किसी नज़र को तेरा इंतज़ार आज भी है...हसन कमाल ने कुछ यूँ रंगा ये हिज्र और वस्ल का समां कि आज भी सुनें तो एक टीस सी उभर आती है
ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 459/2010/159 'ओ ल्ड इज़ गोल्ड' पर इन दिनों जारी है ८० के दशक के दस चुनिंदा फ़िल्मी ग़ज़लों पर आधारित लघु शृंखला 'सेहरा में रात फूलों की'। ये दस ग़ज़लें दस अलग अलग शायरों के कलाम हैं। अब तक हमने इसमें जिन शायरों के कलाम सुनें हैं, वो हैं हसरत जयपुरी, शहरयार, नक्श ल्यालपुरी, इंदीवर, आरिफ खान, जावेद अख़्तर, इफ़्तिख़ार इमाम सिद्दिक़ी और कल आपने निदा फ़ाज़ली साहब की लिखी हुई ग़ज़ल सुनी। आज इस शृंखला की नवी कड़ी में पेश है शायर और गीतकार हसन कमाल का कलाम फ़िल्म 'ऐतबार' से। आशा भोसले और भूपेन्द्र की युगल आवाज़ों में यह ग़ज़ल है। और दोस्तों, पहली बार इस ग़ज़ल के बहाने 'ओल्ड इज़ गोल्ड' पर सुनाई दे रहा है संगीतकार बप्पी लाहिड़ी का संगीत। युं तो बप्पी दा डिस्को किंग् का इमेज रखते हैं, और ८० के दशक में फ़िल्म संगीत का स्तर गिराने वालों में उन्हे एक मुख्य अभियुक्त करार दिया जाता है, लेकिन यह बात भी सच है कि भले ही वो डिस्को और पाश्चात्य संगीत पर आधारित गानें ही ज़्यादा बनाए, लेकिन शास्त्रीय संगीत, लोक संगीत और सुगम संगीत पर भी उनकी पकड़ मज़बूत