ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 286 "ज़ रा सी धूल को हज़ार रूप नाम दे दिए, ज़रा सी जान सर पे सात आसमान दे दिए, बरबाद ज़िंदगी का ये सिंगार किस लिए?" शैलेन्द्र के ये शब्द वार करती है इस दुनिया के खोखले दिखाओं और खोखले रिवाज़ों पर। ये शब्द हैं फ़िल्म 'पतिता' में लता मंगेशकर के गाए "मिट्टी से खेलते हो बार बार किस लिए" गीत के जो आज हम आपको सुनवाने के लिए लाए हैं "शैलेन्द्र- आर.के.फ़िल्म्स के इतर भी" के अंतर्गत। भगवान के द्वारा एक बार नसीब बनाने और एक बार बिगाड़ने के खेल के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाता है यह गीत। जिस तरह से मिट्टी के पुतलों को बार बार तोड़कर नए सांचे में ढाल कर नए नए रूप दिए जा सकते हैं, वैसे ही इंसान का शरीर भी मिट्टी का ही एक पुतला समान है जिसे उपरवाला जब जी चाहे, जैसे चाहे बिगाड़कर नया रूप दे सकता है। शैलेन्द्र ने इस तरह के गानें बहुत से लिखे हैं जिनमें शाब्दिक अर्थ के पीछे कोई गहरा फ़ल्सफ़ा छुपा होता है। रफ़ी साहब के गाए "दुनिया ना भाए मोहे" गीत की तरह इस गीत का सुर भी कुछ कुछ शिकायती है और भगवान की तरफ़ ही इशारा है। उषा किरण पर फ़िल्माया