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हिन्दी सिनेमा के पहले दौर के कुछ कलाकारों की स्मृतियों के स्वर

स्मृतियों के स्वर - 05 हिन्दी सिनेमा के पहले दौर के कुछ कलाकारों की स्मृतियों के स्वर 'रेडियो प्लेबैक इण्डिया' के सभी श्रोता-पाठकों को सुजॉय चटर्जी का प्यार भरा नमस्कार। दोस्तों, एक ज़माना था जब घर बैठे प्राप्त होने वाले मनोरंजन का एकमात्र साधन रेडियो हुआ करता था। गीत-संगीत सुनने के साथ-साथ बहुत से कार्यक्रम ऐसे हुआ करते थे जिनमें कलाकारों से साक्षात्कार किये जाते थे और जिनके ज़रिये फ़िल्म और संगीत जगत की इन हस्तियों की ज़िन्दगी से जुड़ी बहुत सी बातें जानने को मिलती थी। गुज़रे ज़माने के इन अमर फ़नकारों की आवाज़ें आज केवल आकाशवाणी और दूरदर्शन के संग्रहालय में ही सुरक्षित हैं। मैं ख़ुशक़िस्मत हूँ कि शौकिया तौर पर मैंने पिछले बीस वर्षों में बहुत से ऐसे कार्यक्रमों को लिपिबद्ध कर अपने पास एक ख़ज़ाने के रूप में समेट रखा है। 'रेडियो प्लेबैक इण्डिया' पर, महीने के हर दूसरे और चौथे शनिवार को इसी ख़ज़ाने में से मैं निकाल लाता हूँ, कुछ अनमोल मोतियाँ हमारे इस स्तम्भ में, जिसका शीर्षक है - स्मृतियों के स्वर, जिसमें हम और आप साथ मिल कर गुज़रते हैं स्मृतियों के इन हसीन गलियारों...

‘बरखा ऋतु आई...’ : राग मेघ मल्हार

स्वरगोष्ठी – 175 में आज वर्षा ऋतु के राग और रंग – 1 : राग मेघ मल्हार ‘गरजे घटा घन कारे कारे, पावस रुत आई, दुल्हन मन भावे...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर मैं कृष्णमोहन मिश्र, एक बार पुनः आप सभी संगीत-प्रेमियों का हार्दिक स्वागत और अभिनन्दन करता हूँ। मित्रों, आज से हम एक नई लघु श्रृंखला ‘वर्षा ऋतु के राग और रंग’ का शुभारम्भ कर रहे हैं। इस शीर्षक से यह अनुमान आपको हो ही गया होगा कि यह श्रृंखला, वर्षा ऋतु के रस और गन्ध से पगे गीत-संगीत पर केन्द्रित है। इस श्रृंखला के अन्तर्गत हम आपसे वर्षा ऋतु में गाये-बजाए जाने वाले रागों और उनमें निबद्ध कुछ चुनी हुई रचनाओं पर चर्चा करेंगे। इसके साथ ही सम्बन्धित राग के आधार पर रचे गए फिल्मी गीत भी प्रस्तुत करेंगे। भारतीय संगीत के अन्तर्गत मल्हार अंग के सभी राग पावस ऋतु के परिवेश की सार्थक अनुभूति कराने में समर्थ हैं। आम तौर पर इन रागों का गायन-वादन वर्षा ऋतु में अधिक किया जाता है। इसके साथ ही कुछ ऐसे सार्वकालिक राग भी हैं जो स्वतंत्र रूप से अथवा मल्हार अंग के मेल से भी वर्षा ...

"मोरा गोरा अंग ल‍इ ले..." - जानिये किन मुश्किलों से गुज़रते हुए बना था यह गीत

एक गीत सौ कहानियाँ - 35   ‘ मोरा गोरा अंग ल‍इ ले . ..’ 'रेडियो प्लेबैक इण्डिया' के सभी श्रोता-पाठकों को सुजॉय चटर्जी का प्यार भरा नमस्कार! दोस्तों, हम रोज़ाना रेडियो पर, टीवी पर, कम्प्युटर पर, और न जाने कहाँ-कहाँ, जाने कितने ही गीत सुनते हैं, और गुनगुनाते हैं। ये फ़िल्मी नग़में हमारे साथी हैं सुख-दुख के, त्योहारों के, शादी और अन्य अवसरों के, जो हमारी ज़िन्दगियों से कुछ ऐसे जुड़े हैं कि इनके बिना हमारी ज़िन्दगी बड़ी ही सूनी और बेरंग होती। पर ऐसे कितने गीत होंगे जिनके बनने की कहानियों से, उनसे जुड़ी दिलचस्प क़िस्सों से आप अवगत होंगे? बहुत कम, है न? कुछ जाने-पहचाने, और कुछ कमसुने फ़िल्मी गीतों की रचना प्रक्रिया, उनसे जुड़ी दिलचस्प बातें, और कभी-कभी तो आश्चर्य में डाल देने वाले तथ्यों की जानकारियों को समेटता है 'रेडियो प्लेबैक इण्डिया' का यह स्तम्भ 'एक गीत सौ कहानियाँ'। इसकी 35-वीं कड़ी में आज जानिये फ़िल्म 'बन्दिनी' के गीत "मोरा गोरा अंग ल‍इ ले..." के बारे में।  गुलज़ार फ़िल्म 'बन्दिनी' का निर्माण चल रहा था, जिसके ...

सुरीली बाँसुरी के पर्याय पण्डित हरिप्रसाद चौरसिया

स्वरगोष्ठी – 174 में आज व्यक्तित्व – 4 : पण्डित हरिप्रसाद चौरसिया ‘देखा एक ख्वाब तो ये सिलसिले हुए...’  ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी हमारी श्रृंखला ‘व्यक्तित्व’ की चौथी कड़ी में, मैं कृष्णमोहन मिश्र, एक बार पुनः आप सभी संगीत-प्रेमियों का हार्दिक अभिनन्दन करता हूँ। मित्रों, जारी लघु श्रृंखला ‘व्यक्तित्व’ के अन्तर्गत हम आपसे संगीत के कुछ असाधारण संगीत-साधकों के व्यक्तित्व और कृतित्व पर चर्चा कर रहे हैं, जिन्होंने मंच, विभिन्न प्रसारण माध्यमों अथवा फिल्म संगीत के क्षेत्र में लीक से हट कर उल्लेखनीय योगदान किया है। हमारी आज की कड़ी के व्यक्तित्व हैं, विश्वविख्यात बाँसुरी वादक पण्डित हरिप्रसाद चौरसिया, जिन्होने एक साधारण सी दिखने वाली बाँस की बाँसुरी के मोहक सुरों के बल पर पूरे विश्व में भारतीय संगीत की विजय-पताका को फहराया है। चौरसिया जी की बाँसुरी ने शास्त्रीय मंचों पर तो संगीत प्रेमियों को सम्मोहित किया ही है, फिल्म संगीत के प्रति भी उनका लगाव बना रहा। उन्होने सुप्रसिद्ध सन्तूर वादक पण्डित शिवकुमा...

संगीतकार शंकर अपने शुरुआती दिनों को याद करते हुए

स्मृतियों के स्वर - 04 संगीतकार शंकर अपने शुरुआती दिनों को याद करते हुए 'रेडियो प्लेबैक इण्डिया' के सभी श्रोता-पाठकों को सुजॉय चटर्जी का प्यार भरा नमस्कार! दोस्तों, एक ज़माना था जब घर बैठे प्राप्त होने वाले मनोरंजन का एकमात्र साधन रेडियो हुआ करता था। गीत-संगीत सुनने के साथ-साथ बहुत से कार्यक्रम ऐसे हुआ करते थे जिनमें कलाकारों से साक्षात्कार करवाये जाते थे और जिनके ज़रिये फ़िल्म और संगीत जगत के इन हस्तियों की ज़िन्दगी से जुड़ी बहुत सी बातें जानने को मिलती थी। गुज़रे ज़माने के इन अमर फ़नकारों की आवाज़ें आज केवल आकाशवाणी और दूरदर्शन के संग्रहालय में ही सुरक्षित हैं। मैं ख़ुशक़िस्मत हूँ कि शौकीया तौर पर मैंने पिछले बीस वर्षों में बहुत से ऐसे कार्यक्रमों को लिपिबद्ध कर अपने पास एक ख़ज़ाने के रूप में समेट रखा है। 'रेडियो प्लेबैक इण्डिया' पर, महीने के हर दूसरे और चौथे शनिवार को इसी ख़ज़ाने में से मैं निकाल लाता हूँ कुछ अनमोल मोतियाँ हमारे इस स्तंभ में, जिसका शीर्षक है - स्मृतियों के स्वर, जिसमें हम और आप साथ मिल कर गुज़रते हैं स्मृतियों के इन हसीन गलियारों से। दोस्तों, आ...

संगीतकार मदनमोहन के राग आधारित गीत

स्वरगोष्ठी – 173 में आज व्यक्तित्व – 3 : फिल्म संगीतकार मदनमोहन ‘भूली हुई यादों मुझे इतना न सताओ अब चैन से रहने दो मेरे पास न आओ...’    ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी हमारी श्रृंखला ‘व्यक्तित्व’ की तीसरी कड़ी में, मैं कृष्णमोहन मिश्र, एक बार पुनः आप सभी संगीत-प्रेमियों का हार्दिक अभिनन्दन करता हूँ। मित्रों, जारी लघु श्रृंखला ‘व्यक्तित्व’ के अन्तर्गत हम आपसे संगीत के कुछ असाधारण संगीत-साधकों के व्यक्तित्व और कृतित्व पर चर्चा कर रहे हैं, जिन्होंने मंच, विभिन्न प्रसारण माध्यमों अथवा फिल्म संगीत के क्षेत्र में लीक से हट कर उल्लेखनीय योगदान किया है। हमारी आज की कड़ी के व्यक्तित्व हैं, फिल्म संगीत-प्रेमियों के बीच “गजल-सम्राट” की उपाधि से विभूषित यशस्वी संगीतकार, मदनमोहन। उनके संगीतबद्ध गीत अत्यन्त परिष्कृत हुआ करते थे। आभिजात्य वर्ग के बीच उनके गीत बड़े शौक से सुने और सराहे जाते थे। वे गज़लों को संगीतबद्ध करने में सिद्ध थे। गज़लों के साथ ही अपने गीतों में रागों का प्रयोग भी निपुणता के साथ करते थे...

"कल तेरी बज़्म से दीवाना चला जायेगा...", क्या अपने अन्तिम समय का आभास हो चला था शक़ील बदायूंनी को?

एक गीत सौ कहानियाँ - 34   ‘आज की रात मेरे दिल की सलामी ले ले . ..’ 'रेडियो प्लेबैक इण्डिया' के सभी श्रोता-पाठकों को सुजॉय चटर्जी का प्यार भरा नमस्कार। दोस्तों, हम रोज़ाना रेडियो पर, टीवी पर, कम्प्यूटर पर, और न जाने कहाँ-कहाँ, जाने कितने ही गीत सुनते हैं, और गुनगुनाते हैं। ये फ़िल्मी नग़में हमारे साथी हैं सुख-दुख के, त्योहारों के, शादी और अन्य अवसरों के, जो हमारी ज़िन्दगियों से कुछ ऐसे जुड़े हैं कि इनके बिना हमारी ज़िन्दगी बड़ी ही सूनी और बेरंग होती। पर ऐसे कितने गीत होंगे जिनके बनने की कहानियों से, उनसे जुड़ी दिलचस्प क़िस्सों से आप अवगत होंगे? बहुत कम, है न? कुछ जाने-पहचाने, और कुछ कमसुने फ़िल्मी गीतों की रचना प्रक्रिया, उनसे जुड़ी दिलचस्प बातें, और कभी-कभी तो आश्चर्य में डाल देने वाले तथ्यों की जानकारियों को समेटता है 'रेडियो प्लेबैक इण्डिया' का यह स्तम्भ 'एक गीत सौ कहानियाँ'। इसकी 34-वीं कड़ी में आज जानिये फ़िल्म 'राम और श्याम' के गीत "आज की रात मेरे दिल की सलामी ले ले" के बारे में।  जावेद बदायूंनी हि न्दी सिने संगीत जग...