ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 228 "ज ब मेरे देश की जनता युद्ध में जाते थे लड़ने के लिए अपने उस राजा की ख़ातिर जिसे शायद उन लोगों ने कभी देखा भी नहीं होगा, तब मैने उनके कुशलता की कामना की और युद्ध जीत कर जब वे वापस आए तो मैने ही उनका स्वागत किया। जब सावन की पहली बौछार इस सूखी धरती पर पड़ी और गन्ने की कोमल कोपलें मिट्टी से बाहर झाँकने लगीं सूरज को ढ़ूढते हुए, उस समय भी मैं ही वहाँ मौजूद था। मेरा नाम है मांड।" जी हाँ दोस्तों, मांड ही वह राग है जो शास्त्रीय होते हुए भी लोक धुनों में अपना परिचय खोजता है। यह मिट्टी से जुड़ा हुआ राग है, ख़ास कर के राजस्थान की मिट्टी से जुड़ा हुआ है मांड। तभी तो जब भी कभी राजस्थान के पार्श्व पर किसी फ़िल्म का निर्माण हुआ है, उन फ़िल्मों के संगीतकारों ने इस राग का भरपूर फ़ायदा उठाया है। मांड का सब से सुपरिचित उदाहरण है "केसरिया बालमा ओ जी", जिसे अलग अलग अंदाज़ में कई संगीतकारों ने अपने फ़िल्मों में जगह दी है। हृदयनाथ मंगेशकर ने फ़िल्म 'लेकिन' में लता जी से इसे गवाया था "केसरिया बालमा ओ जी, के तुमसे लागे नैन", और हाल ही में '