोल मेरे मालिक तेरा क्या यही है इंसाफ़, जो करते हैं लाख सितम उनको तू करता माफ़"। इस गीत में लता ने यूंही "मालिक" की जगह "मलीक" गाया है। इस गीत को ध्यान से सुनने पर इस ग़लती को आप पकड़ सकते हैं। लेकिन यह गीत इतना सुंदर है, इतना कर्णप्रिय है कि इस ग़लती को नज़रंदाज़ करने को जी चाहता है। हसरत जयपुरी का लिखा गीत है और संगीत है शंकर जयकिशन का। क्योंकि यह ईरान की कह

राहत साहब के सहारे अल्लाह के बंदों ने संगीत की नैया को संभाला जिसे नॉक आउट ने लगभग डुबो हीं दिया था

ताज़ा सुर ताल ४१/२०१० विश्व दीपक - सभी दोस्तों को नमस्कार! सुजॊय जी, कैसी रही दुर्गा पूजा और छुट्टियाँ? सुजॊय - बहुत बढ़िया, और आशा है आपने भी नवरात्रि और दशहरा धूम धाम से मनाया होगा! विश्व दीपक - पिछले हफ़्ते सजीव जी ने 'टी.एस.टी' का कमान सम्भाला था और 'गुज़ारिश' के गानें हमें सुनवाए। सुजॊय - सब से पहले तो मैं सजीव जी से अपनी नाराज़गी ज़ाहिर कर दूँ। नाराज़गी इसलिए कि हम एक हफ़्ते के लिए छुट्टी पे क्या चले गए, कि उन्होंने इतनी ख़ूबसूरत फ़िल्म का रिव्यु ख़ुद ही लिख डाला। और भी तो बहुत सी फ़िल्में थीं, उन पर लिख सकते थे। 'गुज़ारिश' हमारे लिए छोड़ देते! विश्व दीपक - लेकिन सुजॊय जी, यह भी तो देखिए कि कितना अच्छा रिव्यु उन्होंने लिखा था, क्या हम उस स्तर का लिख पाते? सुजॊय - अरे, मैं तो मज़ाक कर रहा था। बहुत ही अच्छा रिव्यु था उनका लिखा हुआ। जैसा संगीत है उस फ़िल्म का, रिव्यु ने भी पूरा पूरा न्याय किया। चलिए अब आज की कार्यवाही शुरु की जाए। वापस आने के बाद जैसा कि मैं देख रहा हूँ कि बहुत सारी नई फ़िल्मों के गानें रिलीज़ हो चुके हैं। इसलिए आज भी दो फ़िल्मों के गा

पिया पिया मोरा जिया पुकारे...जब किशोर दा ने खूबसूरती से छुपाया आशा की गलती को

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 512/2010/212 'ओ ल्ड इज़ गोल्ड' पर कल से हमने शुरु की है लघु शृंखला 'गीत गड़बड़ी वाले', जिसके तहत हम कुछ ऐसे गानें सुन रहे हैं जिनमें किसी ना किसी तरह की गड़बड़ी हुई है, या कोई त्रुटी, कोई कमी रह गई है। कल इसकी पहली कड़ी में आपने सुना कि किस तरह से सहगल साहब ने अमीरबाई की लाइन पर ग़लती से गा उठे और गाते गाते चुप हो गए। बिल्कुल इसी तरह की ग़लती एक बार गायिका आशा भोसले ने भी की थी किशोर कुमार के साथ गाए एक युगल गीत में, जिसमें वो किशोर दा की लाइन पर गा उठीं थीं और गाते गाते रह गयीं। आशा जी की इस ग़लती को किशोर कुमार ने किस तरह से क्लवर अप कर गाने को और भी ज़्यादा लोकप्रिय बना दिया, इसके बारे में हम आपको बताएँगे, लेकिन उससे पहले आपको यह तो बता दें कि यह गीत है १९५५ की फ़िल्म 'बाप रे बाप' का, "पिया पिया पिया मेरा जिया पुकारे, हम भी चलेंगे सइयाँ संग तुम्हारे"। जाँनिसार अख़्तर के बोल और ओ. पी. नय्यर साहब का संगीत। नय्यर साहब के ज़्यादातर डुएट्स आशा और रफ़ी के गाये हुए हैं, लेकिन आशा - किशोर के गाये इस गीत की लोकप्रियता अपनी जगह है। इसस