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गुरु दत्त , एक अशांत अधूरा कलाकार !

महान फिल्मकार गुरुदत्त की पुण्यतीथी पर एक विशेष प्रस्तुति लेकर आए हैं दिलीप कवठेकर कुछ दिनों पहले मैंने एक सूक्ति कहीं पढ़ी थी - To make simple thing complicated is commonplace. But ,to make complicated things awesomely simple is Creativity. गुरुदत्त की अज़ीम शख्सियत पर ये विचार शत प्रतिशत खरे उतरते है. वे महान कलाकार थे , Creative Genre के प्रायः लुप्तप्राय प्रजाति, जिनके सृजनात्मक और कलात्मक फिल्मों के लिए उन्हें हमेशा याद किया जायेगा. आज से ४४ साल पहले १० अक्टुबर सन १९६४ को, उन्होंने अपने इस कलाजीवन से तौबा कर ली. रात के १ बजे के आसपास उनसे विदा लेने वाले आख़िरी शख्स थे अबरार अल्वी. उनके निधन से हमें उन कालजयी फिल्मों से मरहूम रहना पडा, जो उनके Signature Fims कही जाती है. वसंथ कुमार शिवशंकर पदुकोने के नाम से इस दुनिया में आँख खोलने वाले इस महान कलाकार नें एक से बढ़कर एक ऐसी फिल्मों से हमारा त,अर्रूफ़ करवाया जो विश्वस्तरीय Masterpiece थीं. गुरुदत्त नें गीत संगीत की चासनी में डूबी, यथार्थ से एकदम नज़दीक खट्टी मीठी कहानियों की पर बनी फ़िल्मों से, उन जीवंत सीधे सच्चे संवेदनशील चरित्रों से हम

सीहोर, अमेरिका और इंटरनेट तीन स्थानों पर होगा शिवना की नई पुस्तक वाशिंगटन के कवि श्री राकेश खण्डेलवाल के काव्य संग्रह का विमोचन

वाशिंगटन के भारतीय मूल के कवि श्री राकेश खण्डेलवाल के काव्य संग्रह अंधेरी रात का सूरज का प्रकाशन शिवना द्वारा किया गया है तथा 11 अक्टूबर को उसका एक साथ तीन स्थानों पर विमोचन होने जा रहा है । मुख्य समारोह जहां अमेरिका के वर्जीनिया के राजधानी मंदिर आडिटोरियम में वाशिंगटन हिंदी समिति द्वारा आयोजित किया जा रहा है । वहीं सीहोर में प्रतीक रूप में शिवना प्रकाशन द्वारा भी विमोचन का कार्यक्रम रखा गया है । उसीके साथ ही इंटरनेट पर भारत के सबसे बड़े हिंदी जाल समूह हिंद युग्म द्वारा अंधेरी रात का विमोचन किया जा रहा है । शिवना प्रकाशन के पंकज सुबीर ने जानकारी देते हुए बताया कि गीतकार नीरज और बालकवि बैरागी की परम्परा के कवि श्री राकेश खण्डेलवाल इस समय हिंदी के मूर्ध्दन्य गीतकारों में हैं । भारतीय मूल के श्री खण्डेलवाल पिछले कई वर्षों से वाशिंगटन में निवास कर रहे हैं । शिवना द्वारा श्री खण्डेलवाल के गीतों का संग्रह अंधेरी रात का सूरज के नाम से प्रकाशित किया गया है । ये संग्रह श्री खण्डेलवाल के गीतों और मुक्तकों का संग्रह है इस संग्रह की समीक्षा हिंदी तथा उर्दू के विद्वान लेखक श्री कुंवर बेचैन द्वारा ल

ऐसा नही कि आज मुझे चाँद चाहिए...

दूसरे सत्र के पन्द्रहवें गीत का विश्वव्यापी उदघाटन आज. आज आवाज़ पर एक बार फ़िर लौटी है शिवानी सिंह और रुपेश ऋषि की जोड़ी और साथ में हैं गायिका प्रतिष्ठा भी, प्रतिष्ठा की आवाज़ को "पहला सुर" एल्बम की ग़ज़ल "ये ज़रूरी नही" में भी हमारे श्रोताओं ने सुनी थी, वो एक युगल गीत था ये उनका सोलो है, जिसमें उन्होंने खुल कर अपनी आवाज़ में शिवानी के जज़्बात उभारे हैं और शिल्पी हैं एक बार फ़िर रुपेश ऋषि. संयोग से युग्म के सभी महिला श्रोताओं /पाठकों के लिए आने वाले करवा चौथ का तोहफा बन कर आई है ये ग़ज़ल आज, क्योंकि इस ग़ज़ल में जो भाव व्यक्त किए गए हैं वो शायद हर महिला के मन की आवाज़ है, ऐसा हमें लगता है. हम किस हद तक ठीक हैं ये आप सुन कर फैसला दें. दरअसल ये ग़ज़ल जब रिकॉर्ड हुई थी उन दिनों प्रतिष्ठा डी.ऐ.वी स्कूल में संगीत की अध्यापिका थी,और आल इंडिया रेडियो में उर्दू ग़ज़ल गाती थी. अब दुर्भाग्यवश उनके विवाह उपरांत उनका कोई संपर्क सूत्र नही हो पाने के कारण हम उनकी तस्वीर को आपके रूबरू नही कर पा रहे हैं, पर इस उभरती हुई गायिका की आवाज़ हमें यकीं है आपके दिल में अपनी विशेष जगह बनाने में अवश्य सफल ह

श्रोता भी एक महत्वपूर्ण हिस्सा है महफ़िल की सफ़लता का.

आवाज पर आने वाले नियमित पाठक/श्रोता संजय पटेल की क़लमनिगारी से वाक़िफ़ है. संजय भाई अपने अलहदा अंदाज़ से हमेशा कोई नई बात कहते हैं.मंच और लेखन की दुनिया में सतत काम करने वाला यह शख्स निराभिमानी ही नहीं संगीत में आकंठ डूबा एक ज़िन्दादिल इंसान है. अभी हाल ही में संजय पटेल ने अपने ब्लॉग जोगलिखी संजय पटेल की पर श्रोताओं के हवाले से एक बहुत सुन्दर आलेख पोस्ट किया था. हमें लगा कि आवाज़ पर इस लेख का जारी होना बहुत ज़रूरी है. संजय भाई ने हमेशा की तरह सह्र्दयता से इजाज़त दी इसके लिये. एक सच्चे संगीतप्रेमी के लिये ये लेख एक दस्तावेज़ है और गाइड लाइन भी. कैसे एक श्रोता एक रसपूर्ण कार्यक्रम या कंसर्ट को बिगाड़ सकता है आइये देखते हैं. बात थोड़ी लम्बी कह गया हूँ ; यदि दस से पन्द्रह मिनट का समय दे सकते हैं तो ही इसे पढ़ें.हाँ इस पोस्ट में व्यक्त किये गए दर्द को समझने के लिये एक संगीतप्रेमी का दिल होना ख़ास क्वॉलिफ़िकेशन है. बीते तीस बरसों से तो मंच पर बतौर एक एंकर पर्सन काम कर ही रहा हूँ और उसके पहले भी संगीत की महफ़िलों में जाने का जुनून रहा ही है. सौभाग्याशाली हूँ कि पिता और दादा की बदौलत संगीत का भरापूरा माहौल घ

सुनिए शिशिर पारखी से ग़ज़ल "तुम मेरे पास होते हो गोया...जब कोई दूसरा नही होता....."

आवाज़ की नई पहल - "एहतराम... उस्ताद शायरों को सलाम." (अंक ०१) ७ अजीम शायरों का आवाज़ पर एहतराम करने से पहले ग़ज़ल के इतिहास पर एक नज़र डालें, बरिष्ट ब्लॉगर अनूप शुक्ला जी(फुरसतिया) ने डॉ अरशद जमाल के इस आलेख को पहली बार इन्टरनेट पर प्रस्तुत किया था, आवाज़ के पाठक / श्रोता भी इससे लाभान्वित हो इस के लिए हम इसे पुनर्प्रस्तुत कर रहे हैं - फ़ारसी से ग़ज़ल उर्दू में आई। उर्दू का पहला शायर जिसका काव्य संकलन(दीवान)प्रकाशित हुआ है,वह हैं मोहम्मद क़ुली क़ुतुबशाह। आप दकन के बादशाह थे और आपकी शायरी में फ़ारसी के अलावा उर्दू और उस वक्त की दकनी बोली शामिल थी। पिया बाज प्याला पिया जाये ना। पिया बाज इक तिल जिया जाये ना।। क़ुली क़ुतुबशाह के बाद के शायर हैं ग़व्वासी, वज़ही,बह्‌री और कई अन्य। इस दौर से गुज़रती हुई ग़ज़ल वली दकनी तक आ पहुंची और उस समय तक ग़ज़ल पर छाई हुई दकनी(शब्दों की) छाप काफी कम हो गई। वली ने सर्वप्रथम ग़ज़ल को अच्छी शायरी का दर्जा दिया और फ़ारसी के बराबर ला खड़ा किया। दकन के लगभग तमाम शायरों की ग़ज़लें बिल्कुल सीधी साधी और सुगम शब्दों के माध्यम से हुआ करती थीं। वली के सा

देखा न हाय रे सोचा न...यही था किशोर का मस्तमौजी अंदाज़

दोस्तों, १९७० -१९८० के दशक में किशोर कुमार को एक लेख में पेश करना बहुत मुश्किल है | इस महान शख्सियत की कुछ यादें - किशोर का हॉलीवुड प्रेम - कोई भी सच्चा कलाकार भाषा या देश की सीमा में नही बंधता है और अपने को मुक्त रखते हुए आगे चलता रहता है | किशोर इसका एक अच्छा नमूना पेश कर गए | किशोर कुमार अपने बेटे अमित कुमार के साथ हॉलीवुड की फिल्मे देखना पसंद किया करते थे | कुछ विशेष फिल्मों और कलाकारों के प्रति उनका काफी रुझान रहा | जैसे गोड फादर (God Father) फ़िल्म को उन्होंने १७-१८ बार देखा | हॉलीवुड अभिनेता जॉन वायने ( John Wayne) और मार्लोन (Marlon) उन्हें बेहद पसंद थे | उनकी फिल्में देखने के बाद किशोर उन कालाकारों के अभिनय के विषय में वे अमित से चर्चा करते | यह सब बातें उनके भीतर अभिनय की समझ को दर्शाता है | हॉलीवुड फिल्मो से प्रभावित होकर उन्होंने १९७१ में एक यादगार फ़िल्म भी बनायी - "दूर का राही " | कलाकार पिता और कलाकार पुत्र - यदि ऐसा कहे कि किशोर कुमार ने ही अमित कुमार के भीतर के कलाकार को संवारा और प्रोत्साहित कर प्रस्तुत किया, तो कोई गलत नही होगा | अमित शुरू के

जानिए ज़ोरबा के माने पेरुब से

सूफी रॉक संगीत के नए पहरुए हैं लुधिआना के पेरुब और उनके जोडीदार जोगी सुरेंदर और अमन दीप कौशल. "ज़ोरबा" ग्रुप के इन पंजाबी मुंडों का नया गीत " डरना झुकना " इन दिनों आवाज़ पर धूम मचा रहा है. आवाज़ के लिए अर्चना शर्मा ने की उनसे एक ख़ास मुलकात. पेश है उसी संवाद के ये अंश - पेरुब, संगीत को जीवन मार्ग बनाने की प्रेरणा किससे मिली आपको ? संगीत की प्रेरणा मुझे मेरी माता जी ने और मेरे बड़े भाइयों ने दी ...... कितना समय हो गया आपको संगीत को अपना कैरियर बनाये हुए ? इस क्षेत्र मैं मुझे तकरीबन आठ साल से जयादा हो गए हैं ........... आपके गुरु कौन रहे ? मतलब संगीत की तालीम आपने किससे ली ? गुरु तो बहुत हैं संगीत के .... मगर संगीत की सही शिक्षा मैंने प्रोफ. मनमोहन सिंह जी से ...प्रोफ. श्री. शान्ति लाल जी से और संत मोहन सिंह, सुखदेव सिंह नामधारी जी से प्राप्त की ..... ज़ोरबा का क्या अर्थ है पेरुब ? ज़ोरबा का अर्थ है जो नाच सके बिना ताल के, जो गा सके बिना साज़ के, जो संसार के हर रंग में रहते हुए, संसार से, जिसको अलग हो जाना है बिना कुछ किए....हर आदमी ज़ोरबा ही है " who is going to b