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खुशी की वो रात आ गयी..... और माहौल में गम की सदा भी घुल गयी, एल पी और मुकेश का गठबंधन

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 509/2010/209 'ओ ल्ड इज़ गोल्ड' के दोस्तों, नमस्कार! इन दिनों इस स्तंभ में आप सुन रहे हैं फ़िल्म जगत के सुप्रसिद्ध संगीतकार जोड़ी लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल के स्वरबद्ध गीतों से सजी लघु शृंखला 'एक प्यार का नग़मा है'। आज इस शृंखला की नौवी कड़ी में हम चुन लाये हैं मुकेश की आवाज़ में फ़िल्म 'धरती कहे पुकार के' का एक ऐसा गीत जिसमें है विरोधाभास। विरोधाभास इसलिए कि गीत के बोलों में तो ख़ुशी की बात की जा रही है, लेकिन गायकी के अदाज़ में करुण रस का संचार हो रहा है। "ख़ुशी की वह रात आ गयी, कोई गीत जगने दो, गाओ रे झूम झूम"। इस तरह के गीतों का हिंदी फ़िल्मों में कई कई बार प्रयोग हुआ है। सिचुएशन कुछ इस तरह की होती है कि नायिका की शादी नायक के बजाय किसी और से हो रही होती है, और शादी के उस जलसे में नायक नायिका को शुभकामनाएँ देते हुए गीत गाता तो है, लेकिन उस गीत में छुपा होता है उसके दिल का दर्द। कुछ ऐसे ही गीतों की याद दिलाएँ आपको? फ़िल्म 'पारसमणि' का गीत "सलामत रहो, सलामत रहो", फ़िल्म 'मिलन' में मुकेश का ही गाया हुआ कुछ ...

लगता नहीं है जी मेरा उजड़े दयार में.. मादर-ए-वतन से दूर होने के ज़फ़र के दर्द को हबीब की आवाज़ ने कुछ यूँ उभारा

महफ़िल-ए-ग़ज़ल #१०१ पू रे एक महीने की छुट्टी के बाद मैं वापस आ गया हूँ महफ़िल-ए-ग़ज़ल की अगली कड़ी लेकर। यह छुट्टी वैसे तो एक हफ़्ते की हीं होनी थी, लेकिन कुछ ज्यादा हीं लंबी खींच गई। दर-असल मेरे साथ वही हुआ जो इन महाशय के साथ हुआ था जिन्होंने "कल करे सो आज कर" का नवीनीकरण किया है कुछ इस तरह से: आज करे सो कल कर, कल करे सो परसो, इतनी जल्दी क्या है भाई, जीना है अभी बरसों। तो आप समझ गए ना? हर बुधवार को मैं यही सोचता था कि भाई पूरे सौ अंकों के बाद जाकर मुझे आराम करने का यह मौका नसीब हुआ है, तो इसे ज़ाया क्यों गंवाया जाए, चलो आज भी महफ़िल से नदारद हो लेता हूँ। यही सोचते-सोचते ४ हफ़्ते निकल गए। फिर जब इस बार बुधवार नजदीक आया तो विश्राम करने के विचार के साथ-साथ अपराध-बोध भी अपना सर उठाने लगा। अपराधबोध का मंतव्य था कि भाई तुमने तो सभी पाठकों से यह वादा किया था कि एक हफ़्ते में वापस आ जाओगे, फिर ये वादाखिलाफ़ी क्यों? अपराधबोध कम होता, अगर मेरे सामने सुजॉय जी का उदाहरण न होता। एक मैं हूँ जो सप्ताह में एक आलेख लिखता हूँ और अभी तक उन आलेखों की संख्या १०० तक हीं पहुँची है और एक ये हुज़ूर ...

रोज शाम आती थी, मगर ऐसी न थी.....जब शाम के रंग में हो एल पी के मधुर धुनों की मिठास, तो क्यों न बने हर शाम खास

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 508/2010/208 ल क्ष्मीकांत-प्यारेलाल के धुनों से सजी लघु शंखला 'एक प्यार का नग़मा है' में आज एक और आकर्षक गीत की बारी। लेकिन इस गीत का ज़िक्र करने से पहले आइए आज आपको एल.पी के बतौर स्वतंत्र संगीतकार शुरु शुरु के फ़िल्मों के बारे में बताया जाए। स्वतंत्र रूप से पहली बार 'तुमसे प्यार हो गया', 'पिया लोग क्या कहेंगे', और 'छैला बाबू' में संगीत देने का उन्हें मौका मिला था। 'तुमसे प्यार हो गया' और 'छैला बाबू' दोनों के लिए चार-चार गाने भी रेकॊर्ड हो गये पर 'तुमसे प्यार हो गया' के निर्माता ही भाग निकले और 'छैला बाबू' रुक गई, जो कुछ वर्षों बाद जाकर पूरी हुई। 'सिंदबाद' के लिए भी रेकॊर्डिंग् हुई पर फ़िल्म पूरी न हो सकी। 'तुमसे प्यार हो गया' के लिए उनकी पहली रेकॊर्डिंग् "कल रात एक सपना देखा" (लता, सुबीर सेन) तो आज तक विलुप्त ही है, पर 'पिया लोग क्या कहेंगे' के इसी मुखड़े के लता के गाये शीर्षक गीत की धुन उन्होंने आगे जाकर 'दोस्ती' के "चाहूँगा मैं तुझे साँझ सवेरे"...

संगीत समीक्षा : गुजारिश - संगीत निर्देशन में भी अव्वल साबित हुए संजय लीला भंसाली...तुराज़ के शब्दों ने रचा एक अनूठा संसार

दोस्तों आज टी एस टी मैं आप मुझे देखकर हैरान हो रहे होंगें, दरअसल सुजॉय छुट्टी पर हैं, और मैंने वी डी को पटा कर ये मौका ढूंढ लिया कि मैं आपको उस अल्बम के संगीत के बारे में बता सकूँ जिसने मेरे दिलो जेहन पर इन दिनों जादू सा कर दिया है. जब बात संगीत की चलती है, और जब कोई मुझसे पूछता है कि मुझे किस तरह का संगीत पसंद है तो मैं बड़ी उलझन में फंस जाता हूँ, क्योंकि मुझे लगभग हर तरह का संगीत पसंद आता है, पुराने, नए, शास्त्रीय, हिप होप, ग़ज़ल सभी कुछ तो सुनता हूँ मैं, फिर किसे कहूँ कि ये मुझे नापसंद नहीं....खैर पसंद भी कई तरह की होती है, कुछ गीतों के शब्द हमें भा जाते हैं (मसलन गुलाल) तो कुछ उसके खालिस संगीत संयोजन की वजह से मन को लुभा जाते (जैसे रोबोट और अजब प्रेम की गजब कहानी) हैं....हाँ पर ऐसी अल्बम्स तो मैं उँगलियों पे गिन सकता हूँ जिसने मुझे संगीत की सम्पूर्ण संतुष्ठी दी है. ऐसा संगीत जिसे सुन तन मन और आत्मा भी संतुष्ट हो जाए.....संजय लीला बंसाली एक ऐसे निर्देशक हैं, जिनकी फ़िल्में रुपहले पर्दे पर कविता लिखती है, वो शुद्ध भारतीय सोच के निर्देशक हैं जो बिना गीत संगीत के फिल्मों की कल्पना नहीं...

खिजां के फूल पे आती कभी बहार नहीं...जब दर्द में डूबी किशोर की आवाज़ को साथ मिला एल पी के सुरों का

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 507/2010/207 'ओ ल्ड इज़ गोल्ड' पर इन दिनों आप सुन रहे हैं फ़िल्म जगत के सुप्रसिद्ध संगीतकार जोड़ी लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल के संगीत से सजी फ़िल्मों के गानें उन्ही पर केन्द्रित लघु शृंखला 'एक प्यार का नग़मा है' के अंतर्गत। आज के अंक में आवाज़ किशोर कुमार की। सन् १९६९ में एक हिट फ़िल्म आयी थी 'दो रास्ते', जिसके गीतों ने भी ख़ूब धूम मचाये, और आज भी अक्सर कहीं ना कहीं से सुनाई दे जाते हैं। फ़िल्म के सभी गानें अलग अलग मूड के थे और हर गीत लोकप्रिय हुआ था। लता का गाया "बिंदिया चमकेगी" और "अपनी अपनी बीवी पे सबको ग़ुरूर है", लता-रफ़ी का "दिल ने दिल को पुकारा मुलाक़ात हो गई", रफ़ी का "ये रेश्मी ज़ुल्फ़ें", मुकेश का "दो रंग दुनिया के और दो रास्ते" जैसे गानों के साथ साथ एक ग़मज़दा नग़मा भी था किशोर दा का गाया हुआ। उन दिनों रफ़ी और मुकेश ही पार्श्वगायकों का प्रतिनिधित्व कर रहे थे। लेकिन किशोर कुमार तेज़ी से लोकप्रियता के पायदान चढ़ते जा रहे थे और ७० के दशक में जाकर पूरी तरह से छा गए और लगभग सभी समकालीन ना...

राम जी की निकली सवारी....आईये आज दशहरे के दिन श्रीराम महिमा गायें बख्शी साहब और एल पी के सुरों में डूबकर

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 506/2010/206 'आ वाज़' के सभी दोस्तों को विजयदशमी और दशहरा की हार्दिक शुभकामनाएँ देते हुए हम शुरु कर रह रहे हैं इस सप्ताह के 'ओल्ड इज़ गोल्ड' का सफ़र। यह त्योहार अच्छाई का बुराई पर जीत का प्रतीक है। आज ही के दिन भगवान राम ने रावण का वध कर सीता को मुक्त करवाया था। नवरात्री का समापन और दुर्गा प्रतिमाओं के विसर्जन से आज दुर्गा पूजा का भी समापन होता है। नवरात्रों में गली गली राम लीला का आयोजन किया जाता है और ख़ास आज के दिन तो रावण-मेघनाद-कुंभकर्ण के बड़े बड़े पुतले बनाकर उन्हें जलाया जाता है। वही बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक! दोस्तों, आज जब इस वक़्त चारों तरफ़ इस बेहद महत्वपूर्ण त्योहार की धूम मची हुई है, तो ऐसे में 'ओल्ड इज़ गोल्ड' का भी कर्तव्य हो जाता है कि इसी त्योहार और हर्षोल्लास के वातावरण को ध्यान में रखते हुए कोई सटीक गीत चुनें। जैसा कि इन दिनों आप सुन रहे हैं कि हम सुप्रसिद्ध संगीतकार जोड़ी लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल के स्वरबद्ध गीतों की लघु शृंखला प्रस्तुत कर रहे हैं, तो ऐसे में आज के दिन फ़िल्म 'सरगम' के उस गीत के अलावा और क...

ई मेल के बहाने यादों के खजाने - जब माँ दुर्गा के विविध रूपों से मिलवाया लावण्या जी ने

'ओल्ड इज़ गोल्ड शनिवार विशेष - ईमेल के बहाने यादों के ख़ज़ाने' के साथ हम हाज़िर हैं। जैसा कि नवरात्री और दुर्गा पूजा की धूम मची हुई है चारों तरफ़, और आज है महानवमी। यानी कि नवरात्री की अंतिम रात्री और दुर्गा पूजा का भी अंतिम दिन। कल विजयादशमी के दिन दुर्गा प्रतिमाओं के विसर्जन से यह उत्सव सम्पन्न होता है। तो क्यों ना आज इस अंक में हम माता रानी की आराधना करें। दोस्तों, हमने महान कवि, दार्शनिक और गीतकार पंडित नरेन्द्र शर्मा जी की सुपुत्री श्रीमती लावण्या शाह जी से सम्पर्क किया कि वो अपने पिताजी के बारे में हमें कुछ बताएँ जिन्हें हम अपने पाठकों के साथ बाँट सकें। तब लावण्या जी ने ही यह सुझाव दिया कि क्यों ना नवरात्री के पावन उपलक्ष्य पर पंडित जी द्वारा संयोजित देवी माँ के कुछ भजन प्रस्तुत किए जाएँ। लावण्या जी के हम आभारी हैं कि उन्होंने हमारे इस निवेदन को स्वीकारा और ईमेल के माध्यम से हमें माँ दुर्गा के विविध रूपों के बारे में लिख भेजा और साथ ही पंडित जी के भजनों के बारे में बताया। तो आइए अब पढ़ते हैं लावण्या जी का ईमेल। ********************** ॐ सर्वमंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थसाधिक...